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भगवन्नाम का ऐसा प्रभाव, भरता सबके हृदय में सद्भाव


एक गाँव में एक गरीब के 2 पुत्र व एक पुत्री थी। खराब संगत से वे तीनों बिगड़ गये। जब बड़े हुए तो भाइयों ने एक कुटिल योजना बनायी कि ‘किसी धनवान के साथ बहन का विवाह रचाते हैं फिर किसी तरह इसके पति को मरवा देंगे। इससे उसका धन अपने कब्जे में आ जायेगा। फिर बहन की शादी कहीं और करवा देंगे।’
भागदौड़ करने पर उन्हें एक धनी युवक घनश्याम मिल गया, जो कि सत्संगी और भगवन्नाम-जप की महिमा में दृढ़ आस्थावान था। उससे उन्होंने बहन की शादी करा दी। विदाई के समय बहन को सब समझा दिया। बहन ससुराल गयी और शादी के तीसरे दिन पति के साथ मायके फेरा डालने के लिए चल पड़ी। राह में प्यास का बहाना बनाकर वह पति को कुएँ के पास ले गयी। पति ज्यों ही कुएँ से पानी निकालने लगा, त्यों ही उसने पति को धक्का मार दिया और मायके पहुँच गयी।
ससुराल से सारा सोना, चाँदी, नकद पहले ही साथ बाँध लायी थी। भाई अति प्रसन्न हुए। उधर उसका पति तैरना जानता था। कुएँ के भीतर से आवाज सुन राहियों ने उसे बाहर निकाला। वह सीधे ससुराल पहुँच गया। उसे जीवित देख सभी चकित एवं दुःखी हुए। घनश्याम ने इस षड्यंत्र के बारे में सब समझने के बावजूद भी ऐसे व्यवहार किया जैसे कोई घटना ही नहीं घटी हो। रीति अनुसार अगले दिन ससुराल से पति ने पत्नी सहित विदाई ली। घनश्याम पत्नी को सत्संग में ले गया। सत्संग और सत्संगी महिलाओं के सम्पर्क से उसकी सूझबूझ सुंदर हो गयी, पवित्र हो गयी।
घनश्याम गृहस्थ के सभी कर्तव्यों को निभाता हुआ भक्तिमार्ग पर भी आगे बढ़ रहा था। उसके दो पुत्र हुए। पुत्रों के विवाह के बाद घनश्याम की ईश्वर-परायणता और भी ब़ढ़ गयी। ब्राह्ममुहूर्त में उठना, दिनभर जप, पाठ स्वाध्याय, सत्संग एव साधु-संतों, जरूरतमंदों की सेवा में निमग्न रहना उसका नियम बन गया था। एक बार बड़ी बहू ने पूछाः “पिता जी ! आप भगवन्नाम इतना क्यों जपते हैं ?”
घनश्यामः “बहू ! भगवान से बड़ा भगवान का नाम होता है। भगवन्नाम में असीम शक्ति एवं अपरिमित सामर्थ्य होता है। भगवान में असीम शक्ति एवं अपरिमित सामर्थ्य है। इसने केवल मेरी जान ही नहीं बचायी है बल्कि मुझे क्रोध, झगड़ा, वैर-विरोध, अशांति तथा न जाने कितनी ही बुराइयों से बचाया है। दूसरों में दोष न देखना, किसी की निंदा न करना, न सुनना, नीचा दिखाने के लिए कभी किसी की बुराई न उछालना बल्कि पर्दा डालकर उसकी बुराई को दूर करने में सहयोगी बनना, उसे उन्नत करना… ये सब सदगुण जापक में स्वतः आ जाते हैं। मैंने संत-महापुरुषों से सुना एवं अनुभव किया है कि कलियुग के दोषों से बचने के लिए भगवन्नाम महौषधि है।”
“पिताजी ! आपकी जान कब बची थी ?”
बहू के इस प्रश्न को घनश्याम ने टाल दिया। ससुर बहू की इस वार्ता को दरवाजे के पास खड़ी घनश्याम की पत्नी भी सुन रही थी। उसकी आँखों से पश्चाताप के आँसू बहने लगे। वह सामने आ गयी और पूर्व में हुई पूरी घटना बताते हुए बोलीः “बेटी ! पतिहंता होते हुए भी पति की मेरे प्रति अतुलनीय क्षमा, सौहार्द व प्रेम है। ऐसे देवतुल्य पति का साथ पाक मैं तो धन्य हो गयी !”
बहू बोलीः “माँ जी ! मैं भी पहले नास्तिक थी। मुझे भगवान, संत-महापुरुषों और भारतीय संस्कृति में श्रद्धा नहीं थी। मैं तो अपने माता-पिता की बात ही नहीं सुनती थी। परंतु यहाँ आने के बाद ससुरजी के कारण मेरे स्वभाव में परिवर्तन आया और आज नाम-जप की महिमा सुनकर अपनी संस्कृति की महानता मालूम हुई। माँ जी ! अब मैं भी ससुरजी के गुरुदेव के पास जाकर मंत्रदीक्षा लूँगी और अपना एवं अपने बच्चों का जीवन उन्नत बनाऊँगी।”
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2015, पृष्ठ संख्या 20,21 अंक 267
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अपना इरादा पक्का बना लो बस – पूज्य बापू जी


आप सदैव शुभ संकल्प करो, मंगलकारी संकल्प करो, विधेयात्मक संकल्प करो, सुखद संकल्प करो। तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु। हमारा संकल्प शिवसंकल्प हो अर्थात् मंगलकारी संकल्प हो।

परिस्थितियाँ कैसी भी हों, प्रतिकूल हों चाहे अनुकूल हों, उनमें डूबो मत, उनका उपयोग करो।

यह तो प्रसिद्ध कहावत है कि

“रोते-रोते क्या है जीना,

नाचो दुःख में तान के सीना।…

रात अंधियारी हो, घिरी घटाएँ काली हों।

रास्ता सुनसान हो, आँधी और तूफान हों।

मंजिल तेरी दूर हो, पाँव तेरे मजबूर हों।

तो क्या करोगे ? डर जाओगे ?”

“ना…”

“रूक जाओगे?”

“ना….”

“तो क्या करोगे?”

“बम बम ॐॐ, हर हर ॐॐ, हर हर ॐॐ….”

शिव संकल्प कौन सा करें ?

‘वकील बनना है, डॉक्टर बनना है, मंत्री बनना है, प्रधानमंत्री बनना है, फलाना बनना है….’ – ये बहुत छोटे संकल्प हैं। ‘सारी सृष्टि का जो आधार है, उस आत्मा-परमात्मा को मुझे जानना है।’ बस, तो प्रधानमंत्री का पद भी तुम्हारे उस परमेश्वरप्राप्ति के संकल्प के आगे नन्हा हो जायेगा। एक बार आप ठीक से सोच लो कि ‘बस, मुझे यह करना है। कुछ भी हो मुझे अपने ईश्वरत्व को जानना है, आत्मा-परमात्मा को जानना है एवं अपने प्यारे के आनंद, ज्ञान, माधुर्य, सान्निध्य का अनुभव करना है।’ प्रधानमंत्री होने में अपनी तरफ से ही बल लगेगा, लोगों का सहयोग लेना पड़ेगा लेकिन परमात्मा की प्राप्ति में लोगों के सहयोग की जरूरत नहीं पड़ेगी। अपने बल पर भी इतनी कोई मेहनत नहीं है। केवल इतना इरादा बन जाये उसे पाने का बस ! फिर जितनी सच्चाई मार्गदर्शन और सहयोग देता जायेगा। ऐसा ही तो हुआ। हम कोई अपने बल पर ईश्वर तक पहुँचे हैं क्या ? नहीं। ‘ईश्वर को ही पाना है’ – इस पक्के इरादे से ईश्वर को खींचकर आना पड़ा।

शिव संकल्प शक्ति विकसित करने का उपाय

परमात्मप्राप्ति की तड़प अभी तुरंत नहीं भी बढ़ा सको तो कम से कम परमात्मा के नाम का जप चालू करो। सुबह नींद में से उठे फिर ‘हरि ॐ …ॐ….ॐ….आनंद….ॐ….ॐ….ॐ…. आरोग्य…..’ – ऐसा कुछ समय जप किया फिर दातुन-स्नान आदि करके दीया जलाकर 10 मिनट ऐसा जप करो। शुभ संकल्प करो। थोड़ा ‘जीवन रसायन’ पुस्तक पढ़ो, थोड़ा ‘ईश्वर की ओर’ पढ़ो और उसी का चिंतन करो। फिर 5 मिनट मन से जप करो, फिर 4-5 मिनट  वाणी से करो अथवा 2 मिनट वाणी से, 3 मिनट मन से – ऐसा आधा घंटा रोज करो। फिर त्रिबंध करके 10 प्राणायाम करो, देखो कैसा लाभ होता है ! पूरा स्वभाव और आदतें बदल जायेंगी। लेकिन 3 दिन किया फिर 5 दिन छुट्टी कर दी तो फिर भाई कैसे चलेगा ! साधना में सातत्य चाहिए। ईश्वरप्राप्ति के रास्ते चलते हैं तो ईश्वर से दूर ले जाने वाले साधना-विरोधी कर्म छोड़ दें। हम लोग थोड़ी साधना करते हैं फिर थोड़ा विपरीत करते हैं फिर जरा साधना करते है… ऐसे गड़बड़ घोटाला हो जाता है, सातत्य चाहिए। सतत लगा रहे तो 6 महीने में तो जापक का जप सिद्ध हो जाय, ईश्वरप्राप्ति हो जाये। 12 महीने में कोई एम.डी. नहीं होता है, एम.ए. या एम.बी.बी.एस. नहीं होता है लेकिन एम.बी.बी.एस. वाले मत्था टेककर अपना भाग्य बना लें ऐसा साक्षात्कार कर सकता है। बोले, ‘मैं कान का विशेषज्ञ हूँ, मैं दाँत का विशेषज्ञ हूँ…’ फिर भी इसमें भी कहीं कुछ बाकी रह जाता है लेकिन उस परमेश्वर-तत्व को जानो तो एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। अतः सब करो लेकिन एक के लिए पूरा संकल्प करो कि ‘ईश्वर को पाना है, बस ! ॐॐॐ….’

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2014, पृष्ठ संख्या 4,5 अंक 262

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आत्मा-परमात्मा को जोड़ने का सिमकार्डः गुरुमंत्र


पूज्य बापू जी

संत कबीर जी ने कहाः

सदगुरु मेरा शूरमा, करे शब्द की चोट।

मारे गोला प्रेम का, हरे भरम की कोट।।

जब सदगुरु के द्वारा मंत्रदीक्षा मिलती है तो आधी साधना तो उसी दिन सम्पन्न हो जाती है। जैसे तुम्हारे घर बिजली का साधारण तार आये या मोटा तार भी हो लेकिन उतना फायदा नहीं होगा परंतु जब वही तार बिजली-घर (पावर हाउस) के खम्भे से जुड़कर आता है तो वह चाहे पतला तार हो फिर भी तुम्हारे घर का अँधेरा मिटा देगा। तुम पानी गर्म करना चाहते हो तो हीटर जोड़ दो और ठंडा करना चाहते हो तो उन छेड़ों को फ्रिज से जोड़ दो। छेड़े तो साधारण दिख रहे हैं लेकिन उनमें पावर हाउस का  प्रवाह है। ऐसे ही गुरुमंत्र दिख रहा है साधारण शब्द लेकिन सदगुरु के आत्मा-परमात्मा का उसके साथ प्रवाह जुड़ा है फिर चाहे तुम योगी बनो, चाहे ध्यानी बनो, चाहे प्रसिद्धि बनो, वह प्रवाह काम देता है। बाहर की विद्युत लाने के लिए तो तुम्हारे घर में बिजली घर से जुड़े हुए छेड़े चाहिए लेकिन विज्ञान ने भी विकास कर लिया है, अभी तो मोबाइल फोन से बात होती है, बिना छेड़े के भी छेड़े जुड़ जाते हैं। जब यंत्र के युग में छेड़े जोड़े बिना भी छेड़े जुड़ जाते हैं तो हमारा प्राचीन मंत्र-विज्ञान तो उससे बहुत ज्यादा विकसित है, जरूरी नहीं कि बाहर के तार दिखें।

गुरु मंत्रदीक्षा देते समय ऐसी कुछ आध्यात्मिक तरंगे, आध्यात्मिक तार जोड़ देते हैं कि शिष्य हजार मील दूर हो, दस हजार मील दूर हो और शिष्य को कोई समस्या है, कोई प्रश्न है या कोई मुसीबत आ गयी है तथा वह गुरु का सच्चे हृदय से सहज चिंतन करता है तो उसी समय वहाँ सूक्ष्मरूप से मदद पहुँच जाती है। जैसे मोबाइल छोटा-सा यंत्र है, यहाँ बटन दबाओ तो अमेरिका में रिंग बजती है और बात हो सकती है। यह तो यंत्र है, यंत्र से तो मंत्र की बड़ी महान शक्तियाँ हैं।

ये मंत्र-विज्ञान और संकल्पशक्ति आपके अंतःकरण में भी बीजरूप में छुपी है। जैसे वटवृक्ष के बीज में वटवृक्ष छुपा है, ऐसे ही जीवात्मा में सारे ब्रह्माण्ड का परमात्मा छुपा है। बीज को तोड़ोगे, उसका जर्रा-जर्रा मेज पर रख दोगे, कतरा-कतरा कर दोगे और सूक्ष्मदर्शक (माइक्रोस्कोप) उठाकर देखोगे तो भी उसमें पत्ते नहीं दिखेंगे, जटाएँ नहीं दिखेंगी, डालियाँ नहीं दिखेंगी, फल नहीं दिखेंगे, फूल नहीं दिखेंगे लेकिन उसमें सब छुपा है, बस, उसे धरती मिल जाय, खाद और पानी मिल जाय, थोड़ी देखभाल मिल जाय। ऐसे ही तुमने साधना की तो धरती मिल रही है और सत्संग व संयम का खाद-पानी भी तुम पा रहे हो। कभी-कभार गुरु के द्वार आ जाओ देखरेख करवाने के लिए। कहीं गलती होगी तो गुरु की कड़ी नजर होगी और ठीक होगा तो गुरु की प्रसन्नता से पता चल जायेगा कि सही मार्ग में आगे बढ़ रहे हैं, वास्तव में उन्नत हो रहे हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2014, पृष्ठ संख्या 23, अंक 259

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