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सर्वफलप्रद साधनः भगवन्नाम-जप – पूज्य बापू जी


भगवन्नाम का बड़ा भारी प्रभाव है। सारे पापों के समूह को नाश करने वाला है भगवान का नाम। जैसे लकड़ी में अग्नि तो व्याप्त है लेकिन छुओ तो वह गर्म नहीं लगेगी, वातावरण के अनुरूप लगेगी। सर्दी में सुबह-सुबह लकड़ी को छुओ तो ठंडी लगती है। आँखों से अग्नि दिखेगी नहीं, छूने से भी महसूस नहीं होगी लेकिन लकड़ी में अग्नि छुपी है। घर्षण करने से जैसे सूखे, ठंडे बाँस में जो अग्नि तत्त्व छुपा है, वह प्रकट हो जाता है। ऐसे ही ध्रुव को नारदजी ने मंत्र दिया और कह दियाः “बेटा ! मधुबन में जाकर पहले वैखरी से बाद में धीरे-धीरे मध्यमा – होठों में फिर कंठ में…… ऐसे करते-करते अर्थसहित जप में लीन हो जाओगे तो तुम्हारी संकल्पशक्ति, हरि आवाहनशक्ति जागृत होगी। तुम्हारा नारायण प्रकट होगा।”

मंत्रजप से ही एकनाथ जी महाराज, संत तुकाराम जी महाराज और समर्थ रामदास जी ने सगुण-साकार को प्रकट भर दिया था। हरि नाम केवल सगुण साकार को ही प्रकट नहीं करता बल्कि निर्गुण-निराकार की शांति, आनंद और मधुरता में विश्रांति दिला देता है। जैसे लकड़ी की रगड़ से आग पैदा होती है, ऐसे ही भगवान का नाम बार-बार लेने से भगवदीय सुख, भगवदीय शांति, भगवदीय ऊर्जा, भगवदीय आनंद प्रकट होता है।

सब घट मेरा साईयां, सूनी सेच न कोय।

बलिहारी वा घट की, जा घर परगट होय।।

अश्वमेध यज्ञ होते हैं, वाजपेय यज्ञ होते हैं नवचंडी यज्ञ होते हैं, वृष्टिदायक यज्ञ होते हैं, कई प्रकार के यज्ञ होते हैं। उऩ सभी यज्ञों में भगवान कहते हैं- यज्ञानां जपयज्ञोsस्मि।

‘यज्ञों में जपयज्ञ मेरा ही स्वरूप है।’

जप अंतरंग साधन है। स्तोत्रपाठ करने से पुण्यमय भाव होता है लेकिन व्यक्ति बहिर्मुख ही रह जाता है। जप करने से पुण्यमय भाव के साथ-साथ व्यक्ति अंतर्मुख होने लगता है।

संकल्प विकल्प करते करते मानसिक शक्तियों का क्षय होता है। जप ध्यान करके संकल्प-विकल्प और क्रिया से थोड़ी-सी विश्रांति पा ले तो आत्मिक, मानसिक, बौद्धिक शक्तियों का संचय होता है। रोगनाशिनी शक्ति जागृत होती है, हृदय पवित्र होता है। पाँचों शरीरों एवं 72 करोड़ 72 लाख 10 हजार 201 नाड़ियों की शुद्धि होती है।

ऐसे निर्मल बने हुए साधक प्रभुनाम-स्मरण से जो रस पाते हैं, वह रस राज्यसुख में नहीं है। रामतत्त्व में, परमात्मतत्त्व में विश्रांति पाने से जो सुख मिलता है, जो आराम मिलता है, जो निर्द्वन्द्व और निःशंक शांति मिलती है, वह शांति, वह सुख, वह आराम स्वर्ग के भोगों में नहीं है, ब्रह्मलोक के सुख में नहीं है।

साधक गलती यह करते हैं कि ‘मेरा यह काम हो जाय फिर मैं आराम से भजन करूँगा। मैं इस तीर्थक्षेत्र में पहुँचकर निश्चिंत होकर भजन करूँगा।’ किसी जगह जाकर, कहीं रह के आप पूर्णता नहीं पायेंगे। पूर्णता जिसमें है उस परमेश्वर के विषय में श्रवण कीजिये, मनन कीजिये। जिसमें पूर्ण सुख, पूर्ण ज्ञान, पूर्ण जीवन है, उस परमात्मा का जप-ध्यान करके आप उसमें विश्रांति पाइये, फिर आप जहाँ जायेंगे वहाँ आपके लिए काशी-क्षेत्र है, आप जिस वस्तु को छुएँगे वह प्रसाद हो जायेगी। आपके लिए सब दिन पूर्णमासी हो जायेंगे।

सूर्योदय से पहले नहा-धोकर बैठ जायें और भगवन्नामसहित श्वासोच्छ्वास की गिनती करें। रात्रि को सब चिंता-तनाव ईश्वरार्पण करके भगवन्नाम के साथ श्वासोच्छवास की गिनती करते करते सो जायें तो रात भी ईश्वरीय शांति का धन कमाने में बीतेगी। इन सहज युक्तियों से दिन भी सफल और रात भी !

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2014, पृष्ठ संख्या 8,9 अंक 257

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दुःखनाशक अचूक औषधि भगवन्नाम


पूज्य बापू जी

किसी दुःख मुसीबत में फँसे हैं और भगवान का नाम लेते हैं तो जैसे डकैतों में फँसा व्यक्ति मदद के लिए चिल्लाता है, ऐसे ही भगवन्नाम एक पुकार है। और व्यक्ति को पुकारो, वह सुने – न सुने, समर्थ हो या कायर हो लेकिन भगवान सुनते हैं और समर्थ हैं। कायरता का तो ‘क’ भी सोचना पाप है। कोई भी तकलीफ या मुसीबत हो तो भगवान का नाम लेते-लेते हृदयपूर्वक प्रार्थना करने वाले को बहुत मदद  मिलती है। ‘पुत्र चला गया भगवान के पास, अब बेटी है और चिंतित है, दुःखी है…’ उस दुःख में आपको दुःखी होने की जरूरत नहीं है। दुःखहारी… जो दुःख का हरण कर ले वह ‘हरि’।

हरति पातकानि दुःखानि शोकानि इति श्रीहरिः।

‘हे हरि…. तुम्हारा नाम ही दुःख को, पातक को, शोक को हरने वाला और ॐकार ओज को, शांति को, सामर्थ्य को भरने वाला है। हरि ॐ…. हरि ॐ…. हरि ॐ….।’ दुःख को याद करके आप दुःख को बढ़ाइये मत, दुःखहारी का नाम उच्चारण करके अपना और बेटी का दुःख हरिये।

जैसे कोई कुत्ता, बिल्ला या कोई पक्षी आपका भोजन जूठा करने को आ रहा है तो आप क्या करते है ? उनको भगाने के लिए ताली बजाते हैं। ऐसे ही चिंता, काम, क्रोध, रोग, भय, शोक ये भी आपके आत्मखजाने की थाली को जूठा करने को आयें तो आप तुरंत ताली ठोक दो, ‘हरि ॐ…. ॐ… बिन फिर हम तेरे… हा… हा….’ हाथ ऊपर करके भगवान की शरण स्वीकार लो।’ अब हम भगवान तेरे हैं, हम चिंता, भय, क्रोध के हवाले होकर ठगे नहीं जायेंगे क्योंकि भगवान  का नाम तो प्रार्थना, पुकार और भगवदीय शक्ति से सम्पन्न है।’

तो जैसे डकैतों से घिरा हुआ आदमी जंगल में पुकारता है तो कोई आये तब आये लेकिन परमात्मा तो मौजूद है। उसके नाम का बार-बार पुनरावर्तन करने से आंतरिक शक्तियाँ जगेंगी। चाहे ‘नारायण-नारायण’ पुकारो, चाहे ‘राम-राम’ पुकारो या ‘हरि ॐ’ पुकारो, मौज तुम्हारी है लेकिन पुकारना यह शर्त जरूरी है।

बोले, ‘महाराज ! हमारे मन में खुशी नहीं है, प्यार नहीं है।’ प्यार नहीं है तो कैसे भी पुकारो। खुशी और प्यार सब आ जायेगा। ‘मुझे कोई खुशी दे देगा, मेरा कोई दुःख हर लेगा’ – इस वादे के सौदे में मत पड़िये। शेयर बाजार में होता है वादे का सौदा लेकिन हरि का नाम वादे का धर्म नहीं, उधारा धर्म नहीं, नकद धर्म है। जैसे डायनमो (जनरेटर) या किसी इंजन को दो चार चक्कर चलाते हैं न, तो पाँचवें-छठे चक्कर में इंजन गति पकड़ लेता है, ऐसे ही छः बार जप करने के बाद जापक का मन और मूलाधार केन्द्र भगवदीय चेतना को भी पकड़ लेता है। जैसे डायनमो घूमने से ऊर्जा बनती है, ऐसे ही सात बार भगवन्नाम लेने के बाद आप रक्त का परीक्षण कराइये, आपके अंदर वह ऊर्जा बन जाती है हो हताशा, निराशा, चिंताओं को हर लेती है, यहाँ तक कि हानिकारक कीटाणुओं को भी मार भगाती है।

मेटत कठिन कुअंक भाल के। भाग्य के कुअंकों को मिटाने की शक्ति है मंत्रजप में। जो संसार से गिराया, हटाया और धिक्कारा गया आदमी है, जिसका कोई सहारा नहीं है वह भी यदि भगवन्नाम का सहारा ले तो  3 महीने के अंदर अदभुत चमत्कार होगा। जो दुत्कारने वाले और ठुकराने वाले थे, आपके सामने देखने की भी जिनकी इच्छा नहीं थी, वे आपसे स्नेह करेंगे। ध्यानयोग शिविर में ऐसे कई अनुभव लोग सुनाते हैं। अगर भगवन्नाम गुरु के द्वारा गुरुमंत्र के रूप में मिलता है और अर्थसहित जपते हैं तो वह सारे अनर्थों की निवृत्ति और परम पद की प्राप्ति कराने में समर्थ होता है। अतः अपने मंत्र का अर्थ समझकर प्रीतिपूर्वक जप करें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2014, पृष्ठ संख्या 21,22 अंक 254

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शिष्य को जोड़े सदगुरु सेः संप्रेषण शक्ति


पूज्य बापू जी

शरीर का श्रृंगार तो रात को बिखर जाता है लेकिन अपने ʹमैंʹ का श्रृंगार तो मौत के बाद भी सुवास देता है। जैसे शबरी का शरीर तो मर गया लेकिन उसके श्रृंगार की सुवास अभी भी है। की बार शिष्यों को सपने में गुरु प्रेरणा देते हैं। कई बार ध्यान में प्रेरणा देते हैं। कई बार भावों से भरा हुआ शिष्य जो कहता है वैसा हो जाता है अथवा जो होने वाला होता है, शिष्य को पूर्व-सूचना मिल जाती है। ऐसी-ऐसी गुरु-शिष्यों के संबंधों की कई ऐतिहासिक गाथाएँ हैं। ये घटनाएँ ʹसंप्रेषण शक्तिʹ के प्रभाव से होती है।

संप्रेषण शक्ति का आभास तब होता है जब शिष्य मनोमय और विज्ञानमय शरीर में पहुँचता है। अन्नमय शरीर (स्थूल शरीर) और प्राणमय शरीर से तो वह आता है लेकिन गुरु के सान्निध्य में एकाकार होकर शिष्य मनोमय और विज्ञानमय शरीर में पहुँचता है।

संप्रेषण शक्ति का माध्यमः गुरुमंत्र

जैसे मोबाइल फोन के टावर से तुम्हारे मोबाइल में ध्वनि की विद्युत चुम्बकीय तरंगे आती हैं तो बीच में सिम कार्ड की व्यवस्था है, ऐसे ही गुरु और ईश्वर की अध्यात्म-शक्ति की तरंगे जिस सिम कार्ड से शिष्य के अंदर संचार करती हैं उसका नाम है गुरुमंत्र। सिम कार्ड तो एक्सपायर हो जाता है और मनुष्य का बनाया हुआ है लेकिन मंत्र मनुष्य का बनाया हुआ नहीं है। ऋषि मंत्र के द्रष्टा हैं, ऋषियों ने भी नहीं बनाया है। गुरु जब मंत्र देते हैं तो मनोमय और विज्ञानमय शरीर के साथ आत्मिक स्तर पर गुरु-शिष्य का संबंध हो जाता है। मंत्र एक माध्यम बन जाता है, जोड़ देता है गुरु की शक्ति के साथ। गुरु मंत्रदीक्षित साधक को संप्रेषित कर देते हैं। बौद्धिक प्रदूषणों से दूर कर देते हैं। उसके द्वारा कोई गलती होती है तो तुरंत उसको एहसास होता है। जो निगुरा है वह गलत करेगा तो भी उसे गलती नहीं लगेगी। सगुरा गलत करेगा तो उसको गलती दिखेगी, उसकी बुद्धि में गुरुमंत्र का प्रकाश है। गुरुमंत्र के प्रकाश से चित्त ऐसा प्रकाशित होता है कि विज्ञान की वहाँ दाल नहीं गलती। विश्लेषण, गणित और आधुनिक विज्ञान से यह अलग प्रकाश है।

जैसे पयहारी बाबा को पृथ्वीराज चौहान न कहा किः “मैं आपको द्वारिका ले जाऊँगा।”

वे बोलेः “तू क्या ले जायेगा ! मैं तुझे ले जाऊँगा।”

बाबा रात को पृथ्वीराज चौहान के कमरे में प्रकट हो गये। पृथ्वीराज चौहान को द्वारिकाधीश का दर्शन करा के सुबह होने के पहले अपने कमरे में पहुँचा दिया। यहाँ विज्ञान तौबा पुकार जायेगा। मेरे गुरुजी मुझे याद करके कुछ दे रहे हैं, तुरंत पता चल जाता। ऐसे ही कोई शिष्य याद करता है तो गुरु के चित्त में उसका स्फुरण हो जाता है।

यह जो गुरुओं की परम्परा है और संप्रेषण शक्ति से रूपांतरण है, वह और किसी साधन से नहीं हो सकता है। संत तुलसीदास जी कहते हैं-

यह फल साधन ते न होई।

गुरुकृपा ही केवलं शिष्यस्य परं मंगलम्।

परम मंगल तो गुरु की कृपा से ही होता है, बिल्कुल पक्की बात है। मेरा तो क्या, मेरे जैसे अऩेक संतों का अनुभव है।

सपने में गुरुदर्शन देता अदभुत संकेत

सपने में सिर पर गुरु जी हाथ रख रहे हैं तो यह समझ लेना कि गुरु जी का आशीर्वाद आया है। सपने में गुरु जी से बात कर रहे हैं तो समझो गुरु जी सूझबूझ का धन देना चाहते हैं। सपने में गुरुजी को हम स्नेह कर रहे हैं तो प्रेमाभक्ति का प्रकाश होने वाला है। अगर आप सपने में चाहते हैं कि हमारे सिर पर गुरु जी हाथ रखें तो आपके अंदर आशीर्वाद पचाने की क्षमता आ रही है। यह इसका गणित है। अगर आपकी आँखें गुरुजी सपने में बंद कर देते हैं तो आपको स्थूल दृष्टि से पार सूक्ष्म दृष्टि गुरु जी देना चाहते हैं। सपने में गुरुजी तुमसे या किसी से बात करते हुए दिखते हैं तो मानो तुम पर बरसना चाहते हैं।

भक्ति आरम्भ में मंदिर, गिरजाघर, पूजा-स्थल पर होती है लेकिन सच्ची भक्ति सदगुरु की दीक्षा के बाद शुरु होती है। उसके पहले तो के.जी. में सफाई करना होता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2013, पृष्ठ संख्या 20,21 अंक 247

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