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अंश टैग


सत्संग में भी बस गुरु शब्द कहते हैं उनके गुरु 

कौन है यह नहीं बताते और यह खुली आंख दिखनेऔर समझने वाली बात आपके सामने रखी है । और हम सच्चे साधकों को भी जीवन में एक स्टैंड तो लेना ही पड़ेगा कि हमने बापूजी से दीक्षा ली है तो हम एकनिष्ठ है कि नही, या उनके उपदेश के विरुद्ध इधर उधर मुंह मारने जाते है।

जैसे लौकिक जगत में नेता के अंश का टैग काम आता है वैसे आध्यात्म जगत गुरु परिवार और गुरु के अंश का टैग काम नहीं आता । शिष्य का कल्याण उसके सतगुरु ही कर सकते है, भगवान् भी नहीं कर सकते तो आसुरी

माया क्या करेगी ? 

बापूजी के भक्त इनको बापू की बेटी मानकर यही समझते हैं कि यह सब बागडोर संभाल , लेकिन यह तो सोचो कि जो पूज्यबापूजी को पिता और गुरु नहीं मानती, जिनके किसी आश्रम में और पुस्तक में बापूजी का नाम या फोटो भी नहीं है, उनके हाथ में बागडोर आएगी तो वे आश्रम से बापू का नाम और फोटो हटाकर अपने नाम और फोटो ही लगा देंगे । अब तक उन्होंन गुरु पुत्री या शिष्या का क्या क्या कतर्व्य निभाया बताए तो सही । बस बापूजी के साधकों को इमोशनल करके यही बताया कि वे बड़ी पीड़ित है और आश्रम उन पर अन्याय कर रहा ।

 अगर आप किसी महिला संत का जीवन चरित्र पढोगे तो उस में अगर वह विवाहित होगी तो उनके पतिदेव का नाम और विवाह कब हआ यह भी बताया जाता है लेकिन आसुरी माया ने अपने परिचय में यह नही बताया कि उनका विवाह डॉ हेमंत बुलानी से हुआ था और आसुरी माया के दुभार्ग्य से या डॉ हेमंत बुलानी के सौभाग्य से वे इस माया को छोड़कर विदेश चले गए । और आखिर गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने में विफल होने के कारण हताश निराश होकर आखिर मजबूरी से उनको आध्यात्मिक जीवन स्वीकार करना पड़ा पर आध्यात्मिक मार्ग पर चलने क योग्यता तो थी नहीं, न कोई साधना की थी न ही गुरु सेवा निष्ठापूवर्क की थी, न ही कोई पूर्व जन्म की कमाई थी । पढी लिखी भी नहीं थी कि कोई जॉब करके पैसे कमा सके और पूजवाने की वासना प्रबल थी । इसलिए महिला आश्रम की साध्वियों को गुमराह करके, उनकी श्रद्धा उनके गुरु से  कपट के द्वारा मिटाकर के आसुरी माया ने अपने अनुयायियों का गुट बनाना शुरु किया । जब गुरुदेव को इस बात का पता चला तो उन्होंने उनको आश्रम से निकाल दिया । फिर भी उन्होंने गुरुदेव के शिष्यों को सेवक बनाकर उनके धन का ही उपयोग करके अपना बिजनेस चालु किया जो अभी तक चल रहा है और पिताजी के सब आश्रमों को अपने अधीन करने क बदनियत से वे अभी तक अनेक प्रकार के षड्यंत्र कर रही है जिसको न जानते हुए गुरुदेव के भोले भाले शिष्य उनके शिकार हो रहे है वह बाल ब्रह्मचारिणी है ऐसे भ्रम फैलाने के लिए उन्होंने उनके पतिदेव का नाम भी उनके जीवन चरत्र में बताया नहीं । अतः वे एक त्याक्ता महीला है, बाल ब्रह्मचारिणी नहीं, और जैसा चरित्र अन्य त्यकताओं का होता है ऐसा ही इनका भी है। 

साधक अब समझने लग गए हैं कि पद के पीछे क्या चल रहा है और क्या चाल है। अब भी उनके पिता और गुरु विषयक सवालों के जवाब भार अति देवी न दे सके तो उनके पालतू कुत्ते  जो इनके टुकड़े खाकर इनकी पोल खोलने

वालों को और गुरु के समर्पित संचालकों और शिष्यों को भौंकते रहते है व राहुल दोषी, भ्रम भ्रम ठाकुर आदि  साधकों में भ्रम फैलाने वाली टोली भी इन प्रश्नों के जवाब देकर उनकी वेबसाईट में कम से कम उनके पिताजी और गुरु का नाम डाल देंगे तो हमें बड़ी प्रसन्नता होगी और अगर वे यह नहीं कर पाती है तो उनका पाखण्ड सिद्ध हो जाएगा ।अब हमें देखना है कि आसुरी माया यह करने देती है या नही।

हरि ओम

#जागो_साधक_जागो

गुरुद्रोही छोरी


जितना ओपनली बोलते हैं कि बापू से हम अलग है उतना ही ओपनली यह भी बोले कि बापू के भक्त यहां ना आए और जो एकनिष्ठ गुरुभक्त नहीं है वही इनके पास जाते है जो गुरु का अंश और गरु परिवार की बीन बजाते है इन बातों को अपनी खुली आंखों से देखना चाहिए गुरु अंश और गुरु परिवार करने वालों को समझना चाहिए राम के भी पुत्र थे और कृष्ण १६००००० से ज्यादा पुत्र थे १६००० से ज्यादा पुत्रियाँ थी । वे सब राम और कृष्ण के अंश थे पर कृष्ण के भक्त उनके इन अंशों की पूजा तो क्या उनको याद भी नहीं करते।

यह जरुरी नहीं कि भक्तों के घर हर बार भक्त  ही आता है । कभी हिरण्यकिशपु के यहां भक्त प्रल्हाद भी हो सकता है और कभी भगवान कृष्ण के यहां भी विद्रोही पुत्र हो सकता है।

ऐसा भी सुनने में आया है कि गुरु को फसाने वालों के साथ यह भी मिले हुए हैं। बाबा रामदेव वास्तव में बीजेपी से मिले हुए है फिर भी उनके योग शिविर के किसी पोस्टर में बीजेपी के किसी नेता का फोटो नहीं मिलेगा । पर आसुरी माया के योग शिविर के पोस्टर में सर्वोच्च बीजेपी नेता की फोटो छपी हई है । इससे स्पष्ट होता है कि षड्यंत्कारी नेताओ से वे मिले हुए है । (यहा वह फोटो अपलोड दिखा देना) । भ्रम भ्रम ठाकुर , राहुल दोषी, मिहिर आदि ध्रतों को यह फंडिंग  करते है जो धन का लालच में अपने गुरु से गद्दारी करने का पाप कर रहे है । वे यह भी सोचें कि क्या यह धन

नारकीय दुखों से बचाएगा ? 

और एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि एक और साधक गुरु भाई जो कभी गुरु निष्ठा से डग नहीं सकते उनको एक गरु बहन ने बताया था कि भारती देवी के यहां आने वाले बापू के शिष्य को धीरे धीरे  विश्वास  में लेकर उनके गुरु मंत्र छुड़वाते हैं और नया गुरु मंत्र देते हैं वह भी इनके सत्संग में जाती थी वहां देखा है, फिर एकांत में बुलाकर बापू और

नारायण साई के विषय में जहर भरते हैं कि दोनों बाप बेटे बाहर आएंगे तो फिर से ऐसे ही करेंगे अच्छा हुआ गए आदि । यह बात श्री अजय मिश्रा ने अपने कानों से सुनी। हई

कोई छोटी मोटी कला भी किसी से कुछ सीखता है तो उसका क्रेडिट उस गुरु को देता है कि यह विद्या मैंने सीखी है, इनसे यह रिसपी सीखी है, उनसे म्यूजिक सिखा है ,फलाने से गाड़ी चलाना सिखा है, फलाने गरु से स्कूल की शिक्षा ली है , यह मेरे इस विषय के गरु हैं,लेकिन भारती देवी के चरित्र में कहीं भी ना पिता की महिमा है ना पिता को गरु 

रुप में स्वीकारने की बात पाई , यह बात देवी के पाखण्ड को उजागर करती है ।

आप स्वयं उनके ऑफिशियल वेबसाइट पर जाकर चेक कर सकते है उनकी लिंक है

http://www ।prernamurti ।com/index ।php

भारती देवी की पूजवाने की वासना


आखिर किस आधार पर उनके भक्त उनको आत्माज्ञानी मानते है? एक सच्चे ब्रह्मज्ञानी गुरु के शिष्य होकर भी किसी पाखंडी के चक्कर में क्यों आते? फिर भी उनका कसूर नहीं है । आसुरी माया का प्रभाव ही ऐसा होता है।

गीता में भगवान कृष्ण कहते है कि उनकी दैवी माया बड़ी दुस्तर है फिर भी कोई कोई सतगुरू के शिष्य उनकी कृपा से माया को तर जाते है लेकिन आसुरी माया तरना तो असंभव है क्योंकि वह शिष्य की श्रद्धा सतगुरू से

अपने में लगा देते है । इसिलए आसुरी माया के चक्कर में आये हए लोग सावधान हो जाए तो ठीक है अन्यथा उनके  लिए मोक्ष पाना तो असंभव हो जाएगा और उनको नरकों की यात्रा से बचाने वाला भी कोई नहीं मिलेगा।

जैसे लौकिक जगत के सेक्स वकर्र और उनके pimp धन कमाने के लिए चरित्रवान पुरूषों को भ्रष्टाचारी बनाते है , उनके धन, यौवन, स्वास्थ्य एवं चरित्र को नष्ट कर देते है वैसे आध्याित्मक जगत के सेक्स वकर्र pimp धन कमाने के लिए और खुद को पजुवाने के लिए ब्रह्मज्ञानी गुरू के शिष्यों , एकनिष्ठ गुरुभक्तों को व्यिभचारणी भक्ति सिखाकर उनका धन, उच्च आध्याित्मक संपत्ति , एकनिष्ठ गुरुभक्ति , स्वास्थ्य और मोक्ष क संभावना को नष्ट कर देते है जो करोड़ों जन्मों के बाद कभी कभी प्राप्त होती है । और जैसे एक बार जिसको सेक्स वकर्र का चस्का लग जाता है वह फिर से चरित्रवान बनना नहीं चाहता वैसे ही जिसको एक बार आध्याित्मक जगत के सेक्स वकर्र का चसका लग गया वह भी फिर से एकनिष्ठ गुरुभक्त  बनना नहीं चाहता लौकिक जगत के सेक्स वकर्र तो स्त्रियां ही हो सकती है लेकिन आध्याित्मक जगत के सेक्स वकर्र स्त्रियां और पुरूष दोनों हो सकते है। लौकिक जगत के सेक्स वकर्र का शिकार तो केवल परूष होते है पर आध्याित्मक जगत के सेक्स वकर्र के शिकार स्त्रियां और पुरुष दोनों होते हैं। इसका यह प्रमाण है कि भारती देवी पूज्यबापू को ना ही गरू मानते हैं और ना ही पिता। फिर भी उनकी दुकान बापू के नाम से ही चलती हैं । 95% श्रोता बापू के ही साधक है और सेवा में भी आश्रम के ही समर्पित भक्त हैं। जब वे बापू से अलग है तो बापू के शिष्यों क सेवा क्यों लेते हैं ? सवा सो करोड़ से ज्यादा लोग भारत में है उनको अपना शिष्य या अनुयायी क्यों नहीं बनाते? क्योंकि गुरु बनने का सामर्थ्य नहीं है, इसिलए पाखण्ड चलाकर पूजवाने की वासना तृप्त करनी है ।