Articles

डॉ प्रेमजी के पत्र के जवाब का खंडन -6


आप लिखते हो आज आप लोगो के यह हाल है तो प्रभुजी के avgarna के कारण है”

प्रभुजी हमारे गुरु नहीं है, उनको ये आशा नहीं रखनी चाहिए कि जो उनके शिष्य नहीं है वे उनके मार्ग दर्शन में चले. तथाकथित प्रभुजी तो क्या वैकुंठवासी प्रभुजी की भी हम अवगणना (अवहेलना) कर देंगे अगर वे हमें हमारे गुरु के आदेश के खिलाफ कार्य करके हमारे हाल सुधारने की सिख देंगे तो. गुरु के आदेश के अनुसार हम नरक में भी जाने को तैयार है, और प्रभुजी जैसे लोगों की कृपा से हमें स्वर्ग मिलता हो तो उसको हम ठुकरा देंगे. जिस हाल में हमें गुरुदेव रखते है वह हमारे लिए स्वर्ग से भी उत्तम है, इसलिए प्रभुजी हमारे हाल की चिंता छोड़कर अपना हाल सुधारे.

डॉ प्रेमजी के पत्र के जवाब का खंडन -5


आपने लिखा हैऔर श्री चंद ने गुरु गद्दी मांगी थी लेकिन प्रभुजी ने बापूजी से कोई गुरु गद्दी नही मांगी है”

जब आपके प्रभुजी मेरे गुरुदेव के शिष्य ही नहीं है तो उनको गुरु गद्दी मांगने का अधिकार ही नहीं है. गुरु गद्दी कोई पैतृक संपत्ति नहीं है कि पिता के संतान उस में अपना हिस्सा मांग सके.

मैंने लिखा था “गुरु नानक ने उनके बाद गुरु गद्दी अंगद देव को दी थी, उनके पुत्र श्रीचंद ने अपना अलग उदासीन सम्प्रदाय चलाया. फिर भी गुरु नानक के शिष्य अंगद देव को ही गुरु मानते थे, ऐसा नहीं सोचते थे कि श्रीचंद भी गुरु परिवार में है.” इस का तात्पर्य यह है कि गुरुद्वारा जिसको अधिकार दिया जाए उसे सिख धर्म के अनुयायी गुरु मानते थे, गुरु परिवार को नहीं. याने गुरु गद्दी मांगी नहीं जाती. अधिकारी को दी जाती है. फिर भी आप तात्पर्य को न समझकर कहते हो कि श्रीचंद ने गुरु गद्दी मांगी थी. प्रभुजी ने नहीं मांगी.

डॉ प्रेमजी के पत्र के जवाब का खंडन -4


आपने लिखा हैआपके आश्रम में दिन भर सत्संग चलता है तो कोन सुधरा है” 

यहाँ तो आपने सत्संग की निंदा करने का पाप किया है. आश्रम के साधकों को सुधारने का आपने ठेका लिया है क्या? सब की अपनी अपनी योग्यता होती है, सब अपने अपने ढंग से आगे बढ़ते है, और सब को लाभ होता है इसलिए सब रहते है. स्वामी विवेकानंद कहते थे जो सत्संग करता है वह ५० गलतियां कर सकता है पर सत्संग नहीं करता तो वह ५०० गलतियां करता. इसलिए सब आपकी मान्यता के अनुसार न भी सुधरे हो तो उसमें सत्संग का दोष नहीं है. प्रभुजी का प्रवचन सुननेवाले सब सुधर गए हो तो उन सबको बधाई हो. लेकिन वास्तव में सुधरा हुआ कभी किसीमें दोष दर्शन नहीं करता. अगर किसीको अपने और अपनेवालो के गुण दीखते हो और दूसरों के दोष दीखते हो तो वह सुधरा हुआ नहीं है, बहुत बिगड़ा हुआ है.  कौन सुधरा और कौन नहीं सुधरा उसकी आप क्यों चिंता करते हो? आप अपना सुधार कर लो तो काफी है.