वह पथ क्या पथिक ! जिस पथ पर शूल न हों ।
नाविक की धैर्य-परीक्षा ही क्या, जब धाराएँ प्रतिकूल न हों ।।
पथिक की कुशलता की परीक्षा क्या ? कि जब पथ अवरोधों से
भरा हो और वह अपनी मंजिल तय कर ले । नाविक के धैर्य की परीक्षा
क्या ? जब धाराएँ प्रतिकूल हों और वह नाव ले जाय पार । ऐसे ही
वातावरण प्रतिकूल हो फिर भी अपनी चित्त-वृत्तिरूपी नाव को संसार से
पार लगाने में जो लगा वह साधक सफल हो जाता है । प्रतिकूल और
अनुकूल दोनों धाराओं में जो सम रहता है वह कर्म में कुशल हो जाता है
। कर्म में ऐसी कुशलता योग है ।
विद्या के 6 विघ्न
स्वच्छन्दत्वं धनार्थित्वं प्रेमाभावोऽथ भोगिता ।
अविनीतत्वमालस्यं विद्याविघ्नकराणि षट् ।।
‘स्वच्छन्दता अर्थात् मनमुखता, धन की इच्छा, किसी के (विकारी)
प्रेम मे पड़ जाना, भोगप्रिय होना, अनम्रता, आलस्य – ये 6 विद्या के
विघ्न हैं ।’ (सुभाषितरत्नाकर)
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2022, पृष्ठ संख्या 19 अंक 349
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Articles
परिप्रश्नेन
प्रश्नः आत्मदर्शन का सरल उपाय क्या है ?
पूज्य बापू जीः आत्मदर्शन ( आत्मानुभव ) करने का एकदम सादा सरल उपाय है कि पहले तो यह माने कि मैं शरीर नहीं हूँ, मैं मन बुद्धि नहीं हूँ । शरीर को, मन को, बुद्धि को देखने वाला चैतन्य आत्मा हूँ’ – ऐसा मानना शुरु करे । जैसे पृथ्वी गोल है ऐसा बच्चा मानता है फिर आगे चल के जान लेता है ऐसे ही अपने को आत्मा मानना शुरु कर दे । दूसरा, सुख आये तो उसमें चिपके नहीं, दुःख आये तो उससे घबराये नहीं । ये आने-जाने वाली चीजें, रहने वाला मेरा आत्मा है – ऐसा बार-बार व्यवहार में चिंतन करे । योगवासिष्ठ का विचार करे और अजपाजप का अभ्यास करे तो चित्त आत्मदर्शन के योग्य बन जायेगा । ठीक है न !
प्रश्नः मेरे को अहंकार जल्दी आ जाता है, क्या करूँ ?
पूज्य श्रीः जिस बात का अहंकार आता हो उसमें अपने से उन्नत जो लोग हैं उनको मन से देखो और उस विषय के बड़े लोगों के सम्पर्क में रहो तो अहंकार आसानी से मिटेगा । धन का अहंकार, सत्ता का अहंकार, विद्या का अहंकार… किसी भी प्रकार का अहंकार आता हो तो ‘उस विषय में जो आगे बढ़े हैं वे भी चले गये, खाक में मिल गये तो मैं किस बात का अहंकार करूँ ?’ ऐसा चिंतन करो ।
प्रश्नः गुरु में अनन्य प्रीति कैसे बढ़े ?
पूज्य बापू जीः जैसे तुम मेले में जाते हो तो सब लोगों को गले नहीं लगते हो, जिसका बहुत बार नाम लिया है, सुमिरन किया है उस व्यक्ति को मेले में देखते हो तो प्रीति जगती है और गले लगते हो, ऐसे ही जिसमें प्रीति करनी है उसका स्मरण या उसका नाम बढ़ाते जाओ तो प्रीति बढ़ जायेगी ।
प्रश्नः आसपास का माहौल शांति भंग करता है तो उसको भूलने के लिए क्या करना चाहिए ?
पूज्य बापू जीः आसपास के माहौल को न बदलो, न मिटाओ, न महत्त्व दो । मन में अगड़म-तगड़म स्वाहा…. करके उपेक्षित कर दो । यह होता रहता है, अपना जो ( परमात्मप्राप्ति का ) उद्देश्य लेकर बैठे हैं उसमें डट जाओ । फिर भी माहौल का प्रभाव पड़ेगा तो जोर-जोर से ॐकार मंत्र का जप कर सकते हैं तो करो और माहौल को मिथ्या समझो, अगड़म-तगड़म स्वाहा… कर दो । ( आप मराठी हैं तो ) ‘इकड़े-तिकड़े काय करायचे विट्ठल-विट्ठल बोला, ‘हरिॐ’ ‘हरिॐ’ बोला ।’ ( इधर-उधर क्या करना, ‘विट्ठल-विट्ठल’ बोलो, ‘हरि ॐ, हरि ॐ’ बोलो । )… ऐसा करके मन को असंग, निर्लेप बनाना पड़ता है ।
किसी की ‘टें-टें’, किसी की ‘चें-चें’, किसी की ‘में-में’, किसी की ‘भें-भें’ हो रही है तो क्या करें ? तो दुनिया की टें-चें-में-भें…’ बंद नहीं कर सकते हैं, यह तो हिमालय में भी होता रहता है । तो अब ऐसा सोचें कि ‘टें’ की गहराई में, ‘में’ की गहराई में, ‘भें’ की गहराई में मेरा प्रभु है । मेरे चैतन्य की सत्ता से सब हो रहा है । यह वे जानते नहीं, ‘टें-में’ कर रहे हैं लेकिन उनकी गहराई में तो मैं ही मैं, प्रभु ही प्रभु है, वाह-वाह !’ माहौल का प्रभाव हट जायेगा । युक्ति से मुक्ति होती है, नहीं तो माहौल बदलने में तो जिंदगियाँ बदल जाती हैं ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2022, पृष्ठ संख्या 34 अंक 349
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5 आयु-आरोग्यवर्धक चीजें एवं 5 आयुनाशक चीजें – पूज्य बापू जी
5 चीजों से आयुष्य और आरोग्य बढ़ता हैः
- संयमः पति पत्नी हैं फिर भी अलग रहें, थोड़ा संयम से रहें ।
- उपवासः 15 दिन में एक उपवास करें ।
- सूर्यकिरणों का सेवनः रोज सुबह सिर को ढककर शरीर पर कम-से-कम वस्त्र धारण करके 8 मिनट सूर्य की ओर मुख व 10 मिनट पीठ करके बैठें । सूर्य से आँखें न लड़ायें ।
- प्राणायामः प्रातःकाल 3 से 5 बजे के बीच प्राणायाम करना विशेष लाभकारी है । यह समय प्राणायाम द्वारा प्राणशक्ति, मनःशक्ति, बुद्धिशक्ति विकसित करने हेतु बेजोड़ है ।
- मंत्रजपः मंत्रजप से आयुष्य, आरोग्य बढ़ता है और भाग्य निखरता है ।
इन पाँच कारणों से आयु नष्ट होता हैः
- अति शारीरिक परिश्रम ।
- भय ।
- चिंता
- कामविकार का अधिक भोग ।
- अंग्रेजी दवाइयाँ, कैप्सूल, इंजेक्शन, ऑपरेशन आदि की गुलामी ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2021, पृष्ठ संख्या 8 अंक 348
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