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आज विश्व को अगर किसी चीज की जरूरत है तो… ( पूज्य बापू जी की सारगर्भित अमृतवाणी )


जीवन दुःख, क्लेश, मुसीबतों का बोझ बनाकर पिस मरने के लिए नहीं है, जीवन है आनंदित-उल्लसित होते हुए, माधुर्य भरते हुए, छिड़कते हुए, छलकाते हुए आगे बढ़ने के लिए । सबका मंगल हो, सबकी उन्नति हो, सबका कल्याण हो यही अपना लक्ष्य हो । इससे आपकी वृत्ति, आपकी बुद्धि और आपका हृदय विशाल होता जायेगा । आप व्यक्तिगत स्वार्थ को तिलांजलि दो ।

अगर कुटुम्ब का स्वार्थ सिद्ध होता है तो व्यक्तिगत स्वार्थ की परवाह मत करो, कुटुम्ब के भले के लिए अपने व्यक्तिगत भले को अलविदा करो । पूरे पड़ोस का बढ़िया भला होता है तो अपने कुटुम्ब के भले का दुराग्रह छोड़ो और पूरी तहसील का भला होता है तो पड़ोस के भले का दुराग्रह छोड़ो । जिले का भला होता है तो तहसील का दुराग्रह छोड़ो । अगर राज्य का भला होता है तो जिले का दुराग्रह छोड़ो । अगर देश का भला हो रहा है तो राज्य के भले का दुराग्रह छोड़ो और विश्व-मानवता का मंगल हो रहा है तो फिर ये सीमाएँ और भी विशाल बनाओ और विश्वेश्वर में आराम पाने की कला मिल रही है तो वह सर्वोपरि है, सर्वसुंदर है, मंगल-ही-मंगल है । जितना दायरा विशाल उतना व्यक्ति महान, जितना दायरा छोटा उतना व्यक्ति छोटा ।

जो नेता लोग जातिवाद का जहर फैलाकर अपनी रोटी सेंक लेते हैं वे भले 4 दिन की कुर्सी तो पा लेते हैं लेकिन देश के साथ विद्रोह करने का, मानव जाति के साथ विश्वासघात करने का भारी पाप करते हैं इसलिए उनका प्रभाव ज्यादा समय तक नहीं टिक सकता है । गांधी जी का प्रभाव क्यों ज्यादा टिका है ? गौतम बुद्ध का, महावीर स्वामी का, संत कबीर जी का, गुरु नानक जी का, साँईं श्री लीलाशाह ही का प्रभाव अब भी विश्वभर में क्यों है ? वे विश्वात्मा के साथ एकाकार होने की दिशा में चले थे और आप उससे एकाकार होने के लिए ही मनुष्य-तन पा सके हैं ।

गंगा जी कभी यह नहीं सोचतीं कि ‘गाय को तो अमृततुल्य पानी दूँ और शेर हरामजादा हिंसक है तो उसको विष मिलाकर दूँ । गंगा जी सबको समानरूप से शीतल पानी, प्यास बुझाने वाला मधुर जल देती हैं ।

‘काफिरों को तपाकर मार डालूँ और मुसलमानों को ही प्रकाश दूँ’ सूरज ऐसा नहीं करता । चाँद ऐसा नहीं करता कि ‘हिंदुओं को ही चाँदनी दूँ और मुसलमानों को वंचित रखूँ’, नहीं ।

भगवान के 5 भूत सभी के लिए हैं, अल्लाह, भगवान सभी के लिए हैं तो तुम्हारा हृदय भी सभी के लिए उदार हो, यह भारतीय संस्कृति का महान ज्ञान सभी के अंतःकरण में होना चाहिए ।

आज विश्व को बमों की जरूरत नहीं है, आतंक की जरूरत नहीं है, शोषकों की जरूरत नहीं है, विश्व को अगर जरूरत है तो भारतीय संस्कृति के योग की, ज्ञान की और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के भाव की जरूरत है, विश्व में उपद्रव की नहीं, शांति की जरूरत है । अतः इस संस्कृति की सुरक्षा करना, इस संस्कृति में आपस में संगठित रहना यह मानव-जाति की, विश्वमानव की सेवा है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2022, पृष्ठ संख्या 2 अंक 352

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सुखी और प्रसन्न गृहस्थ जीवन के लिए… – पूज्य बापू जी ( श्री सीता नवमी 10 मई 2022 )


एक समय की बात है । दंडकारण्य में भगवान श्री रामचन्द्र जी और सीता जी बैठे थे । लक्ष्मण जी गये थे कंद-मूल आदि लेने । सीता जी की दृष्टि पड़ी उस विशाल वृक्ष पर जिसको छूती हुई एक लता ऊपर चढ़ी थी । सीता जी को अपने और राम जी के संबंध का सुमिरन हो आया । उनका हृदय गद्गद होने लगा । सीता जी कहती हैं- ‘प्रभु !…’

सीता जी अपने पति को ‘प्रभु’ बोलती हैं और प्रभु प्रेम से बोलते हैं- ‘सीते !…’

ऐसा नहीं कि पति कहेः ″इधर आ ! कहाँ भटक रही है ?″

पत्नी कहेः ″चल मुआ ! यह टुकड़ा खा, मैं जाती हूँ मायके ।″

पति-पत्नी हो कि डंडेबाज हो ! फिर बोलेंगेः ‘डाइवोर्स ( तलाक ) करो ।’ इससे कुछ नहीं होगा । जो हो गया सो हो गया । फेरे फिरे न, अब भोगो… चाहे रो के भोगो या हँस के भोगो पर प्रारब्ध को भोग के छूटो । वह कहती हैः ″मैं मायके जाती हूँ ।…″

यह कहता हैः ″मैं दूसरी लाता हूँ ।″ दूसरी लाने से भी कुछ नहीं होगा । और माई ! मायके जाने से भी कुछ नहीं होगा । तुम दोनों संयम करो तो सब अच्छा हो जायेगा । सदैव सम और प्रसन्न रहना ईश्वर की सर्वोपरि भक्ति है ।

सीता जी कहती हैं- ″प्रभु ! यह लता कितनी भाग्यशाली है कि इसको पेड़ का सहारा मिला है और ऊपर तक इसकी सुंदरता दिखती है । दूर के लोग भी इस लता का प्रभाव देखकर आह्लादित होते हैं ।″

राम जी समझ गये कि सीता क्या कहना चाहती है । एक-दूसरे को मान देने की आदत थी तो राम जी बोलते हैं- ″लता भाग्यशाली नहीं है सीते ! वृक्ष कितना भाग्यशाली है कि ऐसी पवित्र लता इस वृक्ष से जुड़ी है, तभी यह वृक्ष अन्य वृक्षों से निराला लग रहा है ।″

सीताजी कहती हैं- ‘लता भाग्यशाली है’, राम जी कहते हैं- ‘पेड़ भाग्यशाली है ।’ दोनों का आपस में झगड़ा हो गया । प्रेमी-प्रेमिका जैसा नहीं, सिया-राम जैसा झगड़ा । दोनों एक दूसरे को मान दे रहे हैं । इन दोनों का आपस में जरा मधुर, स्नेहयुक्त कलह चला । इतने में लक्ष्मणजी आ गये ।

सीता जी ने कहाः ″हम लोगों के झगड़े का निपटारा तो लखन भैया करेंगे ।″

राम जी ने कहाः ″लखन भैया ! बोलो, यह पेड़ भाग्यशाली है न ? और कई पेड़ हैं परंतु इतने सुंदर नहीं लगते । देखो, लता का सहयोग मिलने से पेड़ दूर तक अपना सौंदर्य बिखेर रहा है ।″

सीता जी बोलती हैं- ″भैया ! रुको, लता भाग्यशाली है न ? इसे पेड़ का सहारा मिला है तो देखो दूर तक अपनी शोभा बिखेर रही है, नहीं तो धरती पर ही पड़ी रहती ।″

लक्ष्मण जी भी कम नहीं थे, वे समझ गये कि यह पति-पत्नी का झगड़ा है। लक्ष्मण जी बोलते हैं- ″निर्णय करना अपने वश की बात नहीं है ।″

″नहीं-नहीं, तुम जो बोलोगे वह हम दोनों को स्वीकार है ।″

लक्ष्मण जी बोलते हैं- ″अगर आप मेरा निर्णय मानने को तैयार हैं तो मेरा निर्णय इन दोनों से अलग, तीसरा है । न लता भाग्यशाली है, न पेड़ भाग्यशाली है, भाग्यशाली तो लखनलाला है कि दोनों की छाया, महिमा और कृपा का आश्रय ले अपना जीवन उत्तम कर रहा है ।″

लक्ष्मण जी ने दोनों का आदर-मान कर दिया । यह गृहस्थ-जीवन में, परिवार में संयम से, सद्भाव से, निर्विकार पवित्र स्नेह से सुख और प्रसन्नता लाने की व्यवस्था है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2022, पृष्ठ संख्या 21, 25 अंक 352

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यह सुंदर व सरल साधना सभी का कल्याण करेगी – पूज्य बापू जी


सुबह नींद से उठो तो थोड़ी देर शांत हो जाओ । नींद में से उठते हैं तो वैसे ही शांति रहती है । उसके बाद चिंतन करो कि ‘जो सत्, चित् है, आनंदस्वरूप है और मेरे हृदय में फुरफुरा रहा है, जो सृष्टि की उत्पत्ति,  स्थिति और संहार का कारण है और मेरे शरीर की उत्पत्ति, स्थिति और लय का कारण है, उस सच्चिदानंद का मैं हूँ और वह मेरा है । ॐ शांति… ॐ आनंद… इस प्रकार तुम नींद में से उठ के लेटे-लेटे अथवा बैठ के शांत रहोगे तो मैं कहता हूं कि दो दिन की तपस्या से वह 2 मिनट की विश्रांति ज्यादा फायदा करेगी, पक्की बात है ! ऐसे ही रात्रि को सोते समय दिन में जो कुछ अच्छे भले काम हुए हों उनका फल ईश्वर को सौंप दो और गलती हो गयी हो तो कातर भाव से प्रार्थना कर लो । फिर लेट गये और श्वास अंदर जाय तो ॐ, बाहर आय तो 1… श्वास अंदर जाय तो शांति, बाहर आये तो 2… इस प्रकार श्वासोच्छ्वास की गिनती करते-करते सो जायें । इस प्रकार सोने से रात की निद्रा कुछ सप्ताह में योगनिद्रा बनने लगेगी । यह साधना दुःख निवृत्ति, परमात्मप्राप्ति में बड़ी सहायक है । ऐसी सुंदर और सरल साधना सभी जातियों का, सभी लोगों का जल्दी कल्याण करेगी ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2022, पृष्ठ संख्या 23 अंक 352

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