जीवन दुःख, क्लेश, मुसीबतों का बोझ बनाकर पिस मरने के लिए नहीं है, जीवन है आनंदित-उल्लसित होते हुए, माधुर्य भरते हुए, छिड़कते हुए, छलकाते हुए आगे बढ़ने के लिए । सबका मंगल हो, सबकी उन्नति हो, सबका कल्याण हो यही अपना लक्ष्य हो । इससे आपकी वृत्ति, आपकी बुद्धि और आपका हृदय विशाल होता जायेगा । आप व्यक्तिगत स्वार्थ को तिलांजलि दो ।
अगर कुटुम्ब का स्वार्थ सिद्ध होता है तो व्यक्तिगत स्वार्थ की परवाह मत करो, कुटुम्ब के भले के लिए अपने व्यक्तिगत भले को अलविदा करो । पूरे पड़ोस का बढ़िया भला होता है तो अपने कुटुम्ब के भले का दुराग्रह छोड़ो और पूरी तहसील का भला होता है तो पड़ोस के भले का दुराग्रह छोड़ो । जिले का भला होता है तो तहसील का दुराग्रह छोड़ो । अगर राज्य का भला होता है तो जिले का दुराग्रह छोड़ो । अगर देश का भला हो रहा है तो राज्य के भले का दुराग्रह छोड़ो और विश्व-मानवता का मंगल हो रहा है तो फिर ये सीमाएँ और भी विशाल बनाओ और विश्वेश्वर में आराम पाने की कला मिल रही है तो वह सर्वोपरि है, सर्वसुंदर है, मंगल-ही-मंगल है । जितना दायरा विशाल उतना व्यक्ति महान, जितना दायरा छोटा उतना व्यक्ति छोटा ।
जो नेता लोग जातिवाद का जहर फैलाकर अपनी रोटी सेंक लेते हैं वे भले 4 दिन की कुर्सी तो पा लेते हैं लेकिन देश के साथ विद्रोह करने का, मानव जाति के साथ विश्वासघात करने का भारी पाप करते हैं इसलिए उनका प्रभाव ज्यादा समय तक नहीं टिक सकता है । गांधी जी का प्रभाव क्यों ज्यादा टिका है ? गौतम बुद्ध का, महावीर स्वामी का, संत कबीर जी का, गुरु नानक जी का, साँईं श्री लीलाशाह ही का प्रभाव अब भी विश्वभर में क्यों है ? वे विश्वात्मा के साथ एकाकार होने की दिशा में चले थे और आप उससे एकाकार होने के लिए ही मनुष्य-तन पा सके हैं ।
गंगा जी कभी यह नहीं सोचतीं कि ‘गाय को तो अमृततुल्य पानी दूँ और शेर हरामजादा हिंसक है तो उसको विष मिलाकर दूँ । गंगा जी सबको समानरूप से शीतल पानी, प्यास बुझाने वाला मधुर जल देती हैं ।
‘काफिरों को तपाकर मार डालूँ और मुसलमानों को ही प्रकाश दूँ’ सूरज ऐसा नहीं करता । चाँद ऐसा नहीं करता कि ‘हिंदुओं को ही चाँदनी दूँ और मुसलमानों को वंचित रखूँ’, नहीं ।
भगवान के 5 भूत सभी के लिए हैं, अल्लाह, भगवान सभी के लिए हैं तो तुम्हारा हृदय भी सभी के लिए उदार हो, यह भारतीय संस्कृति का महान ज्ञान सभी के अंतःकरण में होना चाहिए ।
आज विश्व को बमों की जरूरत नहीं है, आतंक की जरूरत नहीं है, शोषकों की जरूरत नहीं है, विश्व को अगर जरूरत है तो भारतीय संस्कृति के योग की, ज्ञान की और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के भाव की जरूरत है, विश्व में उपद्रव की नहीं, शांति की जरूरत है । अतः इस संस्कृति की सुरक्षा करना, इस संस्कृति में आपस में संगठित रहना यह मानव-जाति की, विश्वमानव की सेवा है ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2022, पृष्ठ संख्या 2 अंक 352
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