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गुरुकृपा बनी महौषधि


12 साल से मुझे कोढ़ की बीमारी थी । रोग बढ़ता ही जा रहा था । एलोपैथिक, होमियोपैथिक, आयुर्वेदिक – सभी इलाज कराये परंतु कोई लाभ नहीं हुआ । जहाँ-जहाँ पर कोढ़ के निशान थे वहाँ की चमड़ी मोटी हो गयी थी, पानी निकलता था, खुजली भी होती थी और उस जगह के बाल झड़ गये थे ।

पूज्य बापू जी से प्राप्त मंत्र के नियमित जप और उनके ध्यान, प्राणायाम तथा सत्संग का श्रवण-मनन करने से मुझे क दिन कुंडलिनी की क्रियाएँ हुईं और अपने-आप अजपाजप चालू हो गया । सेवा करते समय भी मेरा ध्यान प्राण-अपान की गति पर ही रहता । परिणाम यह आया कि कोढ़ का रोग 90 प्रतिशत ठीक हो गया । अभी उन जगहों पर बाल आ चुके हैं ।

जिस रोग पर कोई औषधि काम नहीं कर  पायी, वही रोग गुरुकृपा से बिना उपचार के आसानी से दूर हो गया ।

पूज्य बापू जी के श्री चरणों में यही प्रार्थना करता हूँ कि ‘हे गुरुवर ! जैसे इस शरीर की पीड़ा से पार हुआ हूँ, ऐसे ही भवबंधन से भी पार हो जाऊँ ऐसी सद्बुद्धि और सामर्थ्य प्रदान कीजिये ।’

  • ब्रिजेश तिवारी, अहमदाबाद

सचल दूरभाषः 7817844408

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2022, पृष्ठ संख्या 10 अंक 355

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…और रूह फिर से दाखिल हो गयी !


सन् 2009 की घटना है । मैं बापू का सत्संग सुनने जानने वाला था किंतु रात को 2 बजे एकाएक मुझे सीने में तेज दर्द होने लगा । घरवाले मुझे तुरंत अस्पताल ले गये । डॉक्टरों ने हार्ट-अटैक बता के ऑपरेशन कराने को कहा और मुझे आई.सी.यू. में भर्ती कर दिया ।

‘बापू ! मेरे साथ यह क्या हो रहा है ? अब आप ही सँभालना ।’ इस प्रकार मन-ही-मन मैं बापू से प्रार्थना कर रहा था । कुछ समय बाद मेरी हालत बिगड़ी और मैं होश खो बैठा । मेरे जिस्म से मेरी रूह (अंतरात्मा) निकल गयी थी । डॉक्टरों ने मेरी मौत की खबर घरवालों को दी और मेरी लाश पर कफन डाल दिया था । उसके बाद जो हुआ वह कभी भुलाया नहीं जा सकेगा ।

मैंने देखा कि बापू मुझे कह रहे हैं- ″अरे रहीम ! मरता कौन है ? उठ !″

मेरे जिस्म से निकली हुई रूह फिर से उसमें दाखिल हो गयी । मैंने अपने ऊपर पड़े कपड़े को हटाया और उठकर बैठ गया । मैं क्या देखता हूँ कि बापू साक्षात् मेरे सामने आशीर्वाद की मुद्रा में खड़े हैं !

बापू ने मेरे सिर पर हाथ रखा और बोलेः ″बेटे ! जीते रहो । घबराओ मत । आनंद में रहो । अभी तुम्हें कुछ नहीं होगा ।″ इतना कहकर वे अदृश्य हो गये । बापू का यह अजीव करिश्मा देख मैं हैरतजदा (स्तब्ध) हो गया ।

अस्पताल वाले मुझे बैठा देख के हैरान हो गये । थोड़ी देर में घरवाले आये तो उनके चेहरे पर भी हैरत और खुशी छा गयी ।

डॉक्टरों ने कहाः ″चाचा ! आप क्या नसीब लेकर आये हो ! हमने तो सुबह ही आपके घरवालों को आपकी मौत की खबर दे दी थी । हमने जिंदगी में पहली बार ऐसा करिश्मा देखा है ।″

घरवालों ने बताया कि ’10 बजे मेरे जिस्म को पोस्टमॉर्टम के लिए लेकर जाने वाले थे । मेरे बेटे ने मेरे मौत की बात रिश्तेदारों को बता दी थी । 25-30 रिश्तेदार विदाई के लिए पहुँच गये थे और जनाजा (अर्थी) निकालने की तैयारी कर रहे थे ।’ यह घटना पूरे गाँव को पता चली तो लोगों को बड़ा ताज्जुब हुआ ।

बापू ने मुझे नयी जिंदगी दी है । आज 11 साल हो गये, मैं बिना बायपास सर्जरी के पूरी तरह से स्वस्थ हूँ । मुझ पर बापू की बेमिसाल मेहरबानी है ।

सैयद अब्दुल रहीम, अंबाजोगाई, जिला – बीड (महा.) सचल दूरभाषः 8390301212

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2022, पृष्ठ संख्या 24,25 अंक 355

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…और पूरा शरीर शांत व निर्मल हो गया


मैंने 1980 में पूज्य बापू जी के सान्निध्य में उत्तरायण ध्यान योग शक्तिपात साधना शिविर में भाग लिया । शक्तिपात द्वारा बापू जी ने ऐसी कुछ करुणा की कि ध्यान के दौरान अपने-आप मेरा पादपश्चिमोत्तानासन लग गया । पूरा शरीर शांत व निर्मल होने लगा । पूज्य श्री बोलेः ″साढ़े तीन मिनट तक इसी आसन में रुक जाओ ।″

लेकिन पूर्व का कोई पाप रहा होगा कि मैं साढ़े तीन मिनट तक नहीं रुक पाया, जिससे मेरे शरीर से खूब बदबू निकलने लगी । जैसे मुझे 6 महीने से बीमारी हो ऐसा मेरा शरीर हो गया । शिविर पूरा हुआ तो मैं घर गया । हफ्ते भर में मेरे शरीर की बदबू कम होते-होते खत्म हो गयी । फिर मैं दर्शन करने आया तो बापू जी अम्मा जी (माँ महँगीबाजी) को बोलेः ″देखो, सम्प्रेषण शक्ति से 7 दिन में इसमें कैसा परिवर्तन हो गया !″

उस ध्यान योग शिविर के बाद मुझे तन-मन में बहुत स्फूर्ति व आनंद का एहसास हो रहा था ।

सीधे गोद में जाकर गिरा

साधना में तीव्रता से ऊँचाई पर पहुँचने हेतु जिज्ञासु साधक 7 दिन के लिए आश्रम के मौन मंदिर में रहते हैं । मैं भी 7 दिन अंदर रहा । पूज्य श्री शाम या रात को कभी कभार आते थे और कैसा है ? क्या है ?… ऐसा पूछते थे ।

जो लोग मौन मंदिर से 7 दिन बाद बाहर निकलते थे उनको कुछ अनुभूति या क्रियाएँ होती थीं पर मैं बाहर निकला तो दौड़ के वहाँ पहुँचा जहाँ व्यासपीठ पर बापू जी सत्संग कर रहे थे और सीधा पूज्य श्री की गोद में जा गिरा । पता नहीं मैंने कैसे छलाँग लगा दी ! पहले काँच की केबिन नहीं थी ।

पूज्य श्री ने कहाः तुम (कृपावर्षा को) झेल नहीं पाये ।″

हृदय में इच्छा वासना होती है तो वह साधना को बिखेर देती है । जो पूरा समर्पित होता है उसको तो बापू जी पूरा पहुँचा देते हैं । भीतर कचाई थी तो गुरुदेव की कृपा पूरी पचा नहीं पाया लेकिन फिर भी बहुत कुछ मिला । संसारी कार्यों में लाभ-हानि दोनों होते हैं पर ईश्वर के मार्ग पर चलने में हानि तो होती ही नहीं, लाभ-ही-लाभ होता है ।

  • श्री बिजल भाई विहोल, अहमदाबाद

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2022, पृष्ठ संख्या 26 अंक 355

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