अनेक में एक और एक में अनेक का साक्षात्कार – पूज्य बापू जी
एक खास बात है । जो अपने को एक व्यक्ति मानेगा, एक सिद्धान्त वाला मानेगा वह दूसरों से शत्रुता करे बिना नहीं रहेगा लेकिन जो सबमें बसा जो आत्मा-परमात्मा है उसके नाते सबको अपना मानेगा वह स्वयं सुखी और आनंदित रहेगा और दूसरों को भी करेगा । ‘मैं यह (शरीर) हूँ और इतना मेरा है’ …