नित्य उपासना की आवश्यकता क्यों ?
‘ऋग्वेद’ (1.113.11) में कहा गया हैः ईयुष्टे ये पूर्तवतरामपश्यन्व्युच्छन्तीमुषसं मर्त्यासः। अस्माभिरू नु प्रतिचक्ष्याभूदो ते यन्ति ये अपरीषु पश्यान् ।। ‘जो मनुष्य ऊषा के पहले शयन से उठकर आवश्यक (नित्य) कर्म करके परमेश्वर का ध्यान करते हैं वे बुद्धिमान और धर्माचरण करने वाले होते हैं । जो स्त्री-पुरुष परमेश्वर का ध्यान करके प्रीति से आपस में …