ॐकार की महिमा का ग्रंथः प्रणववाद
पूज्य बापू जी के सत्संग-अमृत से एक सूरदास (प्रज्ञाचक्षु) ब्राह्मण थे धनराज पंडित। वे साधु हो गये। काशी में भगवानदास डॉक्टर बड़ा धर्मात्मा था। धनराज पंडित उसके क्लीनिक पर गये और बोलेः “डॉक्टर साहब ! ॐ नमो नारायणाय। मैं भूखा हूँ। आज आपके घर भिक्षा मिल जायेगी क्या ?” “जरा रुकिये पंडित जी !” पीछे …