उदारात्मा जयदेव जी महाराज
पूज्यपाद संत श्री आसारामजी बापू श्रीमद् भगवद् गीता में आता हैः दुःखेश्वनुद्विमग्नाः सुखेषु विगतस्पृहः। वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरूच्यते।। ʹदुःखों की प्राप्ति में जिसका मन उद्वेगरहित है और सुखों की प्राप्ति में जिसकी स्पृहा दूर हो गयी है तथा जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गये हैं, ऐसा मुनि स्थिरबुद्धि कहा जाता है।ʹ (गीताः 2.56) सुख में …