ऐसे दुःख पर करोड़ों करोड़ों सुख कुर्बान – पूज्य बापू जी
जो गुरु के वचनों को ठीक ढंग से स्वीकार करे वह शिष्य है । जो गुरु के वचन में दोष देखे वह शिष्य ‘शिष्य’ नहीं कहा जाता, वह कृतघ्न कहा जाता है, कुशिष्य कहा जाता है । भगवान वसिष्ठजी श्रीरामचन्द्रजी को कहते हैं- “हे राम जी ! दुर्बुद्धि का त्याग करो ।” और यह शास्त्र …