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सूर्योपासना


 

इस आदित्य देव की उपासना करते समय सूर्य गायित्री का जप करके अगर जल चढाते हो, और चढा हुआ जल जिस धरती पर गिरा, वहां की मिट्टी लेकर तिलक लगाते हो, और ताम्बे के लोटे में बचा हुआ जल, शेष घूँट भर बचा कर रखा हुआ जल, महा मृत्युंजय का जप करते ही पीते हैं तो आरोग्य की भी खूब रक्षा होती है;

आचमन लेते समय उच्चारण करना होता है –

अकाल-मृत्यु-हरणं सर्व-व्याधि-विनाशनम

सूर्य-पादोदकं-तीर्थं जठरे धारयामि अहम्

यह श्लोक का अर्थ यह समझ लो की अकाल मृत्यु को हरने वाले सूर्य नारायण के चरणों का जल, मैं अपनी जठर में धारण करता हूँ…जठर, भीतर के रोगों को, और, सूर्य की कृपा बाहर के शत्रु-विघ्न आदि, अकाल मृत्यु आदि रोगों को हरे;

सूर्य को अर्घ्य देते समय,

“ॐ आदित्याय विद्महे भास्कराय धीमहि तन्नो भानु प्रचोदयात”

 

उत्तरायण दक्षिणायण में मृत्यु होने पर गति


 

Towards Progress in Life…

Resolve to take your life towards Uttarayana i.e. towards elevation, towards Light, towards Enlightenment.

(Excerpts from the Satsang of Pujya Bapuji)

The dawn of Uttarayana marks the onset of Brahmamuhurta of gods. And it is with the onset of Uttarayana that the propitious period of attaining secular and spiritual knowledge is supposed to begin. All auspicious acts and those intended to attain perfection or powers are undertaken after the commencement of Uttarayana, the Brahmamuhurta of Gods.

‘The enlightened yogis, who after their death proceed through the path in which are stationed the all-effulgent fire-god and the deities presiding over daylight, the bright fortnight and the six months of Uttarayana in that order, are successively escorted by the above gods to the abode of Lord Brahma.’

(The Srimad Bhagwad Gita: 8.24)

Grandsire Bhishma’s body was pierced all over by arrows which served as his bed. He noticed that the sun was in Dakshinayana and hence it was not the best time to embrace death. Hence he waited 58 days for Uttarayana while lying on the bed of arrows. Bhishma Pitamaha had attained a boon from his father Shantanu that death would befall him only when he desired it.

The rule of waiting till Uttarayana may not be applicable to all. Those who have realized the Brahman here in this world itself, who know Supreme Brahman like Lord Brahma does, need not bother about Uttarayana and Dakshinayana. Ordinary people also have nothing to do with Uttarayana and Dakshinayana.

Those who aspire to go to heaven or the worlds of their chosen deities don’t need to die in Uttarayana. But those who have been initiated into the path of Brahmajnana and want to go to Lord Brahma’s abode proceed through the path of Uttarayana after death.

आत्मसूर्य की ओर…


मकर संक्रांति : १४  जनवरी

मकर संक्रांति अर्थात् उत्तरायण महापर्व के दिन से अंधकारमयी रात्रि छोटी होती जायेगी और प्रकाशमय दिवस लम्बे होते जायेंगे । हम भी इस दिन दृढ़ निश्चय करें कि अपने जीवन में से अंधकारमयी वासना की वृत्ति को कम करते जायेंगे और सेवा तथा प्रभुप्राप्ति की सद्वृत्ति को बढ़ते जायेंगे ।

सम्यक् क्रांति का संदेश

मकर संक्रांति – ‘सम्यक् क्रांति’। वैसे समाज में क्रांति तो बहुत है, एक-दूसरे को नीचे गिराओ और ऊपर उठो, मार-काट… परंतु मकर संक्रांति बोलती है मार-काट नहीं, सम्यक् क्रांति । सबकी उन्नति में अपनी उन्नति, सबकी ज्ञानवृद्धि में अपनी ज्ञानवृद्धि, सबके स्वास्थ्य में अपना स्वास्थ्य, सबकी प्रसन्नता में अपनी प्रसन्नता । दूसरों को निचोड़कर आप प्रसन्न होने जाओगे तो हिटलर और सिकंदर का रास्ता है, कंस और रावण का रास्ता है । श्रीकृष्ण की नार्इं गाय चरानेवालों को भी अपने साथ उन्नत करते हुए संगच्छध्वं संवदध्वं… कदम से कदम मिलाकर चलो, दिल से दिल मिलाकर चलो । दिल से दिल मिलाओ माने विचार से विचार ऐसे मिलाओ कि सभी ईश्वरप्राप्ति के रास्ते चलें देर-सवेर और एक-दूसरे को सहयोग करें ।

उत्तरायण पर्व कैसे मनायें ?

इस दिन स्नान, दान, जप, तप का प्रभाव ज्यादा होता है । उत्तरायण के एक दिन पूर्व रात को भोजन थोड़ा कम लेना । दूसरी बात, उत्तरायण के दिन पंचगव्य का पान पापनाशक एवं विशेष पुण्यदायी माना गया है । त्वचा से लेकर अस्थि तक की बीमारियों की  जड़े पंचगव्य उखाड़ के फेंक देता है । पंचगव्य आदि न बना सको तो कम-से-कम गाय का गोबर, गोझरण, थोड़े तिल, थोड़ी हल्दी और आँवले का चूर्ण इनका उबटन बनाकर उसे लगा के स्नान करो अथवा सप्तधान्य उबटन से स्नान करो (पिसे हुए गेहूँ, चावल, जौ, तिल, चना, मूँग और उड़द से बना मिश्रण) । इस पर्व पर जो प्रातःस्नान नहीं करते हैं वे सात जन्मों तक रोगी और निर्धन रहते हैं । मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने से दस हजार गौदान करने का फल शास्त्र में लिखा है और इस दिन सूर्यनारायण का मानसिक रूप से ध्यान करके मन-ही-मन उनसे आयु-आरोग्य के लिए की गयी प्रार्थना विशेष प्रभावशाली होती है ।

इस दिन किये गये सत्कर्म विशेष फलदायी होते हैं । इस दिन भगवान शिव को तिल, चावल अर्पण करने अथवा तिल, चावल मिश्रित जल से अघ्र्य देने का भी विधान है । उत्तरायण के दिन रात्रि का भोजन न करें तो अच्छा है लेकिन जिनको संतान है उनको उपवास करना मना किया गया है । इस दिन जो ६ प्रकार से तिलों का उपयोग करता है वह इस लोक और परलोक में वांछित फल को पाता है :

(१) पानी में तिल डाल के स्नान करना

(२) तिलों का उबटन लगाना

(३) तिल डालकर पितरों का तर्पण करना, जल देना

(४) अग्नि में तिल डालकर यज्ञादि करना

(५) तिलों का दान करना

(६) तिल खाना ।

तिलों की महिमा तो है लेकिन तिल की महिमा सुनकर तिल अति भी न खायें और रात्रि को तिल और तिलमिश्रित वस्तु खाना वर्जित है ।

सूर्य-उपासना करें

ॐ आदित्याय विद्महे भास्कराय धीमहि । तन्नो भानुः प्रचोदयात् । इस सूर्यगायत्री के द्वारा सूर्यनारायण को अर्घ्य देना विशेष लाभकारी माना गया है अथवा तो ॐ सूर्याय नमः । ॐ रवये नमः ।… करके भी अर्घ्य दे सकते हैं ।

आदित्य देव की उपासना करते समय अगर सूर्यगायत्री का जप करके ताँबे के लोटे से जल च‹ढाते हैं और चढ़ा हुआ जल जिस धरती पर गिरा, वहाँ की मिट्टी का तिलक लगाते हैं तथा लोटे में ६ घूँट बचाकर रखा हुआ जल महामृत्युंजय मंत्र का जप करके पीते हैं तो आरोग्य की खूब रक्षा होती है । आचमन लेने से पहले उच्चारण करना होता है :

अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम् ।

सूर्यपादोदकं तीर्थं जठरे धारयाम्यहम् ।।

अकाल मृत्यु को हरनेवाले सूर्यनारायण के चरणों का जल मैं अपने जठर में धारण करता हूँ । जठर भीतर के सभी रोगों को और सूर्य की कृपा बाहर के शत्रुओं, विघ्नों, अकाल-मृत्यु आदि को हरे ।

भीष्म पर्व

भीष्म पितामह संकल्प करके ५८ दिनों तक शर-शय्या पर पड़े रहे और उत्तरायण काल का इंतजार किया था । बाणों की पीड़ा सहते हुए भी प्राण न त्यागे और पीड़ा के भी साक्षी बने रहे ।

भीष्म पितामह से राजा युधिष्ठिर प्रश्न करते हैं और भीष्म पितामह शर-शय्या पर लेटे-लेटे उत्तर देते हैं । कैसी समता है इस भारत के वीर की ! कैसी बहादुरी है तन की, मन की और परिस्थितियों के सिर पर पैर रखने की ! कैसी हमारी संस्कृति है ! क्या विश्व में कोई ऐसा दृष्टांत सुना है ?

उत्तरायण उस महापुरुष के सुमिरन का दिवस भी है और अपने जीवन में परिस्थितिरूपी बाणों की शय्या पर सोते हुए भी समता, ज्ञान और आत्मवैभव को पाने की प्रेरणा देनेवाला दिवस भी है । दुनिया की कोई परिस्थिति तुम्हारे वास्तविक स्वरूप – आत्मस्वरूप को मिटा नहीं सकती । मौत भी जब तुम्हारे को मिटा नहीं सकती तो ये परिस्थितियाँ क्या तुम्हें मिटायेंगी !

हमें मिटा सके ये जमाने में दम नहीं ।

हमसे जमाना है, जमाने से हम नहीं ।।

यह भीष्मजी ने करके दिखाया है ।

उत्तरायण का पावन संदेश

सूर्यदेव आत्मदेव के प्रतीक हैं । जैसे आत्मदेव मन को, बुद्धि को, शरीर को, संसार को प्रकाशित करते हैं, ऐसे ही सूर्य पूरे संसार को प्रकाशित करता है । लेकिन सूर्य को भी प्रकाशित करनेवाला तुम्हारा आत्मसूर्य (आत्मदेव) ही है । यह सूर्य है कि नहीं, उसको जाननेवाला कौन है ? ‘मैं’।

उत्तरायण का मेरा संदेश है कि आप सुबह नींद में से उठो तो प्रीतिपूर्वक भगवान का सुमिरन करना कि ‘भगवान ! हम जैसे भी हैं, आपके हैं । आप ‘सत्’ हैं तो हमारी मति में सत्प्रेरणा दीजिये ताकि हम गलत निर्णय करके दुःख की खाई में न गिरें । गलत कर्म करके हम समाज, कुटुम्ब, माँ-बाप, परिवार, आस-पड़ोस तथा औरों के लिए मुसीबत न खड़ी करें ।’ ऐसा अगर आप संकल्प करते हैं तो भगवान आपको बहुत मदद करेंगे । भगवान उन्हींको मदद करते हैं जो भगवान को प्रार्थना करते हैं, भगवान को प्रीति करते हैं । और भगवान के प्यारे संतों का सत्संग सुनने के लिए वे ही लोग आ सकते हैं जिन पर भगवान की कृपा होती है ।

बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता । (रामायण)

—पूज्य संत श्री आशारामजी बापू

ऋषि प्रसाद- अंक- 264