All posts by Guruseva

श्राद्धयोग्य स्थान


 

समुद्र तथा समुद्र में गिरने वाली नदियों के तट पर, गौशाला में जहाँ बैल न हों, नदी-संगम पर, उच्च गिरिशिखर पर, वनों में लीपी-पुती स्वच्छ एवं मनोहर भूमि पर, गोबर से लीपे हुए एकांत घर में नित्य ही विधिपूर्वक श्राद्ध करने से मनोरथ पूर्ण होते हैं और निष्काम भाव से करने पर व्यक्ति अंतःकरण की शुद्धि और परब्रह्म परमात्मा की प्राप्ति कर सकता है, ब्रह्मत्व की सिद्धि प्राप्त कर सकता है।

अश्रद्दधानाः पाप्मानो नास्तिकाः स्थितसंशयाः।

हेतुद्रष्टा च पंचैते न तीर्थफलमश्रुते।।

गुरुतीर्थे परासिद्धिस्तीर्थानां परमं पदम्।

ध्यानं तीर्थपरं तस्माद् ब्रह्मतीर्थं सनातनम्।।

श्रद्धा न करने वाले, पापात्मा, परलोक को न मानने वाले अथवा वेदों के निन्दक, स्थिति में संदेह रखने वाले संशयात्मा एवं सभी पुण्यकर्मों में किसी कारण का अन्वेषण करने वाले कुतर्की-इन पाँचों को पवित्र तीर्थों का फल नहीं मिलता।

गुरुरूपी तीर्थ में परम सिद्धि प्राप्त होती है। वह सभी तीर्थों में श्रेष्ठ है। उससे भी श्रेष्ठ तीर्थ ध्यान है। यह ध्यान साक्षात् ब्रह्मतीर्थ हैं। इसका कभी विनाश नहीं होता।-वायु पुराणः 77.127.128

ये तु व्रते स्थिता नित्यं ज्ञानिनो ध्यानिनस्तथा।

देवभक्ता महात्मानः पुनीयुर्दर्शनादपि।।

जो ब्राह्मण नित्य व्रतपरायण रहते हैं, ज्ञानार्जन में प्रवृत्त रहकर योगाभ्यास में निरत रहते हैं, देवता में भक्ति रखते हैं, महान आत्मा होते हैं। वे दर्शनमात्र से पवित्र करते हैं।  – वायु पुराणः 79.80

काशी, गया, प्रयाग, रामेश्वरम् आदि क्षेत्रों में किया गया श्राद्ध विशेष फलदायी होता है।

श्राद्ध में पालने योग्य नियम


श्रद्धा और मंत्र के मेल से पितरों की तृप्ति के निमित्त जो विधि होती है उसे ‘श्राद्ध’ कहते हैं।

हमारे जिन संबंधियों का देहावसान हो गया है, जिनको दूसरा शरीर नहीं मिला है वे पितृलोक में अथवा इधर-उधर विचरण करते हैं, उनके लिए पिण्डदान किया जाता है।

बच्चों एवं संन्यासियों के लिए पिण्डदान  नहीं किया जाता।

विचारशील पुरुष को चाहिए कि जिस दिन श्राद्ध करना हो उससे एक दिन पूर्व ही संयमी, श्रेष्ठ ब्राह्मणों को निमंत्रण दे दे। परंतु श्राद्ध के दिन कोई अनिमंत्रित तपस्वी ब्राह्मण घर पर पधारें तो उन्हें भी भोजन कराना चाहिए।

भोजन के लिए उपस्थित अन्न अत्यंत मधुर, भोजनकर्ता की इच्छा के अनुसार तथा अच्छी प्रकार सिद्ध किया हुआ होना चाहिए। पात्रों में भोजन रखकर श्राद्धकर्ता को अत्यंत सुंदर एवं मधुर वाणी से कहना चाहिए कि ‘हे महानुभावो ! अब आप लोग अपनी इच्छा के अनुसार भोजन करें।’

श्रद्धायुक्त व्यक्तियों द्वारा नाम और गोत्र का उच्चारण करके दिया हुआ अन्न पितृगण को वे जैसे आहार के योग्य होते हैं वैसा ही होकर मिलता है। (विष्णु पुराणः 3.16,16)

श्राद्धकाल में शरीर, द्रव्य, स्त्री, भूमि, मन, मंत्र और ब्राह्मण-ये सात चीजें विशेष शुद्ध होनी चाहिए।

श्राद्ध में तीन बातों को ध्यान में रखना चाहिएः शुद्धि, अक्रोध और अत्वरा (जल्दबाजी नही करना)।

श्राद्ध में मंत्र का बड़ा महत्त्व है। श्राद्ध में आपके द्वारा दी गयी वस्तु कितनी भी मूल्यवान क्यों न हो, लेकिन आपके द्वारा यदि मंत्र का उच्चारण ठीक न हो तो काम अस्त-व्यस्त हो जाता है। मंत्रोच्चारण शुद्ध होना चाहिए और जिसके निमित्त श्राद्ध करते हों उसके नाम का उच्चारण भी शुद्ध करना चाहिए।

जिनकी देहावसना-तिथि का पता नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन करना चाहिए।

हिन्दुओं में जब पत्नी संसार से जाती है तो पति को हाथ जोड़कर कहती हैः ‘मुझसे कुछ अपराध हो गया हो तो क्षमा करना और मेरी सदगति के लिए आप प्रार्थना करना।’ अगर पति जाता है तो हाथ जोड़ते हुए पत्नी से कहता हैः ‘जाने-अनजाने में तेरे साथ मैंने कभी कठोर व्यवहार किया हो तो तू मुझे क्षमा कर देना और मेरी सदगति के लिए प्रार्थना करना।’

हम एक दूसरे की सदगति के लिए जीते जी भी सोचते हैं, मरते समय भी सोचते हैं और मरने के बाद भी सोचते हैं।

श्राद्ध में प्रति व्यक्ति के लिए पूजन सामग्री


 

श्राद्ध में प्रति व्यक्ति के लिए पूजन सामग्री

१. यज्ञोपवीत -१ नंग (बहनों को नहीं देना है)

२. कच्चा सूत -१० टुकड़ा (३ इंच का)

३. नाड़ाछड़ी -१ बित्ता का १ नंग

४. सुपारी – १ नंग (विष्णु पूजन हेतु)

५. कंकु, अबीर, गुलाल, सिंदुर – १० ग्राम(२-२ ग्राम सब)

६. चंदन -१० ग्राम

७. चावल (अक्षत) -२० ग्राम

८. मिश्री -२० ग्राम

९. किशमिश -२० ग्राम

१०. कपूर (२ टुक‹डा – आरती) , माचिस, गौ-चंदन धूपबत्ती (२), दिया-बत्ती (तिल का तेल १०ग्राम) – (१)

११. फल – केला – २ नंग

१२. पीपल या पलाश के पत्ते -७ नंग

१३. गंगाजल

१४. तुलसी दल -३० नंग (स्याम तुलसी हो तो ज्यादा अच्छा)

१५. फूल -२० नंग (सफेद ज्यादा)

१६. काला तिल -२५ ग्राम

१७. सफेद तिल -५ ग्राम

१८. जव -२५ ग्राम

१९. पिड़ (चावल के आटे के) -(५०० ग्राम) (उसमें घी, तिल, गंगाजल, शक्कर,दूध-दही, शहद, चंदन, पुष्प  आदि डालकर बनाना है ।)

२०. पत्तल -१ नंग (पलाश)

२१. दोना -१ नंग (पलाश)

२२. दूध -(१०० ग्राम)

२३. इत्र (रूई में भीगोकर)

२४. (क) दर्भ (कुशा)- चट -१० (५ इंच का १०-१०, धागे में लपेट कर रखना है।)

(पितर-३, वैश्वदेव -२, विष्णुजी -१)

(ख) ८-८ इंच का ३ कुशा लेकर उसको कलावा लपेट कर एक बनायें – तर्पण हेतु

(ग) ८-८ इंच का ३ कुशा (पिण्ड के नीचे डालने हेतु)

(घ) एक अंगूठी (कुश की बनी हुई)

(ङ) गाँठ बँधा हुआ कुशा । – मार्जन के लिए – १ नंग

(च) ३ इंच का १५ कुशा (विधि में अलग-अलग स्थानों पर चढाने हेतु)

निम्नलिखित सामान यजमान को अपने साथ लाना है ।

नोट : थाली – २ (एक सामान्य थाल व एक परात जैसा, तर्पण हेतु), कटोरी-२ (दूध और स्वयं के आचमनादि उपयोग के लिए), ताम्बे का लोटा -१ नंग, चम्मच – १ नंग), कंधे पर रखने हेतु उत्तरीय वस्त्र (अँगोछा) – १ ।

आवश्यक सूचना : सामग्री की यह सूची श्राद्ध करानेवाले ब्राह्मणदेव को पहले दिखा लें