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Different Types of Shraaddh


 

श्राद्ध के प्रकार 

जो श्रद्धा से दिया जाये, उसे श्राद्ध कहते है | श्रद्धा और मंत्र के मेल से जो क्रिया होते है, उसे श्राद्ध कहते है | जिनके प्रति हम कृतज्ञतापूर्वक श्रद्धा व्यक्त करते है वे भी हमारी सहायता करते है |नित्य श्राद्ध, नैमित्तिक श्राद्ध, काम्य श्राद्ध, एकोदिष्ट श्राद्ध, गोष्ठ श्राद्ध आदि श्राद्ध के अनेक प्रकार है |

नित्य श्राद्ध : यह श्राद्ध जल द्वारा, अन्न द्वारा प्रतिदिन होता है | श्रद्धा-विश्वास से देवपूजन, माता-पिता एवं गुरुजनों के पूजन को नित्य श्राद्ध कहते है | अन्न के अभाव में जल से भी श्राद्ध किया जाता है |

काम्य श्राद्ध : जो श्राद्ध कामना रखकर किया जाता है, उसे काम्य श्राद्ध कहते है |

वृद्ध श्राद्ध : विवाह, उत्सव आदि अवसर पर वृद्धों के आशीर्वाद लेने हेतु किया जानेवाला श्राद्ध वृद्ध श्राद्ध कहलता है |

पार्व श्राद्ध : मंत्रो से पर्वो पर किया जानेवाला श्राद्ध पार्व श्राद्ध है | जैसे अमावस्या आदि पर्वो पर किया जानेवाला श्राद्ध |

गोष्ठ श्राद्ध : गौशाला में किया जानेवाला श्रद्धा गोष्ठ श्राद्ध कहलाता है |

शुद्धि श्राद्ध : पापनाश करके अपने को शुद्ध करने के लिए जो श्राद्ध किया जाता है वह है शुद्धि श्राद्ध |

दैविक श्राद्ध : देवताओं की प्रसन्नता के उद्देश्य से दैविक श्राद्ध किया जाता है |

कर्मांग श्राद्ध : गर्भाधान, सोमयाग, सीमन्तोन्नयन आदि से जो आनेवाली संतति के लिय किया जाता है, उसे कर्मांग श्राद्ध कहते है |

तुष्टि श्राद्ध : देशान्तर में जानेवाले की तुष्टि के लिय जो शुभकामना की जाती है, उसके लिय जो दान-पुण्य आदि किया जाता है उसे तुष्टि श्राद्ध कहते है | अपने मित्र, बहन-भाई, पति-पत्नी आदि की भलाई के लिय जो कर्म किय जाते है उन सबको तुष्टि श्राद्ध कहते है |

क्षया: यां सांत्वश्रिक श्राद्ध : बारह महीने होने पर श्राद्ध ले दिनों में जो विधि की जाती है, उसे क्षया: यां सांत्वश्रिक श्राद्ध कहते है |
ऊँचे में ऊँचा, सबसे बढ़िया श्राद्ध इन श्राद्धपक्ष की तिथियों में होता है | हमारे पूर्वज जिस तिथि में इस संसार से गए है उसी तिथि के दिन इस श्राद्ध पक्ष में किया जानेवाला श्राद्ध सर्वश्रेष्ठ होता है |

श्राद्ध का वैज्ञानिक विवेचन


 

अन्य मासों कि अपेक्षा श्राद्ध के दिनों में चन्द्रमा पृथ्वी के निकटतम रहता है | इसी कारण उसकी आकर्षण-शक्ति का प्रभाव पृथ्वी तथा प्राणियों पर विशेष रूप से पड़ता है | इस समय पितृलोक में जाने की प्रतीक्षा कर रहे सूक्ष्म शरीरयुक्त जीवों को उनके परिजनों द्वारा प्राप्त पिंड के सोम अंश से तृप्त करके पितृलोक प्राप्त करा दिया जाता है |

श्राद्ध के समय पृथ्वी पर कुश रखकर उसके ऊपर पिडों में चावल,जौ,तिल,दूध,शहद, तुलसीपत्र आदि डाले जाते है | चावल व जौ में ठंडी विद्युत् , तिल व दूध में गर्म विद्युत् तथा तुलसीपत्र में दोनों प्रकार की विद्युत होती है | शहद की विद्युत् अन्य सभी पदार्थो की विद्युत और वेदमंत्रों को मिलाकर एक साथ कर देती है | कुषाएं पिडों की विद्युत् को पृथ्वी में नहीं जाने देती | शहद ने जो अलौकिक विद्युत् पैदा की थी, वह श्राद्धकर्ता की मानसिक शक्ति द्वारा पितरों व परमेश्वर के पास जाती है जिससे पितरों को तृप्ति प्राप्त होती है |

श्राद्ध मृत प्राणी के प्रति किया गया प्रेमपूर्वक स्मरण है, जो कि सनातन धर्म की एक प्रमुख विशेषता है | आश्विन मास का पितृपक्ष हमारे विशिष्ट सामाजिक उत्सवों की भाँति पितृगणों का सामूहिक महापर्व है | इस समय सभी पितर अपने प्रथ्वीलोकस्थ सगे-संबंधियों के यहाँ बिना निमत्रंण के पहुँचते है | उनके द्वारा प्रदान किये गए ‘कव्य’ (पितरों के लिए डे पदार्थ) से तृप्त होकर उन्हें अपने शुभाशीर्वादों से पुष्ट एवं तृप्त करते है |

एकनाथजी महाराज के श्राद्ध में पितृगण साक्षात प्रकट हुए


 

एकनाथजी महाराज श्राद्धकर्म कर रहे थे। उनके यहाँ स्वादिष्ट व्यंजन बन रहे थे। भिखमंगे लोग उनके द्वार से गुजरे। उन्हे बड़ी लिज्जतदार खुश्बू आयी। वे आपस में चर्चा करने लगेः”आज तो श्राद्ध है…. खूब माल उड़ेगा।”

दूसरे ने कहाः “यह भोजन तो पहले ब्राह्मणों को खिलाएँगे। अपने को तो बचे-खुचे जूठे टुकड़े ही मिलेंगे।”

एकनाथजी ने सुन लिया। उन्होंने अपनी धर्मपत्नी गिरजाबाई से कहाः “ब्राह्मणों को तो भरपेट बहुत लोग खिलाते हैं। इन लोगों में भी तो ब्रह्मा परमात्मा विराज रहा है। इन्होंने कभी खानदानी ढंग से भरपेट स्वादिष्ट भोजन नहीं किया होगा। इन्हीं को आज खिला दें। ब्राह्मणों के लिए दूसरा बना दोगी न? अभी तो समय है।”

गिरजाबाई बोलीः “हाँ, हाँ पतिदेव ! इसमें संकोच से क्यों पूछते हो?”

गिरजाबाई सोचती है किः “मेरी सेवा में जरूर कोई कमी होगी, तभी स्वामी को मुझे सेवा सौंपने में संकोच हो रहा है।”

अगर स्वामी सेवक से संकुचित होकर कोई काम करवा रहे हैं तो यह सेवक के समर्पण में कमी है। जैसे कोई अपने हाथ-पैर से निश्चिन्त होकर काम लेता है ऐसे ही स्वामी सेवक से निश्चिन्त होकर काम लेने लग जायें तो सेवक का परम कल्याण हो गया समझना।

एकनाथ जी ने कहाः “……………..तो इनको खिला दें।”

उन भिखमंगों में परमात्मा को देखनेवाले दंपत्ति ने उन्हें खिला दिया। इसके बाद नहा धोकर गिरजाबाई ने फिर से भोजन बनाना प्रारम्भ कर दिया। अभी दस ही बजे थे मगर सारे गाँव में खबर फैल गई किः ‘जो भोजन ब्राह्मणों के लिए बना था वह भिखमंगों को खिला दिया गया। गिरजाबाई फिर से भोजन बना रही है।’

सब लोग अपने-अपने विचार के होते हैं। जो उद्दंड ब्राह्मण थे उन्होंने लोगों को भड़काया किः “यह ब्राह्मणों का घोर अपमान है। श्राद्ध के लिए बनाया गया भोजन ऐस म्लेच्छ लोगों को खिला दिया गया जो कि नहाते धोते नहीं, मैले कपड़े पहनते हैं, शरीर से बदबू आती है…. और हमारे लिए भोजन अब बनेगा? हम जूठन खाएँगे? पहले वे खाएँ और बाद में हम खाएँगे?हम अपने इस अपमान का बदला लेंगे।”

तत्काल ब्राह्मणों की आपातकालीन बैठक बुलाई गई। पूरा गाँव एक तरफ हो गया। निर्णय लिया गया कि “एकनाथ जी के यहाँ श्राद्धकर्म में कोई नहीं जाएगा, भोजन करने कोई नहीं जायेगा ताकि इनके पितर नर्क में पड़ें और इनका कुल बरबाद हो।”

एकनाथ जी के घर द्वार पर लट्ठधारी दो ब्राह्मण युवक खड़े कर दिये गये।

इधर गिरजाबाई ने भोजन तैयार कर दिया। एकनाथ जी ने देखा कि ये लोग किसी को आने देने वाले नहीं हैं।….. तो क्या किया जाये? जो ब्राह्मण नहीं आ रहे थे, उनकी एक-दो पीढ़ी में पिता, पितामह, दादा, परदादा आदि जो भी थे, एकनाथ जी महाराज ने अपनी संकल्पशक्ति, योगशक्ति का उपयोग करके उन सबका आवाहन किया। सब प्रकट हो गये।

“क्या आज्ञा है, महाराज !”

एकनाथजी बोलेः “बैठिये, ब्राह्मणदेव ! आप इसी गाँव के ब्राह्मण हैं। आज मेरे यहाँ भोजन कीजिए।”

गाँव के ब्राह्मणों के पितरों की पंक्ति बैठी भोजन करने। हस्तप्रक्षालन, आचमन आदि पर गाये जाने वाले श्लोकों से एकनाथ जी का आँगन गूँज उठा। जो दो ब्राह्मण लट्ठ लेकर बाहर खड़े थे वे आवाज सुनकर चौंके ! उन्होंने सोचाः ‘हमने तो किसी ब्राह्मण को अन्दर जाने दिया।’ दरवाजे की दरार से भीतर देखा तो वे दंग रह गये ! अंदर तो ब्राह्मणों की लंबी पंक्ति लगी है…. भोजन हो रहा है !

जब उन्होंने ध्यान से देखा तो पता चला किः “अरे ! यह क्या? ये तो मेरे दादा हैं ! वे मेरे नाना ! वे उसके परदादा !”

दोनों भागे गाँव के ब्राह्मणों को खबर करने। उन्होंने कहाः “हमारे और तुम्हारे बाप-दादा, परदादा, नाना, चाचा, इत्यादि सब पितरलोक से उधर आ गये हैं। एकनाथजी के आँगन में श्राद्धकर्म अब भोजन पा रहे हैं।”

गाँव के सब लोग भागते हुए आये एकनाथ झी के यहाँ। तब तक तो सब पितर भोजन पूरा करके विदा हो रहे थे। एकनाथ जी उन्हें विदाई दे रहे थे। गाँव के ब्राह्मण सब देखते ही रह गये ! आखिर उन्होंने एकनाथजी को हाथ जोड़े और बोलेः “महाराज ! हमने आपको नहीं पहचाना। हमें माफ कर दो।”

इस प्रकार गाँव के ब्राह्मणों एवं एकनाथजी के बीच समझौता हो गया। नक्षत्र और ग्रहों को उनकी जगह से हटाकर अपनी इच्छानुसार गेंद की तरह घुमा सकते हैं। स्मरण करने मात्र से देवता उनके आगे हाथ जोड़कर खड़े हो सकते हैं। आवाहन करने से पितर भी उनके आगे प्रगट हो सकते हैं और उन पितरों को स्थूल शरीर में प्रतिष्ठित करके भोजन कराया जा सकता है।