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उत्तरायण हमें प्रेरित करता है जीवत्व से ब्रह्मत्व की ओर – मकर संक्रांति – १४ जनवरी


 

पूज्य बापूजी कहते हैं – उत्तरायण कहता है कि सूर्य जब इतना महान है, पृथ्वी से १३ लाख गुना बड़ा है, ऐसा सूर्य भी दक्षिण से उत्तर की ओर आ जाता है तो तुम भी भैया ! नारायण ! जीवत्व से ब्रह्मत्व की ओर आ जाओ तो तुम्हारे बाप क्या बिगड़ेगा ? तुम्हारे तो २१ कुल तर जायेंगे |

उत्तरायण पर्व की महत्ता :

उत्तरायण माने सूर्य का रथ उत्तर की तरफ चले | उत्तरायण के दिन किया हुआ सत्कर्म अनंत गुना हो जाता है | इस दिन भगवान शिवजी ने भी दान किया था | जिनके पास जो हो उसका इस दिन अगर सदुपयोग करें तो वे बहुत – बहुत अधिक लाभ पाते हैं | शिवजी के पास क्या है ? शिवजी के पास है धारणा, ध्यान, समाधि, आत्मज्ञान, आत्मध्यान | तो शिवजी ने इसी दिन प्रकट होकर दक्षिण भारत के ऋषियों पर आत्मोपदेश का अनुग्रह किया था |

सामाजिक महत्त्व :

इस पर्व को सामाजिक ढंग से देखें तो बड़े काम का पर्व है | किसान के घर नया गुड़, नये तिल आते हैं | उत्तरायण सर्दियों के दिनों में आता है तो शरीर को पौष्टिकता चाहिए | तिल के लड्डू खाने से मधुरता और स्निग्धता प्राप्त होती है तथा शरीर पुष्ट होता है | इसलिए इस दिन तिल – गुड़ के लड्डू (चीनी के बदले गुड़ गुणकारी है ) खाये – खिलाये, बाँटे जाते हैं | जिसके पास क्षमता नहीं है वह भी खा सके पर्व के निमित्त इसलिए बाँटने का रिवाज है | और बाँटने से परस्पर सामाजिक सौहार्द बढ़ता है |

तिळ गुळ घ्या गोड गोड बोला |

अर्थात ‘तिल – गुड़ लो और मीठा – मीठा बोलो |’ सिन्धी जगत में इस दिन मूली और गेहूँ की रोटी का चूरमा व तिल खाया – खिलाया जाता है अर्थात जीवन में कही शुष्कता आयी हो तो स्निग्धता आये, जीवन में कहीं कटुता आ गयी हो तो उसको दूर करने के लिए मिठास आये इसलिए उत्तरायण को स्नेह – सौहार्द वर्धक पर्व के रूप में भी देखा जाय तो उचित है |

आरोग्यता की दृष्टि से भी देखा जाय तो जिस – जिस ऋतू में जो – जो रोग आने की सम्भावना होती है, प्रकृति ने उस – उस ऋतू में उन रोगों के प्रतिकारक फल, अन्न, तिलहन आदि पैदा किये हैं | सर्दियाँ आती हैं तो शरीर में जो शुष्कता अथवा थोडा ठिठुरापन है या कमजोरी है तो उसे दूर करने हेतु तिल का पाक, मूँगफली, तिल आदि स्निग्ध पदार्थ इसी ऋतू में खाने का विधान है |

तिल के लड्डू देने- लेने, खाने से अपने को तो ठीक रहता है लेकिन एक देह के प्रति वृत्ति न जम जाय इसलिए कहीं दया करके अपना चित्त द्रवित करो तो कहीं से दया, आध्यात्मिक दया और आध्यात्मिक ओज पाने के लिए भी इन नश्वर वस्तुओं का आदान – प्रदान करके शाश्वत के द्वार तक पहुँचो ऐसी महापुरुषों की सुंदर व्यवस्था है |

सर्दी में सूर्य का ताप मधुर लगता है | शरीर को विटामिन ‘डी’ की भी जरूरत होती है, रोगप्रतिकारक शक्ति भी बढ़नी चाहिए | इन सबकी पूर्ति सूर्य से हो जाती है | अत: सूर्यनारायण की कोमल किरणों का फायदा उठायें |

  स्त्रोत – ऋषिप्रसाद , दिसम्बर २०१६ से

उन्नत होने का संदेश देता है – मकर संक्रांति का पर्व


 

ऋषि – मुनियों व ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों ने दिशाहीन मानव को सही दिशा देने के लिए सनातन धर्म में पर्वों व त्यौहारों की सुंदर व्यवस्था की है | यह व्यवस्था आध्यात्मिक शक्ति की प्राप्ति, चित्तशुद्धि, संकल्पशक्ति की वृद्धि, ईश्वर की भक्ति और श्रद्धा के विकास, वातावरण की पवित्रता, विचारों को उच्च एवं परिष्कृत करने, आत्मिक आनंद – उल्लास प्रकटाने तथा उत्तम स्वास्थ्य-लाभ के लिए हैं | कोई सत्पात्र साहसी ८४ लाख योनियों के जन्म-मरण के चक्कर से छूटना चाहे तो आत्मसाक्षात्कार भी कर सकता है | ऐसे त्यौहारों में एक है मकर संक्रांति | मानव – जीवन में व्याप्त अज्ञान, संदेह, जड़ता, कुसंस्कारों आदि का निराकरण कर मानव – मस्तिष्क में ज्ञान, चेतना, ऊर्जा एवं ओज का संचार तथा मानव – जीवन में सुसंस्कारों की प्रेरणा उत्पन्न कर सम्यक दिशा एवं सम्यक मार्ग की ओर प्रवृत्त करने के लिए क्रान्तिकाल को संक्रांति कहते हैं | संक्रांति का अर्थ है कलुषित विचारों का त्याग और सद्विचारों का आलम्बन |

संक्रांति क्या है ?

पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना ‘क्रांति चक्र’ कहलाता है | ज्योतिष में इसीको ‘राशि चक्र’ भी कहते हैं | इस परिधि को १२ भागों में बाँटकर १२ राशियाँ बनी हैं | इन राशियों का नामकरण १२ नक्षत्रों के आधार पर हुआ है | सूर्य एक राशि में एक माह अर्थात लगभग ३० दिन विचरण करता है जबकि चन्द्रमा एक राशि में लगभग सवा दो दिन रहता है | जब भी सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है तब संक्रांति होती है लेकिन सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने का विशेष महत्त्व होता है जिसे हम मकर संक्रांति के रूप में मनाते हैं | सूर्य के इस संक्रमण के साथ – साथ जीवन का संक्रमण भी जुड़ा हुआ है | इस बात को हमारे पूर्वज जानते थे इसलिए इस दिन को उन्होंने सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक प्राधान्य भी दिया है और निसर्ग के इस परिवर्तन को ध्यान मे रखते हुए उसे जीवन-व्यवहार के साथ भी गूँथ लिया है |

अमिट पुण्यप्राप्ति का काल

सूर्य ऊर्जा, चेतना,शक्ति, आयुष्य, ज्ञान एवं प्रकाश के देवता हैं | मकर संक्रांति सूर्योपासना का विशिष्ट पर्व है | शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण का समय देवताओं का दिन एवं दक्षिणायन देवताओं की रात्रि होती है | वैदिक काल में उत्तरायण को ‘देवयान’ तथा दक्षिणायन को ‘पितृयान’ भी कहा गया है | शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन धार्मिक कार्यों, जैसे – सत्संग-भजन, सेवा, दान एवं महापुरुषों का दर्शन आदि अमिट पुण्य प्रदान करता है |

आध्यात्मिक महत्त्व

भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय प्राप्त करने से पहले सूर्य की उपासना की थी | भीष्म पितामह ने भी इस काल की प्रतीक्षा की थी :

धारयिष्याम्यहं प्राणानुत्तरायणकांक्षया |

ऐश्वर्यभूत: प्राणानामुत्सर्गो हि यतो मम ||

“मैं उत्तरायण की प्रतीक्षा में अपने प्राणों को धारण किये रहूँगा क्योंकि मैं जब इच्छा करूँ तभी अपने प्राणों को छोडूँ,  यह शक्ति मुझे प्राप्त हैं |” ( महाभारत, भीष्म पर्व : ११९.१०६)

ज्ञान – प्रकाश ही आत्मा का स्वरूप है | अत: इस दिन सत्संग व सेवा द्वारा ह्रदयस्थ ज्ञान-प्रकाशस्वरूप अन्तर्यामी आत्मा-परमात्मा को जानना ही मकर संक्रांति पर्व मनाने का लक्ष्य हो | बाहर सूर्य का दर्शन और अंदर सबको प्रकाशित करनेवाले ( जाननेवाले ) प्रकाशों – के – प्रकाश चैतन्यस्वरूप का दर्शन कल्याणकारक है | इस प्रकार मकर संक्रांति के दिन अंदर-बाहर चैतन्य-दर्शन को मोक्षदायी माना गया है |

बाहरि भीतरि एको जानहु, इहु गुर गिआनु बताई ||  ( गुरुवाणी)

स्त्रोत – लोक कल्याण सेतु – दिसम्बर – २०१६ (निरंतर अंक: २३४ ) से

 

सुख – शांति, समृद्धि व आरोग्य प्रदायिनी तुलसी


 

तुलसी का स्थान भारतीय संस्कृति में पवित्र और महत्त्वपूर्ण है | तुलसी को माता कहा गया है | यह माँ के समान सभी प्रकार से हमारा रक्षण व पोषण करती है | तुलसी पूजन, सेवन व रोपण से आरोग्य – लाभ, आर्थिक लाभ के साथ ही आध्यात्मिक लाभ भी होता हैं |

देश में सुख, सौहार्द, स्वास्थ्य, शांति से जन – समाज का जीवन मंगलमय हो इस लोकहितकारी उद्देश्य से प्राणिमात्र के हितचिंतक पूज्य बापूजी की पावन प्रेरणा से २५ दिसम्बर को पुरे देश में ‘तुलसी पूजन दिवस’ मनाना प्रारम्भ किया जा रहा है | तुलसी पूजन से बुद्धिबल, मनोबल, चारित्र्यबल व आरोग्यबल बढ़ेगा | मानसिक अवसाद, आत्महत्या आदि से लोगों की रक्षा होगी और लोगों को भारतीय संस्कृति के इस सूक्ष्म ऋषि – विज्ञान का लाभ मिलेगा |

‘स्कंद पुराण’ के अनुसार ‘जिस घर में तुलसी का बगीचा होता है अथवा प्रतिदिन पूजन होता है उसमें यमदूत प्रवेश नहीं करते |’ तुलसी की उपस्थितिमात्र से हलके स्पंदनों, नकारात्मक शक्तियों एवं दुष्ट विचारों से रक्षा होती है |

‘गरुड पुराण’ के अनुसार ‘तुलसी का वृक्ष लगाने, पालन करने, सींचने तथा ध्यान, स्पर्श और गुणगान करने से मनुष्यों के पूर्व जन्मार्जित पाप जलकर विनष्ट हो जाते हैं |’ (गरुड़ पुराण, धर्म कांड – प्रेतकल्प :३८.११ )

दरिद्रतानाशक तुलसी

१] ईशान कोण में तुलसी का पौधा लगाने से तथा पूजा के स्थान पर गंगाजल रखने से बरकत होती है |

२] ‘तुलसी पूजन दिवस के दिन शुद्ध भाव व भक्ति से तुलसी के पौधे की १०८ परिक्रमा करने से दरिद्रता दूर होती है |’ – पूज्य बापूजी

विदेशों में भी होती है तुलसी पूजा

मात्र भारत में ही नहीं वरन् विश्व के कई अन्य देशों में भी तुलसी को पूजनीय व शुभ माना गया है | ग्रीस में इस्टर्न चर्च नामक सम्प्रदाय में तुलसी की पूजा होती थी और सेंट बेजिल जयंती के दिन ‘नूतन वर्ष भाग्यशाली हो’ इस भावना से देवल में चढाई गयी तुलसी के प्रसाद को स्त्रियाँ अपने घर ले जाती थीं |

फ्रेंच डॉक्टर विक्टर रेसीन ने कहा है : “तुलसी एक अद्भुत औषधि है, जो ब्लडप्रेशर व पाचनतंत्र के नियमन, रक्तकणों की वृद्धि एवं मानसिक रोगों में अत्यंत लाभकारी है |”

तुलसी एक. लाभ अनेक

तुलसी शरीर के लगभग समस्त रोगों में अत्यंत असरकारक औषधि है |

१] यह प्रदूषित वायु का शुद्धिकरण करती है तथा इससे प्राणघातक और दु:साध्य रोग भी ठीक हो सकते हैं |

२] प्रात: खाली पेट तुलसी का रस पीने अथवा ५ – ७ पत्ते चबाकर पानी पीने से बल, तेज और स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है |

३] तुलसी गुर्दे की कार्यशक्ति को बढ़ाती है | कोलेस्ट्रोल को सामान्य बना देती है | ह्रदयरोग में आश्चर्यजनक लाभ करती है | आँतों के रोगों के लिए तो यह रामबाण है |

४] नित्य तुलसी – सेवन से अम्लपित्त (एसिडिटी) दूर हो जाता है, मांसपेशियाँ का दर्द, सर्दी-जुकाम, मोटापा, बच्चों के रोग विशेषकर कफ, दस्त, उलटी, पेट के कृमि आदि में लाभ होता है |

५] चरक सूत्र में आता है कि ‘तुलसी हिचकी, खाँसी, विषदोष, श्वास रोग और पार्श्वशूल को नष्ट करती है | वह वात, कफ और मूँह की दुर्गंध को नष्ट करती है |’

६] घर की किसी भी दिशा में तुलसी का पौधा लगाना शुभ व आरोग्यरक्षक है |

७] ‘तुलसी के निकट जिस मंत्र – स्तोत्र आदि का जप पाठ किया जाता है, वह सब अनंत गुना फल देनेवाला होता है |’ ( पद्म पुराण )

८] ‘मृत्यु के समय मृतक के मुख में तुलसी के पत्तों का जल डालने से वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर भगवान विष्णु के लोक में जाता है |’ ( ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खण्ड :२१.४२ )

वैज्ञानिक तथ्य

१] डिफेन्स रिसर्च एंड डेवलमेंट ऑर्गेनाइजेशन (DRDO) के वैज्ञानिकों द्वारा किये गये अनुसंधानों से यह सिद्ध हुआ है कि ‘तुलसी में एंटी ऑक्सीडंट गुणधर्म है और वह आण्विक विकिरणों से क्षतिग्रस्त कोशों को स्वस्थ बना देती है | कुछ रोगों एवं जहरीले द्रव्यों, विकिरणों तथा धुम्रपान के कारण जो कोशों को हानि पहुँचानेवाले रसायन शरीर में उत्पन्न होते हैं, उनको तुलसी नष्ट कर देती है |’

२] तिरुपति के एस.वी. विश्वविद्यालय में किये गये एक अध्ययन के अनुसार ‘तुलसी का पौधा उच्छ्वास में ओजोन वायु छोड़ता है, जो विशेष स्फूर्तिप्रद है |’

३] आभामंडल नापने के यंत्र ‘युनिवर्सल स्केनर’ ले माध्यम से तकनीकी विशेषज्ञ श्री. के. एम्. जैन द्वारा किये गये परीक्षणों से यह बात सामने आयी कि ‘यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन तुलसी या देशी गाय की परिक्रमा करे तो उसके शरीर में धनात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है, जिससे शरीर पर रोगों के आक्रमण की सम्भावना भी काफी कम हो जाती है | यदि कोई व्यक्ति तुलसी के पौधे की ९ बार परिक्रमा करे तो उसके आभामंडल के प्रभाव – क्षेत्र में ३ मीटर की आश्चर्यकारक बढ़ोत्तरी होती है |’

शीत ऋतू में आरोग्यवर्धक तुलसी पेय

सामग्री : ५ ग्राम सूखे तुलसी – पत्तों का चूर्ण या २५ ग्राम ताजे तुलसी – पत्ते, १.५ ग्राम सोंठ चूर्ण या ५ ग्राम ताजा अदरक, १.५ ग्राम अजवायन, ०.५ ग्राम काली मिर्च, १.५ ग्राम हल्दी चूर्ण |

विधि : १ लीटर पानी में उपरोक्त सभी चीजें अच्छी तरह उबालें | ८- १० व्यक्तियों के लिए यह पर्याप्त है | यह आरोग्यप्रदायक सात्त्विक पेय सर्दियों में चाय का बेहतर विकल्प है | यह सर्दी – जुकाम एवं बुखार में बहुत लाभकारी है |

स्फूर्तिप्रदायक शीतल तुलसी पेय

सामग्री : तुलसी, सौंफ, सफेद मिर्च, मिश्री आदि |

विधि : २०० मि.ली. पानी में ३ ग्राम सूखे तुलसी पत्तों का चूर्ण, ३ ग्राम पिसी सौंफ, २ – ३ पिसी हुई सफेद मिर्च और आवश्यकतानुसार मिश्री डालें | यह पेय शीतलता, शक्ति एवं ताजगी प्रदान करनेवाला है |

संकल्प करें

२४ दिसम्बर को रात्रि को सोते समय संकल्प करें कि ‘कल मैं तुलसी पूजन करूँगा | तुलसी माता हमारे रोग – शोक दूर कर सुख – समृद्धि, बरकत व शांति देंगी’ और भगवान विष्णु या सदगुरुदेव का चिंतन – ध्यान करते हुए सो जायें |

स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – दिसम्बर २०१४ ( निरंतर अंक- २१० )