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स्‍वास्‍थ्‍य सुरक्षा की सुव्‍यवस्‍था


मकर संक्रान्‍ति के दिन तिल गुड़ के व्‍यंजन और चांवल में चने की दाल मिलाकर बनाई गई खिचड़ी का सेवन ऋतु-परिवर्तनजन्‍य रोगों से रक्षा करता है । इनका दान करने का भी विधान है ।

मकर संक्रान्‍ति पर्व व माघ मास में तिल के उपयोग की महिमा पर शास्‍त्रीय दृष्‍टि से प्रकाश डालते हुए पूज्‍य बापूजी कहते हैं : ‘’जो माघ मास में इन छह प्रकारों से तिलों का उपयोग करता है वह इहलोक और परलोक में वांछित फल पाता है – तिल का उबटन, तिलमिश्रित जल से स्‍नान, तिल-जल से अर्ध्‍य, तिल का होम, तिल का दान और तिलयुक्‍त भोजन । किंतु ध्‍यान रखें – रात्रि को तिल व उसके तेल से बनी वस्‍तुएं खाना वर्जित है ।‘’

लोक कल्याण सेतु , अंक १७४ , दिसंबर २०११

उत्तरायण पर्व कैसे मनाएं ?


 

(मकर संक्रांति: १४ जनवरी- पुण्यकाल : सूर्योदय से सूर्यास्त तक )

इस दिन स्नान, दान, जप, तप का प्रभाव ज्यादा होता है | उत्तरायण के एक दिन पूर्व रात को भोजन थोडा कम लेना | दूसरी बात, उत्तरायण के दिन पंचगव्य का पान पापनाशक एवं विशेष पुण्यदायी माना गया है | त्वचा से लेकर अस्थि तक की बीमारियों की जड़ें पंचगव्य उखाड़ के फेंक देता है | पंचगव्य आदि न बना सको तो कम-से-कम गाय का गोबर, गोझारण, थोड़े तिल, थोड़ी हल्दी और आँवले का चूर्ण इनका उबटन बनाकर उसे लगा के स्नान करो अथवा सप्तधान्य उबटन से स्नान करो (पिसे हुए गेहूँ, चावल, जौ, टिल, चना, मूँग और उड़द से बना मिश्रण) | इस पर्व पर जो प्रात: स्नान नहीं करते हैं वे सात जन्मों तक रोगी और निर्धन रहते हैं | मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने से दस हजार गौदान करने का फल शास्त्र में लिखा है और इस दिन सूर्यनारायण का मानसिक रूप से ध्यान करके मन-ही-मन उनसे आयु-आरोग्य के लिए की गयी प्रार्थना विशेष प्रभावशाली होती है |

इस दिन किये गए सत्कर्म विशेष फलदायी होते हैं | इस दिन भगवान् शिव को तिल, चावल अर्पण करने अथवा तिल, चावल मिश्रित जल से अर्घ्य देने का भी विधान है | उत्तरायण के दिन रात्रि का भोजन न करें तो अच्छा है लेकिन जिनको सन्तान है उनको उपवास करना मना किया गया है |

इस दिन जो ६ प्रकार से तिलों का उपयोग करता है वह इस लोक और परलोक में वांछित फल को पाता है :

१] पानी में तिल डाल के स्नान करना,

२] तिलों का उबटन लगाना,

३] तिल डालकर पितरों का तर्पण करना, जल देना,

४] अग्नि में तिल डालकर यज्ञादि करना,

५] तिलों का दान करना,

६] तिल खाना

तिलों की महिमा तो है लेकिन तिल की महिमा सुनकर तिल अति भी न खायें और रात्रि को तिल और तिलमिश्रित वस्तु खाना वर्जित है |

उत्तरायण पर्व के दिन सूर्य-उपासना करें

ॐ आदित्याय विदमहे भास्कराय धीमहि | तन्नो भानु: प्रचोदयात् |

इस सुर्यगायत्री के द्वारा सूर्यनारायण को अर्घ्य देना विशेष लाभकारी माना गया है अथवा तो ॐ सूर्याय नम: | ॐ रवये नम: | … करके भी अर्घ्य दे सकते है |

आदित्य देव की उपासना करते समय अगर सूर्यगायत्री का जप करके ताँबे के लोटे से जल चढाते है और चढ़ा हुआ जल जिस धरती पर गिरा, वहा की मिटटी का तिलक लगाते हैं तथा लोटे में ६ घूँट बचाकर रखा हुआ जल महामृत्युंजय मंत्र का जप करके पीते हैं तो आरोग्य की खूब रक्षा होती है | आचमन लेने से पहले उच्चारण करना होता है –

अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम |

सूर्यपादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम ||

अकालमृत्यु को हरनेवाले सूर्यनारायण के चरणों का जल मैं अपने जठर में धारण करता हूँ | जठर भीतर के सभी रोगों को और सूर्य की कृपा बाहर के शत्रुओं, विघ्नों, अकाल-मृत्यु आदि को हरे |

स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०१४ से

पुण्य – अर्जन का पर्व मकर संक्रांति


 

(१४ जनवरी : पुण्यकाल : सूर्योदय से सूर्यास्त तक )

संक्रांति का अर्थ है बदलाव का समय | उत्तरायण से देवताओं का ब्राह्ममुहूर्त शुरू हो जाता है | अत: हमारे ऋषियों ने उत्तरायण को साधना व परा – अपरा विद्याओं की प्राप्ति के लिए सिद्धिकाल माना है |

मकर संक्रांति पर स्नान, दान व्रत, जप-अनुष्ठान, पूजन, हवन, सुमिरन, ध्यान, वेद-पाठ, सत्संग –श्रवण, सेवा आदि का विशेष महत्त्व है | ‘धर्मसिंधु’ ग्रंथ में आता है किसंक्रांति होने पर जो व्यक्ति स्नान नहीं करता, वह सात जन्मों तक रोगी और निर्धन होता है | सूर्योदय से पहले स्नान करने से दस हजार गोदान करने का फल मिलता है | कुटे हुए तिल, जौ मिश्रित गोमूत्र या गोबर से रगड़ के स्नान करें तो और अच्छा | इस पर्व पर तिल के उपयोग की विशेष महिमा है | संक्रांति पर देवों और पितरों को तिलदान अवश्य करना चाहिए |   वैदिक साहित्य में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा गया है |

सूर्योदय होने से प्राणिजगत में चेतना का संचार होता है और उसकी कार्यशक्ति में वृद्धि होती है | सृष्टि में जीवन के लिए सबसे अधिक आवश्यकता सूर्य की है | सूर्य की गति से संबंधित होने के कारण यह पर्व हमारे जीवन में गति, नवचेतना, नव-उत्साह और नवस्फूर्ति लाता है | उत्तरायण के बाद दिन बड़े होने लगते हैं |

पूज्य बापूजी कहते हैं : “मकर संक्रांति पुण्य – अर्जन का दिवस है | यह सारा दिन पुण्यमय है; जो भी करोगे कई गुना पुण्यदायी हो जायेगा | मौन रखना, जप करना, भोजन आदि का संयम रखना और भगवत्प्रसाद को पाने का संकल्प करके भगवान को जैसे भीष्मजी कहते हैं कि ‘हे नाथ ! मैं तुम्हारी शरण हूँ | हे अच्युत ! हे केशव ! हे सर्वेश्वर ! मेरी बुद्धि आपमें विलय हो |’ ऐसे ही प्रार्थना करते – करते मन – बुद्धि को उस सर्वेश्वर में विलय कर देना |”

स्त्रोत – लोक कल्याण सेतु – दिसम्बर -२०१५ (निरंतर अंक :२२२) से