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स्वस्थ जीवन व ध्यान-भजन में उन्नति हेतु


एक व्यक्ति एक संत के पास आया और बोलाः ″महाराज ! मैं भगवान का भजन ठीक से नहीं कर पाता ।″ संत ने कहाः ″पेट पर ध्यान दो ।″ फिर दूसरा व्यक्ति आया और बोलाः ″मेरा अपने मन पर काबू नहीं है ।″ संत बोलेः ″पेट पर ध्यान दो ।″ तीसरा व्यक्ति आया और बोलाः ″मैं प्रायः बीमार रहता हूँ ।″ तब भी संत ने यही कहा कि ″पेट पर ध्यान दो ।″

जिह्वा के गुलाम न बनकर सात्त्विक, ताजा आहार ही लेना, भूख से थोड़ा कम खाना, तथा पेट साफ रखना – यह स्वस्थ जीवन के लिए तो जरूरी है ही, साथ ही ध्यान-भजन में मन लगने व शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी अत्यावश्यक है । कहा भी गया हैः

पेट सही तो सब सही, पेट खराब तो सब खराब ।

कम खाओ, गम खाओ ( धैर्य रखो )। पेट पर ध्यान दो ।

लंघन अर्थात् उपवास स्वास्थ्य का परम हितैषी एवं रोगी का परम मित्र है । वाग्भट्ट जी ने इसे परम औषध कहा हैः ‘लङ्घनं परमऔषधम् ।’

अष्टांगहृदय ( सूत्रस्थानः 2.19 ) में आता हैः जीर्णे मितं चाद्यान्न । पहले किये हुए भोजन के पच जाने के पश्चात जो हितकर भोजन हो उसे भूख से थोड़ी कम मात्रा में खायें ।’ यह स्वास्थ्य का मूल मंत्र है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2022, पृष्ठ संख्या 29 अंक 349

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सूर्यदेव ने कार्तिकजी का पूजन रोककर पहले किनको पूजा ? – पूज्य बापू जी


एक बार भगवान शिवजी के बेटे कार्तिक स्वामी भगवान सूर्यदेव से मिलने गये । जब वे पहुँचे तो सूर्यदेव ने देखा कि ये तो शिवजी के बेटे आ रहे हैं तो पूजा की थाली लाये । ज्यों वे पूजा करने जाते हैं इतने में उन्होंने देखा कि कोई विमान जा रहा है । विमान में कौन बैठा है यह देखा तो सूर्यनारायण ने कार्तिक स्वामी का पूजन रोक दिया और विमान में जा रहे महान आत्मा का आवाहन किया और उनका पूजन कर लिया । उन महात्मा का पूजन हुआ फिर वह विमान आगे गया । फिर सूर्यनारायण दूसरी थाली लाये कार्तिक जी की पूजा के लिए । इतने में दूसरा विमान जाते हुए सूर्यदेव ने देखा । सूर्यदेव तो ज्ञान के देव हैं, बुद्धि के देव ! उन्होंने उसमें बैठे व्यक्ति का आवाहन किया और उनका पूजन किया । वह विमान जब आगे निकल गया तब सूर्यनारायण तीसरी थाली लाये और कार्तिक स्वामी का पूजन करने लगे ।

कार्तिक स्वामी बोलते हैं- ″आप तो मेरे को जानते हैं, मैं शंकर भगवान का पुत्र हूँ किंतु वे कौन आत्माएँ कौन थीं जिनके लिए आपने मुझे बाजू में रख के उनका पूजन किया ? अगर मैं अधिकारी हूँ तो बताइये ।″

सूर्यदेव बोलेः ″शिवपुत्र कार्तिक स्वामी ! आपको तो प्रणाम है लेकिन वह जो पहला विमान था उसमें दूसरों को ज्ञान देकर, भक्ति की शक्ति जागृत करके व्यक्ति की सुषुप्त शक्ति जगावें, पैसों के लिए कथा नहीं बल्कि लोगों की भलाई हो, शरीर तंदुरुस्त रहे, मन प्रसन्न रहे और बुद्धि में छुपी हुई बुद्धिदाता की शक्ति जागृत हो ऐसे निर्दोष भाव से सत्संग करने वाले आत्मसाक्षात्कारी, ब्रह्मज्ञानी गुरु थे । जिनके चरणों में भगवान भी माथा झुकाते हैं ऐसे गुरु जा रहे थे । इसलिए मैंने उनका स्वागत किया ।″

कार्तिक स्वामीः ″अच्छा, तो दूसरे विमान में भी ऐसे ही गुरु थे ?″

बोलेः ″नहीं, दूसरे विमान में ऐसे गुरु नहीं थे लेकिन ऐसे गुरु का कार्यक्रम-आयोजन करने वाला सत्पात्र शिष्य था । तन-मन-धन से लगकर गुरु का प्रसाद लोगों तक पहुँचाने में सदैव तत्परता से सेवा करने वाला सत्शिष्य था, उसका स्वागत किया ।″

बोलेः ″बहुत बढ़िया बात है ! सूर्यनारायण ! यह आपके और हमारे संवाद की कथा, यह ऐसी ऊँची घटना जो सुनेंगे, एक-दूसरे को सुनायेंगे उनके पाप मिटेंगे और उन्हें हजार कपिला गोदान करने का फल होगा ।″

हजारों की खुशामद छोड़कर एक ईश्वर से प्रीति करो और हजारों से ईश्वर के नाते प्रेम से मिलो तो आपके इस हाथ में भी लड्डू और उस हाथ में भी लड्डू – इस जहाँ में भी मौज और परलोक में भी खुशी ! – पूज्य बापू जी

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2022, पृष्ठ संख्या 7 अंक 349

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बल ही जीवन है – पूज्य बापू जी



बल ही जीवन है, दुर्बलता मौत है । जो नकारात्मक विचार करने
वाले हैं वे दुर्बल हैं, जो विषय-विकारों के विचार में उलझता है वह दुर्बल
होता है लेकिन जो निर्विकार नारायण का चिंतन, ध्यान करता है और
अंतरात्मा का माधुर्य पाता है उसका मनोबल, बुद्धिबल और आत्मज्ञान
बढ़ता है ।