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…तो जो भी काम तुम करोगे उसमें सफलता मिलेगी


एक टिटिहरी ने अपने अंडे दे रखे थे समुद्र के किनारे । एक दिन समुद्र की लहर आयी और उसके अंडों को बहाकर ले गयी । अंडे जब बह गये तो उसने तुरंत काम शुरु कर दिया । क्या काम शुरु किया ? अपनी चोंच में समुद्र का पानी भर के दूर ले जाकर सूखी जमीन पर डाले । ऐसा नहीं कि टिटिहरी बैठ के रोवे और अन्य पक्षी मातम-पुर्सी करने (सांत्वना देने) को आवें तो सबसे बात करे । वह माने ही नहीं, बिल्कुल दृढ़ निश्चय कर चुकी है कि हम समुद्र को सुखा देंगे !

अब आप सोचो कि नन्हा सा पक्षी समुद्र को भला कैसे सुखा सकता है ? लेकिन उसके मन में इतना उत्साह, इतनी दृढ़ता भर गयी थी, इतना पौरूष, इतना प्रयत्न भर गया था उसके रोम-रोम में कि वह किसी के कहने से, किसी के समझाने से बिल्कुल मानती ही नहीं थी । वह तो बस समुद्र का पानी उठावे और ले जाकर बाहर फेंक दे । अब तो देश-देश के पक्षी आने लग गये कि हमारा एक भाई-बंधु इस संकल्प से समुद्र के साथ युद्ध कर रहा है कि ‘समुद्र को सुखा दें !’ वे सब भी चोंच में पानी भर के बाहर फेंकने लगे । इतना बड़ा संकल्प, एक चिड़िया के मन में और इतना बड़ा उत्साह, इतनी दृढ़ता ! यह समाचार पहुँचा गरूड़ जी के पास, पक्षियों के राजा गरुड़ । तो उन्होंने कहाः “लाखों-करोड़ों पक्षी लगे हैं समुद्र को सुखाने में । चलो, मैं देखता हूँ ।”

इसका अर्थ यह है कि मनुष्य जब अपने काम में दृढ़ता के साथ लग जाता है तो उसके सहायक भी मिल जाते हैं, उसको युक्ति भी मिल जाती है, उसको बुद्धि भी मिल जाती है । मनुष्य को दृढ़ता से अपने काम में लगने भर की देर है । बुद्धि बताने वाले आ जाते हैं, मदद करने वाले आ जाते हैं । गरुड़ जी आये । उन्होंने सब बात सुनी और बोलेः “अच्छा ! हे समुद्र ! हमारी इतनी प्रजा, इतने पक्षी संलग्न होकर तुम्हें सुखाना चाहते हैं और तुम इनको तुच्छ समझते हो कि ‘ये हमारा क्या करेंगे ?’ सो देखो, हम तुम्हें बताते हैं ।” और समुद्र के ऊपर उन्होंने दो-चार बार अपने पंख को मारा तो समुद्र उद्विग्न हो गया । टिटिहरी के जो अंडे थे उनको ले करके वह सामने उपस्थित हुआ । टिटिहरी के अंडे वापस आ गये ।

इसका अभिप्राय यह है कि बड़े-से-बड़ा काम करने का भी संकल्प करो और शक्तिभर उसके लिए प्रयास करो, तुम्हारे मददगार आवेंगे, तुम्हें बुद्धि मिलेगी, जो भी तुम काम करोगे उसमें तुम्हें सफलता मिलेगी । केवल उत्साह भंग नहीं होना चाहिए ।

इसलिए भगवान कहते हैं- “औ मेरे प्यारे बुद्धिशाली पुरुषो ! तुम उठो, जागो और अपने जीवन में अग्नि प्रज्वलित करो । तेजस्वी बनो, प्रकाशमान बनो । अपने को किसी भी अवस्था में निरुत्साह मत करो । आगे बढ़ो, आगे बढ़ो !”

बड़े-से-बड़ा काम है अपने जीवन के वास्तविक लक्ष्य को पाना अर्थात् अपने आत्मदेव का साक्षात्कार करना । इसमें तत्परता से लग जाना चाहिए और रुकना नहीं चाहिए । पूज्य बापू जी के सत्संगामृत में आता हैः “हे मानव ! जो तेरा आत्मदेव है उसको पाये बिना तू कहीं रुक मत ! चरैवेति… चरैवेति… आगे बढ़, आगे बढ़….. ॐ….ॐ….ॐ…..

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2021, पृष्ठ संख्या 18,19 अंक 338

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ऐसे गुरु का ध्यान परमात्मप्राप्ति का कारण बनता है


मनुष्य-जीवन में सुख-दुःख का कारण स्वस्वरूपविस्मरण है । इसका ही नाम अज्ञान, अविद्या या माया है, जिसके कारण मनुष्य को नाना प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं । इससे छूटने का उपाय है आत्मदर्शन । आत्मदर्शन याने आत्मज्ञान अंतःशक्ति जागने से होता है । इसके लिए ऐसे गुरु की शरण जाकर उनके कृपापात्र बनना चाहिए जो शिष्य से संसार का नहीं बल्कि जीवत्व का त्याग कराते हैं, उसके वित्त और द्रव्य को नहीं बल्कि उसकी चिंता और पाप को हर लेते हैं, घर में ही गुहा (गुफा) की शांति और एकांत का अनुभव ला देते हैं और प्रपंच में ही परमार्थ दिखाते हैं ।

गुरु परम दैवत (देवता) हैं । गुरु मंत्र चैतन्यकारक हैं । गुरु ‘पारमेश्वरी अनुग्राहिका शक्ति’ है, गुरु नव-नव उन्मेषशालिनी (नये-नये ढंग से अपने-आपको व्यक्त करने वाली) प्रतिभा है, गुरु स्वयं पराशक्ति चिति याने माँ कुण्डलिनी हैं । ऐसे सिद्ध गुरुजन से दीक्षा पाना परम सौभाग्य है । वह पाने के लिए गुरुध्यान सर्वश्रेष्ठ साधन है । गुरु ने मंत्र दिया, अंतःशक्ति जगायी, जप का विधान बताया फिर उन्हीं गुरु का ध्यान चरमप्राप्ति का कारण बनता है । श्रीगुरुदेव ने गुरुध्यान की अपूर्व विधि भी बतलायी है । उल्लसित गुरुचिंतन सिद्धयोग का प्राण है, शक्तिपात की साधना है, परमप्राप्ति का रहस्य है । गुरु के पुण्यस्मरण से श्रीगुरु चितिमय शक्तिरूप से शिष्य में अंतर-कार्य करने लगते हैं, उसके अंतर-मल को धोकर उसे शुद्ध बनाते हैं, जीव को शिव बनाते हैं । इसलिए शिष्य का कर्तव्य है – गुरुसंगत, गुरुसेवा, गुरु-आज्ञापालन । यही है सिद्धमार्ग या सिद्धयोग ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2021, पृष्ठ संख्या 10 अंक 338

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ध्यान को शौक की सब्जी मत बनाओ


असल में संसारी लोग न तो शुद्ध ध्यान चाहते हैं और न शुद्ध ज्ञान चाहते है । उनकी स्थिति तो कुछ इस प्रकार की होती हैः

एक महिला बहुत मोटी थी । वज़न करने का उपाय पूछने के लिए वह गयी डॉक्टर के पास । तो डॉक्टर ने बताया कि तुम हरी-हरी सब्जी व सेब, सन्तरा आदि फल खाओ । तुम्हारा वज़न घट जायेगा ।”

अब घर आयी तो नौकर को सब लिखकर दिया कि हमको यह-यह चाहिए । नौकर ले आया । खा लिया । फिर उसके बाद रोज खाने वाली थाली मँगायी और वह भी खाया । महीने भर बाद जब डॉक्टर के पास गयी तो वज़न तो बढ़ा हुआ मिला । पाँच पाउंड (2.26 कि.ग्रा.) वज़न और बढ़ गया था ।

बोलीः “अरे डॉक्टर ! तुमने जैसा बताया वैसा मैंने किया । वज़न क्यों बढ़ गया ?” डॉक्टर सोच में पड़ गया कि ‘बात क्या है ?’

डॉक्टर न  पूछाः “तुमने सब्जी खायी ?”

“खूब खायी ।”

“सेब, संतरा खाया ?”

“खाया ।”

“पत्ते भी जब तुमने चबाये तो वज़न क्यों बढ़ा ? रोज जो भोजन खाती थीं उसको भी खा लिया ?”

“हाँ ।”

डॉक्टर बोलाः “तुमने पुराना पेटूपन का शौक नहीं छोड़ा और इलाज को भी शौकपूर्ति के उद्देश्य में जोड़ दिया तो वज़न बढ़ गया । आया आपके ध्यान में ?”

तो ये संसारी लोग जो हैं वे जब महात्माओं के पास जाते हैं और महात्मा लोग बताते हैं कि थोड़ा भजन करो, थोड़ा ध्यान करो, थोड़ा जप करो ।’ तो होता क्या है कि पैसा तो हमारे पास ज्यों का त्यों बना रहे । हमारा भोग ज्यों का त्यों बना रहे । कुर्सी ज्यों की त्यों बनी रहे । रोज का जो भोजन है वह ज्यों का त्यों बना रहे और यह जो ध्यान है, भजन है यह इनके लिए शौकिया सब्जी है, वह भी खा ली । माला फेरते हैं सब्जी खाने की तरह, ध्यान करते हैं फल खाने की तरह, भजन करते हैं सलाद खाने की तरह और रोज का वासनारूपी भोजन तो ज्यों का त्यों ! उसमें तो कोई अंतर नहीं । अरे भाई ! रोज के भोजन में थोड़ा फर्क करो । उसको थोड़ा कम करो और फिर सब्जी खाओ, तुम्हारा वज़न घटता है कि नहीं ।

तो ये जो संसारी लोग हैं वे अपनी वासना को घटायेंगे नहीं, भोग को घटायेंगे नहीं । ‘ब्लैक मार्केट’ रोज़ बढ़ता जायेगा । चिंता रोज़ बढ़ती जायेगी । बोले, ‘हमने इतना भजन किया, हमको तो कोई फायदा नहीं हुआ । हमारा मन नहीं टिका ।’

तो ध्यान को शौक की सब्जी मत बनाओ ।  अपने कर्म में, अपने भोग में, अपने संग्रह में, अपने वचन में थोड़ा-थोड़ा अंतर डालते जाओ । फिर देखो भजन का प्रभाव ! भजन माने है मन का निर्माण ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2021, पृष्ठ संख्या 7 अंक 338

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