Yearly Archives: 2021

जीवन का उद्देश्य मानो नहीं, जानो – पूज्य बापू जी


  जीवन के सर्वांगीण विकास में धन, सत्ता या क्रिया का इतना महत्त्व नहीं है जितना उद्देश्य का है । आप कितने भी कर्म करो, अगर आपका उद्देश्य ऊँचा नहीं है तो उनका फल छोटा व नाशवान होगा और आपकी यात्रा नश्वर की तरफ होगी ।

एक होता है उद्देश्य सुन लेना, मान लेना । दूसरा है, उद्देश्य को जानकर निहाल हो जाना । परमात्मा ने हमें मनुष्य-शरीर किस उद्देश्य से दिया है, यह पहचानना और उस उद्देश्य की पूर्ति हेतु दृढ़ता से लग जाना ही मनुष्य जन्म का वास्तविक उद्देश्य है । यह मनुष्य शरीर हमें अपनी इच्छा से नहीं प्राप्त हुआ है ।

कबहुँक करि करुना नर देही । देत ईस बिनु हेतु  सनेही ।। ‘बिना कारण ही स्नेह करने वाले ईश्वर कभी विरले ही दया करके जीव को मनुष्य का शरीर देते हैं ।’ (श्रीरामचरित. उ.कां. 43.3)

अगर हमने कोई अपना कल्पित उद्देश्य बना लिया पर वास्तविक उद्देश्य नहीं जाना तो क्या मिलेगा ? युवावस्था में हम न जाने कितनी-कितनी तरंगों पर नाचते हैं, ‘मैं वकील बनूँ, डॉक्टर बनूँ…’ फिर भी जीवन की तृप्ति, पूर्णता देखने में नहीं आती । उद्देश्य अगर पूर्ण का नहीं है तो पूर्ण सुख, पूर्ण शांति, पूर्ण संतोष, पूर्ण जीवन के दर्शन नहीं होते । कोई उद्देश्य मानकर उसकी पूर्ति में लग जाना उद्देश्यविहीन लोगों की अपेक्षा अच्छा है पर धनभागी वे हैं जो उद्देश्य जान लेते हैं । इसलिए हे मानव ! समय रहते चेत ! देर न कर, प्रमाद न कर अन्यथा विचार-विचार में जिंदगी यों ही पूरी हो जायेगी ।

मक्सदे जिंदगी (जीवन का उद्देश्य) न खो, यूँ हूँ उम्र गुजारकर । अक्ल को होश (विवेक) से जगा, होश को होशियार (विवेक को प्रखर बनाना) कर ।।

मनुष्य जीवन क्यों मिला है ? क्या करके क्या पाना चाहते हो ? इतनी विघ्न बाधाओं से घिरा हुआ मनुष्य-शरीर आखिर किस बात के लिए श्रेष्ठ माना जाता है ? जीवन का सही उद्देश्य क्या है ? आप हिन्दू, मुसलिम, पारसी, यहूदी… जो भी हो, सभी की जिगरी जान सच्चिदानंद आत्मा है । सभी का उद्देश्य है – सच्चिदानंद अर्थात् सदा रहने वाले ज्ञानस्वरूप को पाना ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2021, पृष्ठ संख्या 2 अंक 339

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

सुविधा से नहीं, सादगी से उन्नति – पूज्य बापू जी


धर्म के रास्ते पर प्रतिकूलताएँ, विरोध आयें और व्यक्ति डटा रहे तो वे सुषुप्त शक्तियाँ जगाने में बड़ा काम करते हैं ।

बालक 5-6 साल के और जनेऊ मिल गया, मुंडन हो गया राम, लखन, भरत, शत्रुघ्न का और रानियाँ देखती रह गयीं कि ‘हमारे मासूम अब गुरुकुल में जायेंगे ।’ रथ तो तैयार है पर गुरुजी बोलते हैं- “नहीं ।”

दशरथ जी बोलते हैं- “नहीं !”

“गुरुकुल में जाने वाले बालक नंगे पैर ही जायेंगे ।”

“तो गुरुजी ! क्यों नंगे पैर…?”

बोलेः “अरे, प्रतिकूलता नहीं सहेगा ? जो राजा है उसे कभी जंगल में जाना पड़े, भूखा रहना पड़े, प्यासा रहना पड़े…. अगर जीवन की शुरुआत में ही खोखला रह गया, सुविधावाला रह गया तो विघ्न-बाधाओं के समय मनुष्य टूट जायेगा ।”

और राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न भिक्षा माँगते हैं, लो ! गुरु जी के लिए भी ले जाते हैं और अपने लिए भी । गुरुकुल की ऐसी परम्परा ! तो निकले भी ऐसे महजबूत हो के !

अभी तो जितना बड़ा व्यक्ति उतनी कमजोर संतान । लाख-लाख रुपये शुल्कवाले स्कूल में गये । सुबह 7 बजे इडली-डोसा आदि नाश्ता, फिर 9 बजे चाय-कॉफी अथवा पहले चाय-कॉफी…. हर डेढ़ दो घंटे में चटोरे लोगों को खिलाते रहें, लाख रूपये साल का लेना है । ‘बच्चे खुश रहें…’ फिर ये बच्चे खुश रहकर क्या करेंगे आगे चल के ? खोखले हो जायेंगे, विलासी हो जायेंगे, भ्रष्टाचारी हो जायेंगे, शोषक हो जायेंगे । जो ज्यादा शुल्क दे-दे के कहलाने वाले बड़े स्कूलों में टिपटॉप में पढ़ते हैं वे समाजशोषक पैदा होंगे, समाजपोषक नहीं होंगे । ज्यादा खर्चा करके पढ़ के कोई बड़े व्यक्ति के बेटे सचमुच में बड़े नहीं होते हैं, बड़े भ्रष्टाचारी बनते हैं, बड़े शोषक बनते हैं । जो कम खर्च में गरीबी और कठिनाइयों से पढ़ा-लिखा और गुजरा है वही दूसरे की कठिनाइयाँ मिटायेगा और वही समाज की थोड़ी बहुत सेवा कर पायेगा । जो  चटोरे बन कर पढ़ेंगे और प्रमाणपत्र लेंगे वे समाज में जा के क्या काम करेंगे !

आने वाले दिन बहुत खतरनाक आ रहे हैं । बड़े लोगों के बेटे इतने खोखले बनते जा रहे हैं कि उनसे आने वाला समाज अधिक शोषित हो जायेगा और वे बड़े लोग भी प्रकृति के ऐसे-वैसे उतार-चढ़ाव में बेचारे रगड़े जायेंगे । यह युग बड़ा तेजी से परिवर्तन लायेगा ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2021, पृष्ठ संख्या 18 अंक 339

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

शास्त्रों का जितना अधिक आदर, उतना अधिक लाभ ! – पूज्य बापू जी


ग्रंथ क्यों आदरणीय हैं ?

ग्रंथों में देखा जाय तो कागज और स्याही के सिवाय कोई तीसरी चीज नहीं होती । कागज और स्याही होती है और होते हैं वर्णमाला के अक्षर, जो तुम स्कूल में पढ़े हो, पढ़ाते हो । उन्हीं अक्षरों का मिश्रण होगा उसमें, और क्या होगा ? लेकिन फिर भी  वर्णमाला के वे अक्षर सत्सगं के द्वारा दुहराये जाते हैं और उस ढंग से छप जाते हैं तब उनसे बनी पुस्तक, पुस्तक नहीं बचती, वह स्याही और कागज नहीं बचता, वह शास्त्र हो जाता है और हम उसे शिरोधार्य करके, उसकी शोभायात्रा निकाल कर अपने को पुण्यात्मा बनाते हैं । जिन ग्रंथों में संतों की वाणी है, संतों का अनुभव है, उन ग्रंथों का आदर होना ही चाहिए । हमारे जीवन में ये सत्शास्त्र अत्यधिक उपयोगी हैं । उनका आदरसहित अध्ययन करके एवं उनके अनुसार आचरण करके हम अपने जीवन को उन्नत कर सकते हैं ।

स्वामी विवेकानन्द तो यहाँ तक कहते हैं कि “जिस घर में सत्साहित्य नहीं वह घर नहीं वरन् श्मशान है, भूतों का बसेरा है ।”

अतः अपने घर में तो सत्साहित्य रखें और पढ़ें ही, साथ ही औरों को भी सत्साहित्य पढ़ने की प्रेरणा देते रहें । इसमें आपका तो कल्याण होगा ही, औरों के कल्याण में आप सहभागी बन जायेंगे ।

तभी ज्ञान ठहरेगा

भगवान ने जो बोला है वह भी शास्त्र में ही है, भगवद्गीता शास्त्र है । शासनात् इति शास्त्रम । जो हमारे मन-बुद्धि को अनुशासित करके गिरने से बचाकर मुक्ति की तरफ ले चलें, उन ग्रंथों को ‘शास्त्र कहते हैं, फिर भले वह आश्रम का शास्त्र ‘ईश्वर की ओर’ हो, ‘दिव्य प्रेरणा प्रकाश’ हो या ‘ऋषि प्रसाद’ हो । शास्त्रों को जो जितना आदर-मान करके रखा जाता है उतना ही उनका ज्ञान ठहरता है । कई लोग मुँह से उँगलियओं में थूक लगाते हैं और किताब के पृष्ठ पलटते जाते हैं अथवा कोई बोलते हैं- ‘3 रूपये की पुस्तक पढ़’ और उसे उलटा रख देंगे । ऐ मूर्ख ! तू शास्त्र का अनादर करता है तो फिर तेरे को क्या ज्ञान ठहरेगा !

एक लड़का है, वह किताब पढ़ेगा न, तो ऐसे-वैसे रख देगा, जहाँ-तहाँ रख देगा । तो इतने साल हो गये, इतनी किताबें पढ़ लीं किन्तु रंग नहीं लगा उसको । शास्त्र का आदर नहीं करता न ! कपड़े को तो उसने रंग लिया हिम्मत करके लेकिन उसके दिल को रंग लगाने के लिए मेरे को हिम्मत करनी पड़ती है फिर भी मैं सफल नहीं हो  पा रहा हूँ क्योंकि वह जब सहयोग देगा तब मैं सफल होऊँगा उसको रँगने में । विद्यार्थी जब सहयोग देगा तब शिक्षक सफल होता है उसको पास करने में । तो आप लोग मेरे को सहयोग देना, समझ गये ! तब मैं सफल होऊँगा, नहीं तो नहीं हो सकता हूँ । तो आप सहयोग दोगे न ? (सब ‘हाँ’ बोलते हैं ।) ठीक है, शाबाश है ! धन्यवाद !

कैसे आदर करें ?

सत्शास्त्रों में सत्पुरुषों की वाणी होती है अतः मुँह से उँगली गीली करके उनके पन्ने नहीं पलटने चाहिए । पवित्रता और आदर से संतों की वाणी को पढ़ने वाला ज्यादा लाभ पाता है । सामान्य पुस्तकों की तरह सत्संग की पुस्तक पढ़कर इधर-उधर नहीं रख देनी चाहिए । जिसमें परमात्मा की, ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों की अनुभूति है, जो परमात्मशांति देने वाली है वह पुस्तक नहीं, शास्त्र है । उसका जितना अधिक आदर, उतना अधिक लाभ !

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2021 पृष्ठ संख्या 17 अंक 339

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ