(स्वतंत्रता दिवसः 15 अगस्त)
15 अगस्त को देश स्वतंत्र हुआ लेकिन लोग अभी स्वतंत्र नहीं हैं,
राग से, द्वेष से, काम से, क्रोध से, मोह से, ईर्ष्या से, पद-प्रतिष्ठा से
बँधे हैं । सचमुच स्वतंत्र तो ब्रह्मज्ञानी के वचन ही कर सकते हैं, और
कौन स्वतंत्र करेगा !
बाह्य स्वतंत्रता तो शायद 15 अगस्त को मान लें किंतु अभी
भीतरी खोखलापन नहीं गया, भीतर से खोखले हुए चले जा रहे हैं । यह
मानी हुई, कल्पी हुई स्वतंत्रता है । कल्पित जगत की कल्पित स्वतंत्रता,
माने हुए जगत की मानी हुई स्वतंत्रता ।
हे वीरपुरुषो ! हे ब्रह्मवेत्ता, आत्मवेत्ता संतो ! हे गीता गायक श्री
कृष्ण !! आपकी कर्षित-आकर्षित करने वाली वाणी मेरे भारतवासियों के
दिल से उभरे ऐसे दिन जल्दी ला दो, ऐसा कल्याणकारी सौभाग्य ला दो
। सिकुड़-सिकुड़ के सदियाँ बीत गयीं, जन्मते-मरते युग बीत गये ।
संग सखा सभि तजि गए
कोऊ न निबाहिओ साथि ।।
कहु नानक इह बिपति में
टेक एक रघुनाथ ।।
भगवान से प्रार्थना करो कि ‘हे मेरे रघुनाथ ! हे मेरे अंतर्यामी ! हे
प्राणीमात्र के आधार !! तू हमें अपने नाम की बख्शीश दे दे, अपने ज्ञान
का प्रकाश दे दे, अपने स्वरूप का आनंद दे दे ताकि हम संसारी विकारी
आकर्षण से अपने को बचा पायें तब हम सचमुच स्वतंत्र होंगे ।’
सच्ची स्वतंत्रता तब है जब आप अपने शुद्ध-बुद्ध स्वरूप को जान
लें, सुख को सपना-दुःख को बुलबुला पहचान लें । आप सत्पुरुषों की
वाणी सुनने, उनका सान्निध्य पाने, उनके अनुभव को अपना अनुभव
बनाने के लिए चलते रहें, इसी में आप लोगों का मंगल है ।
संत तुलसीदास जी कहते हैं-
घट में है सूझे नहीं लानत ऐसे जिंद ।
तुलसी ऐसे जीव को भयो मोतियाबिंद ।।
कहाँ तो सुखस्वरूप, मुक्तस्वरूप परमात्मा हमारा आत्मा बन बैठा
है फिर भी मिटने वाली वस्तुओं को, बिखऱने वाली परिस्थितियों को,
दुःख देने वाली और जन्म-मरण में भटकाने वाली बाहर की सृष्टि को
हम सत्य मानकर उसमें आकर्षित होते-होते जन्म-मरण की उस पीड़ा में,
उस घानी में पेरे जा रहे हैं ।
इस स्थूल शरीर से शक्तिशाली है सूक्ष्म सृष्टि और सूक्ष्म सृष्टि,
स्थूल सृष्टि को देखने की, सोचने-समझने की जहाँ से सत्ता आती है वह
ज्ञानस्वरूप अकालपुरुष हमारा आत्मा है ।
उस एक-के-एक अकाल पुरुष को जब तक अपना स्वरूप नहीं
पहचाना, जब तब अपने-आपका ज्ञान नहीं हुआ तब तक अष्टसिद्धियाँ
मिल जायें, नवनिधियाँ मिल जायें फिर भी जीवात्मा की यात्रा अधूरी
मानी जाती है ।
पूर्ण गुरु किरपा मिली, पूर्ण गुरु का ज्ञान ।
आसुमल से हो गये, साँईं आशाराम ।।
मुझे वे घड़ियाँ याद आयीं और मेरी आँखें गीली हो गयीं, हृदय
प्रेम, धन्यवाद और कृतज्ञता से भर गया । मेरी प्रार्थना है कि हनुमान
जी के लिए रामजी के बरसने की जो घ़ड़ियाँ आयी थीं, श्री रामकृष्णजी
के चरणों में विवेकानंद जी के लिए जो घड़ी आयी थी, सलूका-मलूका के
लिए कबीर जी के हृदय के बरसने की जो घड़ी आयी थी, गुरु नानक जी
के हृदय में बाला-मरदाना के लिए वास्तविक स्वरूप का ज्ञान बरसाने की
जो घड़ी आयी थी, आपके जीवन में भी भगवान करे कि सच्ची स्वतंत्रता
देने वाली वे घड़ियाँ पाने की उत्कण्ठा जग जाय ।
पूर्ण स्वतंत्रता उसी दिन मिलेगी जब प्रकृति और जन्म-मरण के
प्रभाव का चक्कर उखाड़ के फेंकने में तुम अपने को सक्ष्म अनुभव
करोगे । उसी दिन तुम्हारी वास्तव में स्वतंत्रता है ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2021, पृष्ठ संख्या 20,22 अंक 344
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