पूज्यश्री के पावन सान्निध्य में श्री योगवाशिष्ठ महारामायण का
पाठ चल रहा हैः महर्षि वसिष्ठजी बोलेः “हे राम जी ! एक दिन तुम
वेदधर्म की प्रवृत्तिसहित सकाम यज्ञ, योग आदिक गुणों से रहित होकर
स्थित हो और सत्संग व सत्शास्त्र परायण हो तब मैं एक ही क्षण में
दृश्यरूपी मैल दूर कर दूँगा । हे राम जी ! गुरु की कही युक्ति को जो
मूर्खता से त्याग देते हैं उनको सिद्धांत प्राप्त नहीं होता ।”
इन वचनों को सुनते ही पूज्य बापू जी के श्रीमुख से सहसा निकल
पड़ाः “ओहो ! क्या बहादुरों के बहादुर हैं ! कैसे हैं भगवान श्री राम के
गुरुजी !
वसिष्ठजी कहते हैं कि “सकाम भावना से ऊपर उठो तो एक ही
क्षण में मैं दृश्यरूपी मैल दूर कर दूँगा अर्थात् परमात्म-साक्षात्कार करा
दूँगा ।
जैसे लाइट फिटिंग हो गयी हो तो बटन दबाने पर एक ही क्षण में
अँधेरा भाग जाता है । बटन दबाने में देर ही कितनी लगती है ? उतनी
ही देर औसोज सुद दो दिवस, संवत बीस इक्कीस (इसी दिन पूज्य बापू
जी को आत्मसाक्षात्कार हुआ था) को लगी थी । दृश्य की सत्यता दूर हो
गयी । गुरु जी को तो इतनी-सी देर लगी और अपना ऐसा काम बना
कि अभी तक बना-बनाया है । इस काम को मौत का बाप भी नहीं
बिगाड़ सकता ।
गुरुजी की कही हुई युक्ति को, उपदेश को जो मूर्खता से सुना-
अनसुना कर देते हैं उनको सफलता नहीं मिलती । गुरु जी की युक्ति,
गुरु जी के संकेत को महत्त्व देना चाहिए । उत्तम सेवक तो सेवा खोज
लेगा, मध्यम को संकेत एवं कनिष्ठ को आज्ञा मिलने पर वे सेवा करेंगे
और कनिष्ठतर को तो आज्ञा दो फिर भी कार्य करने में आलस्य करेगा,
टालमटोल करेगा । गुरु की युक्ति को महत्त्व न देना, उनके उपदेश का
अनादर करना ऐसे दुर्गुण छोड़ते जायें तो सभी ईश्वरप्राप्ति के पात्र हैं ।
कुपात्रता छोड़ते जायें तो पात्र ही हैं । यह मनुष्य-जीवन ईश्वरप्राप्ति की
पात्रता है लेकिन ये दुर्गुण पात्रता को कुपात्रता में बदल देते हैं । दुर्गुण
छोड़े तो बस पात्रता ही है और दुर्गुण छोड़ने के पीछे मत लगे रहो,
ईश्वरप्राप्ति के लिए लगो तो दुर्गुण छूटते जायेंगे । ईश्वरप्राप्ति का
उद्देश्य बनायेंगे न, उद्देश्य ऊँचा होगा तो दुर्गुण छूटेंगे और सेवा भी
बढ़िया हो जायेगी ।’
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अंगस्त 2021, पृष्ठ संख्या 32 अंक 344
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