प्रश्नः मनुष्य सच्चे सद्गुरु का निश्चय कैसे कर सकता है ? सद्गुरु का वास्तविक स्वरूप क्या है ?
महर्षिः जिनके साथ आपके चित्त का स्वाभाविक मेल हो जाता है वे सद्गुरु हैं । यदि आप पूछें कि ‘सद्गुरु का निश्चय किन लक्षणों से किया जाय ?’ तो इसका उत्तर है कि उनमें शांति, धैर्य, क्षमा इत्यादि गुण होने चाहिए । वे दृष्टि से चुम्बक की तरह दूसरों को आकृष्ट करने की शक्तिवाले होने चाहिए एवं सबके प्रति समदर्शी होने चाहिए । जिनमें ये गुण हों वे सच्चे गुरु हैं । लेकिन यदि आप सद्गुरु के स्वरूप को जानना चाहें तो प्रथम आपको अपना स्वरूप जानना चाहिए । यदि कोई अपना स्वरूप नहीं जानता तो वह गुरु के स्वरूप को कैसे जानेगा ? यदि आप सद्गुरु के वास्तविक स्वरूप को जानना चाहते हैं तो आपको सम्पूर्ण विश्व को गुरुरूप देखने का अभ्यास अवश्य करना चाहिए । साधक को सब प्राणियों में गुरु के दर्शन करने चाहिए । ईश्वर के विषय में भी यही सत्य है । सब पदार्थों को ईश्वररूप देखने का अभ्यास प्राथमिक भूमिका है । जो मनुष्य अपने आत्मा को नहीं जानता वह ईश्वर के अथवा गुरु के वास्तविक स्वरूप को कैसे जान सकता है ? वह उसका निर्णय कैसे करेगा ? अतः पहले अपने स्वरूप को जानिये ।
प्रश्नः इसे जानने के लिए भी गुरु की आवश्यकता नहीं है ?
महर्षिः हाँ, यह सत्य है । (अर्थात् आवश्यकता है ।)
प्रश्नः मोक्षप्राप्ति के लिए गुरुकृपा का मर्म क्या है ?
महर्षिः मोक्ष आपके बाहर कहीं नहीं है, आपके भीतर है । यदि मनुष्य मोक्ष की सच्ची प्रबल इच्छा हो तो आंतरिक गुरु उसे अंदर की ओर खींचते हैं और बाह्य गुरु उसे आत्मा की ओर मोड़ते हैं । यह गुरु के अनुग्रह का मर्म है ।
प्रश्नः कुछ लोग प्रचार करते हैं कि आपके मतानुसार गुरु की आवश्यकता नहीं है । कुछ अन्य लोग इससे ठीक उलटी बात कहते हैं । इस विषय में आपका क्या कहना है ?
महर्षिः मैंने कभी नहीं कहा कि गुरु की आवश्यकता नहीं है ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2021, पृष्ठ संख्या 5 अंक 345
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