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श्री उड़िया बाबा के साथ प्रश्नोत्तरी


प्रश्नः सत्संग करने से क्या लाभ है ?

उत्तरः सत्संग करने से भगवान में हमारी आसक्ति दिनों दिन बढ़ती है । जिस वस्तु का निरंतर चिंतन होगा उसमें आसक्ति बढ़ेगी ही इसलिए निरंतर सत्संग करना चाहिए ।

प्रश्नः सत्संग न करने से क्या हानि है ?

उत्तरः भजन तो एकांत में भी कर सकते हैं परंतु काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि दोष सत्संग किये बिना दूर नहीं हो सकते । सत्संग में इन्हीं के नाश करने की बातें होती हैं । इसलिए सत्संग में जाने से अवगुण छोड़ने की इच्छा होती है और फिर प्रयत्न करने पर अवगुण छूटते हैं । बिना सत्संग किये प्रायः बहुत भजन करने वालों के भी दोष नहीं छूटते और जो सत्संग करेगा वह भजन अवश्य करेगा । जो सत्संग करेगा उसके पाप न छूटें यह असम्भव है । सत्संग एक बिजली है, उस वायुमण्डल में बैठ जाने मात्र से ही अंतःकरण पवित्र हो जाता है क्योंकि वहाँ का वायुमण्डल ही पवित्र है । इसलिए सत्संग की निंदा करने वाले भी वहाँ जाने लगने पर पवित्र हो जाते हैं और धीरे-धीरे वे भी भगवत्परायण होने लगते हैं । सत्संग की महिमा का कोई वर्णन ही नहीं कर सकता । सत्संग से महापुरुषों में प्रीति होगी । कुछ भी न करके सत्संग में जाकर केवल बैठ ही जाय तो भी लाभ होता ही है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2021, पृष्ठ संख्या 34 अंक 345

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इसको दूर करो तो सब दोष दूर


सुखी जीवन जीने के लिए एक बड़ी और सारभूत बात है । यदि यह ठीक से समझ ली और दृढ़ता से पकड़ ली तो किसी भी दुःख की ताकत नहीं कि आपको छू तक सके ।

मानव का अपना बनाया हुआ यह महान दोष है कि जिनसे अपना कोई संबंध नहीं है, जो किसी प्रकार भी अपने नहीं हो सकते उन मन, बुद्धि और इन्द्रियों के समूहरूप शरीर को और उससे संबंधित पदार्थों को अपना मान लिया है तथा जिन पर किसी प्रकार भी विश्वास नहीं करना चाहिए उन पर विश्वास कर लिया है । जिन परम सुहृद परमेश्वर पर विश्वास करना चाहिए, जो सब प्रकार से विश्वास के योग्य हैं और सजातीय (जीवात्मा परमात्मा का अविभाज्य स्वरूप होने से उसकी और परमात्मा की जाति समान है ।) होने के नाते जो सचमुच सब प्रकार से अपने हैं, उन पर न तो विश्वास करता है न उन्हें अपना मानता है और न वर्तमान में उनकी आवश्यकता का ही अनुभव करता है । यही एक ऐसा महान दोष है जिससे सब प्रकार के बड़े-बड़े दोष उत्पन्न हुए हैं और होते रहते हैं । अतः इस दोष का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए ।

यह दोष मनुष्य का अपना बनाया हुआ है इसलिए स्वयं ही इसे दूर करना पड़ेगा । अपने बनाये हुए दोष को दूर करने में कोई भी साधक असमर्थ नहीं हो सकता । इस पर भी यदि उसे अपनी कमजोरी का भान हो, यदि वह अपने को सचमुच असमर्थ समझता हो तो उसे निर्बलता के दुःख से दुःखी होकर उस सर्वसमर्थ प्रभु की शरण में जाना चाहिए जो निर्बलों के बल हैं, पतितों को पवित्र बनाने वाले और दीनबंधु हैं । निर्बलता के दुःख से दुःखी साधक को उस निर्बलता का नाश होने से पहले चैन कैसे पड़ सकता है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2021,  पृष्ठ संख्या 34 अंक 345

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कैसा भी बिखरा हुआ जीवन हो, सँवर जायेगा – पूज्य बापू जी


अगर अशांति मिटानी है तो दोनों नथुनों से श्वास लें और ‘ॐ शांतिः… शांतिः’ जप करें और फिर फूँक मारके अशांति को बाहर फेंक दें । जब तारे नहीं दिखते हों, चन्द्रमा नहीं दिखता हो और सूरज अभी आने वाले हों तो यह समय मंत्रसिद्धि योग का है, मनोकामना-सिद्धि योग का है । इस काल में किया हुआ यह प्रयोग अशांति को भगाने में बड़ी मदद देगा । अगर निरोगता प्राप्त करनी है तो आरोग्यता के भाव से श्वास भरें और आरोग्य का मंत्र नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ।। जपकर ‘रोग गया’ ऐसा भाव करके फूँक मारें । ऐसा 10 बार करें । कैसा भी रोग, कैसा भी अशांत और कैसा भी बिखरा हुआ जीवन हो, सँवर जायेगा ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2021, पृष्ठ संख्या 33 अंक 345

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