एक बार भगवान श्रीकृष्ण रूप बदलकर चैतन्य महाप्रभु के एक
शिष्य के पास पहुँचे । उन्होंने पूछाः “बेटा ! तुम्हारे जीवन का लक्ष्य
क्या है ?”
शिष्यः “श्रीकृष्ण की प्राप्ति ।”
“तुम्हारा धाम क्या है ?”
“वृंदावन ।”
“मंत्र क्या है ?”
“हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे… यही मेरा मंत्र है ।”
“तुम्हारी साधना पद्धति क्या है ?”
“श्रीकृष्ण का ध्यान करना ही मेरी साधना पद्धति है ।”
“तुम्हारा पंथ क्या है ?”
“श्रीकृष्ण ।”
यह सुनकर भगवान थोड़े उदास से हो गये । वहाँ से हटे, दूसरे
शिष्य के पास पहुँचे । उससे पूछाः “जीवन का लक्ष्य क्या है ?”
उसने कहाः “चैतन्य महाप्रभु ।”
“तुम्हारा पंथ क्या है ?”
“चैतन्य महाप्रभु ।”
“साधन क्या है ?”
“चैतन्य महाप्रभु ।”
“तुम्हारी साधना पद्धति क्या है ?”
“चैतन्य महाप्रभु की प्रसन्नता को प्राप्त करना ।”
“तुम्हारा मंत्र क्या है ?”
“मेरे गुरुदेव ने जो दिया है वही मेरा मंत्र है ।”
“तुम्हारा धाम क्या है ?”
“चैतन्य महाप्रभु के चरण ही मेरे धाम हैं और मैं कुछ नहीं जानता
।”
श्रीकृष्ण ने उन्हें गले से लगा लिया और अपने वास्तविक रूप में
प्रकट हो गये ।
‘श्री रामचरितमानस’ में नवधा भक्ति के प्रसंग में भी भगवान
कहते हैं-
मोतें संत अधिक करि लेखा ।
मुझसे अधिक मेरे सर्वव्यापक ब्रह्मस्वरूप को जानने वाले संत को
जानें । भगवान अपने भक्त से इतना प्रसन्न नहीं होते जितना ब्रह्मवेत्ता
सद्गुरु के प्रति एकनिष्ठ रहे भक्त से प्रसन्न होते हैं । ऐसे में कोई
अज्ञानी जीव अपना जीवत्व छोड़े बिना ही अपने को उनके तुल्य बताने
लगे और कोई ब्रह्मवेत्ता का शिष्य उससे भी प्रभावित हो जाये तो उन
दोनों अज्ञानी मूढ़ों को भगवान ‘जंतु’ कहकर अज्ञान त्यागने के लिए
प्रेरित करते हैं ।
अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः ।
बंधे को बंधा मिले, छूटे कौन उपाय ।
सेवा कर निर्बंध की, पल में देय छुड़ाय ।।
इससे एकाग्रता व निर्णयशक्ति बढ़ेगी, थकान मिटेगी – पूज्य बापू
जी
अगर तुम्हें थकान होती हो तो तुम क्या करो ? दोनों होंठ बंद
करो और दाँत खुले रखो । जीभ बीच में – न तालू में, न नीचे, बीच मे
लटकती रहे । 1 मिनट तुम इस प्रकार एकाग्रता का अभ्यास करो तो
तुम्हारे शरीर की थकान मिटेगी और मन की चंचलता कम होगी ।
तुम्हारे निर्णय बढ़िया होंगे ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2021, पृष्ठ संख्या 12 अंक 346
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