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अजामिल का पतन (भाग-4)….


अजामिल आगे बढ़ा और गुरुदेव के चरणो में बैठकर बोला गुरुदेव आप कुछ उदास लग रहे हैं ? गुरुदेव कुछ पलों तक कुछ न बोले बस एक टक अजामिल को देखते ही रहे। अजामिल की दिल की धड़कने तेज़ हो गईं उसे लगा कि जैसे अभी करारी डाँट पड़ने वाली है। परंतु गुरूदेव तो अजामिल से कुछ सुनना चाहते थे। उसे समय औऱ मौका दे रहे थे कि वह अपने गुनाह को कुबूल कर ले ताकि वे उसे पतन की खाई में गिरने से बचा सके। परंतु जब अजामिल कुछ नही बोला तो गुरुदेव ही बोले- अजामिल मै स्वान पद्धति को लेकर बड़ा चितिंत हूँ।

अजामिल ने थोड़ा ठंडा श्वास लिया चलो शुक्र है गुरुदेव मेरी किसी बात पर रुष्ठ नही है। गुरुदेव ने कहा- मैं सोच रहा हूं कि जब हड्डी में कुछ रस ही नहीं औऱ माँस भी उस पर नहीं तो क्यों स्वान उसे जी जान लगाकर खाता है। अजामिल ने कहा- गुरुदेव! इसमें चिंतित होने वाली क्या बात है। कुत्ते को कुछ तो मिलता ही होगा। गुरुदेव ने कहा- हाँ मिलता है लेकिन सुख नहीं बल्कि दुख क्योंकि हड्ड़ी जब उसको जबड़ों औऱ मसूड़ो पर लगती हैं तो उसमें जख़्म कर रक्त निकाल देती हैं। और इसी रक्त का पान कर स्वान सोचता है कि शायद यह रक्त हड्ड़ी से मिल रहा है परंतु अनन्त: वह अथाह कष्ठ को प्राप्त करता है।

अजामिल बोला- लेकिन गुरुदेव इसमे आपको चिंतित होने की क्या आवश्यकता है यह तो स्वान का मामला है न। गुरुदेव ने कहा- परंतु आज मेरा एक शिष्य भी स्वान सा ही व्यवहार कर रहा है। इससे स्पष्ट गुरुदेव क्या कहते यदि कुछ कहते तो वे जानते थे कि अजामिल एक पल भी और आश्रम में नही रुक पाएगा। उसके सुधरने की सारी संभावनाए खत्म हो जाएगी। उनके अंजान होने का नाटक ही तो अब तक अजामिल को आश्रम मे रोके हुए था इसलिए वे ढके छुपे शब्दों में बार-बार उसे आगाह कर रहे थे परन्तु अजामिल समझ ही नही पा रहा था या समझना ही नही चाह रहा था।

पूरे दिन अजामिल का मन उचाट सा रहा। आश्रम उसे कैदखाना सा प्रतीत हो रहा था। वह दिन औऱ दिनों से कुछ ज्यादा ही लंबा लग रहा था। उसका दिल कर रहा था कि जल्द ही शाम हो और फिर वह उस कामनगरी का मेहमान बने। मन मे भिन्न-भिन्न संकल्प विकल्प आ रहे थे कि आज मैं यह करूँगा आज मै वो करूँगा और इन्ही चक्रियो में चकराया अजामिल गुरुदेव को प्रणाम कर जब आश्रम से निकलने लगा तो गुरुदेव फिर सांकेतिक भाषा मे बोले- अजामिल आज ध्यान से कदम रखना कहीं आज तू कीचड़ में बिल्कुल ही न धस जाए क्योंकि आज अंधेरा कुछ ज्यादा ही प्रतीत हो रहा है। इतना कहकर गुरुदेव आसन से उठे औऱ अपने कक्ष में चले गए परंतु अजामिल कुछ न समझा अगर समझा तो उल्टा ही समझा उसे लगा शायद गुरुदेव पर बुढापा हावी हो रहा है अभी तो ठीक से संध्या भी नही हुई और गुरुदेव को अंधेरा दिख रहा है औऱ दिन मे भी तो क्या बेतुकी चिंता कर रहे थे स्वान जैसे जानवर के लिए परेशान हो रहे थे। अरे सोचना है तो अपने शिष्यों के बारे में सोचे मेरी सोचे।

परंतु मुर्ख अजामिल नहीं जानता था कि गुरुदेव पर बुढ़ापा नही बल्कि उस पर शैतान हावी हो रहा है। गुरुदेव किसी स्वान के बारे में नही उसी के बारे में सोच रहे थे। यह बात और है कि वह स्वान से भी बदत्तर हो चला था। गुरुदेव हर कदम पर स्वयं को प्रकट कर रहे थे लेकिन अजामिल को कुछ दिखाई नही पड़ रहा था और अजामिल आश्रम से घर जाने के लिए निकला नही… घर जाने के लिए वह आज निकला ही नही था क्योंकि घर का नक्शा तो उसके दिमाग में था ही नही वह तो सीधा काम नगरी के लिए ही निकला था औऱ आज गणिकाएं भी सतर्क थी क्योंकि सभी के कानों तक यह खबर पहुंच चुकी थी कि एक नया शिकार दो दिन से बिना शिकार हुए खाली जा रहा है।

नागिन सी बलखाती सड़क पर अजामिल के लिए हर कदम पर डंक था। लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि अजामिल को ज़हर की ही प्यास जग गई थी सो वह उनसे बच नही रहा था उनका मज़ा ले रहा था। जल्द ही वह कल वाले गणिका के कोठे के सामने जा खड़ा हुआ, गणिका भी जाल बिछाये हुए बिल्कुल तैयार बैठी थी। शून्य प्रतिरोध करता हुआ अजामिल उस गणिका के जाल में हँसते- हँसते कैद हो गया। रोज़ आश्रम की पवित्र माटी में बढ़ने वाले कदम कोठे की चार दिवारी का स्वाद चखने आज चढ़ गए कैसा दुखद मंजर था वह, जो हाथ गुरु की हाथ मे देने के लिए बना था वह वैश्या के शिकंजे में चला गया।

20 वर्षो से गुरुदेव ने जिसे तराशा था एक मिनट में वह चूर- चूर हो गया और आगे की कहानी तो मात्र कालिख की कहानी रह गई। बहुत समय तो नही लेकिन जितना भी समय अजामिल ने कोठे में गुजारा उससे यह तो तय था कि वह अब सीखा रखने का अधिकार खो बैठा था। कोठे से अजामिल बाहर आया तो स्वयं अपने हाथों से अपना चरित्र की कब्र सजाकर बाहर आया फिर कदम जल्दी-जल्दी समेटता हुआ घर पहुंचा।पिता ने देरी का कारण पूछा तो अजामिल ने पिता को बातो ही बातो में घुमा दिया। घुमाना तो था ही जो गुरु को भरमाने का दम रखता हो उसके लिए पिता चीज़ ही क्या है।

अगली सुबह अजामिल न तो ब्रम्हमुहूर्त में उठा और न ही उसने ध्यान किया क्योंकि सोते-सोते ध्यान कर रहा था उस गणिका का। जब सूरज सिर चढ़ आया तब पिता ने आवाज़ दी- बेटा अजामिल! बेटा अजामिल! क्या आज गुरुकुल नही जाना? गुरुकुल इस शब्द ने तो मानो उसके सिर पर फन दे मारा वह कम्पित सा हो उठा डरा, घबराया, सहमा सा वह आश्रम पहुंचा देखा कि गुरुदेव फूलो को सहला रहे थे मानो उन्हें समझा रहे थे कि अजामिल की तरह तुम भी कहीं मुरझा मत जाना। बहुत भँवरे है जो यहां वहां मंडारते है उन्हें अपने पास फ़टकने भी मत देना। तुम्हे तो पूर्णतः पवित्र रहते हुए प्रभु के चरणों मे चढ़ना है।

अजामिल की आत्मा यह मौन वार्ता सुन पा रही थी फिर गुरुदेव उन फूलो को छोड़ चिड़ियों के पास पहुंच गए और उन्हें दाना डालने लग गए। एक चिड़िया को हाथ में ले उसके पँखो पर हाथ फेरने लगे कहने लगे हे मेरी प्यारी चिड़िया अपने इन पँखो को समझा दे कहीं ये तुझे उड़ाकर काल नगरी न ले जाये।अजामिल दूर से यह सब देख रहा था आज पहली बार गुरुदेव सबको प्यार दे रहे थे बस अजामिल को छोड़कर उसको देखना तो दूर गुरुदेव ने उस दिशा की तरफ भी नही देखा जहाँ अजामिल खड़ा था।

अजामिल के मन में एक टीस सी उठी आखिर गुरुदेव ने मुझे आज प्यार क्यों नहीं दिया, तभी गुरुदेव एकदम पीछे पलटे और अजामिल पर जैसे नज़रे ही गाड़ दी। होठ तो गुरुदेव के अब भी शांत थे लेकिन नज़रे बहुत कुछ कह रही थी अजामिल प्यार खैरात में नही मिलता इसे कमाना पड़ता है और जो तू कृत्य करके आया है उसके बाद तो तू मेरे प्यार का क्या गुस्से का हकदार भी नही रहा।अजामिल 20 वर्षो से मैं तुझ पर काम कर रहा था, तुझे गढ़ रहा था, आकार दे रहा था, तराश रहा था और तूने एक पल में मेरी मूर्ति तोड़ दी। एकबार भी नही सोचा अपने छोटे से सुख के लिए तुमने मुझे कितना कष्ट दिया है तुझे इस बात का एहसास भी नही है।अरे इस पावन दरबार मे आकर तो पशु भी मानवता का आचरण करने लगते है और तू है कि मानव होकर भी पशु निकला इस तरह गुरुदेव बिना कुछ कहे ही सबकुछ कहकर वहां से चले गए।

गुरु के सानिध्य में अजामिल ने वर्षो बिताए थे वह गुरु के प्यार का आदि सा हो गया था इसलिए वह उनकी यह नाराजगी यह पराया पन उसे भीतर तक हिला गया। वह सोचने लगा आखिर मैने कल वह महापाप किया ही क्यो? कभी अजामिल अपने को कोसने लगा तो कभी अपने भाग्य को शायद। उसके पतन की कहानी वापस उत्थान की तरफ करवट ले रही थी लेकिन तभी…. अरे अजामिल! क्या हुआ क्यों खामखां बावरा हुआ जा रहा है मैं ही न अपना तेरा मन तेरा अहित थोड़ी न करूँगा मै।

याद है न कल वाली वह अकल्पनीय शाम चल ऐसा करते है कि आज आखिरी बार गनिकापुरी चलते है वहां उस गणिका से मिलकर उसे बता देते है कि तेरा अब उनसे कोई सम्बंध नही…नहीं तो वो बेचारी बेकार में हर रोज़ तेरी राह ताकेगी परेशान होगी।

मन ने मौका सम्भालते हुए अजामिल के लिए एकबार फिर गिरने का रास्ता तैयार कर दिया गुरु को एक किनारे कर दिया उनकी नाराजगी को एक किनारे कर दोया और दुर्भाग्य देखो कि अजामिल फिर गनिकापुरी पहुंच गया। लेकिन वहां जाते ही उनका क्षणिक वैराग्य कपड़े पर लगी धूल की तरह तुरन्त ही झड़ गया धरती का कण जैसे बवंडर का संग कर कहीं का कहीं जा गिरता है वैसे ही उस गणिका के बवंडर में अजामिल आगे से आगे जा गिरा बस अब वापस लौटने की उम्मीद खत्म हो गई। बालू का रेत अब मुट्ठी से निकल चुका था इसलिए गुरुदेव ने अजामिल के पिता को बुलाकर पूरी हकीकत बता डाली और उसे आश्रम से निकाल दिया गया।

आगे की कहानी कल की पोस्ट में दी जाएगी…..

अजामिल का पतन (भाग-3)


अजामिल के अन्तर्यामी गुरुदेव ने उसे रोकने का प्रयत्न किया लेकिन बीच मे मन कूद पड़ा कि अरे मूर्ख हो गया है क्या? अपना चिट्ठा खोल देगा तो खुद ही गुरुदेव की नज़रो में छोटा हो जाएगा।सोच ले क्या सोचेंगे तेरे बारे में, तू इतना विद्वान होकर भी यूँ नीच हरकते करने की सोचता है। अजामिल को मन की सीख जंच गई। अब शाम हो चली थी समय था कि अजामिल आश्रम से निकल रहा था, थोड़ी ही देर में वह ऐसे मोड़ पर पहुंच गया जहां से एक रास्ता नगर के भीतर जाता था और एक मार्ग नगर के बाहर जिससे वह सदा से जा रहा था।

अजामिल का दिल जोरों से धक- धक करने लगा परन्तु इस धड़कन में उसके आत्मा की आवाज कहीं दब गई और वह नगर के भीतर जाती सड़क पर बढ़ चला। आज अजामिल कदमो के नीचे सड़क की धूल नही बल्कि गुरु आज्ञा के सुंदर पुष्पों को कुचलता हुआ चल रहा था। उसके ये बढ़ते कदम उसे ले गए उन गलियो में जिन्हें बदनाम गलियां कहा जाता है। शाम तेजी से गहराती जा रही थी चौड़े बाज़ार की चौड़ी गलियो की ऊंची-ऊंची हवेलियां बिजली की चकाचौंध से जगमगाने लगी थी। हर हवेली दुल्हन की तरह सजी थी।

अजामिल के लिए इस नई सी दुनिया के नए से लोगों की उनकी तरफ उठते नई सी नज़रो ने उन्हें नई सी अनुभूति दी।अजामिल ने चारों ओर देखा तो हर तरफ रूप सी सुंदरियों की जैसे फसल लहरा रही थी। मोम जैसे अग्नि की ताप लगते ही अपना रूप खोकर पिघलने लगता है वैसे ही अजामिल का इतने वर्षों का तप उस अजीब से ताप से पिघलना सा जाने लगा। भय, संकोच, नासमझी के मिले-जुले भावो को लिए दबे दबे कदमो से अजामिल आगे बढ़ते गया और इस बाज़ार से बाहर निकल आया फिर तेज़ कदमो से चलकर वह अपने घर पहुंच गया परन्तु आज घर तो केवल अजामिल का तन पहुंचा था मन से तो वह अब भी उन्ही ऊंची-ऊंची हवेलियों के सामने घूम रहा था। वह सीधा अपने बिस्तर की ओर बढ़ गया परन्तु नींद तो जैसे उसके आंखों के लिए आज बनी ही नही थी। रह-रहकर उसे हर वह सुंदर चेहरा याद आ रहा था जो उसने देखा था। नही… जो उसके दिल मे छप गया था कैसी हालत कर दी थी उस माया नगरी की एक सैर ने उसकी यूंही पूरी रात अजामिल ने खुली आँखों से स्वप्न देखने मे बिता दी। सुबह सूरज ने आलस्य का दामन छोड़ अपनी निद्रा का त्याग किया उसीके साथ हर प्राणी भी नवीन ऊर्जा से भर अपने-अपने कार्यो में सलंग्न हो गया लेकिन अजामिल ही था जो रात भर जगी थकी आंखों से थके से शरीर के साथ बिस्तर का त्याग कर रहा था।

अब आश्रम जाने का समय हो गया था अजामिल को भय सा लग रहा था मैंने तो गुरुदेव की आज्ञा की अवहेलना कर दी है अब किस मुँह से मै उनके सामने जाऊंगा। वे तो अन्तर्यामी है सब जानते है कुछ छुपा भी तो नही पाऊंगा उसकी आत्मा उसे असलियत का आईना दिखा रही थी लेकिन मन फिर गरज बरसकर अजामिल को समझाने लगा ओ हो अजामिल! तू भी न बस शेर अभी आया नही कि बचाओ-बचाओ का शोर तू पहले ही करने लग गया। अरे पगले! तू आश्रम तो जा जो होगा सो देखा जाएगा तूने भला कोई पाप थोडे न किया है इस उम्र में तो ऐसी गलियो में सभी टहला करते है तूने प्रकृति से अलग भला क्या किया? थोड़ा बहुत तो चलता ही है इसलिए छोड़ अपनी फालतू की बाते और अपने नित्य क्रम में लग जा।

अजामिल ने गुरुदेव से पहले स्वयं अपने आप को क्षमा कर लिया खैर स्नान कर अजामिल आश्रम की तरफ बढ़ा मन भले कितना ही हौसला दे रहा था लेकिन उसकी आत्मा बार बार घूर- घूरकर उसे उसकी भूल का एहसास करा रही थी मन और आत्मा की चक्की में पिसते हुए अजामिल ने आश्रम की दहलीज में कदम रखा ठीक सामने गुरुदेव आसन पर विराजमान थे उनकी दृष्टि पड़ते ही जहाँ अजामिल का रोम-रोम हर्षित हो जाय करता था आज उसकी रूह कांप गई उसकी नज़रे गुरुदेव का सामना नही कर पाई और जमीन पर जा गड़ी तभी गुरुदेव की प्रेम भरी वाणी उसके कानों में पड़ी- वत्स! अजामिल तुम आ गए आओ बैठो अपना आसन ग्रहण करो ताकि आगे के पाठ का आरम्भ करें।

अजामिल धीरे-धीरे आगे बढ़ा और नीची आंखे किये हुए ही आसन पर बैठ गया उसका दिल पूरे समय धक- धक करता रहा कि कहीं गुरुदेव कल के बारे में पूछ न ले पूरी कक्षा बीत गई गुरुदेव ने कोई प्रश्न नही किया वे तो रोजाना ही की तरह सामान्य थे यह देख अजामिल का मन फिर बलवान हो उठा देखा नाहक ही व्याकुल हो रहा था। सुबह से शाम हो चली है और गुरुदेव ने कुछ नही कहा मतलब की तू कुछ गलत कर ही नही रहा, समझा न पगला कहीं का। कक्षा समाप्त होने के बाद अजामिल ने गुरुदेव को प्रणाम किया और वापस घर जाने के लिए चलने लगा तो पीछे से गुरुदेव का कुछ स्वर उभरा- अजामिल! देखो तुम्हारी पादुका में कीचड़ लगा हुआ है लगता है कहीं कीचड़ में पैर रख गया होगा वत्स तनिक ध्यान से पथ का चयन किया करो। क्या रहस्य भरी गुरुदेव के इन वचनों को अजामिल समझ पायेगा या नही। इन शब्दों में गहरा अर्थ छुपा था गुरुदेव की अन्तर्यामीयता उनका स्नेह, उनका मार्गदर्शन, उनकी चेतावनी क्या कुछ नही थी गुरुदेव की इन थोड़ी सी पंक्तियों में परन्तु मूर्ख अजामिल समझ नही पाया। उसको लगा कि गुरुदेव कल के पूरे प्रकरण से अनभिज्ञ है वे तो बस पादुका के बारे में नसीहत दे रहे है उसका मैं ध्यान रखूंगा।यही भूल हम सब शिष्य कर बैठते है गुरुदेव प्रकृति के नियमो में बंधे होने के कारण साफ शब्दों में प्रकट नही करते कि उनकी दिव्य नज़रे हरपल अपने हर शिष्य का पीछा करते हैं वे प्रकृति के नियम को खंडित नही करना चाहते । परन्तु अन्तर्यामी गुरुदेव सब कुछ जानते है। वे जानते है हमारी हर त्रुटि को, हमारी हर खामी को लेकिन उसे प्रकट कर हमे शर्मिंदा करना उनका मकसद नही वे तो बस हमे सुधारना चाहते है इसके लिए वे हर सम्भव प्रयास करते है हर पल हमारा मार्गदर्शन करते है ढंके छुपे शब्दो मे हमे आगाह करते है परन्तु शायद हम इन संकेतों को समझ नही पाते।

यही भूल अजामिल से भी हुई वह गुरुदेव के शब्दों के मर्म को समझ नही पाया चलते-चलते अजामिल फिर उसी पड़ाव पर जा पहुंचा। जहां से एक रास्ता कल वाला था या यू कह लो कि काल वाला था और एक रास्ता बाहर से घर की तरफ जाता था। आज अजामिल ने बिना किसी कश्मकश से कल वाला रास्ता घर जाने के लिए चुन लिया आज तो उसने आत्मा की आवाज को उठने तक का समय नही दिया, कदमो में भी अगर- अगर की कोई लड़खड़ाहट न थी तेजी से बढ़ते कदम उसे जल्द ही बाज़ार के बीच ले आये फिर वही रंगीन जगत ऊंची-ऊंची सुंदर हवेलियां उन हवेलियों की खिड़कियों से झांकती संगमरमर सी तराशी कामनिया उनकी अदाएं और हाव-भाव चारो तरफ से अजामिल को अपनी ओर खींच रही थी तभी अचानक पिछे से उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा और कहा- क्यों देव! यू ही बस दूर-दूर से देखते रहोगे या हमारे गरीब खाने में हमें सेवा का अवसर भी दोगे।

अजामिल ने पलटकर देखा तो वहीं पत्थर सा हो गया क्योंकि उसके सामने जैसे स्वर्ग की कोई अप्सरा खड़ी थी उसे देख अजामिल अजामिल न रहा उसके वर्षो का तप उस गणिका के सौंदर्य की तपिश से मोम की तरह पिघलने लगा कुछ क्षण वहां ठहरकर गणिका मुस्कुराकर आगे बढ़ गई लेकिन दूर जाती गणिका मानो अजामिल का सारा सुख चैन लूटकर अपने साथ ले गई।

घर जाकर अजामिल की स्थिति गुजरी रात से भी बद्दतर हो गई। पिछली रात वह बिस्तर पर लेट तो गया था लेकिन आज तो उसकी पूरी रात बिस्तर पर बैठे-बैठे ही गुजर गई। सुबह हुई तो उसकी लाल सुर्ख आंखों ने जैसे शोर मचा दिया कि अजामिल पूरी रात सोया नही। पिता ने कारण पूछा तो उसने बहाना बनाकर टाल दिया परन्तु अब आश्रम न जाने का क्या बहाना बनाये उसे यह नही सूझ रहा था। मदिरा सेवन करने के बाद जैसे दूध पीने की इच्छा नही रहती वैसे ही उस गणिकापूरी की सैर के बाद अजामिल का मन आश्रम जाने का नही हो रहा था।यह उसकी जिंदगी का पहला ऐसा मनहूस दिन था जब उसे आश्रम जाना कांटे जैसा प्रतीत हो रहा था लेकिन घर मे क्या कहता सो उसे जाना ही पड़ा किंतु आश्रम की तरफ बढ़ते हुए उसके कदमो में न कोई उत्साह था और न ही उमंग,भीतर एक मायूसी छाई थी शायद उसका कुछ खो गया था परंतु क्या? यही सोचते विचारते कब वह आश्रम पहुंच गया उसे पता ही न लगा। आसन पर गुरुदेव विराजमान थे गम्भीर और एकदम मौन। अजामिल को लगा शायद गुरुदेव अपने अन्तर्यामी स्वरूप से मेरे कृत्य के बारे में जान चुके है तभी नाराज लग रहे है मुझे जल्द ही गुरुदेव से क्षमा मांग लेनी चाहिए लेकिन मन ने फिर पासा फेंका अरे ऐसा करेगा तो सबके सामने बेइज्जत हो जाएगा फिर दुबारा आश्रम में कदम कैसे रखेगा। सभी गुरुभाई तुझे हीन दृष्टि से देखेंगे और यह भी तो हो सकता है कि गुरुदेव किसी और विषय को लेकर गम्भीर हों और तू जबर्दस्ती ही आ बैल मुझे मार वाली बात कर रहा है।पहले जरा पूछ तो ले गुरुदेव ऐसे मौन और गम्भीर क्यों है?….

आगे की कहानी कल की पोस्ट में दी जाएगी…….

अजामिल का पतन (भाग-2)….


कल हमने सुना कि गुरुदेव ने अजामिल को आज्ञा दी कि तुम्हे घर से आश्रम तक आने के लिए हमेशा बाहरी रास्ते का ही प्रयोग करना है नगर के भीतर का मार्ग का प्रयोग कभी मत करना। वर्ष बीत गए अजामिल बड़ा हो चला। एकदिन नगर के बाहर कुछ युवाओं ने अजामिल की मस्करी उड़ाई। अजामिल सोचता है क्यों न एकबार नगर के भीतर जाकर देख ही लूँ कि आखिर है क्या? तभी अजामिल के शुद्ध अंतःकरण ने उसे फटकार लगाई अजामिल यह फटकार सुनकर अंदर तक कांप गया उसे लगा कि जैसे वह अंधकूप में गिरते-गिरते बच गया वह तुरन्त ध्यान में बैठ गया ध्यान में ही कब नींद आई और कब सुबह हुई उसे पता ही न चला।

नित्य क्रिया से निर्वृत्त हो अजामिल आश्रम पहुंचा मन जो थोड़ा बहुत अब भी व्यथित था उसे सुकून मिला और गुरु आज्ञा में चलने का संकल्प उसने और दृढ़ किया शाम ढलने पर जब वह घर वापस जाने लगा तो उसने उस नगर के मार्ग की तरफ देखा तक नही इसीप्रकार दो तीन दिन बीत गए लेकिन तीसरे दिन अजामिल जब अपने रास्ते पर मुड़ने ही वाला था कि फिर वही नवयुवक उसे मिल गए इस बार तो उनमें से एक उसके पड़ोस जान पहचान वाला लड़का भी था।। उस पड़ोसी लड़के ने कहा- अरे अजामिल! घर जा रहा है क्या? अजामिल को पहचान की लिहाज रखते हुए रुकना पड़ा। उस पड़ोसी लड़के ने कहा- अरे यार दिन भर की सेवा से थक गया होगा चल तुझे दूसरी दुनिया की सैर करवा दें।

अजामिल ने कहा- दूसरी दुनिया? हां दूसरी दुनिया वहां केवल आनंद ही आनंद है मस्ती ही मस्ती है। ऐसा नहीं कि अजामिल को कुछ भी समझ नही आ रहा था उसे पता था कि कुछ न कुछ तो मायावी होगा ही। उसके मन मे तो यह दुविधा चल रही थी कि क्या ये मायावी लोग इतने प्रसन्न रहते हैं। इतने में ही उसके कंधे पर एक हाथ आया। देख अजामिल यही दिन है बहारों के, गन्ने के रस का आनंद दांत निकल जाने पर जैसे नही लिया जा सकता वैसे ही जो दिन कामनियो के संग रमन करने के हों उन्हें यूँ यज्ञ समिधाओं में खाक मत कर। इतना कहकर वे नवयुवक चलते बने। लेकिन अजामिल वहीं जड़ हो गया सोचने लगा अकारण ही वहां आकर्षण नही हो सकता, नगर के भीतर कुछ अलग तो जरूर है इसी तरह अजामिल फिर खोया- खोया सा घर पहुंचा। उस अनजान सड़क के अनजान लोगों के प्रति यह अनजान सा आकर्षण वह स्वयं भी समझ नही पा रहा था। रात फिर बीत गई और अजामिल फिर आश्रम समय से पहुंचकर सेवा रत हो गया। लेकिन केवल तन से मन से नही, मन तो द्वंद में था।

शाम को घर वापसी पर वे नवयुवक फिर से तो नही मिले लेकिन वह नगर की भीतरी सड़क अजामिल के आगे मानो पुकार करने लगी मानो अजामिल को नगर में प्रवेश करने का वह सड़क निमंत्रण दे रही हो। अजामिल का मन उसकी आत्मा पर हावी होने लगा बोला अरे एक बार देखने से कौन सा पहाड़ टूट रहा है मैने कौन सा वहीं पर अपना बसेरा करना है। आखिर देखूँ तो सही कि गुरुदेव मना क्यों करते हैं। फिर तो जीवन भर इस मार्ग की तरफ मुँह उठाकर देखूंगा भी नही। बेचारा अजामिल नही समझ पा रहा था कि गुरु आज्ञा की अवहेलना का यह पहला कदम ही तो होता है जो नही उठा तो नही उठा लेकिन एकबार उठ गया तो उसे एक से अनेक में दोहराने में समय नही लगता। हर शराबी पहली घूंट यही सोचकर पीता है कि मैंने कौन सी रोज पीनी है लेकिन समय के साथ वह एक पहली घूंट उसकी पूरी जिंदगी को सागर की तरह डुबो देती है परंतु अजामिल आज उस पहली घूंट को पीना चाहता था।

एक साधक के भटकते मन को इससे सुंदर उदाहरण विरला ही देखने को मिलता है। अजामिल के मन मे उठते इस झंझावात को थामने का ऐसा नही कि प्रयास नही हुआ उसकी आत्मा ने उसे फिर समझाया अजामिल पहाड़ की चोटी से नीचे खाई में गिरने के लिए एक फिसलन ही काफी होती है, अंधा करने के लिए एक कण ही काफी है। गुरुआज्ञा पलको के वे पर्दे है जिनमे रहकर इन कणों से बचा जा सकता है।

अजामिल आत्मा की सब सीख सुन रहा था इसलिए एकबार फिर वह बाहरी रास्ते से ही घर पहुंच गया। कश्मकश में उलझा हुआ सो गया सुबह उठा तो मन मे यह विचार भी तरोताज़ा होकर उसके साथ ही उठा क्यों न आज आश्रम से वापस आते समय एक फेरी लगा ही ली जाय मैं अकारण ही डर रहा हूँ। अरे मैं कौन सा दूध पीता बालक हूँ जो कोई भी मुझे बहला फुसला लेगा। सो अजामिल आज पूरी तैयारी करके घर से निकला कि शाम को तो पक्का नगर के भीतरी रास्ते मे जाऊंगा। लेकिन जब आश्रम आया गुरुदेव के पावन चरणों मे प्रणाम किया तो उनसे निकलती पावन तरंगों ने एक बार फिर उसे चेताया नही अजामिल गुरु की आज्ञा की अवहेलना हरगिज़ उचित नही। अगर यह विकार तुझ पर हावी हो रहा है तो तुरन्त गुरुदेव के सामने बैठकर उसे कबूल कर ले गुरुदेव स्वयं ही कुछ करके तुझे सम्भाल लेंगे।

एकबार उनके सामने अपने मन की दुविधा रख तो सही। निःसन्देह यह अन्तर्यामी गुरुदेव की मौन भाषा मे अन्तरहृदय से उसके शुद्ध अंतःकरण से सीख मिली। लेकिन अजामिल का मन सब बिगड़ता देख तत्काल बीच मे कूद पड़ा अरे मूर्ख हो गया है क्या? अपना चिट्ठा खोल देगा तो खुद ही गुरुदेव के नज़रो में छोटा हो जाएगा गिर जाएगा सोच वे क्या सोचेंगे तेरे बारे में कि तू इतना बड़ा विद्वान होकर भी यूँ नीच हरकते करने की सोचता है मेरी मान बस चुप रह आज शाम तक की ही तो बात है एकबार देख ही लेते है कि क्या है नगर के भीतर? वरना गुरुदेव को बताने पर हो सकता है कि वे कोई ऐसा कड़ा प्रतिबंध लगा दे कि लेने के देने पड़ जाएं कुछ किया भी नही और खामखाह कलंक माथे ले बैठेंगे।

अजामिल ठिठक गया उसे अपने मन की सीख जंच गई और गुरुदेव के समाने होते हुए भी उसने उनसे कोई बात नही की हालांकि आज गुरुदेव ने जान बूझकर उसे दिन भर ऐसे कई मौक़े दिए जब वह और गुरुदेव अकेले थे अब शाम हो चली समय था कि अजामिल आश्रम से निकल रहा था।

आगे की कहानी जानने के लिए कल की पोस्ट अवश्य पढ़ें…..