Yearly Archives: 2018

कैसे पायें मधुमेह (Diabetes) से छुटकारा ?


वर्तमान में वैश्विक समस्या बनी हुई बीमारियों में से एक है मधुमेह । हम यहाँ मधुमेह में हितकर आहार-विहार, परहेज एवं ऐसा लाभदायी उपाय बता रहे हैं जो बिल्कुल निरापद है एवं जिसे सभी कर सकते हैं ।

कैसा हो आहार-विहार ?

हितकारी आहारः कड़वे व कसैले रसयुक्त एवं पचने म  हलके पदार्थ हितकारी हैं । प्रोटीन्स का सेवन पर्याप्त मात्रा में करें । विटामिन्स, खनिज तत्त्वों एवं रेशों से भरपूर सब्जियाँ व फल तथा देशी गाय के दूध का सेवन भी यथोचित मात्रा में करना आवश्यक है । एक वर्ष पुराने अनाज का सेवन उत्तम है । करेला, मेथी, सेम की फलियाँ, भिंडी, परवल, सहजन, बथुआ, लौकी, तोरई, जमीकंद (सूरन), कुम्हड़ा, पत्तागोभी, फूलगोभी, बैंगन आदि सब्जियों एवं चुकन्दर, खीरा, ककड़ी, टमाटर, मूली, अदरक, लहसुन आदि का सेवन हितकारी है । अनाजों में जौ, ज्वार, रागी, गेहूँ एवं दालों में मूँग, चना, मसूर आदि तथा सूखे मेवों में अखरोट व बादाम एवं फलों में जामुन, अंगूर, संतरा, मोसम्बी, स्ट्रॉबेरी, रसभरी हितकर हैं । देशी गाय का घी तथा हल्दी, मेथीदाना, अलसी, आँवला व नींबू का आहार में समावेश करें । काली मिर्च, राई, धनिया, जीरा, मिर्च लौंग का यथायोग्य उपयोग कर सकते हैं ।

हितकारी विहारः चरक संहिता के अनुसार विविध प्रकार के व्यायाम विशेषतः तेज गति से चलने का व्यायाम तथा योगासन, प्राणायाम एवं सूर्यनमस्कार करना हितकारी है । सुबह शाम एक-एक घंटा तेजी से चलें । कृश व दुर्बल रोगी यथाशक्ति हलक व्यायाम करें ।

किससे करें परहेज ?

आचार्य चरक लिखते हैं-

आस्यासुखं स्वप्नसुखं दधीनि ग्राम्यौदकानूपरसाः पयांसि ।

नवान्नपानं गुडवैकृतं च प्रमेहहेतुः कफकृच्च सर्वम् ।।

सतत सुखपूर्वक बैठे रहना, अति नींद लेना अर्थात् शारीरिक परिश्रम का अभाव, दही व दूध का अधिक सेवन, किसी भी प्रकार के मांसाहार का सेवन, नया अन्न (नया अनाज) व नया जल (वर्षा आदि का), गुड़, चीनी, मिश्री, मिठाइयाँ तथा कफ बढ़ाने वाले सभी पदार्थों (भात, खीर आदि) का अति सेवन प्रमेह के हेतु हैं । (प्रमेह रोग के 20 प्रकारों में से मधुमेह एक है ।) अतः इनका त्याग करना चाहिए । (चरक संहिता)

मधुमेह के लिए अऩुभूत रामबाण प्रयोग – पूज्य बापू जी

आधा किलो करेले काटकर किसी चौड़े बर्तन में रख के खाली पेट 1 घंटे तक कुचलें । 2-3 दिन में मुँह में कड़वापन महसूस होगा । 7 दिन खड़े-खड़े न कुचल सकें तो बीच में 5-10 मिनट कुर्सी पर बैठकर भी चालू रखें । करेले पके, बासी, सस्ते वाले भी फायदा करेंगे ही ।

इंसुलिन के इंजेक्शन लेने वाले को भी इस 7 दिन के प्रयोग से सदा के लिए आराम हो गया व छूट गयी सारी दवाइयाँ ! मात्र कुछ दिन शाम को आश्रम में मिलने वाली ‘मधुरक्षा टेबलेट’ नामक अचूक औषधि का प्रयोग करें ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2018, पृष्ठ संख्या 32 अंक 312

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

सच्चे कर्मवीरो ! अमृतकलश उठाओ… आगे बढ़ते रहो !


भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाह जी महाराज

नवयुवको ! पृथ्वी जल रही है । मानव समाज में जीवन के आदर्शों का अवमूल्यन हो रहा है । अधर्म बढ़ रहा है, दीन-दुःखियों को सताया जा रहा है, सत्य को दबाया जा रहा है । यह सब कुछ हो रहा है फिर भी तुम सो रहे हो ! उठकर खड़े हो जाओ । समाज की भलाई के लिए अपने हाथों में वेदरूपी अमृतकलश उठाकर ब्रह्मनिष्ठ महापुरुषों के मार्गदर्शन में चलते हुए लोगों की पीड़ाओं को शांत करो, अपने देश और संस्कृति की रक्षा के लिए अन्याय, अनाचार एवं शोषण को सहो मत । उनसे बुद्धिपूर्वक लोहा लो । सज्जन लोग संगठित हों । एकता में महान शक्ति है । लगातार आगे बढ़ते रहो…. आगे बढ़ते रहो । विजय तुम्हारी ही होगी । सच्चे कर्मवीर बाधाओं से नहीं घबराते । अज्ञान, आलस्य और दुर्बलता को छोड़ो ।

जब तक न पूरा कार्य हो, उत्साह से करते रहो ।

पीछे न हटिये एक तिल, आगे सदा बढ़ते रहो ।।

उद्यम न त्यागो । सदैव भलाई के कार्य करते रहो एवं दूसरों को भी अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित करो । फल की इच्छा से ऊपर उठ जाओ क्योंकि इच्छा बंधन में डालती है । केवल अपने लिए नहीं, सभी के लिए जियो । यदि नेक कार्य करते रहोगे तो भगवान तुम्हें सदैव अपनी अनंत शक्ति प्रदान करते रहेंगे ।

बुरे व्यक्ति अच्छे कार्य में विघ्न डालते रहेंगे परंतु ‘सत्यमेव जयते ।’

स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2018, पृष्ठ संख्या 31 अंक 312

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

साँप मर गया, नेवला वहीं रह गया !


आत्मा पर आवरण क्या है ? असलियत यह है कि आत्मा पर कोई आवरण नहीं है। वह तो नित्य-शुद्ध-बुद्ध-मुक्त ब्रह्म ही है। परंतु बहुत सारी बातें आपके मन में बिना सोचे-समझे बिठा दी गयी है, साँप को भगाने के लिए आपके मन में नेवला को लाकर बैठा दिया गया है।

पंचतंत्र की यह कहानी आपने सुनी होगी। एक पेड़ पर बहुत सी चिड़ियाँ रहती थीं। उस पेड़ के नीचे एक साँप रहता था। वह चिड़ियों के अंडे-बच्चे खा जाता था। चिड़ियों की पंचायत हुई। उन्होंने तय किया कि ‘साँप को मारने के लिए नेवला बुलाया जाय।’ नेवला आ गया। नेवले को देखकर साँप तो भाग गया किंतु नेवला वहीं रह गया। अब वही नेवला चिड़ियों के अंडे-बच्चों को खाने लगा। भक्षितोऽपि लशुने न शान्तो व्याधिः। एक तो लहसुन खाया और रोग भी नहीं मिटा ! नेवला तो आ गया पर अंडे-बच्चे बचे नहीं। इसी प्रकार देहाभिमान को छुड़ाने के लिए शास्त्रों ने बहुत सारे उपाय बताये परंतु एक गया, दूसरा आता रहा। रोग बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की !

श्रुति पुरान बहु कहेउ उपाई।

छूट न अधिक अधिक अरुझाई।। (श्रीरामचरित. उ.कां. 116.3)

आपको चाहिए था सुख। किसी ने कह दिया कि ‘विषय-उपार्जन करो तो भोग-सुख मिलेगा।’ अब विषयों का उपार्जन किया, भोग सुख तो मिला किंतु ‘मैं विषयी और विषयों का भोग करके सुखी होऊँगा’ यह संस्कार शेष रह गया। अब भोग सुख में भी होड़ लगी। प्रजा के भोग से कम सुखी, राजा के भोग से अधिक सुखी, इन्द्र के भोग से और अधिक सुखी ! न जाने किस अशुभ मुहूर्त में हमें भोक्ता बनाया गया और हम भोक्ता बन गये। इसी का नाम ‘पाप’ है। गाली देने का, किसी को मारने का, किसी का माल लेने का नाम ‘पाप’ है, यह तो आप जानते हो परंतु ‘हम भोगी हैं’ ऐसा अपने को मानने का नाम भी ‘पाप’ है – यह आपके दिमाग से निकल गया। ‘हम भोक्ता हैं’ – यह पराधीनता का पाप ही हमारा आवरण बन गया।

हमें नहीं मालूम कब अनजाने में हमने अपने-आपको कर्ता मान लिया। हम कर्म के पराधीन हो गये। ‘कर्म नहीं करेंगे तो हम बंधन से नहीं छूटेंगे’ – यह ग्रंथि बन गयी। और ज्यों-ज्यों बंधन से छूटने के लिए कर्म करते गये, त्यों-त्यों रेशम के कीड़े की तरह फँसते चले गये। यह अपने को कर्ता मानना ‘पाप’ है।

कर्तापन-भोक्तापन पाप है। अपने को जन्मने-मरने वाला मानना पाप है, जन्म-जन्मांतर में लोक-लोकांतर में भटकने वाला मानना पाप है। ‘यह पाप है, वह पाप है’ यह तो आपको सिखाया गया परंतु ‘मैं पापी हूँ।’ – यह मानना भी पाप है, यह नहीं सिखाया गया। पर्दे-पर-पर्दे पड़ते गये।

एक नासमझीरूपी सर्प को भगाने के लिए समझरूपी दूसरे नेवले को लाया गया, दूसरी नासमझी को हटाने के लिए तीसरी समझ और तीसरे सर्प को हटाने के लिए तीसरी समझ और तीसरे सर्प को हटाने के लिए चौथा नेवला आया परंतु हर बार साँप मर गया, नेवला वहीं रह गया। अरे ! आप न कर्ता हैं न भोक्ता हैं, न संसारी हैं न परिच्छिन्न हैं। आप टुकड़े नहीं हैं, कतरा नहीं हैं दरिया हैं, बिंदु नहीं हैं सिंधु हैं-

बिंदु में सिंधु समाहिं सुनि कोविद1 रचना करें।

हेरनहार2 हिरान3, रहिमन आपुनि आपमें4 ।।

1 विद्वान 2 खोजने वाला 3 खो गया 4 अपने-आप में।

आप कोई साधारण वस्तु नहीं हैं। परंतु आपने इस अपने-आपको परमानंदरुपी खजाने पर से अपना हक छोड़ दिया ! बड़ों (महापुरुषों) पर विश्वास नहीं किया, ज्ञान के लिए प्रयत्न नहीं किया, आवरण का भंग नहीं किया, इसको (परमानंदरूपी खजाने को) अपना-आपा नहीं समझा। केवल मुक्ति की चर्चा करने से मुक्ति नहीं मिलती।

आत्म-तत्त्व को समझाने के लिए कुछ अध्यारोप (वस्तु यानी ब्रह्म में अवस्तु यानी जड़ समूह (देह, मन आदि) का आरोप करना ‘अध्यारोप’ कहलाता है।) किये शास्त्र ने। उसी शास्त्र को हमने सच्चा समझ लिया। तब उसके अपवाद (अपवाद यानि अध्यारोप का निराकरण। जैसे – रस्सी में सर्प का ज्ञान यह अध्यारोप है और रस्सी के वास्तविक ज्ञान से उसका जो निराकरण हुआ यह अपवाद है।) के लिए शास्त्र बने। जितना-जितना अध्यारोप बढ़ता गया, अपवाद के शास्त्रों की संख्या भी बढ़ती गयी। परंतु ब्रह्मज्ञान में समझना यह है कि समस्त अध्यारोपों और उनके अपवादों का जो साक्षी-अधिष्ठान है, वह स्वयं ही है। इसलिए आप अपने पूरे सामर्थ्य, विवेक और बल का प्रयोग करके अपने इस अज्ञान-शत्रु का नाश कर डालिये।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2018, पृष्ठ संख्या 25,26 अंक 311

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ