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कुम्भ का वास्तविक लाभ कैसे पायें ? – पूज्य बापू जी


(प्रयागराज कुम्भः 14 जनवरी से 4 मार्च 2019)

वैदिक संस्कृति का अनमोल प्रसाद

कुम्भ पर्व की महिमा हजार साल, लाख साल, पाँच लाख साल पहले की है ऐसी बात नहीं है । भगवान राम का प्राकट्य करने के लिए वैदिक संस्कृति में जो विधि-विधान लिखा था, उसका आश्रय लेकर यज्ञ किया गाय और भगवान राम का, परमात्मा का आवाहन हो इस प्रकार संकल्प करके यज्ञ किया गया । तो मानना पड़ेगा कि भगवान राम के पहले वेद हैं और वेदों में कुम्भ पर्व की महिमा आ रही है ।

अथर्ववेद में भगवान ब्रह्मा जी ने कहा है कि ”हे मनुष्यो ! मैं तुम्हें सांसारिक सुखों को देने वाले 4 कुम्भ पर्वों का निर्माण कर 4 स्थानों – हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में प्रदान करता हूँ ।”

प्रयागराज कुम्भ की महिमा

प्रयागराज तीर्थ ब्रह्मा आदि देवताओं के द्वारा प्रकट किया गया है । जब बृहस्पति मेष राशि पर एवं चन्द्र-सूर्य मकर राशि पर होते हैं तब प्रयागराज में कुम्भ मेला होता है ।

ग्रहाणां च यथा सूर्यो नक्षत्राणां यथा शशी ।

तीर्थानामुत्तमं तीर्थं प्रयागाख्यमनुत्तमम् ।।

‘जैसे ग्रहों में सूर्य व ताराओं में चन्द्रमा उत्तम हैं, ऐसे ही तीर्थों में प्रयाग उत्तम तीर्थ है ।’

प्रयाग, प्रयाग, प्रयाग…. उच्चारण से, कीर्तन करने से घोर पापों छुटकारा मिलकर हृदय आनंदित होता है ।

सहस्रं कार्तिके स्नानं माघे स्नानशतानि च ।

वैशाखे नर्मदा कोटिः कुम्भस्नानेन तत्फलम् ।।

‘कार्तिक में एक हजार बार गंगा-स्नान करने से, माघ में सौ बार गंगा-स्नान करने से और वैशाख में करोड़ बार नर्मदा में स्नान करने से जो फल होता है, वह प्रयाग में कुम्भ पर्व पर केवल एक ही बार स्नान करने से प्राप्त होता है ।’

शिवजी बोलते हैं- “यह तीर्थ, वह तीर्थ… ये सब बाहर के तीर्थ हैं, आत्मतीर्थ ही सर्वोत्तम तीर्थ है ।” आत्मतीर्थ में स्नान करना नहीं जानते तो मुक्ति का लाभ नहीं मिलता है । इसलिए आत्मतीर्थ में स्नान करने की युक्ति शास्त्रों ने बतायी है । एक तो प्रयाग का कुम्भ त्रिवेणी-संगम है दूसरा हृदय का त्रिवेणी – संगम है – दायाँ स्वर (पिंगला) – गंगा, बायाँ स्वर (इड़ा) – यमुना और बीच में (सुषुम्ना) – सरस्वती । यह ध्यान की जो आंतरिक त्रिवेणी है, वह बाहर की त्रिवेणी से हजार गुना ज्यादा हितकारी है ।

कुम्भ में संत व सत्संग की महिमा

ब्रह्मनिष्ठ संत की दृष्टि से जो तरंगे निकलती हैं, उनकी वाणी से जो शब्द निकलते हैं वे वातावरण को पावन करते हैं । संत के शरीर से जो तन्मात्राएँ निकलती हैं वे वातावरण में पवित्रता लाती हैं । अगर कुम्भ में सच्चे साधु-संत न आयें तो फिर देखो, कुम्भ का प्रभाव घट जायेगा । कुम्भ का प्रभाव संतों के कारण है ।

आस्थावाला स्थान और फिर ग्रहों का योग – यह संयोग आपके अंदर अपूर्व (पुण्य या अपूर्व उसे कहते हैं जो हमें पावन करे, जो हमें इस शरीर में अभीष्ट दिलाये, सुखद पदार्थ दिलाये और यह शरीर छोड़ने के बाद परलोक में भी हमें अभीष्ट दिलाये ।) की उत्पत्ति कर देता है, पुण्य प्रकट कर देता है । फिर उसमें आस्था हो, रहने, खाने-पीने में संयम हो और कुछ जप-तप का अऩुष्ठान हो तो उस पुण्य में कई गुना बढ़ोतरी हो जाती है ।

सामान्य व्यक्ति को जो पुण्य होता है उससे श्रद्धालु को ज्यादा पुण्य होता है । श्रद्धालु का जो पुण्य होता है उससे श्रद्धा सहित जो सत्संगी है उसको ज्यादा होता है । श्रद्धासहित जो सत्संगी है उससे भी ज्यादा उनको परम पुण्य होता है जिनके जीवन में सत्संग के साथ आत्मविचार का प्रकाश भी है । उनको तो परम पुण्य – परमात्मस्वरूप की प्राप्ति के द्वार खोलने का अवसर मिल जाता है ।

जिनको सत्संग नहीं मिलता, सद्वृत्ति जगाने की युक्ति नहीं मिलती, वे बेचारे तीर्थ में आ के भी श्रीहीन हो के, शरीर को भिगोकर चले जाते हैं । मेहनत-मजूरी हो जाती है और थोड़ा फल मिलता है पुण्य का । लेकिन जिनको सत्संग मिलता है, उनको श्री, विजय, विभूति (ऐश्वर्य), ध्रुवा नीति (अचल नीति) – यह सब साथ में मिल जाता है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2018, पृष्ठ संख्या 11,16 अंक 312

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आओ करें पूजन गुणों की खान तुलसी का


तुलसी का धार्मिक, आयुर्वेदिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक महत्त्व है । साथ ही यह स्वास्थ्य व पर्यावरण-सुरक्षा की दृष्टि से भी अहम है । जिस घर में तुलसी का वास होता है वहाँ आध्यात्मिक उऩ्नति के साथ सुख-शांति एवं आर्थिक समृद्धि स्वतः होती है । वातावरण में स्वच्छता एवं शुद्धता, प्रदूषण-शमन, घर परिवार में आरोग्य की जड़ें मजबूत करना आदि तुलसी के अनेक लाभ हैं ।

तुलसी के नियमित सेवन से सौभाग्यशालिता के साथ ही सोच में पवित्रता, मन में एकाग्रता आती है और क्रोध पर नियंत्रण होता है । आलस्य दूर होकर शरीर में दिनभर स्फूर्ति बनी रहती है ।

तुलसीदल एक उत्कृष्ट रसायन है । तुलसी सौंदर्यवर्धक एवं रक्तशोधक है । गुणों की दृष्टि से यह संजीवनी बूटी है, औषधियों की खान है । अथर्ववेद में काली औषधि (श्यामा तुलसी) को महौषधि कहा गया है । भगवान विष्णु को प्रिय होने के कारण इसको ‘वैष्णवी’ भी कहते हैं ।

विज्ञान के अनुसार घर में तुलसी-पौधे लगाने से स्वस्थ वायुमंडल का निर्माण होता है । तुलसी से उड़ते रहने वाला तेल आपको अदृश्य रूप से कांति, ओज और शक्ति से भर देता है । अतः सुबह-शाम तुलसी के नीचे धूप-दीप जलाने से नेत्रज्योति बढ़ती है, श्वास का कष्ट मिटता है । तुलसी के बगीचे में बैठकर पढ़ने, लेटने खेलने व व्यायाम करने वाले दीर्घायु व उत्साही होते हैं । तुलसी उनकी कवच की तरह रक्षा करती है ।

तुलसी के पास बैठकर प्राणायाम करने से शरीर में बल तथा बुद्धि और ओज की वृद्धि होती है । प्रातः खाली पेट तुलसी का 1-2 चम्मच रस (या आश्रम के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध तुलसी अर्क) पीने अथवा 5-7 चबा-चबाकर खाने और पानी-पीने से बल, तेज और स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है।

फ्रेंच डॉक्टर विक्टर रेसीन कहते हैं- “तुलसी एक अदभुत औषधि (Wonder Drug) है, जो ब्लडप्रेशर व पाचनतंत्र के नियमन, रक्तकणों की वृद्धि व मानसिक रोगों में अत्यंत लाभकारी है ।”

जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वह घर तीर्थ समान पवित्र होता है । उस घर में (रोगरूपी) यमदूत नहीं आते । (स्कन्द पुराण)

भगवान महादेव जी कार्तिकेय से कहते हैं- “सभी प्रकार के पत्तों और पुष्पों की अपेक्षा तुलसी ही श्रेष्ठ मानी गयी है । कलियुग में तुलसी का पूजन, कीर्तन, ध्यान, रोपण और धारण करने से वह पाप को जलाती है और स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करती है । जो तुलसी के पूजन आदि का दूसरों को उपदेश देता और स्वयं भी आचरण करता है, वह भगवान के परम धाम को प्राप्त होता है ।” (पद्म पुराण, सृष्टि खंडः  58,131-132)

तुलसी से होने वाले लाभों से सारा विश्व लाभान्वित हो इस उद्देश्य से पूज्य बापू जी ने 25 दिसम्बर को तुलसी पूजन दिवस मनाना शुरु करवाया । इस पहल का स्वागत करते हुए बड़े स्तर पर यह दिवस मनाया जाने लगा है ।

पाश्चात्य कल्चर का प्रचार-प्रसार करने वाले पंथ 25 दिसम्बर के निमित्त कई कार्यक्रम करते हैं एवं हमारे बाल, युवा एवं प्रौढ़ – सभी को भोगवाद व हलके संस्कारों की ओर प्रेरित कर महान भारतीय संस्कृति से दूर ले जाते हैं । अतः भारत के सभी सपूतों को चाहिए कि वे अपने-अपने गली-मुहल्लों में ‘तुलसी पूजन दिवस कार्यक्रम’ करें और अपनी संस्कृति के गौरव को समझें समझायें और लाभ उठायें । जो ब्रह्मज्ञानी महापुरुषों के सत्सकंल्प में भागीदार बनते हैं वे संतों का कृपाप्रसाद पाने के अधिकारी बन जाते हैं ।

(तुलसी महिमा संबंधी अन्य लेख भी पढ़ें, ‘लोक कल्याण सेतु’, नवम्बर 2018, पृष्ठ 8)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2018, पृष्ठ संख्या 4,5 अंक 312

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पौष्टिक एवं बलवर्धक सूखे मेवे


सूखे मेवे पौषक तत्त्वों से भरपूर होते हैं, जिनके सेवन से शरीर में ऊर्जा बनी रहती है । इनसे न केवल पोषण मिलता है बल्कि दीर्घकाल तक शक्ति को बनाये रखने में मदद मिलती है । तो आइये, जानते हैं 2 सूखे मेवों के बारे में….

शक्तिवर्धक काजू

आयुर्वेद के अनुसार काजू स्निग्ध, पौष्टिक, उष्ण, वीर्यवर्धक, वायुशामक, पाचनशक्ति बढ़ाने वाला एवं जठराग्नि प्रदीपक है ।

आधुनिक अनुसंधानों के अनुसार काजू में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है । इसके साथ इसमें विटामिन्स, कैल्शियम, फॉस्फोरस, ताम्र, लौह, मैग्नेशियम, सोडियम, रेशे (dietary fibres) पाये जाते हैं ।

काजू हृदय रोगों में लाभदायी है । यह मानसिक अवसाद और कमजोरी के लिए बढ़िया उपचार है । यह मनोदशा को सुधारने में मदद करता है । यह भूख बढ़ाने और तंत्रिका तंत्र को मजबूत करने में मदद करता है । शरीर को सक्रिय, ऊर्जावान तथा मन को प्रसन्न बनाये रखने में मदद करता है ।

औषधीय प्रयोग

3-5 काजू पीस के दूध में मिलाकर पीने से शारीरिक शक्ति बढ़ती है ।

सुबह 3-5 काजू शहद के साथ खाने से दिमाग की कमजोरी, विस्मृति मिटती है । स्मरणशक्ति बढ़ती है । ऐसे ही सुबह-सुबह अंतःकरण चतुष्टय का आधार जो साक्षीस्वरूप है उसकी स्मृति करने से अपना अज्ञान मिटने लगता है, आत्मविस्मृति मिटने लगती है, परमात्मस्मृति जगने लगती है । ज्ञान और ध्यान मिलाकर अंतःकरण को सत्संग-सरिता में नहलाने से अंतःकरण की कमजोरी भी मिटती है, परमात्म सुख व स्मृति की वृद्धि होती है ।

मस्तिष्क पोषक (brain food) अखरोट

आयुर्वेद के अनुसार अखरोट गुणों में बादाम के सदृश होता है । इसे फलस्नेह या ब्रेन फूड भी कहा जाता है । इसकी गिरी मधुर, स्निग्ध, बलदायक, पचने में भारी, पुष्टिदायी, वायुशामक एवं कफ व पित्तवर्धक होती है ।

अखरोट में जिंक, फॉलिक एसिड, विटामिन ‘ई’ व ‘बी-6’ तथा लौह, ताम्र, फॉस्फोरस, मैग्नेशियम, मैंगनीज़, पोटैशियम, सोडियम आदि खनिज प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं ।

आधुनिक खोज के अनुसार अखरोट स्वास्थ्यप्रद फैटी एसिड ‘ओमेगा-3’ व ‘ओमेगा-6’ का सर्वोत्तम स्रोत है जो हानिकर कोलेस्ट्रॉल की मात्रा घटाते हैं, जिससे हृदय की रक्तवाहिनियों के अवरोध (coronary artery disease) से रक्षा होती है । इसे खाने से स्मृति बढ़ती है । यह मस्तिष्क के कार्य को सही ढंग से चलाने में मदद करता है । इसमें पॉलीफिनॉल्स होते हैं जो स्तन, प्रोस्टेट, बड़ी आँत व गुदा के कैंसर के खतरे को कम करते हैं । अखरोट मधुमेह से रक्षा व इसे नियंत्रित रखने में तथा उच्च रक्तचाप (hypertension) को कम करने में लाभकारी है ।

औषधीय प्रयोग

20 ग्राम अखरोट की गिरी पीसकर उसमें मिश्री, केसर मिला के दूध के साथ  लेने से कुछ हफ्ते में वीर्यवृद्धि होकर शुक्राणुओं की संख्या बढ़ती है ।

रात्रि को बिस्तर में पेशाब करने वाले बच्चों को 1 अखरोट की गिरी और 15 किशमिश मिलाकर खिलाने से बहुत लाभ होता है ।

ध्यान दें- सूखे मेवे सुबह के समय खाना विशेष लाभदायी है । जो शारीरिक श्रम नहीं करते हों अथवा ज्यादातर बैठे ही रहते हों उन्हें इनका सेवन अल्प मात्रा में करना चाहिए।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2018, पृष्ठ संख्या 33 अंक 312

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