श्री आशारामायणजीः एक कल्पवृक्ष

श्री आशारामायणजीः एक कल्पवृक्ष


सं. लोकसे – 181, 184 212, ऋ.प्र. – 238, श्रीनिवास जी एवं आदित्य भाई के बताये अनुसार, रवीश

ब्रह्मज्ञानी महापुरुष संसाररूपी मरुस्थल में त्रिविध तापों से तप्त मानव के लिए विशाल वटवृक्ष हैं, गंगा का शीतल जीवनदायी प्रवाह हैं । यद्यपि ईश्वर-शास्त्र अनुगामी भक्तों एवं संतों के चरित्र तो शुरु से अंत तक अमृतोपम होते हैं, तथापि उनके जीवन की कई घटनाएँ तो ऐसी रसप्रद, सत्प्रेरणाप्रद होती हैं कि जिनको एक ही बार पढ़ सुन लेने से जीवन में महान परिवर्तन हो जाता है और यदि वे ठीक से जीवन में उतर गयीं तो फिर जीवन के लिए एक महत्त्वपूर्ण वरदान सिद्ध होती हैं । बड़े-बड़े अपराधी भी संतों के जीवन-चरित्र पढ़-सुनकर साधउ स्वभाव हो गये, पापी पुण्यात्मा बन गये, दुर्जन सज्जन बन गये और सज्जन सत्पद को प्राप्त कर मुक्त हो गये ।

ब्रह्मनिष्ठ पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू ने अपने सद्गुरुदेव साँईं श्री लीलाशाह जी महाराज के कृपा-प्रसाद से 23 वर्ष की अल्पायु में ही आत्मधन का वह खजाना पा लिया था, जिसके आगे त्रिलोकी के समग्र सुख-वैभव तुच्छ हो जाते हैं । पूज्य बापू जी के बचपन में घटित अद्भुत दैवी घटनाएँ, वाक्सिद्धि एवं ऋद्धि-सिद्धियों का प्राकट्य, पराकाष्ठा का वैराग्य, भगवत्प्राप्ति की तीव्रतम लालसा, विवाह के बाद भी जल-कमलवत जीवन, सद्गुरुआज्ञा-पालन की दृढ़ता…. जीवन का हर एक प्रसंग बड़ा ही रोचक व प्रेरणाप्रद है । इसी अमृतसागर की सारस्वरूप सुंदर छंदोमय पद्य-रचना अर्थात् ‘गागर में सागर’ समाने का भगीरथ प्रयास है ‘श्री आशारामायण जी’ ।

इसके पठन-श्रवण से चंचल चित्त में एकाग्रता,  संतप्त हृदय में आत्मिक शीतलता, निष्कामता, भगवद् रस, संयम-सदाचार व वैराग्य रस का अमृत-लाभ सहज में मिलने लगता है । इस महान ग्रंथ में कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग की ऐसी त्रिवेणी प्रवाहित होती है, जो हर जीवन को पावन बनाकर मनुष्य-जीवन के सुफल की ओर मोड़ देती है । निज आत्मलाभ की उमंग जगाकर जीव में से शिव और मानव में से महेश्वर के प्राकट्य का महाविकास शुरु कराती है ।

आप माता-पिता से निभाना चाहते हैं तो ‘श्री आशारामायण जी’ आपके लिए प्रएरक पोथी है । पढ़ते जाइये, मनन कीजिये । आप समाज, देश और विश्व से निभाना चाहते हैं तो यह आपके लिए दीपस्तम्भ है । पढ़िये, समझिये और ज्ञान प्रकाश पाते जाइये । आप सद्गुरु से निभाना चाहते हैं तो यह आपके लिए माला का मेरुमणि है । प्रेम से गाइये और शांत होते जाइये । जब ईश्वरप्राप्त महापुरुष धऱती पर विद्यमान हों और उनके जीवन-चरित्र द्वारा उनकी अनंत महानता का एक कण हमारी मति में प्रवेश कर जाय तो भी ईश्वरप्राप्ति के लिए उमंग, उत्साह व आत्मविश्वास अनंत गुना बढ़ जाता है । ‘श्री आशारामायण जी’ का पाठ करने से बालक, वृद्ध, नर-नारी सभी प्रेरणा पाते हैं । इसके पाठ से मनोकामना की पूर्ति तो होती ही है, साथ ही बिन माँगे परमानंद परम पद के प्रति प्रीति हो जाती है । इच्छापूर्ति के साथ-साथ इच्छानिवृत्ति की ओर यात्रा का यह अजूबा विश्व के सबसे बड़े सात आश्चर्यों को भी आश्चर्य में डाल देता है । यही है इन करुणा अवतार की प्रकट अहैतुकी कृपा !

श्री आशारामायण जी के पाठ से लाखों लोगों को जो जागतिक उपलब्धियाँ व दिव्य आध्यात्मिक अनुभूतियाँ हुई हैं, वे वर्णन में नहीं आ सकती हैं । शब्द वहाँ बौने हो जाते हैं, लेखनी वहाँ रुक जाती है । फिर भी चंद लोगों के अनुभवों को यहाँ शब्दों में उतारने का एक अल्प प्रयास किया गया हैः-

पठानकोट के विनय शर्मा कहते हैं- “मैं ‘कौन बनेगा करोड़पति’ शो में हॉट सीट के लिए चुना गया । घर पर माँ ‘श्री आशारामायण जी’ के 108 पाठ कर रही थी । 108 पाठ पूरे होते ही मैं 25 लाख रूपये जीत चुका था और हम पर अभिनंदन की वर्षा होने लगी ।” ‘राष्ट्रीय बाल पुरस्कार’, ‘नाट्य गौरव पुरस्कार’, मंगोलिया में बच्चों के अंतर्राष्ट्रीय शिविर में भारत का प्रतिनिधित्व करने  वाली, देश विदेश में जादू के 7000 टीवी चैनलों के टैलेंट तथा रियालिटी आदि शो में भाग ले चुकी जादूगर आँचल कहती हैं- “मैं रोज़ ‘श्री आशारामायण जी’ का पाठ करती हूँ । मैंने जो अनेक इनाम व पदक हासिल किये हैं, वे सारी उपलब्धियाँ तथा योग्यताएँ केवल पूज्य बापू जी के आशीर्वाद की ही देन हैं ।”

महिमा दुग्गल कहती हैं- “पहले मेरे मुश्किल से 60-65 प्रतिशत अंक आ पाते थे लेकिन दीक्षा लेने के बाद मंत्रजप और ‘श्री आशारामायण जी’ के पाठ से मेरी स्मृतिशक्ति और बुद्धिशक्ति में विलक्षण वृद्धि हुई और दसवीं की परीक्षा में मैंने 95 प्रतिशत अंक (सीजीपीए 10/10) प्राप्त किये ।”

‘श्री आशारामायण जी’ के पाठ में आता हैः एक सौ आठ जो पाठ करेंगे, उनके सारे काज सरेंगे ।

दाहोद-इंदौर के बीच स्थित अमझेरा गाँव में जब भी बारिश की तंगी होती है, तब 108 पाठ पूरे होने से पहले ही बारिश हो जाती है, यह हजारों किसानों का असंख्य बार का अनुभव है । जिसने जिस कामना से इसका पाठ किया, उसे उस लाभ की प्राप्ति हुई है ।

श्री आशारामायण जी के पाठ के लिए विशेष विधि-विधान की आवश्यकता नहीं है । आश्रम, घर अथवा यथानुकूल किसी स्थान पर इसका पाठ कर सकते हैं । वास्तव में ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष के जीवन-चरित्र की महिमा एवं इसमें छुपे रस का वर्णन लेखनी के शब्दों में समा नहीं सकता है । उन्हें तो बस पाठ करके अनुभव ही किया जा सकता है । यह तो ऐसा अमृतकलश है कि इसका जो एक बार पान कर लेता है, वह उसे पीता ही जाता है, गुण गाता ही जाता है । इस दिव्य, शीतल, अमृत-सरिता में गोते लगायें, जन्म-जन्मांतरों की थकान मिटायें, सद्गुरु-सान्निध्य को शीघ्र पायें और अपने परम लक्ष्य परमानंद स्वरूप में जाग जायें ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2015, पृष्ठ संख्या 15, 16 अंक 268

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