वर्षा ऋतु
में
प्राकृतिक
स्थितिः
सूर्यः
दक्षिणायण
में होता है।
मेघ, वायु,
वर्षा से सूर्य
का बल (तेज) कम
हो जाता है।
चन्द्रः बल
पूर्ण होता है ।
वायुः
नमी युक्त
होती है ।
जलः
अम्ल रस
युक्त होता है ।
पृथ्वीः
वर्षा के
कारण पृथ्वी
का ताप शांत
होने से अम्ल,
लवण, मधुर
रसयुक्त,
स्निग्ध आहार
द्रव्यों व
औषधियों की
उत्पत्ति
होने लगती है ।
शारीरिक
स्थितिः
बलः
अत्यल्प।
जीवनीशक्तिः
क्षीण।
जठराग्निः
अत्यधिक
दुर्बल ।
दोषः
वात का
प्रकोप, पित्त
का संशय ।
हितकर आहारः
वर्षा
ऋतु में वायु
का शमन व जठराग्नि
प्रदीप्त
करने वाला
आहार लेना
चाहिए । इस हेतु
भोजन में
अदरक, लहसुन,
नींबू, सोंठ,
अजवायन, मेथी,
जीरा, अल्प
मात्रा में
हींग, काली मिर्च,
पीपरामूल का
उपयोग करें ।
जौ,
गेहूँ, एक
वर्ष पुराने
चावल, परवल,
सहिजन, जमीकंद,
करेला, शिमला
मिर्च,
पुनर्नवा,
मेथी, बथुआ,
सुआ, पुदीना,
बैंगन, लौकी
(घीया), पेठा,
तोरई आदि पचने
में हलके व
वायुशामक
पदार्थ
सेवनीय हैं ।
मधु
का सेवन इन
दिनों में
विशेष हितकर
है । तिल तेल
सभी गुणों से
वायुशामक
होने के कारण
उत्तम है ।
आँवला
अथवा हरड़
का आचार, कोकम
व लहसुन की
चटनी, मूँग व
कुलथी का सूप,
भिगोये हुए
मूँग, अदरक व
गुड़ से बना
अदरक पाक- ये
सभी स्वाद,
जठराग्नि व
स्वास्थ्य
बढ़ाने वाले
हैं ।
एक
भाग पुनर्नवा
में चौथाई भाग
हरा धनिया,
पुदीना व
थोड़ी-सी काली
मिर्च मिलाकर
बनायी गयी चटनी
भूखवर्धक व
उत्तम पाचक
है। यह यकृत,
गुर्दे व हृदय
के लिए हितकर
है ।
जलः
जल
में 8-10 निर्मली
के बीज मिला
कर, उबाल कर
ठंडा किया गया
जल पीयें अथवा
इन बीजों को
कूट कर जल के
पात्र में डाल
कर रखें। इससे
पानी निर्मल
हो जाता है ।
सोंठ,
जीरा, नागरमोथ
से सिद्ध जल
उत्तम वात-पित
शामक है। आकाश
में जब तक
बादल हों तब
तक (सितम्बर
महीने तक)
इसका सेवन
स्वास्थ्य
में निश्चय ही
सुधार लाता है ।
वर्षा
ऋतु में
प्रातः 2-3
ग्राम हरड़
चूर्ण में
चुटकी भर सेंधा
नमक मिला कर
ताज़े पानी के
साथ लें ।
पुनर्नवा
अर्क व गोझरण
अर्क का सेवन
शरीर की
शुद्धि व व्याधियों
से सुरक्षा
करने वाला है ।
अहितकर आहारः
सूखे
मेवे, मिठाई,
दही, पनीर,
मावा, रबड़ी,
तले हुए,
खमीरीकृत
(इडली, खमण,
ब्रेड आदि),
बासी, पचने में
भारी पदार्थ
सर्वथा
त्याज्य हैं।
चना,
तुअर (अरहर),
मटर, मसूर,
राजमा, चौलाई,
बाजरा, सेम,
आलू, शकरकंद,
पत्तागोभी,
फूलगोभी,
ग्वारफली,
अरवी जैसे
वायुवर्धक
पदार्थ
त्याज्य हैं।
हितकर विहारः
धूप,
होम-हवन से
वातावरण को
शुद्ध रखें।
वस्त्रों में
नीम के सूखे
पत्ते रखें।
गोमूत्र से आश्रम
में उपलब्ध
गौसेवा
फिनायल से घर
को साफ-सुथरा
रखें। नीम के
सूखे पत्तों
अथवा आश्रम द्वारा
निर्मित
गौ-चंदन
धूपबत्ती से
धूप करें। घर
के आसपास अथवा
बगीचे, नदी,
तालाबों के
किनारों पर
तुलसी के पौधे
लगाएँ। इससे
बाह्य वातावरण,
तन व मन शुद्ध
एवं पवित्र
होने में मदद
मिलेगी।
तिल
तेल अथवा
वायुनाशक
औषधियों से
सिद्ध तेलों
(दशमूल,
महानारायण
तेल आदि) से
संपूर्ण शरीर
की मालिश
करें। कान में
सरसों का तेल
डालें, नाक
में तिल तेल
अथवा अणुतेल
डालें, सिर
तथा पैरों के
तलुओं की
मालिश करें।
वर्षा ऋतु में
बस्ति-उपक्रम
(गुदा के
द्वारा औषधियों
को शरीर में
प्रविष्ट
करना) अत्यन्त
लाभदायी है ।
अहितकर
विहारः
शीत
जल से स्नान,
नदी में
स्नान, तैरना,
ओस में अथवा
आकाश बादलों
से भरा हुआ हो
तब खुले में
छत आदि पर शयन, दिन
में शयन, अधिक
व्यायाम, अधिक
परिश्रम, वाहनों
में अधिक
घूमना अथवा
अधिक पैदल
चलना निषिद्ध
है ।
वर्षा ऋतु
के लिए
वायुनाशक
चूर्ण
छोटी
हरड़ (बाल
हर्र) को
प्रथम दिन छाछ
में भिगोकर
रखें। दूसरे
दिन छाया में
सुखायें। इस
प्रकार 3 से 6
बार भिगोकर
सुखाने के बाद
हरड़ का
कपड़छान
चूर्ण
बनायें। 1 भाग
हरड़ चूर्ण
में चौथाई भाग
अजवायन व
आठवाँ भाग
काला नमक मिला
कर रखें।
लगभग 2
ग्राम मिश्रण
भोजन के बाद
गुनगुने पानी
के साथ लें।
इससे पाचन
शक्ति बढ़ती
है, पेट साफ
होता है।
मंदाग्नि,
अजीर्ण, पेट
में वायु,
दर्द, डकार
आदि का यह श्रेष्ठ
इलाज है।
बहुगुणी,
स्वादिष्टः
अदरक पाक
छीलकर
कद्दकस किया
हुआ अदरक 500
ग्राम, पुराना
गुड़ 500 ग्राम
और गाय का घी 125
ग्राम लें ।
अदरक को घी
में लाल होने
तक भून लें । गुड़
की चासनी
बनाकर उसमें
भूना हुआ अदरक
तथा इलायची,
जायफल,
जावित्री,
लौंग,
दालचीनी, काली
मिर्च,
नागकेसर
प्रत्येक 6-6
ग्राम मिला कर
सुरक्षित रख
लें ।
10 से 20
ग्राम पाक
सुबह-शाम
चबाकर खायें । यह
उत्तम
वात-पित्त-कफ
नाशक,
अग्निदीपक,
पाचक,
मलनिस्सारक,
रूचिप्रद व
कंठ के लिए
हितकर है । दमा,
खाँसी, जुकाम,
स्वर-भंग,
अरूचि आदि
कफ-वात जन्य
विकारों में व
मंदाग्नि,
कब्ज, भोजन के
बाद पेट में
भारीपन, अफरा
अथवा दर्द तथा
शरीर के किसी
भी अंग में
होने वाले
दर्द में इस
पाक के सेवन
से बहुत लाभ
होता है ।
शरीर में
चुस्ती व
स्फूर्ति भी
आती है ।
सावधानीः
पित्त प्रकृतिवाले
तथा
पित्तजन्य
व्याधियों से
ग्रस्त
व्यक्ति इस
पाक का सेवन न
करें।
दाँतों के
लिए प्रयोग
·
रात को
नींबू के रस
में दातुन
के अगले
हिस्से को
डुबो दें ।
सुबह उस दातुन
से दाँत साफ
करें तो मैले
दाँत भी चमक
जायेंगे ।
·
सप्ताह-पन्द्रह
दिन में एक बार
रात को सरसों
का तेल और सेंधा
नमक मिला के
इससे दाँतों
को रगड़
लें । इससे
दाँत और
मसूड़े
मज़बूत
बनेंगे ।
वैद्यराज धनशंकर
जी कहते हैं
रक्तशुद्धिकर, पित्तशामक
नीम अर्क
नीम
के पत्तों से
बना यह अर्क
रक्त को शुद्ध
करने वाली
बहुमूल्य
औषधि है । यह
दाद, खाज, खुजली,
कील मुहाँसे
तथा पुराने
त्वचा
विकारों में
अत्यन्त
लाभदायक है । यह
उत्तम
कृमिनाशक, दाह
व पित्तशामक
है । पीलिया,
पांडु,
रक्तपित्त,
अम्लपित्त,
उलटी, प्रमेह,
विसर्प
(हरपिझ) व लीवर
के रोगों को
दूर करने वाला
है । यह
बालों को
झड़ने से
रोकता है।
रक्तप्रदर, गर्भाशय
शोथ, खूनी
बवासीर आँखों
के रोगों में
भी लाभदायक है ।
सेवन
विधिः 10 से 30
मि.ली. अर्क
(बालकों हेतु- 2
से 5 मि.ली.)
समभाग पानी
मिलाकर दिन
में 2 बार ।
विशेषः
चर्मरोग में 5
लिटर पानी में
50 मि.ली. अर्क
मिला कर स्नान
करें । 15 दिन तक
ही इसका
नियमित सेवन करें ।
तत्पश्चात 4-5
दिन बंद करके
पुनः ले सकते
हैं ।
शीतल,
कफनाशक
वासा (अडूसा)
अर्क
वासा
अर्क संचित कफ
को पतला कर
बाहर निकाल
देता है। अतः
यह फुफ्फुस
विकार, गले
में सूजन, श्वास
(दमा), खाँसी,
कफजन्य, ज्वर
तथा अन्य सभी
प्रकार के कफ
विकारों में
क्षयरोग में
बहुत लाभदायी
है । यह रक्तगतपित्त
को शांत करता
है । नाक, आँख,
मुँह, योनि,
पेशाब आदि के
द्वारा होने
वाले
रक्तस्राव की
यह अद्वितिय
औषधी है । खूनी
बवासीर व खूनी
दस्त भी
लाभदायी है ।
सेवन
विधिः 20 से 40
मि.ली. अर्क
(बालकों हेतु- 5
से 10 मि.ली.) दिन
में 2 से 3 बार लें ।
स्मृतिवर्धक,
कैंसर-निवारक
तुलसी अर्क
धर्मशास्त्रों
में तुलसी को
अत्यन्त
पवित्र तथा
माता के समान
माना गया है ।
तुलसी एक
उत्कृष्ट
रसायन है । आज
के
विज्ञानियों
ने इसे एक
अदभुत औषधि (Wonder Drug) कहा
है ।
लाभः यह कफजन्य
ज्वर, विषमज्वर
(विशेषतः
मलेरिया),
सर्दी-जुकाम,
श्वास, खाँसी,
अम्लपित्त,
दस्त, उलटी,
हिचकी, मुख की
दुर्गन्ध,
मंदाग्नि,
कृमि, पेचिश
में लाभदायी व
हृदय के लिए
हितकर है । यह
रक्त में से
अतिरिक्त
स्निग्धांश
को हटाकर रक्त
को शुद्ध करता
है। यह
सौंदर्य, बल,
ब्रह्मचर्य
एवं स्मृति
वर्धक व
कीटाणु, त्रिदोष
और विषनाशक है ।
सेवनविधिः 10 से 20
मि.ली. अर्क
में उतना ही
पानी मिला कर
खाली पेट ले
सकते हैं ।
रविवार को न
लें । तुलसी
अर्क लेने से
पूर्व व
पश्चात
डेढ़-दो घंटे
तक दूध न लें ।
शरीर
के पुनः नयापन
देने वाला
पुनर्नवा
अर्क
पुनर्नवा
शरीर के कोशों
को नया जीवन
प्रदान करने
वाली श्रेष्ठ
रसायन औषधि है । यह
कोशिकाओं में
से सूक्ष्म
मलों को हटाकर
संपूर्ण शरीर
की शुद्धि
करती है,
जिससे किडनी, लीवर,
हृदय आदि
अंग-प्रत्यंगों
की कार्यशीलता
व मजबूती
बढ़ती है तथा
युवावस्था
दीर्घकाल तक
बनी रहती है ।
लाभः यह अर्क
किडनी की
सूजन,
मूत्राश्मरी
(पथरी), उदररोग,
सर्वांगशोथ
(सूजन), हृदय
दौर्बल्यता,
श्वास,
पीलिया, पांडु
(रक्ताल्पता),
जलोदर,
बवासीर,
भगंदर, हाथीपाँव,
खाँसी, तथा
लीवर के रोग व
जोड़ों के
दर्द में
विशेष
लाभदायी है । यह हृदयस्ध
रक्तवाहियों
को साफ कर
हृदय को मजबूत
बनाता है ।
आँखों हेतु भी
हितकारी है ।
इसके सेवन से
आँखों का तेज़
बढ़ता है । बाल
घने व काले
होते हैं । यह अनिद्रानाशक
व पित्तशामक
है ।
सेवनविधिः 20 से 50
मि.ली. अर्क
आधी कटोरी
पानी में मिला
कर दिन में एक
या दो बार
लें। इसके
सेवन के बाद
एक घंटे तक
कुछ न लें।
केवल साधक
परिवारों के
लिए संत श्री
आसारामजी आश्रमों
व
सेवाकेन्द्रों
पर उपलब्ध