लाभोपायो हि शस्तानां
रसादीनां
रसायनम् ।
शरीर
को स्वस्थ
रखने के लिए
उत्तम
रस-रक्तादि
धातुओं की
प्राप्ति जिस
उपाय के
द्वारा की
जाती है, उसे
रसायन
चिकित्सा
कहते हैं।
(अष्टांगहृदय,
उत्तरस्थानः
39.2)
यह
आयुर्वेद की
अनमोल देन है।
इससे जरा
अर्थात अकाल
वार्धक्य व
व्याधियों का
नाश होता है।
युवा व्यक्ति
में जिस
प्रकार बल,
बुद्धि,
प्रभा, वर्ण
आदि की
उपस्थिति
पायी जाती है,
वैसी ही
उपस्थिति
रसायन
चिकित्सा के द्वारा
वृद्धावस्था
तक पायी जाती
है ।
रसायन
औषधियों के
सेवन से
मनुष्य को
दीर्घायुष्य,
स्मरणशक्ति,
धारणाशक्ति,
आरोग्य, तारूणय,
वर्ण, प्रभा,
उत्तम स्वर,
देह व
इंद्रियों में
उत्तम बल,
शुक्रधातु की
प्रचुरता व
सुंदरता – इन
सबकी
प्राप्ति
होती है।
आँवला, हरीतकी
(हरड़),
अश्वगंधा,
शतावरी,
पुनर्नवा,
गिलोय, ब्राह्मी,
जीवंती आदि
श्रेष्ठ
रसायन औषधियाँ
हैं। इनमें
आँवला व
हरीतकी
श्रेष्ठ है।
आमलकं वयः
स्थापनानां,
हरीतकी
पथ्यानां
श्रेष्ठम् ।
रोगनाशन में हरीतकी
श्रेष्ठ है व
वयःस्थापन
में
(वृद्धावस्था
रोकने में)
आँवला
श्रेष्ठ है।
(चरक
संहिता,
सूत्रस्थानः
25.40)
ये
दोनों द्रव्य
शरीर से विकृत
दोष-मलादि को
बाहर निकालकर
स्रोतसों की
शुद्धि व
अग्नि को
प्रदीप्त कर
सारभूत
धातुओं की
उत्पत्ति करते
हैं।
1. आँवलाः शरद
पूर्णिमा के
बाद पुष्ट हुए
ताजे आँवलों के
रस में घी, शहद
व मिश्री
मिलाकर सेवन
करने से अकाल
वार्धक्य के
लक्षण नष्ट
होते हैं । आँवले के
रस में
प्रकृति
अनुसार
विभिन्न
द्रव्य
मिलाकर सेवन
करने से वह
विशेष
लाभदायी होता
है।
·
कफप्रकृति
–
आँवला रस + 1 ग्राम
पीपर + 5 ग्राम
शहद
·
पित्तप्रकृति
–
आँवला रस + 1 ग्राम
जीरा + 5
ग्राम मिश्री
·
वातप्रकृति
–
आँवला रस + 10 ग्राम
घी
·
रक्त की
शुद्धि व
वृद्धि के लिए – आँवला
रस + 1
ग्राम हल्दी + 5
ग्राम शहद।
(आँवले की रस
की मात्रा – 15 से 20
मि.ली.)
2. हरड़ः दो
बड़ी हरड़
(अथवा 3 से 5
ग्राम हरड़
चूर्ण) को घी में
भूनकर नियमित
सेवन करने से
व घी पीने से शरीर
में बल
चिरस्थायी
होता है।
ऋतु-अनुसार
निम्न द्रव्य
दिये गये
अनुपात में
मिला कर
प्रातः हरीतकी
का सेवन करने
से सभी प्रकार
के रोगों से रक्षा
होती है।
ऋतु |
मिश्रण |
अनुपात |
शिशिर |
हरड़
+ पीपर |
8:1 |
वसंत |
हरड़
+ शहद |
समभाग |
ग्रीष्म |
हरड़
+ गुड़ |
समभाग |
वर्षा |
हरड़
+ सैंधव |
8:1 |
शरद |
हरड़
+ मिश्री |
2:1 |
हेमंत |
हरड़
+ सौंठ |
4:1 |
(हरड़
चूर्ण की
मात्राः 3 से 4
ग्राम)
3. शतावरीः शतावरी की
ताजी जड़ का 10
से 20 मि.ली. रस
दूध में
मिलाकर पीने
से शरीर बलवान
व पुष्ट होता
है। शुक्र व
ओज़ क्षय के
कारण उत्पन्न
शारीरिक व
मानसिक दुर्बलता
को दूर करने
के लिए शतावरी
अत्यंत उपयुक्त
है। ताजा रस
संभव न हो तो 3
से 5 ग्राम
शतावरी चूर्ण
मिश्रीयुक्त
दूध में
मिलाकर लें।
4. गिलोयः गिलोय का 10
से 20 मि.ली. रस
मिश्री अथवा
शहद मिलाकर
पीयें। रक्त व
मज्जा धातु को
पुष्ट करने
वाली गिलोय एक
महत्वपूर्ण
मेध्य
(बुद्धिवर्धक)
रसायन औषधि
है।
5. पुनर्नवाः ताजी
पुनर्नवा
की 20 ग्राम जड़
पीसकर दूध के
साथ एक वर्ष
तक सेवन करने
से जीर्ण शरीर
भी नया हो
जाता है। शरीर
को पुनः नयापन
देती है,
इसलिए इसे
पुनर्नवा कहा
गया है। ताजी
पुनर्नवा
उपलब्ध न होने
पर 5 ग्राम
पुनर्नवा
चूर्ण का
उपयोग कर सकते
हैं।
6. अश्वगंधा
अथवा विदारीकंद
या सफेद मूसली
का 2 से 3 ग्राम
चूर्ण गाय के
दूध, घी अथवा
गर्म जल के साथ
लेने से शरीर
अश्व के समान
बलवान हो जाता
है।
7. शिशिर
ऋतु (22
दिसम्बर से 18
फरवरी तक) में
प्रतिदिन 15-25
ग्राम काले
तिल जल के साथ
सेवन करने से
शरीर बहुत पुष्ट
होता है व दाँत
मृत्युपर्यन्त
दृढ़ रहते
हैं। इसके बाद
2-3 घंटे तक कुछ न
लें।
8. उपर्युक्त
औषधियाँ
उपलब्ध न हो
सकें तो जल, दूध,
घी व शहद ये
अलग-अलग या
दो-दो या
तीन-तीन या
चारों एक साथ
असमान मात्रा
में मिला कर
नित्य प्रातः
सेवन करने से
भी आयु स्थिर
होती है। दूध
में शहद मिलाना
हो तो दूध
गुनगुना लें।
9. उपर्युक्त
प्रयोगों में
दूध, घी गाय का
ही लें तथा
शुद्ध शहद का
प्रयोग करें।
पुनर्नवा,
शतावरी, गिलोय
आदि औषधि
वनस्पतियों
को अपने घर के
आसपास सरलता
से उगाया जा
सकता है।
निर्देशः श्री
चरकाचार्यजी
के अनुसार
संयमी व
सदाचारी
पुरूषों को
रसायन का सेवन
आदरपूर्वक
करना चाहिए।
बालक व वृद्ध
रसायन के
अधिकारी नहीं
हैं। युवा व
प्रोढ़ावस्था
में रसायन का
सेवन किया
जाता है। इसका
सेवन प्रातः
खाली पेट
करें। इसके
साथ देश, ऋतु,
प्रकृति व
जठराग्नि के
अनुसार हितकर
आहार-विहार
करें। स्त्री
संपर्क का
त्याग आवश्यक
है।
ये
सिद्ध
ऋषि-मुनिप्रदत्त
दीर्घ व
निरामय जीवन
की कुंजियाँ
हैं। इन
साधारण
प्रयोगों में
असंख्य रोगों
का प्रतिकार व
शरीर को बलवान
बनाने की
असाधारण शक्ति
छुपी हुई है।
इनका उपयोग कर
हम अनमोल
स्वास्थ्य
अत्यल्प
मूल्य व
प्रयास से ही
प्राप्त कर सकते
हैं।
नींद
में खर्राटे
आना कई बार
सामान्य होता
है, कई बार
थकान के कारण
खर्राटे आते
हैं तथा कई बार
यह लक्षण किसी
गंभीर बीमारी
के साथ जुड़ा
हुआ होता है। 60 %
मनुष्यों में
यह लक्षण उच्च
रक्तदाब,
डायवटीज़,
कोलेस्टेराल
की अधिकता,
हृदयरोग जैसी बीमारियों
के कारण पाया
गया। ऐसे
व्यक्तियों
को मक्खन,
मलाई, पनीर,
दही, केला,
फ्रिज का
पानी, मिठाई,
तले व चिकनाई
वाले पदार्थ
नहीं खाने चाहिए।
दिन में सोना,
एअर कण्डिशन
में रहना, सतत बैठे
रहना छोड़
देना चाहिए।
खर्राटे आना
यह कुदरत का
अलार्म है।
कुदरत
खर्राटे द्वारा
मनुष्य को
अपनी
जीवनशैली ठीक
करने की चेतावनी
देती है। ऐसे
व्यक्ति आहार
में सुधार के
नियमित
आसन-प्राणायाम-कसरत
करें। 20 ग्राम
अदरक के रस
(लगभग 4 चम्मच)
में 5 ग्राम गुड़
मिला कर सुबह
खाली पेट 21 दिन
तक लें। आवश्यक
हो तो 5 दिन के
अंतर से यह
प्रयोग पुनः दोहराया
जा सकता है।
इन दिनों में
मिर्च, राई, मेथी,
हींग जैसी गरम
वस्तुओं का
सेवन न करें।
जम्हाई
रात्रि को आती
हो तो ठीक है
परंतु दिन में
ज़्यादा
जम्हाईयाँ
आती हों तो
निस्तेज तथा
निरसता की खबर
देता है। वह
भविष्य में
होने वाली
नर्व्हस
सिस्टम
(तंत्रिका
तंत्र)
संबंधित
बीमारी का
संकेत हो सकता
है। ऐसे लोगों
को अदरक व
लहसुन का सेवन
वैद्यकीय
सलाह से करना चाहिए।