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योगयात्रा -

 

पूज्यश्री के सत्संग में प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के उदगार... 4

परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापू के कृपा-प्रसाद से परिप्लावित हृदयों के उदगार. 5

राष्ट्र उनका ॠणी है. 6

सत्संग-श्रवण से मेरे हृदय की सफाई हो गयी... 6

पूज्य बापू जीवन को सुखमय बनाने का मार्ग बता रहे हैं. 6

धरती तो बापूजी जैसे संतों के कारण टिकी है. 7

हम सबको भक्त बनने की ताकत मिले.. 7

सही ऊर्जा बापूजी से मिलती है. 8

मैं तो बापूजी का एक सामान्य कार्यकर्ता हूं. 8

मैं कमनसीब हूं जो इतने समय तक गुरुवाणी से वंचित रहा.. 8

इतनी मधुर वाणी! इतना अदभुत ज्ञान! 9

ऐसे संतों का तो जितना आदर किया जाय, कम है. 9

आपकी कृपा से योग की अणुशक्ति पैदा हो रही है. 10

मुझे निर्व्यसनी बना दिया... 11

बापूजी के सत्संग से विश्व भर के लोग लाभान्वित... 11

ज्ञानरूपी गंगाजी स्वयं बहकर यहाँ आ गयी... 12

गुरुजी की तस्वीर ने प्राण बचा लिये.. 12

सदगुरू शिष्य का साथ कभी नहीं छोड़ते.. 13

गुरूकृपा से अंधापन दूर हुआ... 13

और डकैत घबराकर भाग गये.. 14

मंत्र द्वारा मृतदेह में प्राण-संचार. 14

सदगुरूदेव की कृपा से नेत्रज्योति वापस मिली... 16

बड़दादा की मिट्टी व जल से जीवनदान.. 16

पूज्य बापू ने फेंका कृपा-प्रसाद. 16

एक छोटी थैली बनी अक्षयपात्र. 17

बेटी ने मनौती मानी और गुरुकृपा हुई. 17

और गुरुदेव की कृपा बरसी... 18

कैसेट-श्रवण से भक्ति का सागर हिलोरे लेने लगा... 19

गुरुदेव ने भेजा अक्षयपात्र. 19

स्वप्न में दिये हुए वरदान से पुत्रप्राप्ति... 20

'श्री आसारामायण' के पाठ से जीवनदान.. 20

गुरूवाणी पर विश्वास से अवर्णीय लाभ.. 21

और सोना मिल गया... 22

सेवफल के दो टुकड़ों से दो संतानें.. 22

साइकिल से गुरूधाम जाने पर खराब टाँग ठीक हो गयी... 23

अदभुत रही मौनमंदिर की साधना ! 24

असाध्य रोग से मुक्ति.... 24

पूज्य बापू का दर्शन-सत्संग ही जीवन का सच्चा रत्न है. 25

कैसेट का चमत्कार. 26

मुझ पर बरसी संत की कृपा... 26

गुरुदेव की कृपा से संतानप्राप्ति... 27

गुरूकृपा से जीवनदान.. 27

पूज्य बापू जैसे संत दुनिया को स्वर्ग में बदल सकते हैं. 28

बापूजी का सान्निध्य गंगा के पावन प्रवाह जैसा है. 28

सारस्वत्य मंत्र से हुए अदभुत लाभ.. 30

भौतिक युग के अंधकार में ज्ञान की ज्योति : पूज्य बापू.. 31

गुरूकृपा ऐसी हुई कि अँधेर तो क्या देर भी नहीं हुई. 31

मुस्लिम महिला को प्राणदान.. 32

हरिनाम की प्याली ने छुड़ायी शराब की बोतल.. 33

पूरे गाँव की कायापलट ! 33

नेत्रबिंदु का चमत्कार. 34

पूज्यश्री की तस्वीर से मिली प्रेरणा... 35

मंत्र से लाभ.. 35

काम क्रोध पर विजय पायी... 36

अन्य अनुभव.. 37

जला हुआ कागज.. 37

नदी की धारा मुड़ गयी... 38

सूक्ष्म शरीर से चोर का पीछा किया... 39

मंगली बाधा-निवारण मंत्र. 39

सुखपूर्वक प्रसवकारक मंत्र. 39

शक्तिशाली व गोरे पुत्र की प्राप्ति के लिए.. 40

सदगुरू-महिमा... 40

लेडी मार्टिन के सुहाग की रक्षा करने अफगानिस्तान में प्रकटे शिवजी... 42

महामृत्युंजय मंत्र. 44

 

प्रस्तावना

 

ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों की उपस्तिथि मात्र से असंख्य जीवों को दृष्ट-अदृष्ट, सांसारिक-अध्यात्मिक सहायता प्राप्त होती है | प्रातः स्मरणीय परम पूज्य सदगुरुदेव संत श्री आसारामजी बापू की प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष प्रेरणा से जो लोग लाभान्वित हुए है, उनके परिप्लावित हृदयों के उदगार एवं पत्रों को लिपिबद्ध किया जाय तो एक-दो नहीं, कई ग्रंथ तैयार हो सकते है | इस पुस्तिका "योगयात्रा-४" में भक्तों के अनुभवों की बगिया से चुनें हुए थोडे-से पुष्प हैं | भारतवर्ष के योगविज्ञान और ब्रह्मवेत्ताओं की अलौकिक शक्ति का वर्णन केवल कपोलकल्पित बातें नहीं है | ये हजार-दो हजार लोगों का नहीं बल्कि बापूजी के लाखों-लाखों साधकों का अनुभव है | इन विभिन्न प्रकार के अलौकिक अध्यात्मिक अनुभवों को पढने से हमारे हृदय में अध्यात्मिकता का संचार होता है | भारतीय संस्कृति व भारत की साधना-पद्धति की सच्चाई और महानता की महक मिलती है | नश्वर जगत के सुखाभास की पोल खुलती है | शाश्वत सुख की और उन्मुख होने का उत्साह हममें उभरता है | इन आध्यात्मिक अनुभवों को पढकर श्रद्धा के साथ अध्यात्मिक मार्ग में जो प्रवृत्ति होती है उसे यदि साधक जागृत रखे तो वह शीघ्र ही साधना की ऊँचाइयों कि छू सकता है | हजारों लोगों के बीच अपने स्नेही-मित्रों के समक्ष जो अनुभव कहे हैं उनकी प्रमाणितता में संदेह करना उचित नहीं है | उनके अनुभव उन्हीं की भाषा में....

-श्री अखिल भारतीय योग वेदान्त सेवा समिति,

अमदावाद

 


 

पूज्यश्री के सत्संग में प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के उदगार...

 

"पूज्य बापूजी के भक्तीरस में डूबे हुए श्रोता भाई-बहनो ! मैं यहाँ पर पूज्य बापूजी का अभिनंदन करने आया हूँ ... उनका आर्शीवचन सुनने आया हूँ... भाषण देने या बकबक करने नहीं आया हूँ | बकबक तो हम करते रहते हैं | बापूजी का जैसा प्रवचन है, कथा-अमृत है, उस तक, पहुँचने के लिये बड़ा परिश्रम करना पड़ता है | मैंने पहले उनके दर्शन पानीपत में किये थे | वहीं पर रात को पानीपत में पुण्य-प्रवचन समाप्त होते ही बापूजी कुटीर में जा रहे थे, तब उन्होंने मुझे बुलाया |  मैं भी उनके दर्शन और आशीर्वाद के लिये लालायित था | संत-महात्माओं के दर्शन तभी होते हैं, उनका सान्निध्य तभी मिलता है जब कोई पुण्य जागृत होता है | इस जन्म में कोई पुण्य किया हो इसका मेरे पास कोई हिसाब तो नहीं है किन्तु जरुर यह पूर्वजन्म के पुण्यों का ही फल है जो बापूजी के दर्शन हुए | उस दिन बापूजी ने जो कहा, वह अभी तक मेरे हृदय-पटल पर अंकित है | देशभर की परिक्रमा करते हुए जन-जन के मन में अच्छे संस्कार जगाना, यह एक ऐसा परम, राष्ट्रीय कर्तव्य है, जिसने हमारे देश को आज तक जीवित रखा है और इसके बल पर हम उज्जवल भविष्य का सपना देख रहे हैं... उस सपने को साकार करने की शक्ति-भक्ति एकत्र कर रहे हैं | पूज्य बापूजी सारे देश में भ्रमण करके जागरण का शंख नाद कर रहे हैं, सर्वधर्म-समभाव की शिक्षा दे रहे हैं, संस्कार दे रहे हैं तथा अच्छे और बुरे में भेद करना सिखा रहे हैं | हमारी जो प्राचीन धरोहर थी और हम जिसे लगभग भुलाने का पाप कर बैठे थे, बापूजी हमारी आँखो मे ज्ञान का अंजन लगाकर उसको फिर से हमारे सामने रख रहे हैं | बापूजी ने कहा कि ईश्वर की कृपा से कण-कण में व्याप्त एक महान शक्ति के प्रभाव से जो कुछ घटित होता है, उसकी छानबीन और उस पर अनुसंधान करना चाहिए | शुद्ध अन्तःकरण से निकली हुई प्रार्थना को प्रभु अस्वीकार नहीं करते, यह हमारा विश्वास होना चाहिए | यदि अस्वीकार हो तो प्रभु को दोष देने के बजाय यह सोचना चाहिए कि क्या हमारे अंतःकरण में उतनी शुद्धि है जितनी होनी चाहिए ? शुद्धि का काम राजनीति नहीं कर सकती, अशुद्धि का काम भले कर सकती है | पूज्य बापूजी ने कहा कि जीवन के व्यापार में से थोड़ा समय निकालकर सत्संग में आना चाहिए | पूज्य बापूजी उज्जैन में थे तब मेरी जाने की बहुत इच्छा थी लेकिन कहते है , कि दाने-दाने पर खाने वाले की मोहर होती है, वैसे ही संत-दर्शन के लिए भी कोई मुहूर्त होता है | आज यह मुहूर्त आ गया है | यह मेरा कुरूक्षेत्र है | पूज्य बापूजी ने चुनाव जीतने का तरीका भी बता दिया है | आज देश की दशा ठीक नहीं है | बापूजी का प्रवचन सुनकर बड़ा बल मिला है | हाल में हुए लोकसभा अधिवेशन के कारण थोड़ी-बहुत निराशा पैदा हुई थी किन्तु रात को लखनऊ में पुण्य-प्रवचन सुनते ही वह निराशा भी आज दूर हो गयी | बापूजी ने मानव-जीवन के चरम लक्ष्य मुक्ति-शक्ति की प्राप्ति के लिये पुरुषार्थ चतुष्टय, भक्ति के लिये सम्पूर्ण की भावना तथा ज्ञान, भक्ति और कर्म तीनों का उल्लेख किया है | भक्ति में अहंकार का कोई स्थान नहीं है | ज्ञान अभिमान पैदा करता है | भक्ति में पूर्ण समर्पण होता है | १३ दिन के शासनकाल के बाद मैंने कहा :'मेरा जो कुछ है, तेरा है |' यह तो बापूजी की कृपा है कि श्रोता को वक्ता बना दिया और वक्ता को नीचे से ऊपर चढ़ा दिया | जहाँ तक उपर चढ़ाया है वहाँ तक उपर बना रहूँ इसकी चिन्ता भी बापूजी को करनी पडेगी | राजनीति की राह बडी रपटीली है | जब नेता गिरता है तो यह नहीं कहता कि मैं गिर गया बल्कि कहता है:'हर हर गंगे |' बापूजी के प्रवचन सुनकर बड़ा आनन्द आया | मैं लोकसभा का सदस्य होने के नाते अपनी ओर से एवं लखनऊ की जनता कि ओर से बापूजी के चरणों मे विनम्र होकर नमन करना चाहता हूँ | उनका आशीर्वाद हमें मिलता रहे, उनके आशीर्वाद से प्रेरणा पाकर बल प्राप्त करके हम कर्तव्य के पथ पर निरन्तर चलते हुए परम वैभव को प्राप्त करें, यही प्रभु से प्रार्थना है |

-श्री अटलबिहारी वाजपेयी,

प्रधानमंत्री, भारत सरकार

 

परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापू के कृपा-प्रसाद से परिप्लावित हृदयों के उदगार

 

पू. बापू: राष्ट्रसुख के संवर्धक "पूज्य बापू द्वारा दिया जानेवाला नैतिकता का संदेश देश के कोने-कोने मे जितना अधिक प्रसारित होगा, जितना अधिक बढ़ेगा, उतनी ही मात्रा में राष्ट्रसुख का संवर्धन होगा, राष्ट्र की प्रगति होगी | जीवन के हर क्षेत्र में इस प्रकार के संदेश की जरुरत है |"

-श्री लालकृष्ण आडवाणी,

उपप्रधानमंत्री एवं केन्द्रीय ग्रहमन्त्री, भारत सरकार


राष्ट्र उनका ॠणी है

 

भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री चन्द्रशेखर, दिल्ली के स्वर्ण जयंती पार्क में २५ जुलाई १९९९ को बापूजी की अमृतवाणी का रसास्वादन करने के पश्चात बोले: "आज पूज्य बापू की दिव्य वाणी का लाभ लेकर मैं धन्य हो गया |  संतों की वाणी ने हर युग मे नया संदेश दिया है, नयी प्रेरणा जगायी है | कलह, विद्रोह और द्वेष से ग्रस्त वर्तमान वातावरण में बापू जिस तरह सत्य, करुणा और संवेदनशीलता के संदेश का प्रसार कर रहे हैं, इसके लिये राष्ट्र उनका ॠणी है |"

-श्री चन्द्रशेखर,

भूतपूर्वे प्रधानमंत्री, भारत सरकार

 

सत्संग-श्रवण से मेरे हृदय की सफाई हो गयी...

 

पूज्यश्री के दर्शन करने व आशीर्वाद लेने हेतु आये हुए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल श्री सुरजभान ने कहा: " स्मशानभूमी से आने के बाद हम लोग शरीर की शुद्धि के लिये स्नान कर लेते हैं | ऐसे ही विदेशों में जाने के कारण मुझ पर दूषित परमाणु लग गये थे, परंतु वहां से लौटने के बाद यह मेरा परम सौभाग्य है कि महाराजश्री के दर्शन व पावन सत्संग करने से मेरे चित्त की सफाई हो गयी | विदेशों में रह रहे अनेकों भारतवासी पूज्य बापू के प्रवचनों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से सुन रहे हैं | मेरा यह सौभाग्य है कि मुझे यहां महाराजश्री को सुनने का सुअवसर प्राप्त हुआ है |"

-श्री सुरजभान,

तत्कालीन राज्यपाल, उत्तर प्रदेश

 

पूज्य बापू जीवन को सुखमय बनाने का मार्ग बता रहे हैं

 

गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री केशुभाई पटेल ११ मई को पूज्य बापू के दर्शन करने अमदावाद आश्रम पहुँचे | सत्संग सुनने के बाद उन्होंने भावपूर्ण वाणी में कहा: "मैं तो पूज्य बापू के दर्शन करने के लिये आया था किन्तु बड़े सौभाग्य से दर्शन के साथ ही सत्संग का लाभ भी मिला | जीवन में अध्यात्मिकता के साथ सहजता कैसे लायें तथा मनुष्य सुखी एवं निरोगी जीवन किस प्रकार बिताये, इस गहन विषय को कितनी सरलता से पूज्य बापू ने हमें समझाया है! ईश्वर-प्रदत्त इस मनुष्य-जन्म को सुखमय बनने का मार्ग पूज्य बापू हमें बता रहे हैं | भारतीय संस्कृति में निहित सत्य की ओर चलने की प्रेरणा हमें दे रहे हैं | एक वैश्विक कार्य, ईश्वरीय कार्य जिसे स्वयं भगवान को करना है, वह कार्य आज पूज्य बापूजी कर रहे हैं | बापू को मेरे शत-शत प्रणाम |"

-श्री केशुभाई पटेल,

तत्कालीन मुख्यमंत्री, गुजरात राज्य

 

धरती तो बापूजी जैसे संतों के कारण टिकी है

 

"मुझे सत्संग में आने का मौका पहली बार मिला है, और पूज्य बापूजी से एक अदभुत बात मुझे और आप सबको सुनने को मिली है, वह है प्रेम की बात | इस सृष्टि का जो मूल तत्व है, वह है प्रेम | यह प्रेम नाम का तत्व यदि न हो तो सृष्टि नष्ट हो जायेगी | लेकिन संसार में कोई प्रेम करना नहीं जानता, या तो भगवान प्यार करना जानते हैं या संत प्यार करना जानते हैं | जिसको संसारी लोग अपनी भाषा में प्रेम कहते हैं, उसमें तो कहीं-न-कहीं स्वार्थ जुडा होता है लेकिन भगवान संत और गुरु का प्रेम ऐसा होता है जिसको हम सचमुच प्रेम की परिभाषा में बांध सकते हैं | मैं यह कह सकती हूँ कि साधु-संतों को देश की सीमायें नहीं बांधतीं | जैसे नदियों की धाराएँ देश और जाति और संप्रदाय की सीमाओं में नहीं बंधता | कलियुग में हृदय की निष्कपटता, निःस्वार्थ प्रेम, त्याग और तपस्या का क्षय होने लगा है, फिर भी धरती टिकी है तो बापू ! इसलिए कि आप जैसे संत भारतभूमि पर विचरण करते हैं | बापू की कथा में ही मैंने यह विशेषता देखी है कि गरीब और अमीर, दोनों को अमृत के घूंट एक जैसे पीने को मिलते हैं | यहां कोई भेदभाव नहीं है |"

-सुश्री उमा भारती,

मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश

 

हम सबको भक्त बनने की ताकत मिले

 

"मैं तो पूज्य बापूजी के श्रीचरणों में प्रणाम करने आया हूं | भक्ति से बड़ी कोई ताकत नहीं होती और भक्त हर कोई बन सकता है | हम सबको भक्त बनने की ताकत मिले | मैं समझता हूं कि संतों के आशीर्वाद ही हम सबकी पूंजी होती है |"

-नरेन्द्र मोदी,

मुख्यमंत्री, गुजरात राज्य

 

सही ऊर्जा बापूजी से मिलती है

 

"गुजरात सरकार ने मुझे ऊर्जामंत्री का पद सौंपा है, पर सही आत्मिक ऊर्जा मुझे पूज्य बापूजी से मिलती है | "

-श्री कौशिकभाई पटेल,

तत्कालीन ऊर्जामंत्री,

वर्तमान में राजस्व व नागरिक आपूर्ति मंत्री, गुजरात राज्य

 

मैं तो बापूजी का एक सामान्य कार्यकर्ता हूं

 

दिल्ली में आयोजित पूज्यश्री के सत्संग-कार्यक्रम के दौरान दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री साहिब सिंह वर्मा सत्संग-श्रवण हेतु आम भक्तों के बीच आ बैठे | सत्संग-श्रवण के पश्चात उन्होंने पूज्य बापू को माथा टेककर प्रणाम किया... माल्यार्पण के साथ स्वागत करके उनका आशीर्वाद प्राप्त किया | एक संत के प्रति लोगों की श्रद्धा, तडप, सत्संग-प्रेम, उनका प्रेमपूर्ण व्यवहार, अनुशासन व भारतीयता को देखकर मुख्यमंत्रीश्री गदगद हो उठे | उन्होंने बार-बार दिल्ली पधारने के लिये पूज्य बापू से प्रार्थना की और कहा : "आज मैं पूज्य बापूजी के दर्शन व सत्संग-श्रवण करके पावन हो गया हूँ | मैं महसूस करता हूँ कि परम संतों के जब दर्शन होते है और उनके पावन शरीर से जो तरंगे निकलती हैं वे जिसको भी छू जाती है उसकी बहुत-सी कमियाँ दूर हो जाती हैं | मैं चाहता हूं कि मेरी सभी कमियाँ दूर हो जायें | मैं तो पूज्य बापूजी का एक सामान्य सा कार्यकर्ता हूं | पूज्य बापूजी की कृपा हमेशा मुझ पर बनी रहे एसी मेरी कामना है | मेरा परम सौभाग्य है की मुझे आपके दर्शन का, आपके आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर मिला |"

-श्री साहिब सिंह वर्मा,

केन्द्रीय, श्रम मंत्री, भारत सरकार

 

मैं कमनसीब हूं जो इतने समय तक गुरुवाणी से वंचित रहा

 

"परम पूज्य गुरुदेव के श्रीचरणों में सादर प्रणाम ! मैंने अभी तक महाराजश्री का नाम भर सुना था | आज दर्शन करने का अवसर मिला है लेकिन मैं अपने आप को कमनसीब मानता हूं क्योंकि देर से आने के कारण इतने समय तक गुरुदेव की वाणी सुनने से वंचित रहा | अब मेरी कोशिश रहेगी कि मैं महाराजश्री की अमृत वाणी सुनने का हर अवसर यथासमय पा सकूं | मैं ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूं कि वे हमें ऐसा मौका दें कि हम गुरु की वाणी सुनकर अपने आपको सुधार सकें | गुरुजी के श्रीचरणों में सादर समर्पित होते हुए मध्य प्रदेश की जनता की ओर से प्रार्थना करता हूं कि गुरुदेव ! आप इस मध्य प्रदेश में बार-बार पधारें और हम लोगों को आशीर्वाद देते रहें ताकि परमार्थ के उस कार्य में, जो आपने पूरे देश में ही नहीं, देश के बाहर भी फैलाया है, मध्य प्रदेश के लोगों को भी जुड़ने का ज्यादा-से-ज्यादा अवसर मिलें |"

-श्री दिग्विजय सिंह,

तत्कालीन मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश

 

इतनी मधुर वाणी! इतना अदभुत ज्ञान!

 

"मैं अपनी ओर से तथा यहां उपस्थित सभी महानुभावों की ओर से परम श्रद्धेय संतशिरोमणि बापूजी का हार्दिक स्वागत करता हूं | मैंने कई बार टी. वी. पर आपको देखा-सुना है और दिल्ली में एक बार आपका प्रवचन भी सुना है | इतनी मधुर वाणी! इतना अदभुत ज्ञान ! अगर आप के प्रवचन पर गहराई से विचार करके अमल किया जाय तो इंसान को ज़िंदगी में सही रास्ता मिल सकता है | वे लोग धनभागी हैं जो इस युग में ऐसे महापुरुष के दर्शन व सत्संग से अपने जीवन-सुमन खिलाते हैं |"

-श्री भजनलाल,

तत्कालीन मुख्य मंत्री, हरियाणा

 

ऐसे संतों का तो जितना आदर किया जाय, कम है

 

"किसी ने मुझ से कहा था: 'ध्यान की कैसेट लगाकर सोयेंगे तो स्वप्न में गुरुदेव के दर्शन होंगें... मैंने उसी रात ध्यान की कैसेट लगायी और सुनते-सुनते सो गया | उस वक्त रात्रि के बारह-साढ़े बारह बजें होंगें | वक्त का पता नहीं चला | ऐसा लगा मानो, किसी ने मुझे उठा दिया | मैं गहरी नींद से उठा एवं गुरुजी की लैंप वाले फ़ोटो की तरफ़ टकटकी लगाकर एक-दो मिनट तक देखता रहा | इतने में आश्चर्य ! टेप अपने-आप चल पड़ी और केवल यह तीन वाक्य सुनने को मिले: 'आत्मा चैतन्य है | शरीर जड़ है | शरीर पर अभिमान मत करो |' टेप स्वतः बंद हो गयी और पूरे कमरे में यह आवाज गूंज उठी | दूसरे कमरे में मेरी पत्नी की भी आंखे खुल गयी और उसने तो यहां तक महसूस किया, जैसे कोई चल रहा है ! वे गुरुजी के सिवाय और कोई हो ही नहीं सकते | मैंने कमरे की लाइट जलायी और दौड़ता हुआ पत्नी के पास गया | मैंने पूछा:'सुना ?' वह बोली: 'हां |' उस समय सुबह के ठीक चार बजे थे | स्नान करके मैं ध्यान में बैठा तो डेढ़ घण्टे तक बैठा रहा | इतना लंबा ध्यान तो मेरा कभी नहीं लगा | इस घटना के बाद तो ऐसा लगता है कि गुरुजी साक्षात ब्रह्मस्वरुप हैं | उनको जो जिस रुप में देखता है वैसे ही दिखते हैं |

 

मेरा मित्र पाश्चात्य विचारधारा वाला है | उसने गुरुजी का प्रवचन सुना और बोला: 'मुझे तो ये एक बहुत अच्छे 'लेक्चरर' लगते है |' मैंने कहा: 'आज जरुर इस पर गुरुजी कुछ कहेंगें |' यह सूरत आश्रम में मनायी जा रही जन्माष्टमी के समय की बात है | हम कथा में बैठे | गुरुजी ने कथा के बीच में कहा:'कुछ लोगों को मैं 'लेक्चरर' दिखता हूं, कुछ को 'प्रोफ़ेसर' दिखता हूं, कुछ को 'गुरु' दिखता हूं, कुछ को 'भगवान' दिखता हूं...जो मेरे पर जैसी श्रद्धा रखता है उसे मैं वैसा ही दिखता हूं और वैसा ही वह मुझे पाता है |' मेरे मित्र का सिर शर्म से झुक गया | फिर भी वह नास्तिक तो था ही | उसने हमारे निवास पर मजाक में गुरुजी के लिए कुछ कहा, तब मैंने कहा | 'यह ठीक नहीं है | अब की बार मान जा, नहीं तो गुरुजी सजा देगें तुझे |' १५ मिनट में ही उसके घर से फ़ोन आ गया कि 'बच्चे की तबियत बहुत खराब है | उसे अस्पताल में दाखिल करना पड़ रहा है |" तब मेरे मित्र की सूरत देखने लायक थी | वह बोला:"गलती हो गयी | अब मैं गुरुजी के लिए कुछ न कहूंगा, मुझे चाहे विश्वास हो या न हो |" अखबारों में गुरुजी की निंदा लिखनेवाले अज्ञानी लोग नहीं जानते कि जो महापुरुष भारतीय संस्कृति को एक नया रुप दे रहें हैं, कई संतों की वाणियों को पुनर्जीवित कर रहे हैं, लोगो के शराब-कबाब छुड़वा रहे हैं, जिनसे समाज का कल्याण हो रहा है उनके ही बारे में हम हल्की बातें लिख रहे हैं | यह हमारे देश के लिए बहुत ही शर्मनाक बात हैं | ऐसे संतों का तो जितना आदर किया जाय, वह कम है | गुरुजी के बारे में कुछ भी बखान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं |"

-डा. सतवीर सिंह छाबड़ा,

बी.बी.ई.एम., आकाशवाणी, इन्दौर

 

आपकी कृपा से योग की अणुशक्ति पैदा हो रही है

 

"अनेक प्रकार की विकृतियाँ मानव के मन पर, सामाजिक जीवन पर, संस्कार और संस्कृति पर आक्रमण कर रही हैं | वस्तुतः इस समय संस्कृति और विकृति के बीच एक महासंघर्ष चल रहा है जो किसी सरहद के लिए नहीं बल्कि संस्कारों के लिए लड़ा जा रहा है | इस में संस्कृति को जिताने का बम है योगशक्ति | हे गुरुदेव ! आपकी कृपा से इस योग की दिव्य अणुशक्ति लाखों लोगो में पैदा हो रही है...यह संस्कृति के सैनिक बन रहे हैं | गुरुदेव ! मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि शासन के अंदर भी धर्म और वैराग्य के संस्कार उत्पन्न हों | आप से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मैं आपके चरणों में आया हूं |

-श्री अशोकभाई भट्ट,

कानूनमंत्री, गुजरात राज्य

 

मुझे निर्व्यसनी बना दिया...

 

"मैं पिछले कई वर्षों से तम्बाकू का व्यसनी था और इस दुर्गुण को छोड़ने के लिए मैंने कितने ही प्रयत्न किये, पर मैं निष्फल रहा | जनवरी ९५ में पूज्य बापू जब प्रकाशा आश्रम (महा.) पधारे तो मैं भी उनके दर्शनार्थ वहां पहुंचा और उनसे अनुरोध किया: 'बापू! विगत ३२ वर्षों से तम्बाकू का सेवन कर रहा हूँ | अनेक प्रयत्नों के बाद भी इस दुर्गुण से मैं मुक्त ना हो सका | अब आप ही कुछ कृपा कीजिए |' बापूजी ने कहा: 'लाओ तम्बाकू की डिब्बी और तीन बार थूककर कहो कि आज से मैं तम्बाकू नहीं खाऊंगा |' मैंने पूज्य बापू के निर्देशानुसार यही किया और महान आश्चर्य ! उसी दिन से मेरा तम्बाकू खाने का व्यसन छूट गया | पूज्य बापू की ऐसी कृपा दृष्ति हुयी कि वर्ष पूरा होने पर भी मुझे कभी तम्बाकू खाने की तलब तक नहीं लगी | मैं किन शब्दों में पूज्य बापू का आभार व्यक्त करुं ! मेरे पास शब्द ही नहीं हैं | मुझे आनंद है कि इन राष्ट्र संत ने बरबाद व नष्ट होते हुए मेरे जीवन को बचा कर मुझे निव्यर्सनी बना दिया |"

-श्री लखन भटवाल,

जि. धुलिया, महाराष्ट्र

 

बापूजी के सत्संग से विश्व भर के लोग लाभान्वित...

 

भारतभूमि सदैव से ही ॠषि-मुनियों तथा संत-महात्माओं की भूमि रही है, जिन्होंने विश्व को शांति एवं आध्यात्म का संदेश दिया है | आज के युग में पूज्य संत श्री आसारामजी अपनी अमृत वाणी द्वारा दिव्य आध्यात्मिक संदेश दे रहे हैं, जिससे न केवल भारत वरन विश्व भर में लोग लाभान्वित हो रहें है |

-श्री सुरजीत सिंह बरनाला,

राज्यपाल, आन्ध्र प्रदेश

 

ज्ञानरूपी गंगाजी स्वयं बहकर यहाँ आ गयी...

 

उत्तरांचल राज्य का सौभाग्य है कि इस देवभूमी में देवता स्वरुप पूज्य बापूजी का आश्रम बन रहा है | आप ऐसा आश्रम बनाये जैसा कहीं भी न हो | यह हम लोगों का सौभाग्य है कि अब पूज्य बापूजी की ज्ञानरूपी गंगाजी स्वयं बहकर यहां आ गयी है | अब गंगा जाकर दर्शन करने व स्नान करने की उतनी आवश्यकता नहीं है, जितनी संत श्री आसारामजी बापू के चरणों में बैठकर उनके आशीर्वाद लेने की है |

-श्री नित्यानंद स्वामीजी,

तत्कालीन, मुख्यमंत्री, उत्तरांचल

 

गुरुजी की तस्वीर ने प्राण बचा लिये

 

"कुछ ही दिनों पहले मेरा दूसरा बेटा एम. ए. पास करके नौकरी के लिये बहुत जगह घूमा, बहुत जगह आवेदन-पत्र भेजा किन्तु उसे नौकरी नहीं मिली | फिर उसने बापूजी से दीक्षा ली | मैंने आश्रम का कुछ सामान कैसेट, सतसाहित्य लाकर उसको देते हुए कहा: 'शहर में जहाँ मंदिर है, जहाँ मेले लगते हैं तथा जहाँ हनुमानजी का प्रसिद्ध दक्षिणमुखी मंदिर है वहां स्टाल लगाओ |' बेटे ने स्टाल लगाना शुरु किया | ऐसे ही एक स्टाल पर जलगांव के एक प्रसिद्ध व्यापारी अग्रवालजी आये, बापूजी की कुछ कैसेट खरीदीं और 'ईश्वर की ओर' नामक पुस्तक भी साथ में ले गये, पुस्तक पढ़ी और कैसेट सुनी | दूसरे दिन वे फिर आये और कुछ सतसाहित्य खरीद कर ले गये, वे पान के थोक विक्रता हैं | उनको पान खाने की आदत है | पुस्तक पढ़कर उन्हें लगा: 'मैं पान छोड़ दूँ |' उनकी दुकान पर एक आदमी आया | पांचसौ रुपयों का सामान खरीदा और उनका फोन नम्बर ले गया | एक घंटे के बाद उसने दुकान पर फोन किया: 'सेठ अग्रवालजी ! मुझे आपका खून करने का काम सौंपा गया था | काफी पैसे (सुपारी) भी दिये गये थे और मैं तैयार भी हो गया था, पर जब में आपकी दुकान पर पहुंचा तो परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापू के चित्र पर मेरी नजर पड़ी | मुझे ऐसा लगा मानो, साक्षात बापू बैठे हों और मुझे नेक इन्सान बनने की प्रेरणा दे रहे हों ! गुरुजी की तस्वीर ने (तस्वीर के रुप में साक्षात गुरुदेव ने आकर) आपके प्राण बचा लिये |' अदभुत चमत्कार है ! मुम्बई की पार्टी ने उसको पैसे भी दिये थे और वह आया भी था खून करने के इरादे से, परन्तु जाको राखे सांइयाँ.... चित्र के द्वार भी अपनी कृपा बरसाने वाले ऐसे गुरुदेव के प्रत्यक्ष दर्शन करने के लिये वह यहाँ भी आया है |"

-बालकृष्ण अग्रवाल,

जलगांव, महाराष्ट्र

 

सदगुरू शिष्य का साथ कभी नहीं छोड़ते

 

"एक रात मैं दुकान से स्कूटर द्वारा अपने घर जा रहा था | स्कूटर की डिक्की में काफी रूपये रखे हुए थे | ज्यों ही घर के पास पहुंचा तो गली में तीन बदमाश मिले | उन्होंने मुझे घेर लिया और पिस्तौल दिखायी | स्कूटर रूकवाकर मेरे सिर पर तमंचे का बट मार दिया और धक्के मार कर मुझे एक तरफ गिरा दिया | उन्होंने सोचा होगा कि मैं अकेला हूं, पर शिष्य जब सदगुरू से मंत्र लेता है, श्रद्धा-विश्वास रखकर उसका जप करता है तब सदगुरू उसका साथ नहीं छोड़ते | मैंने सोचा "डिक्की में बहुत रूपये हैं और ये बदमाश तो स्कूटर ले जा रहे हैं | मैंने गुरूदेव से प्रार्थना की | इतने में वे तीनों बदमाश स्कूटर छोड़कर थैला ले भागे | घर जाकर खोला होगा तो सब्जी और खाली टिफ़िन देखकर सिर कूटा, पता नहीं पर बड़ा मजा आया होगा | मेरे पैसे बच गये...उनका सब्जी का खर्च बच गया |"

-गोकुलचन्द्र गोयल,

आगरा

 

गुरूकृपा से अंधापन दूर हुआ

 

"मुझे ग्लुकोमा हो गया था | लगभग पैंतीस साल से यह तकलीफ़ थी | करीब छः साल तक तो मैं अंधा रहा | कोलकाता, चेन्नई आदि सब जगहों पर गया, शंकर नेत्रालय में भी गया किन्तु वहां भी निराशा हाथ लगी | कोलकाता के सबसे बड़े नेत्र-विशेषज्ञ के पास गया | उसने भी मना कर दिया और कहा | 'धरती पर ऐसा कोई इन्सान नहीं जो तुम्हें ठीक कर सके |' ...लेकिन सूरत आश्रम में मुझे गुरूदेव से मंत्र मिला | वह मंत्र मैंने खूब  श्रद्धा-विश्वासपूर्वक जपा क्योंकि सक्षात ब्रह्मस्वरूप गुरूदेव से वह मंत्र मिला था | करीब छः-सात महीने ही जप हुआ था कि मुझे थोड़ा-थोड़ा दिखायी देने लगा | डॉक्टर कहते थे कि तुमको भ्रांति हो गयी है, पर मुझे तो अब भी अच्छी तरह दिखता है | एक बार एक अन्य भंयकर दुर्घटना से भी गुरूदेव ने मुझे बचाया था | ऐसे गुरूदेव का ॠण हम जन्मों-जन्मों तक नहीं चुका सकते |"

-शंकरलाल महेश्वरी,

कोलकाता

 

और डकैत घबराकर भाग गये

 

"१४ जुलाई '९९ को करीब साढ़े तीन बजे मेरे मकान में छः डकैत घुस आये और उस समय दुर्भाग्य से बाहर का दरवाजा खुला हुआ था | दो डकैत बाहर मारूति चालू रखकर खड़े थे | एक डकैत ने धक्का देकर मेरी माँ का मुँह बंद कर दिया और अलमारी की चाबी माँगने लगा | इस घटना के दौरान मैं दुकान पर था | मेरी पत्नी को भी डकैत धमकाने लगे और आवाज न करने को कहा | मेरी पत्नी ने पूज्य बापूजी के चित्र के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना की  'अब आप ही रक्षा करो ...'  इतना ही कहा तो आश्चर्य ! आश्चर्य ! परम आश्चर्य !! वे सब डकैत घबराकर भागने लगे | उनकी हड़बड़ाहट देखकर ऐसा लग रहा था मानों उन्हें कुछ दिखायी नहीं दे रहा था | वे भाग गये | मेरा परिवार गुरुदेव का ॠणी है | बापूजी के आशीर्वाद से सब सकुशल हैं | हमने १५ नवम्बर '९८ को वाराणसी में मंत्रदीक्षा ली थी |"

-मनोहरलाल तलरेजा,

, झुलेलाल नगर, शिवाजी नगर,

वाराणसी

 

मंत्र द्वारा मृतदेह में प्राण-संचार

 

"मैं श्री योग वेदान्त सेवा समिति, आमेट से जीप द्वारा रवाना हुआ था | ११ जुलाई १९९४ को मध्यान्ह बारह बजे हमारी जीप किसी तकनीकी त्रुटि के कारण नियंत्रण से बाहर होकर तीन पल्टियाँ खा गयी | मेरा पूरा शरीर जीप के नीचे दब गया | किसी तरह मुझे बाहर निकाला गया | एक तो दुबला पतला शरीर और ऊपर से पूरी जीप का वजन ऊपर आ जाने के कारण मेरे शरीर के प्रत्येक हिस्से में असह्य दर्द होने लगा | मुझे पहले तो केसरियाजी अस्पताल में दाखिल कराया गया | ज्यों-ज्यों उपचार किया गया, कष्ट बढ़ता ही गया क्योंकि चोट बाहर नहीं, शरीर के भीतरी हिस्सों में लगी थी और भीतर तक डॉक्टरों का कोई उपचार काम नहीं कर रहा था | जीप के नीचे दबने से मेरा सीना व पेट विशेष प्रभावित हुए थे और हाथ-पैर में काँच के टुकड़े घुस गये थे | दर्द के मारे मुझे साँस लेने में भी तकलीफ हो रही थी | ऑक्सीजन दिये जाने के बाद भी दम घुट रहा था और मृत्यु की घडियाँ नजदीक दिखायी पड़ने लगीं | मैं मरणासन्न स्थिति में पहुँच गया | मेरा मृत्यु-प्रमाणपत्र बनाने की तैयारियाँ कि जाने लगीं व मुझे घर ले जाने को कहा गया | इसके पूर्व मेरा मित्र पूज्य बापू से फ़ोन पर मेरी स्थिति के सम्बन्ध में बात कर चुका था | प्राणीमात्र के परम हितैषी, दयालु स्वभाव के संत पूज्य बापू ने उसे एक गुप्त मंत्र प्रदान करते हुए कहा था कि 'पानी में निहारते हुए इस मंत्र का एक सौ आठ बार (एक माला) जप करके वह पानी मनोज को एवं दुर्घटना में घायल अन्य लोगों को भी पिला देना |' जैसे ही वह अभिमंत्रित जल मेरे मुँह में डाला गया, मेरे शरीर में हलचल होने के साथ ही वमन हुआ | इस अदभुत चमत्कार से विस्मित होकर डॉक्टरों ने मुझे तुरंत ही विशेष मशीनों के नीचे ले जाकर लिटाया | गहन चिकित्सकीय परीक्षण के बाद डॉक्टरों को पता चला कि जीप के नीचे दबने से मेरा पूरा खून काला पड़ गया था तथा नाड़ी-चालन (पल्स), हृदयगति व रक्त प्रवाह भी बंद हो चुके थे | मेरे शरीर का सम्पूर्ण रक्त बदल दिया गया तथा आपरेशन भी हुआ | उसके ७२ घंटे बाद मुझे होश आया | बेहोशी में मुझे केवल इतना ही याद था की मेरे भीतर पूज्य बापू द्वारा प्रदत्त गुरूमंत्र का जप चल रहा है | होश में आने पर डॉक्टरों ने पूछा : 'तुम आपरेशन के समय 'बापू...बापू...' पुकार रहे थे | ये 'बापू' कौन हैं ? मैंने बताया :'वे मेरे गुरूदेव प्रातः स्मरणीय परम पूज्य संत श्री असारामजी बापू हैं |' डॉक्टरों ने पुनः मुझसे प्रश्न किया : 'क्या तुम कोई व्यायाम करते हो ?' मैंने कहा :'मैं अपने गुरूदेव द्वारा सिखायी गयी विधि से आसन व प्राणायाम करता हूँ |' वे बोले : 'इसीलिये तुम्हारे इस दुबले-पतले शरीर ने यह सब सहन कर लिया और तुम मरकर भी पुनः जिन्दा हो उठे दूसरा कोई होता तो तुरंत घटनास्थल पर ही उसकी हड्डियाँ बाहर निकल जातीं और वह मर जाता |' मेरे शरीर में आठ-आठ नलियाँ लगी हुई थीं | किसीसे खून चढ़ रहा था तो किसी से कृत्रिम ऑक्सीजन दिया जा रहा था | यद्यपि मेरे शरीर के कुछ हिस्सों में अभी-भी काँच के टुकड़े मौजूद हैं लेकिन गुरूकृपा से आज में पूर्ण स्वस्थ होकर अपना व्यवसाय व गुरूसेवा दोनों कार्य कर रह हूँ | मेरा जीवन तो गुरूदेव का ही दिया हुआ है | इन मंत्रदृष्टा महर्षि ने उस दिन मेरे मित्र को मंत्र न दिया होता तो मेरा पुनर्जीवन तो सम्भव नहीं था | पूज्य बापू मानव-देह में दिखते हुए भी अति असाधारण महापुरूष हैं | टेलिफ़ोन पर दिये हुए उनके एक मंत्र से ही मेरे मृत शरीर में पुनः प्राणों का संचार हो गया तो जिन पर बापू की प्रत्यक्ष दृष्टि पड़ती होगी वे लोग कितने भाग्यशाली होते होंगे ! ऐसे दयालु जीवनदाता सदगुरू के श्रीचरणों में कोटि-कोटि दंडवत प्रणाम..."

-मनोज कुमार सोनी,

ज्योति टेलर्स, लक्ष्मी बाजार, आमेट, राजस्थान

 

सदगुरूदेव की कृपा से नेत्रज्योति वापस मिली

 

"मेरी दाहिनी आँख से कम दिखायी देता था तथा उसमें तकलीफ़ भी थी | ध्यानयोग शिविर, दिल्ली में पूज्य गुरूदेव मेवा बाँट रहे थे, तब एक मेवा मेरी दाहिनी आँख पर आ लगा | आँख से पानी निकलने लगा |... पर आश्चर्य ! दूसरे ही दिन से आँख की तकलीफ मिट गयी और अच्छी तरह दिखायी देने लगा |"

-राजकली देवी,

असैनापुर, लालगंज अजारा, जि. प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश

 

बड़दादा की मिट्टी व जल से जीवनदान

 

"अगस्त '९८ में मुझे मलेरिया हुआ | उसके बाद पीलिया हो गया | मेरे बड़े भाई ने आश्रम से प्रकाशित 'आरोग्यनिधि' पुस्तक में से पीलिया का मंत्र पढ़कर पीलिया तो उतार दिया परंतु कुछ ही दिनों बाद अंग्रेजी दवाओं के 'रिएक्षन' से दोनो किडनियाँ 'फेल' (निष्क्रिय) हो गईं | मेरा 'हार्ट' (हृदय) और 'लीवर' (यकृत) भी 'फेल' होने लगे | डॉक्टरों ने तो कह दिया 'यह लड़का बच नहीं सकता |' फिर मुझे गोंदिया से नागपुर हॉस्पिटल में ले जाया गया लेकिन वहाँ भी डॉक्टरों ने जवाब दे दिया कि अब कुछ नहीं हो सकता | मेरे भाई मुझे वहीं छोड़कर सूरत आश्रम आये, वैद्यजी से मिले और बड़दादा की परिक्रमा करके प्रार्थना की तथा वहाँ की मिट्टी और जल लिया | ८ तारीख को डॉक्टर मेरी किडनी बदलने वाले थे | जब मेरे भाई बड़दादा को प्रार्थना कर रहे थे, तभी से मुझे आराम मिलना शुरू हो गया था | भाई ने ७ तारीख को आकर मुझे बड़दादा कि मिट्टी लगाई और जल पिलाया तो मेरी दोनों किडनीयाँ स्वस्थ हो गयी | मुझे जीवनदान मिल गया | अब मैं बिल्कुल स्वस्थ हूँ |"

-प्रवीण पटेल,

गोंदिया, महाराष्ट्र

 

पूज्य बापू ने फेंका कृपा-प्रसाद

 

"कुछ वर्ष पूर्व पूज्य बापू राजकोट आश्रम में पधारे थे | मुझे उन दिनों निकट से दर्शन करने का सौभाग्य मिला | उस समय मुझे छाती में ' एन्जायना पेक्त्टोरिस' के कारण दर्द रहता था | सत्संग पूरा होने के बाद कुछ लोग पूज्य बापू के पास एक-एक करके जा रहे थे | मैं कुछ फल-फूल नहीं लाया था इसलिए श्रद्धा के फूल लिये बैठा था | पूज्य बापू कृपा-प्रसाद फेंक रहे थे कि इतने मैं एक चीकू मेरी छाती पर आ लगा और छाती का वह दर्द हमेशा के लिए मिट गया |"

-अरविंदभाई वसावड़ा,

राजकोट

 

एक छोटी थैली बनी अक्षयपात्र

 

"सन १९९२ में रतलाम (म.प्र.) के पास सैलाना के आदिवासी विस्तार में भंडारे का आयोजन था | भंडारे में सेवाएँ देने बहुत-से साधक आये हुए थे | आश्रमवासी भाई भी पहुँचे थे | एक दिन का ही आयोजन था और सत्संग-कार्यक्रम भी था | उस भंडारे में गरीबों के लिए भोजन के अलावा बर्तन, कपड़े, अनाज और दक्षिणा (पैसे) बाँटने की भी व्यवस्था की गयी थी | मेरे हिस्से पैसे बाँटने की सेवा थी | मैंने पाँच रूपयोंवाले सौ-सौ नोटों के पचीस बंडल गिनकर थैली में रखे थे | मुझे आदेश दिया गया था : 'आठ सेवाधारी नियुक्त कर लो | वे लोग पाँच रूपये के नोट बाँटते जायेंगे |' मैंने आठ स्वयंसेवकों को पहली बार आठ बंडल दे दिये | फिर पंद्रह-बीस मिनट के बाद मैंने दूसरी बार आठों को एक-एक बंडल दिया | फिर तीसरी बार आठों को एक-एक बंडल दिया | कुल २४ बंडल गये | अब दूसरी पंक्ति भोजन के लिए बिठायी गयी | मैंने आठों स्वयंसेवकों को पहली की भाँति तीन बार एक-एक बंडल बाँटने के लिए दिया | कुल ४८ बंडल गये | भंडारा पूरा होने के बाद मैंने सोचा : चलो, अब हिसाब कर ले | मैं गिनने बैठा | मेरे पास ६ बंडल बचे थे | यह कैसे ? मैं दंग रह गया ! मैंने पैसे बाँटनेवालों से पूछा तो उन्होंने बताया कि कुल ४८ बंडल बाँटे गये थे | मैं आश्रम आया तो व्यवस्थापक ने कहा : मैंने तो आपको २५ बंडल दिये थे |' सबको आश्चर्य हो रहा था कि बँटे ४८ बंडल और लेकर चले थे २५ बंडल | २५ में से ४८ बँटे और ६ बच गये ! गुरूदेव का आशीर्वाद देखिये कि एक छोटी-सी थैली अक्षय पात्र बन गयी !"

-ईश्वरभाई नायक,

अमदावाद आश्रम

 

बेटी ने मनौती मानी और गुरुकृपा हुई

 

"मेरी बेटी को शादी किये आठ साल हो गये थे | पहली बार जब वह गर्भवती हुई तब बच्चा पेट में ही मर गया | दूसरी बार बच्ची जन्मी, पर छः महीने में वह भी चल बसी | फिर मेरी पत्नी ने बेटी से कहा : 'अगर तू संकल्प करे कि जब तीसरी बार प्रसूती होगी तब तुम बालक की जीभ पर बापूजी के बताने के मुताबिक लिखोगी तो तेरा बालक जीवित रहेगा, ऐसा मुझे विश्वास है क्योंकि ॐकार मंत्र में परमानंदस्वरूप प्रभु विराजमान हैं |' मेरी बेटी ने इस प्रकार मनौती मानी और समय पाकर वह गर्भवती हुई | सोनोग्राफ़ी करवायी गयी तो डॉक्टरों ने बताया : 'गर्भ में बच्ची है और उसके दिमाग में पानी भरा हुआ है | वह जिंदा नहीं रह सकेगी | गर्भपात करवा दो | मेरी बेटी ने अपनी माँ से सलाह की | उसकी माँ ने कहा : ' गर्भपात का महापाप नहीं करवाना है | जो होगा, देखा जायेगा | गुरुदेव कृपा करेंगे |' जब प्रसूती हुई तो बिल्कुल प्राकृतिक ढ़ंग से हुई और उस बच्ची की जीभ पर शहद एवं मिश्री से ॐ लिखा गया | आज वह बिल्कुल ठीक है | जब उसकी डॉक्टरी जाँच करवायी गयी तो डॉक्टर आश्चर्य में पड़ गये ! सोनोग्राफ़ी में जो बीमारियाँ दिख रही थीं वे कहाँ चली गयीं ? दिमाग का पानी कहाँ चला गया ? हिन्दुजा हॉस्पिटलवाले यह करिश्मा देखकर दंग रह गये ! अब घर में जब कोई दूसरी कोई कैसेट चलती है तो वह बच्ची इशारा करके कहती है : 'ॐवाली कैसेट चलाओ |' पिछली पूनम को हम मुंबई से 'टाटा सुमो' में आ रहे थे | बाढ़ के पानी के कारण रास्ता बंद था | हम सोच में पड़ गये कि पूनम का नियम टूटेगा | हमने गुरूदेव का स्मरण किया | इतने में हमारे ड्राइवर ने हमसे पूछा :'जाने दूँ ?' हमने भी गुरूदेव का स्मरण करके कहा : 'जाने दो और 'हरि हरि ॐ...' कीर्तन की कैसेट लगा दो |' गाड़ी आगे चली | इतना पानी कि हम जहाँ बैठे थे वहाँ तक पानी आ गया | फिर भी हम गुरुदेव के पास सकुशल पहुँच गये और उनके दर्शन किये|"

-मुरारीलाल अग्रवाल,

सांताक्रूज, मुंबई

 

और गुरुदेव की कृपा बरसी

 

"जबसे सूरत आश्रम की स्थापना हुई तबसे मैं गुरुदेव के दर्शन करते आ रहा हूँ, उनकी अमृतवाणी सुनता आ रहा हूँ | मुझे पूज्यश्री से मंत्रदीक्षा भी मिली है | प्रारब्धवश एक दिन मेरे साथ एक भयंकर दुर्घटना घटी | डॉक्टर कहते थे: आपका एक हाथ अब काम नहीं करेगा |' मैं अपना मानसिक जप मनोबल से करता रहा | अब हाथ बिल्कुल ठीक है | उससे मैं ७० कि.ग्रा. वजन उठा सकता हूँ | मेरी समस्या थी कि शादी होने के बाद मुझे कोई संतान नहीं थी | डॉक्टर कहते थे कि संतान नहीं हो सकती | हम लोगों ने गुरुकृपा एवं गुरूमंत्र का सहारा लिया, ध्यानयोग शिविर में आये और गुरुदेव की कृपा बरसी | अब हमारी तीन संताने है: दो पुत्रियाँ और एक पुत्र | गुरूदेव ने ही बड़ी बेटी का नाम गोपी और बेटे का नाम हरिकिशन रखा है | जय हो सदगुरुदेव की..."

-हँसमुख कांतिलाल मोदी,

५७, 'अपना घर' सोसायटी, संदेर रोड़, सूरत

 

कैसेट-श्रवण से भक्ति का सागर हिलोरे लेने लगा

 

"मैं हर साल गर्मियों में कभी बद्रीनाथ तो कभी केदारनाथ तो कभी गंगोत्री आदि तीर्थों में जाता रहता था | हृषिकेश में एक दुकान के पास खड़े रहने पर मुझे पूज्य गुरूदेव की अमृतवाणी की कैसेटें 'मोक्ष का मार्ग', 'मौत की मौत', 'तीन बातें' आदि देखने-सुनने को मिलीं तो मैंने ये कैसेटें खरीद लीं | घर पहुँचकर कैसेटें सुनने के बाद हृदय में भक्ति का सागर हिलोरे लेने लगा | मुझे ऐसा लगा मानों, कोई मुझे बुला रहा हो | दुकान जाते समय ऐसा आभास हुआ कि 'कोई पर्व आनेवाला है और मुझे अमदावाद जाना होगा;' उसी दिन अमदावाद आश्रम से मेरे पत्र का जवाब आया कि 'दिनांक १२ को गुरुपूनम का पर्व है | आप गुरूदेव के दर्शन कर सकते है | हम सपरिवार आश्रम पहुँचे | दर्शन करके धन्य हुए | दीक्षा पाकर कृतार्थ हुए | अब तो हर महीने जब तक गुरूदेव के दर्शन नहीं करता, तब तक मुझे ऐसा लगता है कि मैंने कुछ खो दिया हैं | दीक्षा के बाद साधन-भजन बढ़ रहा है... भक्ति बढ़ रही है | पहले संसार में सफलता-विफलता की जो चोटें लगती थी, अब उनका प्रभाव कम हुआ है | विषय-विकारों का प्रभाव कम हुआ है | जाने जीव तब जागा हरि पद रूचि विषय विलास विरागा... मेरे जीवन में संत तुलसीदासजी के इन वचनों का सूर्योदय हो रहा है |"

-शिवकुमार तुलस्यान,

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश

गुरुदेव ने भेजा अक्षयपात्र

 

"हमें प्रचारयात्रा के दौरान गुरुकृपा का जो अदभुत अनुभव हुआ वह अवर्णनीय है | यात्रा की शुरूआत से पहले दिनांक : ८-११-९९ को हम पूज्य गुरूदेव के आशीर्वाद लेने गये | गुरूदेव ने कार्यक्रम के विषय में पूछा और कहा "पंचेड़ आश्रम (रतलाम) में भंडारा था | उसमें बहुत सामान बच गया है | गाड़ी भेजकर मँगवा लेना... गरीबों में बाँटना | हम झाबुआ जिले के आस-पास के गरीब आदिवासी इलाकों में जानेवाले थे | वहाँ से रतलाम के लिए गाड़ी भेजी | गिनकर सामान भरा गया | दो दिन चले उतना सामान था | एक दिन में दो भंडारे होते थे | अतः चार भंडारे का सामान था | सबने खुल्ले हाथों बर्तन, कपड़े, साड़ियाँ धोती, आदि सामान छः दिनों तक बाँटा फिर भी सामान बचा रहा | सबको आश्चर्य हुआ ! हम लोग सामान फिर से गिनने लगे परंतु गुरूदेव की लीला के विषय में क्या कहें ? केवल दो दिन चले उतना सामान छः दिनों तक खुल्ले हाथों बाँटा, फिर भी अंत में तीन बोरे बर्तन बच गये, मानों गुरूदेव ने अक्षयपात्र भेजा हो ! एक दिन शाम को भंडारा पूरा हुआ तब देखा कि एक पतीला चावल बच गया है | करीब १००-१२५ लोग खा सके उतने चावल थे | हमने सोचा : 'चावल गाँव में बांट देते है |'... परंतु गुरूदेव की लीला देखो ! एक गाँव के बदले पाँच गाँवों में बाँटे फिर भी चावल बचे रहे | आखिर रात्रि में ९ बजे के बाद सेवाधारियों ने थककर गुरूदेव से प्रार्थना की कि 'गुरुदेव ! अब जंगल का विस्तार है... हम पर कृपा करो |'... और चावल खत्म हुए | फिर सेवाधारी निवास पर पहुँचे |"

-संत श्री आसारामजी भक्तमंडल,

कतारगाम, सूरत

 

स्वप्न में दिये हुए वरदान से पुत्रप्राप्ति

 

"मेरे ग्रहस्थ जीवन में एक-एक करके तीन कन्याएँ जन्मी | पुत्रप्राप्ति के लिए मेरी धर्मपत्नी ने गुरूदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था | चौथी प्रसूति होने के पहले जब उसने वलसाड़ में सोनोग्राफ़ी करवायी तो रिपोर्ट में लड़की बताया गया | यह सुनकर हम निराश हो गये | एक रात पत्नी को स्वप्न में गुरूदेव ने दर्शन दिये और कहा : 'बेटी चिंता मत कर | घबराना मत धीरज रख | लड़का ही होगा |' हमने सूरत आश्रम में बड़दादा की परिक्रमा करके मनौती मानी थी, वह भी फ़लीभूत हुई और गुरूदेव का ब्रह्मवाक्य भी सत्य साबित हुआ, जब प्रसूति होने पर लड़का हुआ | सभी गुरूदेव की जय-जयकार करने लगे |"

-सुनील कुमार राधेश्याम चौरसिया,

दीपकवाड़ी, किल्ला पारड़ी, जि. वलसाड़

 

'श्री आसारामायण' के पाठ से जीवनदान

 

"मेरा दस वर्षीय पुत्र एक रात अचानक बीमार हो गया | साँस भी मुश्किल से ले रहा था | जब उसे हॉस्पिटल में भर्ती किया तब डॉक्टर बोले | 'बच्चा गंभीर हालत में है | ऑपरेशन करना पड़ेगा |' मैं बच्चे को हॉस्पिटल में ही छोड़कर पैसे लेने के लिए घर गया और घर में सभी को कहा : आप लोग 'श्री आसारामायण' का पाठ शुरू करो |” पाठ होने लगा | थोड़ी देर बाद मैं हॉस्पिटल पहुँचा | वहाँ देखा तो बच्चा हँस-खेल रहा था | यह देख मेरी और घरवालों की खुशी का ठिकाना न रहा ! यह सब बापूजी की असीम कृपा, गुरू-गोविन्द की कृपा और श्री आसारामायण-पाठ का फल है |"

-सुनील चांडक,

अमरावती, महाराष्ट्र

 

गुरूवाणी पर विश्वास से अवर्णीय लाभ

 

"शादी होने पर एक पुत्री के बाद सात साल तक कोई संतान नहीं हुई | हमारे मन में पुत्रप्राप्ति की इच्छा थी | १९९९ के शिविर में हम संतानप्राप्ति का आशीर्वाद लेनेवालों की पंक्ति में बैठे | बापूजी आशीर्वाद देने के लिए साधकों के बीच आये तो कुछ साधक नासमझी से कुछ ऐसे प्रश्न कर बैठे, जो उन्हें नहीं करने चाहिए थे | गुरूदेव नाराज होकर यह कहकर चले गये कि 'तुमको संतवाणी पर विश्वास नहीं है तो तुम लोग यहाँ क्यों आये ? तुम्हें डॉक्टर के पास जाना चाहिए था |' फिर गुरूदेव हमारे पास नहीं आये | सभी प्रार्थना करते रहे, पर गुरूदेव व्यासपीठ से बोले : 'दुबारा तीन शिविर भरना |' मैं मन में सोच रहा था कि कुछ साधकों के कारण मुझे आशीर्वाद नहीं मिल पाया परंतु 'वज्रादपि कठोराणि मृदुनि कुसुमादपि...' बाहर से वज्र से भी कठोर दिखने वाले सदगुरू भीतर से फूल से भी कोमल होते हैं | तुरंत गुरूदेव विनोद करते हुए बोले : 'देखो ! ये लोग संतानप्राप्ति का आशीर्वाद लेने आये हैं | कैसे ठनठनपाल-से बैठे हैं ! अब जाओ... झूला-झुनझुना लेकर घर जाओ |' मैंने और मेरी पत्नी ने आपस में विचार किया : 'दयालु गुरूदेव ने आखिर आशीर्वाद दे ही दिया | अब गुरूदेव ने कहा है कि झूला-झुनझुना ले जाओ |' ... तो मैंने गुरूवचन मानकर रेलवे स्टेशन से एक झुनझुना खरीद लिया और ग्वालियर आकर गुरूदेव के चित्र के पास रख दिया | मुझे वहाँ से आने के १५ दिन बाद डॉक्टर द्वारा मालूम हुआ कि पत्नी गर्भवती है | मैंने गुरूदेव को मन-ही-मन प्रणाम किया | इस बीच डॉक्टरों ने सलाह दी कि 'लड़का है या लड़की, इसकी जाँच करा लो |' मैंने बड़े विश्वास से कहा कि 'लड़का ही होगा | अगर लड़की भी हुई तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है | मुझे गर्भपात का पाप अपने सिर पर नहीं लेना है |' नौ माह तक मेरी पत्नी भी स्वस्थ रही | हरिद्वार शिविर में भी हम लोग गये | समय आने पर गुरूदेव द्वारा बताये गये इलाज के मुताबिक गाय के गोबर का रस पत्नी को दिया और दिनांक २७ अक्तूबर १९९९ को एक स्वस्थ बालक का जन्म हुआ |"

-राजेन्द्र कुमार वाजपेयी, अर्चना वाजपेयी,

बलवंत नगर, ढाढीपुर, मुरारा, ग्वालियर

 

और सोना मिल गया

 

"हमारे संयुक्त परिवार में साठ तोला सोना चोरी हो गया था | सत्संगी होने के कारण हमें दुःख तो नहीं हुआ फिर भी थोडी-बहुत चिन्ता अवश्य हुई | आश्रम के एक साधक ने हमसे कहा | 'आप लोग 'श्री आसारामायण ' के १०८ पाठ करो और संकल्प करो कि हमारा सोना हमें जरूर मिलेगा |' यमुनापार, दिल्ली में गुरूदेव का आगमन हुआ | हम शाम को गुरूदेव के दर्शन करने गये | हमने कुछ कहा नहीं क्योंकि गुरूदेव अंतर्यामी हैं | उन्होंने हमको प्रसाद दिया | उसी रात घर पर फोन आया कि 'आपका सोना मिल गया है | चोर लखनऊ में पकड़ा गया है |' हमें आश्चर्य हुआ ! 'श्री आसारामायण' के १०८ पाठ पूरे भी नहीं हुए थे और सोना मिल गया |'

-लीना बुटानी,

रानीबाग, दिल्ली

 

सेवफल के दो टुकड़ों से दो संतानें

 

"मैंने सन १९९१ में चेटीचंड शिविर, अमदावाद में पूज्य बापूजी से मंत्रदीक्षा ली थी | मेरी शादी के १० वर्ष तक मुखे कोई संतान नहीं हुई | बहुत इलाज करवाये लेकिन सभी डॉक्टरों ने बताया कि बालक होने की कोई संभावना नहीं है | तब मैंने पूज्य बापूजी के पूनम दर्शन का व्रत लिया और बाँसवाड़ा में पूनम दर्शन के लिए गया | पूज्य बापूजी सबको प्रसाद दे रहे थे | मैंने मन में सोचा | 'क्या मैं इतना पापी हूँ कि बापूजी मेरी तरफ देखते तक नहीं ?' इतने में पूज्य बापूजी कि दृष्टि मुझ पर पड़ी और उन्होंने मुझे दो मिनट तक देखा | फिर उन्होंने एक सेवफल लेकर मुझ पर फेंका जो मेरे दायें कंधे पर लगकर दो टुकड़ों में बँट गया | घर जाकर मैंने उस सेवफल के दोनों भाग अपनी पत्नी को खिला दिये | पूज्यश्री का कृपापूर्ण प्रसाद खाने से मेरी पत्नी गर्भवती हो गयी | निरीक्षण कराने पर पता चला कि उसको दो सिर वाला बालक उत्पन्न होगा | डॉक्टरों ने बताया " 'उसका 'सिजेरियन' करना पड़ेगा अन्यथा आपकी पत्नी के बचने की सम्भावना नहीं है | 'सिजेरियन में लगभग बीस हजार रूपयों का खर्च आयेगा |' मैंने पूज्य बापूजी से प्रार्थना की "है बापूजी ! आपने ही फल दिया था | अब आप ही इस संकट का निवारण कीजिये |' फिर मैंने बड़ बादशाह के सामने भी प्रार्थना की : 'जब मैं अस्पताल पहुँचूँ तो मेरी पत्नी की प्रसूती सकुशल हो जाय... |' उसके बाद जब मैं अस्पताल पहूँचा तो मेरी पत्नी एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म दे चुकी थी | पूज्यश्री के द्वारा दिये गये फल से मुझे एक की जगह दो संतानों की प्राप्ति हुई |"

-मुकेशभाई सोलंकी,

शारदा मंदिर स्कूल के पीछे,

बावन चाल, वड़ोदरा

 

साइकिल से गुरूधाम जाने पर खराब टाँग ठीक हो गयी

 

"मेरी बाँयी टाँग घुटने से उपर पतली हो गयी थी | 'ऑल इणिडया मेडिकल इन्स्टीट्यूट, दिल्ली' में मैं छः दिन तक रहा | वहाँ जाँच के बाद बतलाया गया कि 'तुम्हारी रीढ़ की हड्डी के पास कुछ नसें मर गयी हैं जिससे यह टाँग पतली हो गयी है | यह ठीक तो हो ही नहीं सकती | हम तुम्हें विटामिन '' के कैप्सूल दे रहे हैं | तुम इन्हें खाते रहना | इससे टांग और ज्यादा पतली नहीं होगी |' मैंने एक साल तक कैप्सूल खाये | उसके बाद २२ जून, १९९७ को मुजफ़्फ़रनगर में मैंने गुरूजी से मंत्रदीक्षा ली और दवाई खाना बंद कर दी | जब एक साधक भाई राहुल गुप्ता ने कहा कि सहारनपुर से साइकिल द्वारा उत्तरायण शिविर, अमदावाद जाने का कार्यक्रम बन रहा है, तब मैंने टाँग के बारे में सोचे बिना साइकिल यात्रा में भाग लेने के लिए अपनी सहमति दे दी | जब मेरे घर पर पता चला कि मैंने साइकिल से गुरुधाम, अमदावाद जाने का विचार बनाया है, अतः तुम ११५० कि.मी. तक साइकिल नहीं चला पाओगे |' ... लेकिन मैंने कहा : 'मैं साइकिल से ही गुरुधाम जाऊँगा, चाहे कितनी भी दूरी क्यों न हो ?' ... और हम आठ साधक भाई सहारनपूर से २६ दिसम्बर '९७ को साइकिलों से रवाना हुए | मार्ग में चढ़ाई पर मुझे जब भी कोइ दिक्कत होती तो ऐसा लगता जैसे मेरी साइकिल को कोई पीछे से धकेल रहा है | मैं मुड़कर पीछे देखता तो कोई दिखायी नहीं पड़ता | ९ जनवरी को जब हम अमदावाद गुरूआश्रम में पहूँचे और मैंने सुबह अपनी टाँग देखी तो मैं दंग रह गये ! जो टाँग पतली हो गयी थी और डॉक्टरों ने उसे ठीक होने से मना कर दिया था वह टाँग बिल्कुल ठीक हो गयी थी | इस कृपा को देखकर मैं चकित रह गया ! मेरे साथी भी दंग रह गये ! यह सब गुरूकृपा के प्रसाद का चमत्कार था | मेरे आठों साथी, मेरी पत्नी तथा ऑल इणिडया मेडिकल इन्स्टीट्यूट, दिल्ली द्वारा जाँच के प्रमाणपत्र इस बात के साक्षी हैं |"

-निरंकार अग्रवाल,

विष्णुपुरी,

 

अदभुत रही मौनमंदिर की साधना !

 

"परम पूज्य सदगुरूदेव की कृपा से मुझे दिनांक १८ से २४ मई १९९९ तक अमदावाद आश्रम के मौनमंदिर में साधना करने का सुअवसर मिला | मौनमंदिर में साधना के पाँचवें दिन यानी २२ मई की रात्रि को लगभग २ बजे नींद में ही मुझे एक झटका लगा | लेटे रहने कि स्थिति में ही मुझे महसूस हुआ कि कोई अदृश्य शक्ति मुझे ऊपर... बहुत ऊपर उड़ये ले जा रही है | ऊपर उड़ते हुए जब मैंने नीचे झाँककर देखा तो अपने शरीर को उसी मौनमंदिर में चित्त लेटा हुआ, बेखबर सोता हुआ पाया | ऊपर जहाँ मुझे ले जाया गया वहाँ अलग ही छटा थी... अजीब और अवर्णीय ! आकाश को भी भेदकर मुझे ऐसे स्थान पर पहुँचाया गया था जहाँ चारों तरफ कोहरा-ही-कोहरा था, जैसे, शीशे की छत पर ओस फैली हो ! इतने में देखता हूँ कि एक सभा लगी है, बिना शरीर की, केवल आकृतियों की | जैसे रेखाओं से मनुष्यरूपी आकृतियाँ बनी हों | यह सब क्या चल रहा था... समझ से परे था | कुछ पल के बाद वे आकृतियाँ स्पष्ट होने लगी | देवी-देवताओं के पुंज के मध्य शीर्ष में एक उच्च आसन पर साक्षात बापूजी शंकर भगवान बने हुए कैलास पर्वत पर विराजमान थे और देवी-देवता कतार में हाथ बाँधे खड़े थे | मैं मूक-सा होकर अपलक नेत्रों से उन्हें देखता ही रहा, फिर मंत्रमुग्ध हो उनके चरणों मैं गिर पड़ा | प्रातः के ४ बजे थे | अहा ! मन और शरीर हल्का-फ़ुल्का लग रहा था ! यही स्थिति २४ मई की मध्यरात्रि में भी दोहरायी गयी | दूसरे दिन सुबह पता चला कि आज तो बाहर निकलने का दिन है यानी रविवार २५ मई की सुबह | बाहर निकलने पर भावभरा हृदय, गदगद कंठ और आखों में आँसू ! यों लग रहा था कि जैसे निजधाम से बेघर किया जा रहा हूँ | धन्य है वह भूमि, मौनमंदिर में साधना की वह व्यवस्था, जहां से परम आनंद के सागर में डूबने की कुंजी मिलती है ! जी करता है, भगवान ऐसा अवसर फिर से लायें जिससे कि उसी मौनमंदिर में पुनः आंतरिक आनंद का रसपान कर पाऊँ |"

-इन्द्रनारायण शाह,

१०३, रतनदीप-२, निराला नगर, कानपुर

 

असाध्य रोग से मुक्ति

 

"सन १९९४ में मेरी पुत्री हिरल को शरद पूर्णिमा के दिन बुखार आया | डॉक्टरों को दिखाया तो किसीने मलेरिया कहकर दवाइयाँ दी तो किसीने टायफायड कहकर इलाज शुरू किया तो किसीने टायफायड और मलेरिया दोनों कहा | दवाई की एक खुराक लेने से शरीर नीला पड़ गया और सूज गया | शरीर में खून की कमी से उसे छः बोतलें खून चढ़ाया गया | इंजेक्षन देने से पूरे शरीर को लकवा मार गया | पीठ के पीछे शैयाव्रण जैसा हो गया | पीठ और पैर का एक्स-रे लिया गया | पैर पर वजन बाँधकर रखा गया | डॉक्टरों ने उसे वायु का बुखार तथा रक्त का कैंसर बताया और कहा कि उसके हृदय तो वाल्व चौड़ा हो गया है | अब हम हिम्मत हार गये | अब पूज्यश्री के सिवाय और कोई सहारा नहीं था | उस समय हिरल ने कहा :'मम्मी ! मुझे पूज्य बापू के पास ले चलो | वहाँ ठीक हो जाऊगी |' पाँच दिन तक हिरल पूज्यश्री की रट लगाती रही | हम उसे अमदावाद आश्रम में बापू के पास ले गये | बापू ने कहा: 'इसे कुछ नहीं हुआ है |' उन्होंने मुझे और हिरल को मंत्र दिया एवं बड़दादा की प्रदक्षिणा करने को कहा | हमने प्रदक्षिणा की और हिरल पन्द्रह दिन में चलने-फ़िरने लगी | हम बापू की इस करूणा-कृपा का ॠण कैसे चुकायें ! अभी तो हम आश्रम में पूज्यश्री के श्रीचरणों में सपरिवार रहकर धन्य हो रहे हैं |"

-प्रफुल्ल व्यास,

भावनगर

वर्तमान में अमदावाद आश्रम में सपरिवार समर्पित

 

पूज्य बापू का दर्शन-सत्संग ही जीवन का सच्चा रत्न है

 

"मुझे चार साल से पुत्र कि कामना थी और मेरे मन में हुआ कि मेरी यह कामना जरूर पूरी होगी | अमदावाद में ध्यानयोग शिविर के दौरान ऐसा विचार आया कि बापू मुझे अपने चरणों में बुलायेंगे | मन में दृढ़ श्रद्धा थी | इतने लोगों के बीच में से बापू ने तेजपूर्ण दृष्टि मुझ पर डाली, संतरे का प्रसाद दिया और मेरा भाग्य खुल गया | बच्चे के जन्म से पहले डॉक्टरों ने ऑपरेशन को कहा था लेकिन बापू के बताने के मुताबिक मेरे घरवालों ने मुझे गाय के गोबर का रस पिलाया और शीघ्र ही बालक का जन्म हो गया | सच्ची श्रद्धा-भक्ति हो तो क्या असंभव है ? पूज्य बापू का दर्शन-सत्संग ही जीवन का सच्चा रत्न है | सच्ची श्रद्धा-भक्ति से ऐसा रत्न पानेवाले हम सभी धनभागी हैं |"

-रेखा परमार,

मीरा रोड़, मुंबई

 

कैसेट का चमत्कार

 

"व्यापार उधारी में चले जाने से मैं हताश हो गया था एवं अपनी जिंदगी से तंग आकर आत्महत्या करने की बात सोचने लगा था | मुझे साधु-महात्माओं व समाज के लोगों से घृणा-सी हो गयी थी : धर्म व समाज से मेरा विश्वास उठ चुका था | एक दिन मेरी साली बापूजी के सत्संग कि दो कैसेटें 'विधि का विधान' एवं 'आखिर कब तक ?' ले आयी और उसने मुझे सुनने के लिए कहा | उसके कई प्रयास के बाद भी मैंने वे कैसेटें नहीं सुनीं एवं मन-ही-मन उन्हें 'ढ़ोंग' कहकर कैसेटों के डिब्बे में दाल दिया | मन इतना परेशान था कि रात को नींद आना बंद हो गया था | एक रात फ़िल्मी गाना सुनने का मन हुआ | अँधेरा होने की वजह से कैसेटे पहचान न सका और गलती से बापूजी के सत्संग की कैसेट हाथ में आ गयी | मैंने उसीको सुनना शुरू किया | फिर क्या था ? मेरी आशा बँधने लगी | मन शाँत होने लगा | धीरे-धीरे सारी पीड़ाएँ दूर होती चली गयीं | मेरे जीवन में रोशनी-ही-रोशनी हो गयी | फिर तो मैंने पूज्य बापूजी के सत्संग की कई कैसेटें सुनीं और सबको सुनायीं | तदनंतर मैंने गाजियाबाद में बापूजी से दीक्षा भी ग्रहण की | व्यापार की उधारी भी चुकता हो गयी | बापूजी की कृपा से अब मुझे कोई दुःख नहीं है | हे गुरूदेव ! बस, एक आप ही मेरे होकर रहें और मैं आपका ही होकर रहूँ |"

-ओमप्रकाश बजाज,

दिल्ली रोड़, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश

 

मुझ पर बरसी संत की कृपा

 

"सन १९९५ के जून माह में मैं अपने लड़के और भतीजे के साथ हरिद्वार ध्यानयोग शिविर में भाग लेने गया | एक दिन जब मैं 'हर की पौड़ी' पर स्नान करने गया तो पानी के तेज बहाव के कारण पैर फिसलने से मेरा लड़का और भतीजा दोनों अपना संतुलन खो बैठे और गंगा में बह गये | ऐसी संकट की घड़ी में मैं अपना होश खो बैठा | क्या करूँ ? मैं फूट-फूटकर रोने लगा और बापूजी से प्रार्थना करने लगा कि ' हे नाथ ! हे गुरुदेव ! रक्षा कीजिये... मेरे बच्चों को बचा लीजिये | अब आपका ही सहारा है | पूज्यश्री ने मेरे सच्चे हृदय से निकली पुकार सुन ली और उसी समय मेरा लड़का मुझे दिखायी दिया | मैंने झपटकर उसको बाहर खींच लिया लेकिन मेरा भतीजा तो पता नहीं कहाँ बह गया ! मैं निरंतर रो रहा था और मन में बार-बार विचार उठ रहा था कि 'बापूजी ! मेरा लड़का बह जाता तो कोई बात नहीं थी लेकिन अपने भाई की अमानत के बिना मैं घर क्या मुँह लेकर जाऊँगा ? बापूजी ! आपही इस भक्त की लाज बचाओ |' तभी गंगाजी की एक तेज लहर उस बच्चे को भी बाहर छोड़ गयी | मैंने लपककर उसे पकड़ लिया | आज भी उस हादसे को स्मरण करता हूँ तो अपने-आपको सँभाल नहीं पाता हूँ और मेरी आँखों से निरंतर प्रेम की अश्रुधारा बहने लगती हैं | धन्य हुआ मैं ऐसे गुरुदेव को पाकर ! ऐसे सदगुरुदेव के श्रीचरणों में मेरे बार-बार शत-शत प्रणाम !"

-सुमालखाँ,

पानीपत, हरियाणा

 

गुरुदेव की कृपा से संतानप्राप्ति

 

"मेरी शादी को पाँच साल हो गये थे फिर भी कोई संतान नहीं हुई | लोग हमें बहुत ताने मारते थे | तभी मन-ही-मन निर्णय ले लिया कि पूज्य बापू के आश्रम में जाना है | जनवरी १९९९ में प्रथम बार उत्तरायण शिविर भरा और मंत्रदीक्षा ली | अब गुरुदेव कि कृपा से मुझे एक सुंदर बालक प्राप्त हुआ है | पूज्य बापूजी की इतनी कृपा-करूणा देखकर हृदय भर आता है | मैं पूज्य बापूजी से प्रार्थना करती हूँ कि यह बालक उन्हें समर्पित कर सकूं और यह उनके योग्य बनसके, ऐसी सदबुद्धि हमें दें |

-निर्मला के. तड़वी,

कांतिभाई हीराभाई तडवी,

रामजी मंदिर के पास, कारेली बाग, वड़ोदरा

 

गुरूकृपा से जीवनदान

 

"दिनांक १५-१-९६ की घटना है | मैंने धातु के तार पर सूखने के लिए कपड़े फैला रखे थे | बारिश होने के कारण उस तार में करंट आ गया था | मेरा छोटा पुत्र विशाल, जो कि ११ वीं कक्षा में पढ़ता है, आकर उस तार से छू गया और बिजली का करंट लगते ही वह बेहोश हो गया, शव के समान हो गया | हमने उसे तुरंत बड़े अस्पताल में दाखिल करवाया | डॉक्टर ने बच्चे की हालत गंभीर बतायी | ऐसी परिस्थिति देखकर मेरी आँखों से अश्रुधाराएँ बह निकली | मैं निजानंद की मस्ती में मस्त रहने वाले पूज्य सदगुरूदेव को मन-ही-मन याद किया और प्रार्थना कि :'हे गुरुदेव ! अब तो इस बच्चे का जीवन आपके ही हाथों में है | हे मेरे प्रभु ! आप जो चाहे सो कर सकते है |' और आखिर मेरी प्रार्थना सफल हुई | बच्चे में एक नवीन चेतना का संचार हुआ एवं धीरे-धीरे बच्चे के स्वास्थ्य में सुधार होने लगा | कुछ ही दिनों में वह पूर्णतः स्वस्थ हो गया | डॉक्टर ने तो उपचार किया लेकिन जो जीवनदान उस प्यारे प्रभु की कृपा से, सदगुरूदेव की कृपा से मिला, उसका वर्णन करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है | बस, ईश्वर से में यही प्रार्थना करता हूँ कि ऐसे ब्रह्मनिष्ठ संत-महापुरुषों के प्रति हमारी श्रद्धा में वृद्धि होती रहे |" -

डॉ. वाय. पी. कालरा,

शामलदास कॉलेज, भावनगर, गुजरात

 

पूज्य बापू जैसे संत दुनिया को स्वर्ग में बदल सकते हैं

 

मई १९९८ के अंतिम दिनों में पूज्यश्री के इंदौर प्रवास के दौरान ईरान के विख्यात फ़िजिशियन श्री बबाक अग्रानी भारत में अध्यात्मिक अनुभवों की प्राप्ति आये हुए थे | पूज्यश्री के दर्शन पाकर जब उन्होंने अध्यात्मिक अनुभवों को फलीभूत होते देखा तो वे पंचेड़ आश्रम में आयोजित ध्यानयोग शिविर में भी पहुँच गये | श्री अग्रानी जो दो दिन रुककर वापस लौटने वाले थे, वे पूरे ग्यारह दिन तक पंचेड़ आश्रम में रूके रहे | उन्होंने विधार्थी शिविर में सारस्वत्य मंत्र की दीक्षा ली एवं विशिष्ट ध्यानयोग साधना शिविर (४ -१० जून १९९८) का भी लाभ लिया | शिविर के दौरान श्री अग्रानी ने पूज्यश्री से मंत्रदीक्षा भी ले ली | पूज्यश्री के सान्निध्य मे संप्राप्त अनुभूतियों के बारे में क्षेत्रिय समाचार पत्र 'चेतना' को दी हुई भेंटवार्ता में श्री अग्रानी कहते है : "यदि पूज्य बापू जैसे संत हर देश में हो जायें तो यह दुनिया स्वर्ग बन सकती है | ऐसे शांति से बैठ पाना हमारे लिए कठिन है, लेकिन जब पूज्य बापूजी जैसे महापुरूषों के श्रीचरणों में बैठकर सत्संग सुनते है तो ऐसा आनंद आता है कि समय का कुछ पता ही नहीं चलता | सचमुच, पूज्य बापू कोई साधारण संत नहीं है |"

-श्री बबाक अग्रानी,

विश्वविख्यात फ़िजिशियन, ईरान

 

बापूजी का सान्निध्य गंगा के पावन प्रवाह जैसा है

 

"कल-कल करती इस भागीरथी की धवल धारा के किनारे पर पूज्य बापूजी के सान्निध्य में बैठकर मैं बड़ा ही आल्हादित और प्रमुदित हूँ... आनंदित हूँ... रोमांचित हूं | गंगा भारत की सुषुम्ना नाड़ी है | गंगा भारत की संजीवनी है | श्री विष्णुजी के चरणों से निकलकर ब्रह्माजी के कमंड़लु और जटाधर के माथे पर शोभायमान गंगा त्रियोगसिद्धिकारक है | विष्णुजी के चरणों से निकली गंगा भक्ति योग की प्रतीति कराती है और शिवजी के मस्तक पर स्थित गंगा ज्ञान योग की उच्चतर भूमिका पर आरूढ़ होने की खबर देती है | मुझे ऐसा लग रहा है कि आज बापूजी के प्रवचनों को सुनकर मैं गंगा में गोता लगा रहा हूँ क्योंकि उनका प्रवचन, उनका सन्निध्य गंगा के पावन प्रवाह जैसा है | वे अलमस्त फ़कीर हैं | वे बड़े सरल और सहज हैं | वे जितने ही ऊपर से सरल है, उतने ही अंतर में गूढ़ हैं | उनमें हिमालय जैसी उच्चता, पवित्रता, श्रेष्ठता है और सागरतल जैसी गंभीरता है | वे राष्ट्र की अमूल्य धरोहर हैं | उन्हें देखकर ॠषि-परम्परा को बोध होता है | गौतम, कणाद, जैमिनी, कपिल, दादू, मीरा, कबीर, रैदास आदि सब कभी-कभी उनमें दिखते है |

 

रे भाई ! कोई सतगुरू संत कहावे,

जो नैनन अलख लखावे...

धरती उखाड़े, आकाश उखाड़े,

अधर मड़ैया धावे |

शून्य शिखर के पार शिला पर,

आसन अचल जमावे |

रे भाई ! कोई सत्गुरू संत कहावे...

 

एक ऐसे पावन सान्निध्य में हम बैठे हैं जो बड़ा दुर्लभ और सहज योगस्वरूप है | ऐसे महापुरूषों के लिए पंक्तियाँ याद आ रही हैं : तुम चलो तो चले धरती, चले अंबर, चले दुनिया... ऐसे महापुरूष चलते है तो उनके लिए सूर्य, चंद्र, तारे, ग्रह, नक्षत्र आदि सब अनुकूल हो जाते हैं | ऐसे इन्द्रियातीत, गुणातीत, भावातीत, शब्दातीत और सब अवस्थाओं से परे किन्हीं महापुरुषों के श्रीचरणों में जब बैठते हैं तो... भागवत कहता है :

 

साधुनां दर्शनं लोके सर्वसिद्धिकरं परम |

 

साधु के दर्शन मात्र से विचार, विभूति, विद्वता, शक्ति, सहजता, निर्विषयता, प्रसन्नता, सिद्धियाँ और आत्मानंद की प्राप्ति होती है | देश के महान संत यहाँ सहज ही आते है, भारत के सभी शंकराचार्य भी शिविर में आते हैं | अतः मेरे मन में भी विचार आया कि जहाँ सब जाते हैं, वहाँ जाना चाहिए क्योंकि यही वह ठोर-ठिकाना है, जहाँ मन का अभिमान मिटाया जा सकता है | ऐसे महापुरूषों के दर्शन से केवल आनंद और मस्ती ही नहीं मिलती बल्कि वह सब कुछ मिल जाता है जो अभिलाषित है, आकांक्षित है, लक्षित है | यहाँ मैं करूणा के, कर्मठता के, विवेक-वैराग्य के, ज्ञान के दर्शन कर रहा हूँ | वैराग्य और भक्ति के रक्षण, पोषण और संवर्धन के लिए यह सप्तॠषियों का उत्तम ज्ञान माना जाता है | आज गंगा फिर से साकार दिख रही है तो वे बापूजी के विचार और वाणी में दिख रही है | अलमस्तता, सहजता, उच्चता, श्रेष्ठता, पवित्रतता, तीर्थ-सी शुचिता, शिशु-सी सरलता, तरूणों-सा जोश, वृद्धों-सा गांभीर्य और ॠषियों जैसा ज्ञानाबोध मुझे जहाँ हो रहा है, वह यह पंडाल है | इसे आनंदनगर कहूँ या प्रेमनगर ? करूणा का सागर कहूँ या विचारों का समन्दर ? ... लेकिन इतना जरूर कहूँगा कि मेरे मन का कोन-कोना आल्हादित हो रहा है | आप लोग बड़भागी है जो ऐसे महापुरूष के श्रीचरणों में बैठे हैं, जहाँ भाग्य का, दिव्य व्यक्तितत्व का निर्माण होता है | जीवन की कृतकृत्यता जहाँ प्राप्त हो सकती है वह यही दर है |

 

मिले तुम मिली मंजिल मिला मकसद और मुद्दा भी |

न मिले तुम तो रह गया मुद्दा, मकसद और मंजिल भी ||

 

आपका यह भावराज्य और प्रेमराज्य देखकर मैं चकित भी हूँ और आनंद का अनुभव भी कर रहा हूँ | आपके प्रति मेरा विश्वास और अटूट निष्ठा बढ़े इस हेतु मेरा नमन स्वीकार करें | मुझे ऐसा लगता है कि बापूजी सूर्य हैं और नारायण स्वामी एक ऐसे दीप हैं जो न बुझ सकते हैं, न जलाये जाते हैं |"

-स्वामी अवधेशानंदजी,

हरिद्वार  

 

सारस्वत्य मंत्र से हुए अदभुत लाभ

 

मैंने १९९८ में 'विधार्थी उत्थान शिविर, सोनीपत' में पूज्य गुरूदेव से सारस्वत्य मंत्र की दीक्षा ली | दीक्षा के बाद नियमित मंत्रजप करने से मैं इतना कुशाग्र बुद्धिवाला एवं स्वावलंबी हो गया कि मैंने एक महीनें में ही टयूशन छोड़ दी और स्वयं खूब मेहनत करने लगा | मैं स्कूल भी पैदल आने-जाने लगा, जिससे मैंने स्कूल बस का किराया बचा लिया | मंत्र जाप के प्रभाव से मुझे ९ वीं, १० वीं, ११ वीं की परीक्षाओं में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ | १२ वीं की परीक्षा के समय मेरा स्वास्थ्य खराब होने के कारण में जप ठीक से नहीं कर सका, फिर भी ७९ प्रतिशत अंकों से पास हुआ | उसके बाद इंजिनियरिंग की परिक्षा में भी उत्तीर्ण रहा |

-कुलदीप कुमार,

डी-२३४, वेस्ट विनोद नगर, दिल्ली

 

मैं दिसम्बर १९९९ में छत्तीसगढ़ के भाटापारा में पूज्य गुरूदेव से सारस्वत्य मंत्र की दीक्षा ली | तत्पश्चात मैं नियमित रूप से जप-ध्यान- प्राणायाम करता था, जिससे मुझे बहुत लाभ हुआ | पूज्य बपूजी की कृपा और सारस्वत्य मंत्र जाप के प्रभाव से मुझे १२ वीं की बोर्ड़ की परिक्षा में ८४.६ प्रतिशत अंक मिले |

-विरेन्द्र कुमार कौशिक,

डोंगरगाँव, जि. राजनांदगाँव (छ.ग.)

 

भौतिक युग के अंधकार में ज्ञान की ज्योति : पूज्य बापू

 

मादक नियंत्रण ब्यूरो भारत सरकार के महानिदेशक श्री एच.पी. कुमार ९ मई को अमदावाद आश्रम में सत्संग-कार्यक्रम के दौरान पूज्य बापू से आशीर्वाद लेने पहुँचे | बड़ी विनम्रता एवं श्रद्धा के साथ उन्होंने पूज्य बापू के प्रति अपने उदगार में कहा : "जिस व्यक्ति के पास विवेक नहीं है वह अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच सकता है और विवेक को प्राप्त करने का साधन पूज्य आसारामजी बापू जैसे महान संतों का सत्संग है | पूज्य बापू से मेरा प्रथम परिचय टी.वी. के माध्यम से हुआ | तत्पश्चात मुझे आश्रम द्वार प्रकाशित 'ॠषि प्रसाद' मासिक प्राप्त हुआ | उस समय मुझे लगा कि एक ओर जहाँ इस भौतिक युग के अंधकार में मानव भटक रहा है वहीं दूसरी ओर शांति की मंद-मंद सुगंधित वायु भी चल रही है | यह पूज्य बापू के सत्संग का ही प्रभाव है | पूज्यश्री के दर्शन करने का जो सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है इससे मैं अपने को कृतकृत्य मानता हूँ | पूज्य बापू के श्रीमुख से जो अमृत वर्षा होती है तथा इनके सत्संग से करोड़ों हृदयों में जो ज्योति जगती है, व इसी प्रकार से जगती रहे और आने वाले लंबे समय तक पूज्यश्री हम सब का मार्गदर्शन करते रहे यही मेरी कामना है | पूज्य बापू के श्रीचरणों में मेरे प्रणाम..."

-श्री एच.पी. कुमार,

महानिदेशक, मादक नियंत्रण ब्यूरो, भारत सरकार

 

गुरूकृपा ऐसी हुई कि अँधेर तो क्या देर भी नहीं हुई

 

परम कृपालु बापूजी के श्रीचरणों में मेरे कोटि-कोटि वंदन... मैं एक इस्माइली ख्वाजा हूँ तथा अपने धर्म में अडिग हूँ | चार वर्ष पूर्व कुछ लोगों द्वारा एक सुनियोजित योजना बनाकर मुझे जबरदस्ती 'मर्डर केस' का आरोपी बना दिया गया था | इससे मुझे कहीं शांति नहीं मिल रही थी | २८ फरवरी १९९७ को मुझे नागपुर में आयोजित बापूजी के सत्संग में जाने की प्रेरणा मिली और ४ मार्च १९९७ को मैंने बापूजी से मंत्रदीक्षा ली | मैं उनसे मन-ही-मन विनती की कि ' हे गुरूदेव ! मुझे बचा लो |' गुरूकृपा ऐसी हुई कि ७ जनवरी १९९८ को मुझे अदालत ने पाक-साफ बरी कर दिया ! बाकी छः आरोपियों को सजा हुई | धन्य है ऐसे मेरे सदगुरू ! उनके श्रीचरणों में मेरे कोटि-कोटि वन्दन...

 

-रहमान खान निशान छाबड़ी (बिछुआ),

जि. छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

 

मुस्लिम महिला को प्राणदान

 

२७ सितम्बर २००० को जयपुर में मेरे निवास पर पूज्य बापू का 'आत्म-साक्षात्कार दिवस' मनाया गया, जिसमें मेरे पड़ोस की मुस्लिम महिला नाथी बहन के पति, श्री माँगू खाँ, ने भी पूज्य बापू की आरती की और चरणामृत लिया | ३-४ दिन बाद ही वे मुस्लिम दंपति ख्वाजा साहिब के उर्स में अजमेर चले गये | दिनांक ४ अक्टूबर २००० को अजमेर के उर्स में असामाजिक तत्वों ने प्रसाद में जहर बाँट दिया, जिससे उर्स मेले में आये कई दर्शनार्थी अस्वस्थ हो गये और कई मर भी गये | मेरे पड़ोस की नाथी बहन ने भी वह प्रसाद खाया और थोड़ी देर में ही वह बेहोश हो गयी | अजमेर में उसका उपचार किया गया किंतु उसे होश न आया | दूसरे दिन ही उसका पति उसे अपने घर ले आया | कॉलोनी के सभी निवासी उसकी हालत देखकर कह रहे थे कि अब इसका बचना मुश्किल है | मैं भी उसे देखने गया | वह बेहोश पड़ी थी | मैं जोर-जोर से हरि ॐ... हरि ॐ... का उच्चारण किया तो वह थोड़ा हिलने लगी | मुझे प्रेरणा हुई और मैं पुनः घर गया | पूज्य बापू से प्रार्थना की | ३-४ घंटे बाद ही वह महिला ऐसे उठकर खड़ी हो गयी मानों, सोकर उठी हो | उस महिला ने बताया कि मेरे चाचा ससुर पीर हैं और उन्होंने मेरे पति के मुँह से बोलकर बताया कि तुमने २७ सितम्बर २००० को जिनके सत्संग में पानी पिया था, उन्हीं सफेद दाढ़ीवाले बाबा ने तुम्हें बचाया है ! कैसी करूणा है गुरूदेव की !

-जे.एल. पुरोहित,

८७, सुल्तान नगर, जयपुर (राज.)

उस महिला का पता है: -श्रीमती नाथी

पत्नी श्री माँगू खाँ,

१००, सुल्तान नगर,

गुर्जर की धड़ी,

न्यू सांगानेर रोड़,

जयपूर (राज.)

 

हरिनाम की प्याली ने छुड़ायी शराब की बोतल

 

सौभाग्यवश, गत २६ दिसम्बर १९९८ को पूज्यश्री के १६ शिष्यों की एक टोली दिल्ली से हमारे गाँव में हरिनाम का प्रचार-प्रसार करने पहूँची | मैं बचपन से ही मदिरापान, धूम्रपान व शिकार करने का शौकीन था | पूज्य बापू के शिष्यों द्वारा हमारे गाँव में जगह-जगह पर तीन दिन तक लगातार हरिनाम का कीर्तन करने से मुझे भी हरिनाम का रंग लगता जा रहा था | उनके जाने के एक दिन के पश्चात शाम के समय रोज की भांति मैंने शराब की बोतल निकाली | जैसे ही बोतल खोलने के लिए ढक्कन घुमाया तो उस ढक्कन के घुमने से मुझे 'हरि ॐ... हरि ॐ' की ध्वनि सुनायी दी | इस प्रकार मैंने दो-तीन बार ढक्कन घुमाया और हर बार मुझे 'हरि ' की ध्वनि सुनायी दी | कुछ देर बाद मैं उठा तथा पूज्यश्री के एक शिष्य के घर गया | उन्होंने थोड़ी देर मुझे पूज्यश्री की अमृतवाणी सुनायी | अमृतवाणी सुनने के बाद मेरा हृदय पुकारने लगा कि इन दुर्व्यसनों को त्याग दूँ | मैंने तुरंत बोतल उठायी तथा जोर-से दूर खेत में फेंक दी | ऐसे समर्थ व परम कृपालु सदगुरुदेव को मैं हृदय से प्रणाम करता हूँ, जिनकी कृपा से यह अनोखी घटना मेरे जीवन में घटी, जिससे मेरा जीवन परिवर्तित हुआ |

-मोहन सिंह बिष्ट,

भिख्यासैन, अल्मोड़ा (उ.प्र.)

 

पूरे गाँव की कायापलट !

 

पूज्यश्री से दिनांक २७.६.९१ को दीक्षा लेने के बाद मैंने व्यवसनमुक्ति के प्रचार-प्रसार का लक्ष्य बना लिया | मैं एक बार कौशलपुर (जि. शाजापुर) पहुँचा | वहाँ के लोगों के व्यवसनी और लड़ाई-झगड़े युक्त जीवन को देखकर मैंने कहा: "आप लोग मनुष्य-जीवन सही अर्थ ही नहीं समझते हैं | एक बार आप लोग पूज्य बापूजी के दर्शन कर लें तो आपको सही जीवन जीने की कुंजी मिल जायेगी |" गाँव वालों ने मेरी बात मान ली और दस व्यक्ति मेरे गाँव ताजपुर आये | मैंने एक साधक को उनके साथ जन्माष्टमी महोत्सव में सूरत भेजा | पूज्य बापूजी की उन पर कृपा बरसी और सबको गुरूदीक्षा मिल गयी | जब वे लोग अपने गाँव पहुँचे तो सभी गाँववासियों को बड़ा कौतूहल था कि पूज्य बापूजी कैसे हैं ? बापूजी की लीलाएँ सुनकर गाँव के अन्य लोगों में भी पूज्य बापूजी के प्रति श्रद्धा जगी | उन दीक्षित साधकों ने सभी गाँववालों को सुविधानुसार पूज्य बापूजी के अलग-अलग आश्रमों मे भेजकर दीक्षा दिलवा दी | गाँव के सभी व्यक्ति अपने पूरे परिवार सहित दीक्षित हो चुके हैं | प्रत्येक गुरूवार को पूरे गाँव में एक समय भोजन बनता है | सभी लोग गुरूवार का व्रत रखते है | कौशलपुर गाँव के प्रभाव से आस-पास के गाँववाले एवं उनके रिश्तेदारों सहित १००० व्यक्तियों शराब छोड़कर दीक्षा ले ली है | गाँव के इतिहास में तीन-तीन पीढ़ी से कोई मंदिर नहीं था | गाँववालों ने ५ लाख रूपये लगाकर दो मंदिर बनवायें हैं | पूरा गाँव व्यवसनमुक्त एवं भगवतभक्त बन गया है, यह पूज्य बापूजी की कृपा नहीं तो और क्या हैं ? सबके तारणहार पूज्य बापूजी के श्रीचरणों में कोटि-कोटि प्रणाम...

 

-श्याम प्रजापति (सुपरवाइजर, तिलहन संघ) ताजपुर,

उज्जैन (म.प्र.)

 

नेत्रबिंदु का चमत्कार

 

मेरा सौभाग्य है कि मुझे 'संतकृपा नेत्रबिंदु' (आई ड्रॉप्स) का चमत्कार देखने को मिला | एक संत बाबा शिवरामदास उम्र ८० वर्ष, गीता कुटिर, तपोवन झाड़ी, सप्तसरोवर, हरिद्वार में रहते हैं | उनकी दाहिनी आँख के सफेद मोतिये का ऑपरेशन शाँतिकुंज हरिद्वार आयोजित कैम्प में हुआ | केस बिगड़ गया और काल मोतिया बन गया | दर्द रहने लगा और रोशनी घटने लगी | दोबारा भूमानन्द नेत्र चिकित्सालय में ऑपरेशन हुआ | एब्सल्यूट ग्लूकोमा बताते हुए कहा कि ऑपरेशन से सिरदर्द ठीक हो जायेगा पर रोशनी जाती रहेगी | परंतु अब वे बाबा संत श्री आसारामजी आश्रम द्वार निर्मित 'संतकृपा नेत्रबिंदु' सुबह-शाम डाल रहे हैं | मैंने उनके नेत्रों का परीक्षण किया | उनकी दाहिनी आँख में उँगली गिनने लायक रोशनी वापस आ गयी है | काले मोतिये का प्रेशर नॉर्मल है | कोर्निया में सूजन नहीं है | वे काफी संतुष्ट हैं | वे बताते हैं : 'आँख पहले लाल रहती थी परंतु अब नहीं है | आश्रम के 'नेत्रबिंदु' से कल्पनातीत लाभ हुआ |' बायीं आँख में भी उन्हें सफेद मोतिया बताया गया था और संशय था कि शायद काला मोतिया भी है | पर आज बायीं आँख भी ठीक है और दोनों आँखों का प्रेशर भी नॉर्मल है | सफेद मोतिया नहीं है और रोशनी काफी अच्छी है | यह 'संतकृपा नेत्रबंदु' का विलक्षण प्रभाव देखकर मैं भी अपने मरीजों को इसका उपयोग करने की सलाह दूँगा |

-डॉ. अनन्त कुमार अग्रवाल (नेत्ररोग विशेषज्ञ)

एम.बी.बी.एस., एम.एस. (नेत्र), डी.ओ.एम.एस. (आई),

सीतापुर, सहारनपुर (उ.प्र.)

 

पूज्यश्री की तस्वीर से मिली प्रेरणा

 

सर्वसमर्थ परम पूज्य श्री बापूजी के चरणकमलों में मेरा कोटि-कोटि नमन... १९८४ के भूकंप से सम्पूर्ण उत्तर बिहार में काफी नुकसान हुआ था, जिसकी चपेट में हमारा घर भी था | परिस्थितिवश मुझे नौंवी कक्षा में पढ़ायी छोड़ देनी पड़ी | किसी मित्र की सलाह से मैं नौकरी ढूँढ़ने के लिए दिल्ली गया लेकिन वहाँ भी निराशा ही हाथ लगी | मैं दो दिन से  भूखा तो था ही, ऊपर से नौकरी की चिंता | अतः आत्महत्या का विचार करके रेलवे स्टेशन की ओर चल पड़ा | रानीबाग बाजार में एक दुकान पर पूज्यश्री का सत्साहित्य, कैसेट आदि रखा हुआ था एवं पूज्यश्री की बड़े आकार की तस्वीर भी टँगी थी | पूज्यश्री की हँसमुख एवं आशीर्वाद की मुद्रावाली उस तस्वीर पर मेरी नजर पड़ी तो १० मिनट तक मैं वहीं सड़क पर से ही खड़े-खड़े उसे देखता रहा | उस वक्त न जाने मुझे क्या मिल गया ! मैं काम भले मजदूरी का ही करता हूँ लेकिन तबसे लेकर आज तक मेरे चित्त में बड़ी प्रसन्नता बनी हुई है | न जाने मेरी जिन्दगी की क्या दशा होती अगर पूज्य बापूजी की 'युवाधन सुरक्षा', 'ईश्वर की ओर', 'निश्चिन्त जीवन' पुस्तकें और 'ॠषि प्रसाद' पत्रिका हाथ न लगती ! पूज्यश्री की तस्वीर से मिली प्रेरणा एवं उनके सत्साहित्य ने मेरी डूबती नैया को मानो, मझदार से बचा लिया | धनभागी है साहित्य की सेवा करने वाले ! जिन्होंने मुझे आत्महत्या के पाप से बचाया | 

-महेश शाह,

नारायणपुर, दुमरा, जि. सीतामढ़ी (बिहार)

 

मंत्र से लाभ

 

मेरी माँ की हालत अचानक पागल जैसी हो गयी थी मानों, कोई भूत-प्रेत-डाकिनी या आसुरी तत्व उनमें घुस गया | मैं बहुत चिंतित हो गया एवं एक साधिका बहन को फोन किया | उन्होंने भूत-प्रेत भगाने का मंत्र बताया, जिसका वर्णन आश्रम से प्रकाशित 'आरोग्यनिधि' पुस्तक में भी है | वह मंत्र इस प्रकार है:

 

ॐ नमो भगवते रूरू भैरवाय भूतप्रेत क्षय कुरू कुरू हूं फट स्वाहा |

 

इस मंत्र का पानी में निहारकर १०८ बार जप किया और वही पानी माँ को पिला दिया | तुरंत ही माँ शांति से सो गयीं | दूसरे दिन भी इस मंत्र की पाँच माला करके माँ को वह जल पिलाया तो माँ बिल्कुल ठीक हो गयीं | हे मेरे साधक भाई-बहनो ! भूत-प्रेत भगाने के लिए 'अला बाँधूँ... बला बाँधूँ... ' ऐसा करके झाड़-फ़ूँक करनेवालों के चक्कर में पड़ने की जरूरत नहीं हैं | इसके लिए तो पूज्य बापूजी का मंत्र ही तारणहार है | पूज्य बापूजी के श्रीचरणों में कोटि-कोटि प्रणाम !

-चंपकभाई एन. पटेल (अमेरिका)

 

काम क्रोध पर विजय पायी

 

एक दिन 'मुंबई मेल' में टिकट चेकिंग करते हुए मैं वातानुकूलित बोगी में पहुँचा | देखा तो मखमल की गद्दी पर टाट का आसन बिछाकर स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज समाधिस्थ हैं | मुझे आश्चर्य हुआ कि जिन प्रथम श्रेणी की वातानुकूलित बोगियों में राजा-महाराजा यात्रा करते हैं ऐसी बोगी और तीसरी श्रेणी की बोगी के बीच इन संत को कोई भेद नहीं लगता | ऐसी बोगियों में भी वे समाधिस्थ होते है यह देखकर सिर झुक जाता है | मैंने पूज्य महाराजश्री को प्रणाम करके कहा : "आप जैसे संतों के लिए तो सब एक समान है | हर हाल में एकरस रहकर आप मुक्ति का आनंद ले सकते हैं | लेकिन हमारे जैसे ग्रहस्थों को क्या करना चाहिए ताकि हम भी आप जैसी समता बनाये रखकर जीवन जी सकें ?" पूज्य महाराजजी ने कहा : "काम और क्रोध को तू छोड़ दे तो तू भी जीवन्मुक्त हो सकता है | जहाँ राम तहँ नहीं काम, जहाँ काम तहँ नहीं राम | ... और क्रोध तो, भाई ! भस्मासुर है | वह तमाम पुण्य को जलाकर भस्म कर देता है, अंतःकरण को मलिन कर देता है |" मैंने कहा : " प्रभु ! अगर आपकी कृपा होगी तो मैं काम-क्रोध को छोड़ पाऊँगा |" पूज्य महाराजजी ने कहा : "भाई ! कृपा ऐसे थोड़े ही की जाती है ! संतकृपा के साथ तेरा पुरूषार्थ और दृढ़ता भी चाहिए | पहले तू प्रतिज्ञा कर कि तू जीवनपर्यन्त काम और क्रोध से दूर रहेगा... तो मैं तुझे आशीर्वाद दूँ |" मैंने कहा : "महाराजजी मैं जीवनभर के लिए प्रतिज्ञा तो करूँ लेकिन उसका पालन न कर पाऊँ तो झूठा माना जाऊँगा |" पूज्य महाराजजी ने कहा : "अच्छा, पहले तू मेरे समक्ष आठ दिन के लिए प्रतिज्ञा कर | फिर प्रतिज्ञा को एक-एक दिन बढ़ते जाना | इस प्रकार तू उन बलाओं से बच सकेगा | है कबूल ?" मैंने हाथ जोड़कर कबूल किया | पूज्य महाराजजी ने आशीर्वाद देकर दो-चार फूल प्रसाद में दिये | पूज्य महाराजजी ने मेरी जो दो कमजोरियाँ थीं उन पर ही सीधा हमला किया था | मुझे आश्चर्य हुआ कि अन्य कोई भी दुर्गुण छोड़ने का न कहकर इन दो दुर्गुणों के लिए ही उन्होंने प्रतिज्ञा क्यों करवायी ? बाद में मैं इस राज से अवगत हुआ |

 

दूसरे दिन मैं पैसेन्जर ट्रेन में कानपुर से आगे जा रहा था | सुबह के करीब नौ बजे थे | तीसरी श्रेणी की बोगी में जाकर मैंने यात्रियों के टिकट जाँचने का कार्य शुरू किया | सबसे पहले बर्थ पर सोये हुए एक यात्री के पास जाकर मैंने एक यात्री के पास जाकर मैंने टिकट दिखाने को कहा तो वह गुस्सा होकर मुझे कहने लगा : "अंधा है ? देखता नहीं कि मैं सो गया हूँ ? मुझे नींद से जगाने का तुझे क्या अधिकार है ? यह कोई रीत है टिकट के बारे में पूछने की ? ऐसी ही अक्ल है तेरी ?" ऐसा कुछ-का-कुछ वह बोलता ही गया... बोलता ही गया | मैं भी क्रोधाविष्ट होने लगा किंतु पूज्य महाराजजी के समक्ष ली हुई प्रतिज्ञा मुझे याद थी, अतः क्रोध को ऐसे पी गया मानों, विष की पुड़िया ! मैंने उसे कहा : "महाशय ! आप ठीक ही कहते हैं कि मुझे बोलने की अक्ल नहीं है, भान नहीं है | देखो, मेरे ये बाल धूप में सफेद हो गये हैं | आपमें बोलने की अक्ल अधिक है, नम्रता है तो कृपा करके सिखाओं कि टिकट के लिए मुझे किस प्रकार आपसे पूछना चाहिए | मैं लाचार हूँ कि 'डयूटी' के कारण मुझे टिकट चेक करना पड़ रहा है इसलिए मैं आपको कष्ट दे रहा हूँ|" ... और फ़िर मैंने खूब प्रेम से हाथ जोड़कर विनती की : "भैया ! कृपा करके कष्ट के लिए मुझे क्षमा करो | मुझे अपना टिकट दिखायेंगे ?" मेरी नम्रता देखकर वह लज्जित हो गया एवं तुरंत उठ बैठा | जल्दी-जल्दी नीचे उतरकर मुझसे क्षमा माँगते हुए कहने लगा :"मुझे माफ करना | मैं नींद में था | मैंने आपको पहचाना नहीं था | अब आप अपने मुँह से मुझे कहें कि आपने मुझे माफ़ किया ?" यह देखकर मुझे आनंद और संतोष हुआ | मैं सोचने लगा कि संतों की आज्ञा मानने में कितनी शक्ति और हित निहित है ! संतों की करुणा कैसा चमत्कारिक परिणाम लाती है ! वह व्यक्ति के प्राकृतिक स्वभाव को भी जड़-मूल से बदल सकती है | अन्यथा, मुझमें क्रोध को नियंत्रण में रखने की कोई शक्ति नहीं थी | मैं पूर्णतया असहाय था फिर भी मुझे महाराजजी की कृपा ने ही समर्थ बनाया | ऐसे संतों के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमस्कार !

-श्री रीजुमल,

रिटायर्ड टी.टी. आई., कानपुर

 

 

अन्य अनुभव

 

जला हुआ कागज

 

पूर्व रूप में एक बार परमहंस विशुद्धानंदजी से आनंदमयी माँ की निकटता पानेवाले सुप्रसिद्ध पंडित गोपीनाथ कविराज ने निवेदन किया: "तरणीकान्त ठाकुर को अलौकिक सिद्धि प्राप्त हुई है | वे बिना देखे या बिना छुए ही कागज में लिखी हुई बातें पढ़ लेते हैं |" गुरुदेव बोले :"तुम एक कागज पर कुछ लिखो और उसमें आग लगाकर जला दो |" कविराजजी ने कागज पर कुछ लिखा और पूरी तरह कागज जलाकर हवा में उड़ा दिया | उसके बाद गुरूदेव ने अपने तकिये के नीचे से वही कागज निकालकर कविराजजी के आगे रख दिया | यह देखकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह कागज वही था एवं जो उन्होंने लिखा था वह भी उस पर उन्हीं के सुलेख में लिखा था और साथ ही उसका उत्तर भी लिखा हुआ देखा | जड़ता, पशुता और ईश्वरता का मेल हमारा शरीर है | जड़ शरीर को 'मैं-मेरा' मानने की वृत्ति जितनी मिटती है, पाशवी वासनाओं की गुलामी उतनी हटती है और हमारा ईश्वरीय अंश जितना अधिक विकसित होता है उतना ही योग-सामर्थ्य, ईश्वरीय सामर्थ्य प्रकट होता है | भारत के ऐसे कई भक्तों, संतों और योगियों के जीवन में ईश्वरीय सामर्थ्य देखा गया है, अनुभव किया गया है, उसके विषय में सुना गया है | धन्य हैं भारतभूमि में रहनेवाले... भारतीय संस्कृति में श्रद्धा-विश्वास रखनेवाले... अपने ईश्वरीय अंश को जगाने की सेवा-साधना करनेवाले ! स्वामी विशुद्धानंदजी वर्षों की एकांत साधना और वर्षों-वर्षों की गुरुसेवा से अपना देहाध्यास और पाशवी वासनाएँ मिटाकर अपने ईश्वरीय अंश को विकसित करनेवाले भारत के अनेक महापुरूषों में से थे | उनके जीवन की और भी अलौकिक घटनाओं का वर्णन आता है | ऐसे सत्पुरूषों के जीवन-चरित्र और उनके जीवन में घटित घटनाएँ पढ़ने-सुनने से हम लोग भी अपनी जड़ता एवं पशुता से ऊपर उठकर ईश्वरीय अंश को उभारने में उत्साहित होते है | बहुत ऊँचा काम है... बड़ी श्रद्धा, बड़ी समझ, बड़ा धैर्य चाहिए ईश्वरीय सामर्थ्य को पूर्ण रूप से विकसित करने में | अब आओ, चलें आद्य शंकराचार्य की ओर...

 

नदी की धारा मुड़ गयी

 

आद्य शंकराचार्य की माता विशिष्टा देवी अपने कुलदेवता केशव की पूजा करने जाती थीं | वे पहले नदी में स्नान करतीं और फ़िर मंदिर में जाकर पूजन करतीं | एक दिन वे प्रातःकाल ही पूजन-सामग्री लेकर मंदिर की ओर गयीं, किंतु सायंकाल तक घर नहीं लौटीं | शंकराचार्य की आयु अभी सात-आठ वर्ष के मध्य में ही थी | वे ईश्वर के परम भक्त और निष्ठावान थे | सायंकाल तक माता के वापस न लौटने पर आचार्य को बड़ी चिन्ता हुई और वे उन्हें खोजने के लिए निकल पड़े | मंदिर के निकट पहुँचकर उन्होंने माता को मार्ग में ही मूर्च्छित पड़े देखा | उन्होंने बहुत देर तक माता का उपचार किया तब वे होश में आ सकीं | नदी अधिक दूर थी | वहाँ तक पहुँचने में माता को बड़ा कष्ट होता था | आचार्य ने भगवान से मन-ही-मन प्रार्थना की कि "प्रभो ! किसी प्रकार नदी की धारा को मोड़ दो, जिससे कि माता निकट ही स्नान कर सकें |" वे इस प्रकार की प्रार्थना नित्य करने लगे | एक दिन उन्होंने देखा कि नदी की धारा किनारे की धरती को काटती-काटती मुड़ने लगी है तथा कुछ दिनों में ही वह आचार्य शंकर के घर के पास बहने लगी | इस घटना ने आचार्य का अलौकिक शक्तिसम्पन्न होना प्रसिद्ध कर दिया |

 

 

सूक्ष्म शरीर से चोर का पीछा किया

 

हरिहर बाबा की बड़ी प्रसिद्धि थी | एक बार वे हरपालपुर स्टेशन पर थे | वहाँ के स्टेशन मास्टर ने उनको एक चोर सुपुर्द किया | चोर ने बाबा से कहा : " महाराज ! मुझे इतनी छुट्टी दे दीजिये कि मैं अपने बाल-बच्चों का प्रबंध कर आऊँ |" बाबा: "गाड़ी आने पर लौट आना |" चोर चला गया | स्टेशन मास्टर को पता चला तो वह बाबा पर गर्म हुआ और बोला : "उसके बदले तुम्हें जेल की हवा खानी होगी | तुमने जान-बूझकर उसे भगा दिया है |" बाबा : "घबराओ मत, गाड़ी आने से पहले ही वह लौट आयेगा |" चोर की नीयत ठीक नहीं थी | वह जंगल के मार्ग से अज्ञात स्थान को भाग जाना चाहता था किंतु उसे हर समय यही प्रतीत होता रहा कि हरिहर बाबा डंडा फटकारते हुए उसके पीछे-पीछे चले आ रहे हैं | इसीलिए वह गाड़ी आने से पहले ही लौट आया |

 

मंगली बाधा-निवारण मंत्र

 

"अं रां अं "

 

इस मंत्र को १०८ बार जपने से क्रोध दूर होता है | जन्मकुन्डली में मंगली योग होने से जिनके विवाह न हो रहे हों, वे २७ मंगलवार इस मंत्र का १०८ बार जप करते हुए व्रत रखकर हनुमानजी पर सिंदूर का चोला चढ़ायें | इससे मंगल-बाधा का क्षय होता है |

 

सुखपूर्वक प्रसवकारक मंत्र

 

पहला उपाय

 

"एं ह्रीं भगवति भगमालिनि चल चल भ्रामय भ्रामय पुष्पं विकासय विकासय स्वाहा |"

 

इस मंत्र द्वारा अभिमंत्रित दूध गर्भिणी स्त्री को पिलायें तो सुखपूर्वक प्रसव होगा |

 

दूसरा उपाय

 

गर्भिणी स्त्री स्वयं प्रसव के समय 'जम्भला-जम्भला' जप करे |

 

तीसरा उपाय

 

देशी गाय के गोबर का १२ से १५ मि.ली. रस 'ॐ नमो नारायणाय' मंत्र का २१ बार जप करके पीने से भी प्रसव-बाधाएँ दूर होंगी और बिना ऑपरेशन के प्रसव होगा |

 

प्रसुति के समय अमंगल की आशंका हो तो निम्न मंत्र का जप करें :

 

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके |

शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोSस्तुते ||

(दुर्गासप्तशती)

 

शक्तिशाली व गोरे पुत्र की प्राप्ति के लिए

 

सगर्भावस्था में ढाक (पलाश, खाखरा) का एक कोमल पत्ता घोंटकर गौ-दुग्ध के साथ रोज सेवन करने से बालक शक्तिशाली और गोरा होता है | माता-पिता भले काले-कलूटे हों फिर भी बालक गोरा होगा |

 

सदगुरू-महिमा

 

गुरु बिनु भव निधि तरै न कोई |

जौं बरंचि संकर सम होई ||

-संत तुलसीदासजी

 

हरिहर आदिक जगत में पूज्यदेव जो कोय |

सदगुरू की पूजा किये सबकी पूजा होय ||

-निश्चलदासजी महाराज

 

सहजो कारज संसार को गुरू बिन होत नाँही |

हरि तो गुरू बिन क्या मिले, समझ ले मन माँही ||

-संत कबीरजी संत

 

सरनि जो जनु परै सो जनु उधरनहार |

संत की निंदा नानका बहुरि बहुरि अवतार ||

-गुरू नानक देवजी

 

"गुरूसेवा सब भाग्यों की जन्मभूमि है और वह शोकाकुल लोगों को ब्रह्ममय कर देती है | गुरुरूपी सूर्य अविद्यारूपी रात्रि का नाश करता है और ज्ञानाज्ञान रूपी सितारों का लोप करके बुद्धिमानों को आत्मबोध का सुदिन दिखाता है |"

-संत ज्ञानेश्वर महाराज

 

"सत्य के कंटकमय मार्ग में आपको गुरू के सिवाय और कोई मार्गदर्शन नहीं दे सकता |"

- स्वामी शिवानंद सरस्वती

 

"कितने ही राजा-महाराजा हो गये और होंगे, सायुज्य मुक्ति कोई नहीं दे सकता | सच्चे राजा-महाराज तो संत ही हैं | जो उनकी शरण जाता है वही सच्चा सुख और सायुज्य मुक्ति पाता है |"

-समर्थ श्री रामदास स्वामी

 

"मनुष्य चाहे कितना भी जप-तप करे, यम-नियमों का पालन करे परंतु जब तक सदगुरू की कृपादृष्टि नहीं मिलती तब तक सब व्यर्थ है |"

-स्वामी रामतीर्थ

 

प्लेटो कहते है कि : "सुकरात जैसे गुरू पाकर मैं धन्य हुआ |"

 

इमर्सन ने अपने गुरू थोरो से जो प्राप्त किया उसके महिमागान में वे भावविभोर हो जाते थे |

 

श्री रामकृष्ण परमहंस पूर्णता का अनुभव करानेवाले अपने सदगुरूदेव की प्रशंसा करते नहीं अघाते थे |

 

पूज्यपाद स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज भी अपने सदगुरूदेव की याद में स्नेह के आँसू बहाकर गदगद कंठ हो जाते थे |

 

पूज्य बापूजी भी अपने सदगुरूदेव की याद में कैसे हो जाते हैं यह तो देखते ही बनता है | अब हम उनकी याद में कैसे होते हैं यह प्रश्न है | बहिर्मुख निगुरे लोग कुछ भी कहें, साधक को अपने सदगुरू से क्या मिलता है इसे तो साधक ही जानते हैं |

 

लेडी मार्टिन के सुहाग की रक्षा करने अफगानिस्तान में प्रकटे शिवजी

 

साधू संग संसार में, दुर्लभ मनुष्य शरीर |

सत्संग सवित तत्व है, त्रिविध ताप की पीर ||

 

मानव-देह मिलना दुर्लभ है और मिल भी जाय तो आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक ये तीन ताप मनुष्य को तपाते रहते है | किंतु मनुष्य-देह में भी पवित्रता हो, सच्चाई हो, शुद्धता हो और साधु-संग मिल जाय तो ये त्रिविध ताप मिट जाते हैं |

 

सन १८७९ की बात है | भारत में ब्रिटिश शासन था, उन्हीं दिनों अंग्रेजों ने अफगानिस्तान पर आक्रमण कर दिया | इस युद्ध का संचालन आगर मालवा ब्रिटिश छावनी के लेफ़्टिनेंट कर्नल मार्टिन को सौंपा गया था | कर्नल मार्टिन समय-समय पर युद्ध-क्षेत्र से अपनी पत्नी को कुशलता के समाचार भेजता रहता था | युद्ध लंबा चला और अब तो संदेश आने भी बंद हो गये | लेडी मार्टिन को चिंता सताने लगी कि 'कहीं कुछ अनर्थ न हो गया हो, अफगानी सैनिकों ने मेरे पति को मार न डाला हो | कदाचित पति युद्ध में शहीद हो गये तो मैं जीकर क्या करूँगी ?'-यह सोचकर वह अनेक शंका-कुशंकाओं से घिरी रहती थी | चिन्तातुर बनी वह एक दिन घोड़े पर बैठकर घूमने जा रही थी | मार्ग में किसी मंदिर से आती हुई शंख व मंत्र ध्वनि ने उसे आकर्षित किया | वह एक पेड़ से अपना घोड़ा बाँधकर मंदिर में गयी | बैजनाथ महादेव के इस मंदिर में शिवपूजन में निमग्न पंडितों से उसने पूछा :"आप लोग क्या कर रहे हैं ?" एक व्रद्ध ब्राह्मण ने कहा : " हम भगवान शिव का पूजन कर रहे हैं |" लेडी मार्टिन : 'शिवपूजन की क्या महत्ता है ?' ब्राह्मण :'बेटी ! भगवान शिव तो औढरदानी हैं, भोलेनाथ हैं | अपने भक्तों के संकट-निवारण करने में वे तनिक भी देर नहीं करते हैं | भक्त उनके दरबार में जो भी मनोकामना लेकर के आता है, उसे वे शीघ्र पूरी करते हैं, किंतु बेटी ! तुम बहुत चिन्तित और उदास नजर आ रही हो ! क्या बात है ?" लेडी मार्टिन :" मेरे पतिदेव युद्ध में गये हैं और विगत कई दिनों से उनका कोई समाचार नहीं आया है | वे युद्ध में फँस गये हैं या मारे गये है, कुछ पता नहीं चल रहा | मैं उनकी ओर से बहुत चिन्तित हूँ |" इतना कहते हुए लेडी मार्टिन की आँखे नम हो गयीं | ब्राह्मण : "तुम चिन्ता मत करो, बेटी ! शिवजी का पूजन करो, उनसे प्रार्थना करो, लघुरूद्री करवाओ | भगवान शिव तुम्हारे पति का रक्षण अवश्य करेंगे | "

 

पंडितों की सलाह पर उसने वहाँ ग्यारह दिन का 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र से लघुरूद्री अनुष्ठान प्रारंभ किया तथा प्रतिदिन भगवान शिव से अपने पति की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगी कि "हे भगवान शिव ! हे बैजनाथ महादेव ! यदि मेरे पति युद्ध से सकुशल लौट आये तो मैं आपका शिखरबंद मंदिर बनवाऊँगी |" लघुरूद्री की पूर्णाहुति के दिन भागता हुआ एक संदेशवाहक शिवमंदिर में आया और लेडी मार्टिन को एक लिफाफा दिया | उसने घबराते-घबराते वह लिफाफा खोला और पढ़ने लगी |

 

पत्र में उसके पति ने लिखा था :"हम युद्ध में रत थे और तुम तक संदेश भी भेजते रहे लेकिन आक पठानी सेना ने घेर लिया | ब्रिटिश सेना कट मरती और मैं भी मर जाता | ऐसी विकट परिस्थिति में हम घिर गये थे कि प्राण बचाकर भागना भी अत्याधिक कठिन था | इतने में मैंने देखा कि युद्धभूमि में भारत के कोई एक योगी, जिनकी बड़ी लम्बी जटाएँ हैं, हाथ में तीन नोंकवाला एक हथियार (त्रिशूल) इतनी तीव्र गति से घुम रहा था कि पठान सैनिक उन्हें देखकर भागने लगे | उनकी कृपा से घेरे से हमें निकलकर पठानों पर वार करने का मौका मिल गया और हमारी हार की घड़ियाँ अचानक जीत में बदल गयीं | यह सब भारत के उन बाघाम्बरधारी एवं तीन नोंकवाला हथियार धारण किये हुए (त्रिशूलधारी) योगी के कारण ही सम्भव हुआ | उनके महातेजस्वी व्यक्तित्व के प्रभाव से देखते-ही-देखते अफगानिस्तान की पठानी सेना भाग खड़ी हुई और वे परम योगी मुझे हिम्मत देते हुए कहने लगे | घबराओं नहीं | मैं भगवान शिव हूँ तथा तुम्हारी पत्नी की पूजा से प्रसन्न होकर तुम्हारी रक्षा करने आया हूँ, उसके सुहाग की रक्षा करने आया हूँ |"

 

पत्र पढ़ते हुए लेडी मार्टिन की आँखों से अविरत अश्रुधारा बहती जा रही थी, उसका हृदय अहोभाव से भर गया और वह भगवान शिव की प्रतिमा के सम्मुख सिर रखकर प्रार्थना करते-करते रो पड़ी | कुछ सप्ताह बाद उसका पति कर्नल मार्टिन आगर छावनी लौटा | पत्नी ने उसे सारी बातें सुनाते हुए कहा : "आपके संदेश के अभाव में मैं चिन्तित हो उठी थी लेकिन ब्राह्मणों की सलाह से शिवपूजा में लग गयी और आपकी रक्षा के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करने लगी | उन दुःखभंजक महादेव ने मेरी प्रार्थना सुनी और आपको सकुशल लौटा दिया |" अब तो पति-पत्नी दोनों ही नियमित रूप से बैजनाथ महादेव के मंदिर में पूजा-अर्चना करने लगे | अपनी पत्नी की इच्छा पर कर्नल मार्टिन मे सन १८८३ में पंद्रह हजार रूपये देकर बैजनाथ महादेव मंदिर का जीर्णोंद्वार करवाया, जिसका शिलालेख आज भी आगर मालवा के इस मंदिर में लगा है | पूरे भारतभर में अंग्रेजों द्वार निर्मित यह एकमात्र हिन्दू मंदिर है |

 

यूरोप जाने से पूर्व लेडी मार्टिन ने पड़ितों से कहा : "हम अपने घर में भी भगवान शिव का मंदिर बनायेंगे तथा इन दुःख-निवारक देव की आजीवन पूजा करते रहेंगे |"

 

भगवान शिव में... भगवान कृष्ण में... माँ अम्बा में... आत्मवेत्ता सदगुरू में.. सत्ता तो एक ही है | आवश्यकता है अटल विश्वास की | एकलव्य ने गुरूमूर्ति में विश्वास कर वह प्राप्त कर लिया जो अर्जुन को कठिन लगा | आरूणि, उपमन्यु, ध्रुव, प्रहलाद आदि अन्य सैकड़ों उदारहण हमारे सामने प्रत्यक्ष हैं | आज भी इस प्रकार का सहयोग हजारों भक्तों को, साधकों को भगवान व आत्मवेत्ता सदगुरूओं के द्वारा निरन्तर प्राप्त होता रहता है | आवश्यकता है तो बस, केवल विश्वास की |

 

महामृत्युंजय मंत्र

 

ॐ हौं जूँ सः |

ॐ भूर्भुवः स्वः |

त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम |

उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात |

स्वः भ्वः भुः ॐ |

सः जूँ हौं ॐ |

 

भगवान शिव का यह महामृत्युंजय जपने से अकाल मृत्यु तो टलती ही है, आरोग्यता की भी प्राप्ति होती है | स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का जप करने से स्वास्थ्य-लाभ होता है | दूध में निहारते हुए इस मंत्र का जाप किया जाय और फिर वह दूध पी लिया जय तो यौवन की सुरक्षा में भी सहायता मिलती है | आजकल की तेज रफ़्तारवाली जिन्दगी में कहाँ आतंक, उपद्रव, दुर्घटना हो जाय, कहना मुश्किल है | घर से निकलते समय एक बार यह मंत्र जपनेवाला इन उपद्र्वों से सुरक्षित रहता है और सुरक्षित घर लौटता है | (इस मंत्रानुष्ठान के विधि-विधान की विस्तृत जानकारी के लिए आश्रम द्वारा प्रकाशित 'आरोग्यनिधि' पुस्तक पढ़ें |) 'श्रीमदभागवत' के आठ्वें स्कंध में तीसरे अध्याय के श्लोक १ से ३३ तक में वर्णित 'गजेन्द्रमोक्ष' स्तोत्र का पाठ करने से तमाम विध्न दूर होते हैं |