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अमृत के घूँट

श्री योग वेदान्त सेवा समिति

संत श्री आसारामजी आश्रम, अमदावाद

 

अनुक्रम

वसंत ऋतु (अप्रैल-मई) चैत्र-वैशाखः... 9

ग्रीष्म ऋतु (जून-जुलाई) ज्येष्ठ-आषाढ़ः.. 9

वर्षा ऋतु (अगस्त-सितम्बर) श्रावण-भाद्रपदः.. 10

शरद ऋतु (अक्तूबर-नवम्बर) आश्विन-कार्तिकः... 10

हेमन्त ऋतु (दिसम्बर-जनवरी) मार्गशीर्ष-पौष व शिशिर ऋतु (फरवरी-मार्च) माघ-फाल्गुनः... 10

 

 


सरलता, स्नेह, साहस,

धैर्य, उत्साह एवं तत्परता

जैसे गुणों से सुसज्जित तथा

दृष्टि को 'बहुजनहिताय....

बहुजनसुखाय....' बनाकर सबमें

सर्वेश्वर को निहारने से ही आप

महान बन सकोगे।

ॐॐॐॐॐ

 

हिलनेवाली, मिटनेवाली

कुर्सियों के लिए छटपटाना

एक सामान्य बात है, जबकि

परमात्मप्राप्ति के लिए छटपटाकर

अचल आत्मदेव में स्थित होना

निराली ही बात है।

यह बुद्धिमानों का काम है।

ॐॐॐॐॐ

 

मन को

फूलों की तरह

सुंदर रखो ताकि

भगवान की

पूजा में लग सके।

ॐॐॐॐॐ

 

हे वत्स !

उठ.... ऊपर उठ।

प्रगति के सोपान एक के बाद एक

तय करता जा।

दृढ़ निश्चय कर कि

'अब अपना जीवन

दिव्यता की तरफ लाऊँगा।

ॐॐॐॐॐ

 

निःस्वार्थता, लोभरहित एवं

निष्कामता मनुष्य को

देवत्व प्रदान करती हैं। जबकि

स्वार्थ और लोभ मनुष्य को

मनुष्यता से हटाकर

दानवता जैसी दुःखदायी

योनियों में भटकाते हैं।

जहाँ स्वार्थ है वहाँ आदमी

असुर हो जाता है। जबकि

निःस्वार्थता और निष्कामता से

उसमें सुरत्व जाग उठता है।

ॐॐॐॐॐ

 

कर्तव्यपरायणता की

राह पर आगे बढ़ो।

विषय-विलास, विकारों से दूर

रहकर, उमंग से कदम बढ़ाओ।

जप, ध्यान करो।

सदगुरु के सहयोग से

सुषुप्त शक्तियों की जगाओ।

कब तक दीन-हीन, अशांत

होकर तनाव में तलते रहोगे?

ॐॐॐॐॐ

 

दो औषधियों का मेल

आयुर्वेद का योग है। दो अंकों

का मेल गणित का योग है।

चित्तवृत्ति का निरोध

यह पातंजलि का योग है परंतु

सब परिस्थितियों में सम रहना

भगवान श्रीकृष्ण की गीता का

'समत्व योग' है।

ॐॐॐॐॐ

 

पहले अमृत जैसा पर

बाद में विष से भी बदतर हो,

वह विकारों का सुख है।

प्रारंभ में कठिन लगे,

दुःखद लगे, बाद में

अमृत से भी बढ़कर हो,

वह भक्ति का सुख है।

ॐॐॐॐॐ

 

जैसे किसी सेठ या

बड़े साहब से मिलने जाने पर

अच्छे कपड़े पहनकर

जाना पड़ता है,

वैसे ही बड़े-में-बड़ा जो

परमात्मा है, उससे मिलने के

लिए अंतःकरण इच्छा, वासना से

रहित, निर्मल होना चाहिए।

ॐॐॐॐॐ

 

जिसके जीवन में

समय का मूल्य नहीं,

कोई उच्च लक्ष्य नहीं, उसका

जीवन बिना स्टियरींग की गाड़ी

जैसा होता है। साधक अपने

एक-एक श्वास की कीमत

समझता है, अपनी हर चेष्टा का

यथोचित मूल्यांकन करता है।

ॐॐॐॐॐ

 

क्या तुमने

आज किसी की कुछ सेवा की है?

यदि नहीं तो आज का दिन

तुमने व्यर्थ खो दिया। यदि

किसी की कुछ सेवा की है तो

सावधान रहो, मन में कहीं

अहंकार न आ जाय।

ॐॐॐॐॐ

 

कभी भी कोई भी कार्य

आवेश में आकर न करो।

विचार करना चाहिए कि

इसका परिणाम क्या होगा?

गुरुदेव अगर सुनें या जानें तो

क्या होगा? विवेकरूपी चौकीदार

जागता रहेगा तो बहुत सारी

विपदाओं से, पतन के प्रसंगों से

ऐसे ही बच जाओगे।

ॐॐॐॐॐ

 

अतीत का शोक और

भविष्य की चिंता

क्यों करते हो?

हे प्रिय !

वर्तमान में साक्षी, तटस्थ और

प्रसन्नात्मा होकर जीयो....

ॐॐॐॐॐ

 

हे परम पावन प्रभु !

अंतःकरण को

मलिन करनेवाली स्वार्थ व

संकीर्णता की

सब क्षुद्र भावनाओं से

हम सभी ऊपर उठें।

ॐॐॐॐॐ

 

जैसे बीज की साधना

वृक्ष होने के सिवाय और

कुछ नहीं,

उसी प्रकार जीव की साधना

आत्मस्वरूप को जानने के सिवाय

और कुछ नहीं।

ॐॐॐॐॐ

 

तुम्हारे जीवन में

जितना संयम और वाणी में

जितनी सच्चाई होगी, उतनी ही

तुम्हारी और तुम जिससे

बात करते हो उसकी

आध्यात्मिक उन्नति होगी।

ॐॐॐॐॐ

 

अपने दोषों को खोजो।

जो अपने दोष देख सकता है,वह

कभी-न-कभी उन दोषों को

दूर करने के लिए भी

प्रयत्नशील होगा ही।

ऐसे मनुष्य की

उन्नति निश्चित है।

ॐॐॐॐॐ

 

आप महापुरुषों के

आभामंडल में आते हो तो

आपमें उच्च विचारों का प्रवाह

शुरू हो जाता है और

संस्कारहीन लोगों के आभामंडल में

जाते हो तो आपमें

तुच्छ विचारों का प्रवाह

शुरू हो जाता है।

ॐॐॐॐॐ

 

जिस मनुष्य ने भगवत्प्रेमी

संतो के चरणों की धूल

कभी सिर पर नहीं चढ़ायी, वह

जीता हुआ भी मुर्दा है।

वह हृदय नहीं, लोहा है,

जो भगवान के

मंगलमय नामों का

श्रवण-कीर्तन करने पर भी

पिघलकर उन्हीं की ओर

बह नहीं जाता।

-          श्रीमदभागवत

ॐॐॐॐॐ

 

जो दूसरों का

दुःख नहीं हरता, उसका

अपना दुःख नहीं मिटता और

जो दूसरों के

दुःख हरने में लग जाता है,

उसका अपना दुःख टिकता नहीं।

ॐॐॐॐॐ

 

कपट का आश्रय लेने से

अंतःकरण मलिन होता है और

सत्य का आश्रय लेने से

अंतःकरण में

सिंह जैसा बल आ जाता है।

अतः कर्म में पुरुषार्थ और

विवेक के साथ सच्चाई को

सदैव साथ रखो।

ॐॐॐॐॐ

 

बहते संसार के

सुख-दुःख,

आकर्षण-विकर्षण में

चट्टान की नाईं

सम,निर्लिप्त रहना ही बहादुरी है।

ॐॐॐॐॐ

 

आप अन्य लोगों से

जैसा व्यवहार करते हैं

वैसा ही घूम-फिरकर

आपके पास आता है। इसलिए

दूसरों से भलाई का व्यवहार करो।

वह भलाई कई गुनी होकर

वापस लौटेगी।

ॐॐॐॐॐ

 

ईश्वर को पाने के लिए

कोई मजदूरी नहीं करनी पड़ती,

सिर्फ कला समझनी पड़ती है।

मुक्ति के लिए

कोई ज्यादा मेहनत नहीं है।

नश्वर का सदुपयोग और

शाश्वत में प्रीति – ये दो ही

छोटे से काम हैं।

ॐॐॐॐॐ

 

बैल किसान की बात मानता है।

घोड़ा घुड़सवार की

बात मानता है।

कुत्ता या गधा भी अपने

मालिक की बात मानता है। परंतु

जो मनुष्य किन्हीं

ब्रह्मवेत्ता को अपने सदगुरु के रूप

में तो मानता है लेकिन

उनकी बात नहीं मानता

वह तो इन प्राणियों से भी

गया-बीता है।

ॐॐॐॐॐ

 

कितने भी फैशन बदलो, कितने भी

मकान बदलो, कितने भी नियम

बदलो लेकिन दुःखों का अंत

होने वाला नहीं। दुःखों का अंत

होता है बुद्धि को बदलने से। जो

बुद्धि शरीर को मैं मानती है और

संसार में सुख ढूँढती है, उसी बुद्धि

को परमात्मा को मेरा मानने में और

परमात्म-सुख लेने में लगाओ तो

आनंद-ही-आनंद है,

माधुर्य-ही-माधुर्य है...

ॐॐॐॐॐ

 

गुरु की

सीख माने वह शिष्य है।

अपने मन में जो आता है, वह तो

अज्ञानी, पामर, कुत्ता, गधा भी

युगों से करता आया है। आप तो

गुरुमुख बनिये,

शिष्य बनिये।

ॐॐॐॐॐ

वसंत ऋतु (अप्रैल-मई) चैत्र-वैशाखः

खाने योग्यः गेहूँ, मूँग, चावल, पुराने जौ, तिल का तेल, परवल, सूरन, सहजन, सुआ, मेथी, बैंगन, ताजी नरम मूली, अदरक आदि।

न खाने योग्यः पचने में भारी, शीत, अम्ल, स्निग्ध व मधुर द्रव्य जैसे – गुड़, दही, टमाटर, पालक, पेठा, ककड़ी, खीरा, खरबूजा, तरबूज, केला, बेर, खजूर, नारियल, कटहल, अंजीर, बेलफल, गन्ने का रस, सूखे मेवे, मिठाई, दूध से बने पदार्थ आदि।

ग्रीष्म ऋतु (जून-जुलाई) ज्येष्ठ-आषाढ़ः

खाने योग्यः मधुर, सुपाच्य, जलीय, ताजा, स्निग्ध व शीत गुणयुक्ता गेहूँ, चावल, सत्तू, दूध, घी, लौकी, पेठा, गिल्की, परवल, करेला, चौलाई, पालक, धनिया, पुदीना, ककड़ी, नींबू, अंगूर, खरबूजा, नारियल, अनार, केला, आम आदि।

न खाने योग्यः नमकीन, खट्टा, रूखा, मिर्च-मसालेदार, तला। दही, अमचूर, अचार, इमली, आलू, बैंगन, मटर, चना, टमाटर, गोभी, भिंडी आदि भारी, वायुकारक सब्जियाँ। गरम मसाला, हरी या लाल मिर्च व अदरक अधिक नहीं। छाछ (जीरा, धनिया, सौंफ व मिश्री मिलायी हुई ताजी छाछ ले सकते हैं)।

वर्षा ऋतु (अगस्त-सितम्बर) श्रावण-भाद्रपदः

खाने योग्यः हल्का, ताजा, स्निग्ध, अम्ल रसयुक्त। गेहूँ, मूँग, पुराने जौ, सहजन, परवल, दूधी, सूरन, तोरई, गिल्की, बथुआ, मेथी, पालक, जामुन, अनार, काली द्राक्ष (सूखी), अदरक, लहसुन, हल्दी, सोंठ, पीपरामूल, अजवाईन, इलायची, जीरा, स्याहजीरा, लौंग, तिल का तेल आदि। लघु भोजन, उपवास हितकरा।

न खाने योग्यः गरिष्ठ भोजन, उड़द, चना, अरहर, चौलाई, आलू, केला, आम, अंकुरित अनाज, मैदा, मिठाई, मट्ठा, शीतपेय, आइसक्रीम आदि।

शरद ऋतु (अक्तूबर-नवम्बर) आश्विन-कार्तिकः

खाने योग्यः शीत गुणयुक्त, हलके, कसैले, कड़वे, मीठे पदार्थ। साठी के चावल, गेहूँ, जौ, मूँग, परवल, पेठा, लौकी (घीया), तेरई, चौलाई, पालक, गाजर, आँवला, अनार, पके केले, जामुन, मौसम्मी, सेब, अंजीर, गन्ना, नारियल, जीरा, धनिया, सौंफ। विशेष- गाय का दूध, घी, चावल की खीर, मक्खन-मिश्री व किशमिश, काली द्राक्षा।

न खाने योग्यः तले, तीखे, खट्टे – दही, खट्टी छाछ (ग्रीष्मानुसार), नमकीन, गर्म तासीर वाले व गरिष्ठ पदार्थ, हींग, लाल मिर्च, तिल व सरसों का तेल, बाजरा, मक्का, उड़द की दाल, मूँगफली, अदरक, लहसुन, प्याज, इमली, पुदीना, ककड़ी, मेथी, भिंडी, बैंगन आदि। भरपेट भोजन वर्जित।

हेमन्त ऋतु (दिसम्बर-जनवरी) मार्गशीर्ष-पौष व शिशिर ऋतु (फरवरी-मार्च) माघ-फाल्गुनः

खाने योग्यः मौसमी फल व शाक, दूध, रबडी, घी, मक्खन, मट्ठा, शहद, उड़द, खजूर, तिल, खोपरा, मेथी, पीपर, सूखे मेवे, कच्चे चने (चबा-चबाकर), मूँगफली, गुड़, गाजर, केला, शकरकंद, सिंघाड़ा, आँवला आदि। विशेष- उड़दपाक, सोंठपाक, च्यवनप्राश आदि।

न खाने योग्यः रूक्ष, कसैले, तीखे व कड़वे रसप्रधान द्रव्य, वातकारक व बासी पदार्थ एवं हलका भोजन आदि।

ॐॐॐॐॐ

आहारशुद्धो सत्त्वशुद्धिः सत्त्व शुद्धो ध्रुवा स्मृतिः

स्मृतिलम्भे सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्षः।

'आहार की शुद्धि से सत्त्व की शुद्धि होती है, सत्त्वशुद्धि से बुद्धि निर्मल और निश्चयी बन जाती है। फिर पवित्र एवं निश्चयी बुद्धि से मुक्ति भी सुगमता से प्राप्त होती है।'

(छान्दोग्योपनिषद् 7.26.2)

दाहिने स्वर भोजन करे, बाँये पीवै नीर।

ऐसा संयम जब करै, सुखी रहे शरीर।।

बाँयें स्वर भोजन करे, दाहिने पीवे नीर।

दस दिन भूखा यों करै, पावै रोग शरीर।।

शीतल जल में डालकर सौंफ गलाओ आप।

मिश्री के सँग पान कर मिटे दाह-संताप।।

सौंफ इलायची गर्मी में, लौंग सर्दी में खाय।

त्रिफला सदाबहार है, रोग सदैव हर जाय।।

वात-पित्त जब-जब बढ़े, पहुँचावे अति कष्ट।

सोंठ, आँवला, द्राक्ष संग खावे पीड़ा नष्ट।।

नींबू के छिलके सुखा, बना लीजिये राख।

मिटै वमन मधु संग ले, बढ़ै वैद्य की साख।।

स्याह नौन हरड़े मिला, इसे खाइये रोज।

कब्ज गैस क्षण में मिटै, सीधी-सी है खोज।।

खाँसी जब-जब भी करे, तुमको अति बैचेन।

सिंकी हींग अरु लौंग से मिले सहज ही चैन।।

छल प्रपंच से दूर हो, जन-मङ्गल की चाह।

आत्मनिरोगी जन वही गहे सत्य की राह।।

ॐॐॐॐॐ

संसार को

पालो

और

भगवान को

पा

लो।

ॐॐॐॐॐ