रात्रि में सिद्ध उष्णोदक पान

अग्नि पर उबाल कर औटाये हुए जल को सिद्ध उष्णोदक कहते हैं। रात्रि में औटाया हुआ गर्म जल पीने से कफ, आमवात (गठिया) व मेदारोग (मोटापा) नष्ट होता है। इससे खाँसी, श्वास (दमा) व बुखार में भी राहत मिलती है। सिद्ध उष्णोदक पान से मूत्राशय की शुद्धि होती है व जठराग्नि प्रदीप्त रहती है। यथाः

श्लेष्मामवातमेदोघ्नं बस्तिशोधन दीपनम्।

कासश्वासज्वरहरं पीतमुष्णोदकं निशि।।

(शार्ङ्गधर संहिता, मध्यम खंडः 2.181)

चार भाग जल में से 1 भाग जल औटाकर शेष 3 भाग जल वायुनाशक होता है। 2 भाग औटाकर आधा जल पित्तनाशक होता है व 3 भाग औटाकर चतुर्थांश शेष जल कफनाशक होता है।

दिन में पेयपान विधिः

निशान्ते पिबेत् वारि दिनान्ते पयः पिबेत्।

भोजनान्ते पिबेत् तक्रं वैद्यस्य किं प्रयोजनम्?

तात्पर्य-रात्रि के अंत में अर्थात उषाकाल में जलपान करें। रात को रखा हुआ पानी प्रातः पीने से शरीर का आभ्यंतर शुद्धि हो जाती है।

दिन के अंत में अर्थात सूर्यास्त के बाद दुग्धपान करें...। इससे शुक्रधातु की वृद्धि व नेत्रों का तर्पण होता है। दिन भर में सेवन किये गये खट्टे-तीखे पदार्थों से उत्पन्न दाह का शमन हो जाता है।

मध्याह्ण में भोजन के बाद तक्रपान करें। ताजे दही में पानी मिलाकर खूब मथकर बनायी गयी छाछ पीने से भोजन का सम्यक पाचन हो जाता है व मन तृप्त होता है।

अगर इस प्रकार अन्न-जल का विधिवत सेवन किया जाय तो फिर वैद्य, हकीम, डॉक्टर की आवश्यकता ही क्या?


कायाकल्प

जिस औषधी प्रयोग से शरीर में नयी कोशिकाएँ उत्पन्न होकर निरामय दीर्घायुष्य की प्राप्ति होती है, उस प्रयोग को कायाकल्प कहते हैं। आयुर्वेद में कायाकल्प के अनेक प्रकार के प्रयोगों का वर्णन मिलता है।

आँवला, भांगरा, तिल व पुरान गुड़ के विधिवत सेवन से शरीर का कायाकल्प हो जाता है। यह कायाकल्प शरीर को नवजीवन प्रदान करता है।

कायाकल्प विधिः 100 ग्राम आँवला चूर्ण, 200 ग्राम भांगरा चूर्ण, 200 ग्राम पिसे हुए काले तिल व 1 वर्ष पुराना गुड़ अथवा शक्कर 400 ग्राम- इन सबको मिला लें।

प्रतिदिन प्रातः 11 ग्राम मिश्रण पानी के साथ लें। उसके बाद 2 घण्टे तक कुछ भी न लें। फिर दूध पियें। भोजन में दूध व चावल लें। इस प्रयोग के दौरान केवल दूध अथवा दूध-चावल का ही सेवन करना आवश्यक है। दूध देसी गाय का हो व साठी के चावल हों तो उत्तम।

लाभः कल्प शुरू करने के 1 माह बाद लाभ दिखायी देने लगते हैं। 1 महीने में  सभी प्रकार के पेट के विकार ठीक हो जाते हैं। तीन महीने सेवन करने से वाणी अत्यन्त मधुर हो जाती है। स्मरणशक्ति बढ़ने लगती है। शारीरिक पीड़ा, जोड़ों का दर्द, अनिद्रा और चिड़चिड़ापन मिट जाता है।

अगर 1 वर्ष तक इसका विधिवत सेवन किया जाये तो सफेद बाल काले हो जाते हैं। दाँत मृत्युपर्यन्त दृढ़ रहते हैं। त्वचा झुर्रियों से रहित हो जाती है। श्रवणशक्ति व नेत्रज्योति तीव्र हो जाती है। बल, वीर्य, बुद्धि व स्मृति में वृद्धि होकर चिरयौवन व दीर्घ आयुष्य की प्राप्ति होती है। ईश्वर-उपासना, दानशीलता, सदाचार, परोपकार, व ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करने से इस कल्प के संपूर्ण लाभ प्राप्त होते हैं।

आप इसे स्वयं बना सकते हैं अथवा आश्रमों या समितियों के सेवाकेन्द्रों से प्राप्त कर सकते हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2008, पृष्ठ 30.