सत्संग बिन
कर्म न सूझे, कर्म
बिना अनुभव कैसा?
अनुभव बिन
कछु ज्ञान न होवे,
ज्ञान बिना महापद
कैसा?
बीज बिन मूल
मूल बिन डाली, डाली
बिन फूल हो कैसा?
कभी न देखा
जल बिन दरिया, दरिया
बिन मोती कैसा?
सत्संग...
जब तक भीतर
खिड़की न खुले,
तब तक दीदारा कैसा?
गुरुगम चावी
मिल जाये फिर, अँधेरा
कैसा?
सत्संग....
सत्पुरुषों
का मिलना दुर्लभ,
दुर्लभ मानव की
काया।
ऐसा सोच करो
हरि सुमरन, छोड़ो
दुनिया की माया।।
सत्संग....
सत्संग की
सदभावना दिल में,
पूर्वजन्म प्रारब्ध
बिना।
कभी न होता
है मन मेरा, शकंर
बहुत विचार कीना।।
सत्संग....
ॐ
हो गई रहेमत
तेरी सदगुरु रहेमत
छा गई।
देखते ही देखते
आँखों में मस्ती
आ गई।।
गम मेरे सब
मिट गये और मिट
गये रंजो अलम।
जब से देखी
है तेरी दीदार
ए मेरे सनम।।
हो गई....
आँख तेरी ने
पिलाई है मुझे
ऐसी शराब।
बेखुदी से
मस्त हूँ उठ गये
सारे हजाब।।
हो गई...
मस्त करती
जा रही शक्ल नूरानी
तेरी।
कुछ पता-सा
दे रही आँख मस्तानी
तेरी।।
हो गई...
अब तो जीऊँगा
मैं दुनियाँ में
तेरा ही नाम लें।
आ जरा नैनों
के सदके मुझको
सदगुरु थाम ले।।
हो गई....
ॐ
अगर है ज्ञान
को पाना, तो गुरु
की जा शरण भाई....
जटा सिर पे
रखाने से, भसम तन
में रमाने से।
सदा फल मूल
खाने से, कभी नहीं
मुक्ति को पाई।।
बने मूरत पुजारी
हैं, तीरथ यात्रा
पियारी है।
करें व्रत
नेम भारी हैं, भरम
मन का मिटे नाहीं।।
कोटि सूरज
शशी तारा, करें
परकाश मिल सारा।
बिना गुरु
घोर अंधियारा,
न प्रभु का रूप
दरसाई।।
ईश सम जान गुरुदेवा,
लगा तन मन करो सेवा।
ब्रह्मनन्द
मोक्ष पद मेवा,
मिले भव-बन्ध कट
जाई।।
ॐ
हर हर ओम ओम
हर हर ओम ओम।। (टेक)
जंगल में जोगी
बसता है, गह रोता
है गह हँसता है।
दिल उसका कहीं
नहीं फँसता है,
तन मन में चैन बरसता
है।।
हर हर...
खुश फिरता
नंगमनंगा है, नैनों
में बहती गंगा
है।
जो आ जाये सो
चंगा है, मुख रंग
भरा मन रंगा है।।
हर हर...
गाता मौला
मतवाला जब देखो
भोला भाला है।
मन मनका उसकी
माला है तन उसका
शिवाला है।।
हर हर....
पर्वाह न मरने
जीने की, है याद
न खाने पीने की।
कुछ दिन की
सुधि न महीने की,
है पवन रुमाल पसीने
की।।
हर हर...
पास उसके पंछी
आते, दरिया गीत
सुनाते हैं।
बादल स्नान
कराते हैं, वृछ
उसके रिश्ते नाते
हैं।।
हर हर....
गुलनार शफक
वह रंग भरी, जाँगी
के आगे है जो खड़ी।
जोगी की निगह
हैरां गहरी, को
तकती रह रह कर है
पड़ी।।
हर हर...
वह चाँद चटकता
गुल जो खिला, इस
मेहृ की जोत से
फूल झड़ा।
फव्वारा फहरत
का उछला, फुहार
का जग पर नूर पड़ा।।
हर हर....
ॐ
पीकर शराबे
मुर्शिद मस्ताना
हो गया हूँ।
मन और बुद्धि
से यारों बेगाना
हो गया हूँ।।
कहने को कुछ
जुबाँ किसको है
होशे फुर्सत।
साकी की शम्माए
लौका परवाना हो
गया हूँ।।
यारों बताऊँ
कैसे हाँसिल हुई
ये मस्ती।
साकी की खाक
पाका नजराना हो
गया हूँ।।
जब से पिलाया
भरके सदगुरु ने
जामे वादत।
उस दिन से गोया
खुद ही मैखाना
हो गया हूँ।।
रंजो अलम कहाँ
अब ढूँढे मिले
न मुझमें।
शाहों के साथ
मिलकर शाहाना हो
गया हूँ।।
लायक नहीं
था इसके बक्षिस
हुई जो गुरु की।
मस्तों के
साथ मिलकर मस्ताना
हो गया हूँ।
ॐ
घट ही में
अविनाशी साधो,
घट ही में अविनाशी
रे।। (टेक)
काहे रे नर
मथुरा जावे, काहे
जावे काशी रे।
तेरे मन में
बसे निरंजन, जौ
बैकुण्ठ बिलासी
रे।।
नहीं पाताल
नहीं स्वर्ग लोक
में, नहीं सागर
जल राशि रे।
जो जन सुमिरण
करत निरंतर, सदा
रहे तिन पासी रे।।
जो तू उसको
देखा चाहे, सबसे
होय उदासी रे।
बैठ एकान्त
ध्यान नित कीजे,
होय जोत परकाशी
रे।।
हिरदे में
जब दर्शन होवे,
सकल मोह तम नाशी
रे।
'ब्रह्मानन्द' मोक्षपद
पावे, कटे जन्म
की फाँसी रे।।
ॐ
अब मैं अपना
ढोल बजाऊँ।
देवी देवता
सब को छोड़ी, अपना
ही गुन गाऊँ।।
(टेक)
ब्रह्मा
विष्णु महादेव
को भी, सच्ची बात
सुनाऊँ।
एक अनादि
अनन्त ब्रह्म मैं,
खुद ही खुदा कहाऊँ।।
अब मैं....
गंगा जमुना
सबको छोड़ी, ज्ञान
सरित में नहाऊँ।
छोड़ी, द्वारिका
छोड़ी मथुरा, सून
में सेज बिछाऊँ।।
अब मैं....
परम प्रेम
का प्याला भर भर
खूब पीऊँ खूब पाऊँ।
मेरी बात
को माने ताको, पल
में पीर बनाऊँ।।
अब मैं....
अद्धर तख्त
पे आसन रख के, अदभुत
खेल रचाऊँ।
शंकर सबसे
फिरे अकेला, सोहम
धुन मचाऊँ।।
अब मैं....
ॐ
काहे रे बन
खोजन जाई।। (टेक)
सर्व निवासी
सदा अलेपा, तोरे
ही संग समाई।।
पुष्प मध्य
ज्यों बास बसत
है, मुकुर माहिं
जस छाई।
तैसे ही हरि
बसै निरन्तर, घट
ही खोजो भाई।।
बाहर भीतर
एकै जानो, यह गुरु
ज्ञान बताई।
जन नानक बिन
आपा चिन्हें, मिटे
न भस्म की काई।।
ॐ
गुरुदेव
दया कर दो मुझ पर
मुझे अपनी
शरण में रहने दो।
मुझे ज्ञान
के सागर से स्वामी
अब निर्मल
गागर भरने दो।
तुम्हारी
शरण में जो कोई
आया
पार हुआ वो
एक ही पल में।
इस दर पे
हम भी आये हैं
इस दर पे
गुजारा करने दो।।
...मुझे ज्ञान
के ....
सरपे छाया
घोर अंधेरा
सूझत नाहीं
राह कोई।
ये नयन मेरे
और ज्योत तेरी
इन नयनों
को भी बहने दो।।
....मुझे ज्ञान
के....
चाहे डुबा
दो चाहे तैरा दो
मर गये तो
देंगे दुआएँ।
ये नाव मेरी
और हाथ तेरे
मुझे भवसागर
में तरने दो।।
....मुझे ज्ञान
के...
ॐ
आशिक मस्त
फकीर हुआ जब, क्या
दिलगीरपणा मन में।।
कोई पूजत
फूलन मालन से सब
अंग सुगन्ध लगावत
हैं।
कोई लोक निरादर
करें, मग धूल उडावत
हैं तन में।।
.....आशिक....
कोई काल मनोहर
थालन में, रसदायक
मिष्ट पदारथ हैं।
किस रोज जला
सुकड़ा टुकड़ा,
मिल जाये चबीना
भोजन में।।
....आशिक...
कबी ओढत शाल
दुशालन को, सुख
सोवत महर अटारिन
में।
कबी चीर फटी
तन की गुदड़ी, नित
लेटत जंगल वा वन
में।।
....आशिक....
सब द्वैत
के भाव को दूर किया,
परब्रह्म सबी घर
पूरन है।
ब्रह्मानन्द
न वैर न प्रीत कहीं,
जग में विचरे सम
दर्शन में।।
....आशिक.....
ॐ
ऐसी भूल दुनिया
के अन्दर साबूत
करणी करता तू।
ऐसो खेल रच्यो
मेरे दाता ज्यों
देखूं वाँ तू को
तू।। (टेक)
कीड़ी में
नानो बन बैठो हाथी
में तू मोटो क्यों?
बन महावत
ने माथे बेठो हांकणवाळो
तू को तू।।
ऐसो खेल...
दाता में
दाता बन बैठो भिखारी
के भेळो तू।
ले झोळी ने
मागण लागो देवावाळो
दाता तू।।
ऐसो खेल...
चोरों में
तू चोर बन बेठो
बदमाशों के भेळो
तू।
ले झोळी ने
मागण लागो देवावाळो
दाता तू।।
ऐसो खेल...
नर नारी में
एक विराजे दुनियाँ
में दो दिखे क्यूं?
बन बाळक ने
रोवा लागो राखणवाळो
तू को तू।।
ऐसो खेल...
जल थल में
तू ही विराजे जंत
भूत के भेळो तू।
कहत कबीर
सुनो भाई साधो
गुरु भी बन के बेठो
तू।।
ऐसो खेल...
ॐ
सुन लो चतुर
सुजान निगुरे नहीं
रहना।। (टेक)
निगुरे का
नहीं कहीं ठिकाना
चौरासी में आना
जाना।
पड़े नरक की
खान निगुरे नहीं
रहना... सुन लो....
गुरु बिन माला
क्या सटकावै मनवा
चहुँ दिशा फिरता
जावे।
यम का बने मेहमान
निगुरे नहीं रहना...
सुन लो....
हीरा जैसी
सुन्दर काया हरि
भजन बिन जनम गँवाया।
कैसे हो कल्याण
निगुरे नहीं रहना....
सुन लो....
क्यों करता
अभिमान निगुरे
नहीं रहना... सुन
लो...
निगुरा होता
हिय का अन्धा खूब
करे संसार का धन्धा।
क्यों करता
अभिमान निगुरे
नहीं रहना... सुन
लो..
ॐ
निरंजन वन
में साधु अकेला
खेलता है।
निरंजन वन
में जोगी अकेला
खेलता है।। (टेक)
भख्खड़ ऊपर
तपे निरंजन अंग
भभूति लगाता है।
कपड़ा लत्ता
कुछ नहीं पहने
हरदम नंगा रहता
है।।
निरंजन वन
में...
भख्खड़ ऊपर
गौ वीयाणी उसका
दूध विलोता है।
मक्खन मक्खन
साधु खाये छाछ
जगत को पिलाता
है।।
निरंजन वन
में...
तन की कूंडी
मन का सोटा, हरदम
बगल में रखता है।
पाँच पच्चीसों
मिलकर आवे, उसको
घोंट पिलाता है।।
निरंजन वन
में...
कागज की एक
पुतली बनायी उसको
नाच नचाता है।
आप ही नाचे
आप ही गावे आप ही
ताल मिलाता है।।
निरंजन वन
में...
निर्गुण रोटी
सबसे मोटी इसका
भोग लगाता है।
कहत कबीर सुनो
भाई साधो अमरापुर
फिर जाता है।।
निरंजन वन
में...
ॐ
आओ मेरे प्यारे
भाइयों सीखो आत्मज्ञान
को।
तीन लोक में
गुरु बड़े हैं,
दिखलाते भगवान
को।। (टेक)
मानुष जन्म
बड़ा सुखदायी,
बिन जागे जग में
भरमाई।
चौरासी में
मत भटकाओ, अपनी
प्यारी जान को।
आओ मेरे....
संतों की संगत
में बैठो, हंसों
की पंगत में बैठो।
बगुलेपन को
बिलकुल छोड़ो,
त्यागो मान गुमान
को।।
आओ मेरे....
दिव्य ज्योति
का दर्शन कर लो,
सत्य नाम हृदय
में धर लो।
तब तुम कर लोगे
असली और नकली की
पहचान को।।
आओ मेरे....
संत श्री का
आश्रम है तीरथ,
जन्म मरण मिट जायेगा।
सदगुरु संत
दयालु दाता, देते
पद निर्वाण को।।
आओ मेरे....
ॐ
सेवा कर ले
गुरु की, भूले मनुआ।।
ब्रह्मा
विष्णु राम लक्ष्मण
शिव और नारद मुनि
ज्ञानी।
कृष्ण व्यास
और जनक ने महिमा,
गुरुसेवा की जानी।।
गाथा पढ़ी
ले रे गुरु की, भूले
मनुआ।। सेवा....
करि सत्संग
मेट आपा फिर द्वेष
भाव को छोड़ो।
राग द्वेष
आशा तृष्णा, माया
का बन्धन तोड़ो।।
ये ही भक्ति
है शुरु की, भूले
मनुआ।। सेवा ...
ध्यान करो
गुरु की मुरति
का, सेवा गुरु चरनन
की।
करि विश्वास
गुरु वचनों का,
मिटे कल्पना मन
की।।
कृपा दिखेगी
गुरु की, भूले मनुआ।।
सेवा....
जो अज्ञानी
बना रहा, चौरासी
सदा फँसेगा।
संत शरण जाकर
के बन्दे ! आवागमन मिटेगा।।
मुक्ति हो
जायेगी रूह की,
भूले मनुआ।। सेवा....
ॐ
ऐसी करी गुरुदेव
दया, मेरा मोह का
बन्धन तोड़ दिया।।
दौड़ रहा दिन
रात सदा, जग के सब
कार विहारण में।
सपने सम विश्व
मुझे, मेरे चंचल
चित्त को मोड़
दिया।।
ऐसी करी....
कोई शेष गणेष
महेश रटे, कोई पूजत
पीर पैगम्बर को।
सब पंथ गिरंथ
छुड़ा करके, इक
ईश्वर में मन जोड़
दिया।।
ऐसी करी....
कोई ढूँढत
है मथुरा नगरी,
कोई जाय बनारस
बास करे।
जब व्यापक
रूप पिछान लिया,
सब भरम का भंडा
फोड़ दिया।।
ऐसी करी.....
कौन करूँ गुरुदेव
की भेंट, न वस्तु
दिखे तिहँ लेकिन
में।
'ब्रह्मानंद' समान
न होय कभी, धन माणिक
लाख करोड़ दिया।।
ऐसी करी....
ॐ
गुरुभक्तों
के खुल गये भाग,
जब गुरुसेवा मिले।।
(टेक)
सेवा मिली
थी राजा हरिश्चन्द्र
को।
दे दिया राज
और ताज।। जब गुरु...
आप भी बिके
राजा, रानी को भी
बेच दिया।
बेच दिया रोहित
कुमार।। जब गुरु....
सेवा करी थी
भिलनी भक्त ने।
प्रभुजी पहुँच
गये द्वार।। जब
गुरु...
सेवा में पुत्र
पर आरा चला दिया।
वो मोरध्वज
महाराज।। जब गुरु....
सेवा करी थी
मीरा बाई ने।
लोक लाज दीनी
उतार।। जब गुरु....
तुमको भी मौका
गुरुजी ने दिन्हा।
हो जाओ मन से
पार।। जब गुरु...
ॐ
गुरुजी मैं
तो एक निरंजन ध्याऊँ।
दूजे के संग
नहीं जाऊँ।। (टेक)
दुःख ना जानूँ
दर्द ना जानूँ।
ना कोई वैद्य
बुलाऊँ।।
सदगुरु वैद्य
मिले अविनाशी।
वाकी ही नाड़ी
बताऊँ।। गुरुजी...
गंगा न जाऊँ
जमना न जाऊँ।
ना कोई तीरथ
नहाऊँ।।
अड़सठ तीरथ
है घट भीतर।
वाही में मल
मल नहाऊँ।। गुरुजी....
पत्ती न तोड़ूँ
पत्थर न पूजूँ।
न कोई देवल
जाऊँ।।
बन बन की मैं
लकड़ी न तोड़ूँ।
ना कोई झाड़
सताऊँ।। गुरुजी....
कहे गोरख सुन
हो मच्छन्दर।
ज्योति में
ज्योति मिलाऊँ।।
सदगुरु के
मैं शरण गये से।
आवागमन मिटाऊँ।।
गुरुजी....
ॐ
कहाँ जाना
निरबाना साधो ! कहाँ
जाना निरबाना? (टेक)
आना जाना देह
धरम है, तू देही
जुगजूना।
क्या मतलब
दुनिया से प्यारे
! मरघट
अलख जगाना।।
....साधो....
रात दिवस सब
तेरी करामत, तू
चँदा सुर स्याना।
फूँक मार के
सृष्टि उड़ावत,
पेदा करत पुराना।।
.....साधो....
चौद माळ का
महल पियारे, छन
में मिट्टी मिलाना।
भस्म लगा के
बंभोला से, पुनि
पुनि नैन मिलाना।।
....साधो....
अहं खोपड़ी
तोड़ी खप्पर, काला
हाथ गहाना।
शून्य शहर
में भीख माँगकर,
निजानन्द रस पाना।।
.....साधो....
पर्वत संत्री
देखो प्यारे ! नदीयन
नाच सुहाना।
तरुवर मुजरा
मोज देख के, सोहं
डमरू बजाना।।
....साधो....
सूरत प्रिया
से रंग जमाना, भेद
भरम मिटाना।
खुदी खोद के
देह दफाना, जीवन्मुक्त
कहाना।।
....साधो...
ॐ
मुझसे तुम
हो तुमसे मैं हूँ।
मुझको मुझमें
आने दो।।
जैसे जल में
जल मिल जाता।
वैसे ही प्रभु
तुमसे नाता।।
मैं तुम तक
बहता आया हूँ नीर
में नीर समाने
दो।।
मुझसे....
मैंने जब से
माया त्यागी।
मेरी तुमसे
ही लौ लागी।।
मैंने चाहा
प्रीत का जीवन,
मुझको प्रीत निभाने
दो।।
मुझसे....
जैसे मधुरिम
गन्ध सुमन में।
वैसे ही तुम
हो इस मन में।।
अर्चन पूजन
के मधुबन में ऋतु
बसंती आने दो।।
मुझसे...
ॐ
साधो ! सोऽहं सोऽहं
बोलो।
सदगुरु की
आज्ञा सिर धरके,
भीतर का पर्दा
खोलो।। (टेक)
सेवा से मन
निर्मल करके, सदगुरु
शब्द को तोलो।
वेदों के महा
वाक्य विचारी,
निजानन्द में डोलो।।
....साधो...
मन मैला को
ज्ञान न होवे, खोवे
ल्हाव अमोलो।
लख चौरासी
में वो जाकर, उठावे
बोज अतोलो।।
...साधो...
मेरी तेरी
छोड़ो प्यारे ! छोड़ो
काया चोळो।
मन बुद्धि
से भी पर जा के, प्रेम
से अमृत घोळो।।
....साधो...
तुम्हें क्या
निसबत दुनिया से,
आतम हीरा मोलो।
शंकर मस्त
सदा निज रूप में,
तुम भी ध्यान में
ड़ोलो।।
....साधो....
ॐ
देखा अपने
आपको मेरा दिल
दीवाना हो गया।
ना छेड़ो यारों
मुझे मैं खुद पे
मस्ताना हो गया।।
लाखों सूरज
और चन्द्रमा कुरबान
है मेरे हुस्नपे।
अदभुत छबी
को देखके, कहने
में शरमा गया।।
देखा.....
अब खुदी से
जाहिर है, हम ईशक
कफनी पहन के।
सत रंग से चोला
रंगा, दीदार अपना
पा गया।।
देखा....
अब दिखता नहीं
कोई मुझे, दुनिया
में मेरे ही सिवा
दुई का दफ्तर
फटा, सारा भरम विला
गया।।
देखा.....
अचल राम खुद
बेखुद है, मेहबूब
मुझसे न जुदा।
निज नूर में
भरपूर हो, अपने
आप समा गया।।
देखा....
ॐ
सदगुरु पइयाँ
लागूँ नाम लखाय
दीजो रे।। (टेक)
जनम जनम का
सोया मेरा मनुवा,
शब्दन मार
जगाय दीजो रे।।
सदगुरु....
घट अँधियारा
नैन नहीं सूझे,
ज्ञान का दीपक
जगाय दीजो रे।।
सदगुरु....
विष की लहर
उठत घट अन्दर,
अमृत बूँद
चुवाय दीजो रे।।
सदगुरु...
गहरी नदिया
अगम बहे घरवा,
खेई के पार
लगाय दीजो रे।।
सदगुरु....
धर्मदास की
अरज गुसाई,
अबकी खेप निभाय
दीजो रे।। सदगुरु
ॐ
अकल कला खेलत
नर ज्ञानी।
जैसे नाव हिरे
फिरे दसों दिश।
ध्रुव तारे
पर रहत निशानी।।
(टेक)
चलन वलन रहत
अवनि पर वाँकी।
मन की सूरत
आकाश ठहरानी।।
तत्त्व समास
भयो है स्वतंत्र।
जैसी बिम्ब
होत है पानी।।
अकल ....
छुपी आदि अन्त
नहीं पायो।
आई न सकत जहाँ
मन बानी।।
ता घर स्थिति
भई है जिनकी।
कही न जात ऐसी
अकथ कहानी।। अकल.....
अजब खेल अदभुत
अनुपम है।
जाकूँ है पहिचान
पुरानी।।
गगन ही गेब
भयो नर बोले।
एहि अखा जानत
कोई ज्ञानी।। अकल....
ॐ
तेरे फूलों
से भी प्यार तेरे
काँटों से भी प्यार।
जो भी देना
चाहे दे दे करतार,
दुनियाँ के तारणहार।।
(टेक)
हमको दोनों
हैं पसन्द तेरी
धूप और छाँव।
दाता ! किसी भी
दिशा में ले चल
जिन्दगी की नाव।
चाहे हमें
लगा दे पार चाहे
छोड़ हमें मझधार।।
जो भी देना
चाहे.....
चाहे सुख दे
या दुःख चाहे खुशी
दे या गम।
मालिक ! जैसे
भी रखेंगे वैसे
रह लेंगे हम।
चाहे काँटों
के दे हार चाहे
हरा भरा संसार।।
जो भी देना
चाहे....
ॐ
जब अपने ही
घर में खुदाई है,
काबा का सिजदा
कौन करे?
जब दिल में
ख्याले सनम हो
नबी, फिर गैर की
पूजा कौन करे?
तू बर्क गिरा
मैं जल जाऊँ, तेरा
हूँ तुझमें मिल
जाऊँ।
मैं करूँ खता
और तुम बख्शो, वह
रोज का झगड़ा कौन
करे?
हम मस्त हुए
बे वायदा पिये,
साकी की नजर के
सदके ये।
अंजाम की जाने
कौन खबर, पी लिया
तो तोबा कौन करे?
आबाद हों या
बरबाद करें, अब
उनकी नजर पे छोड़
दिया।
उनका था उनको
सौंप दिया, दिल
दे के तकाजा कौन
करे?
मेरे दिल में
अजल से कुंड भरे,
पी लूँ जब चाहूँ
भर भर के।
बिन पिए मैं
मस्ती में चूर
रहूँ मयखाने की
परवाह कौन करे?
तू सामने आ
मैं सिजदा करूँ,
फिर लुतफ है सिजदा
करने का।
मैं और कहीं
तू और कहीं, यह नाम
का सिजदा कौन करे?
ॐ
साधो ! चुप का है
निस्तारा। (टेक)
क्या कहूँ
कुछ कह न सकूँ मैं,
अदभुत है संसारा।।
अगमा चुप है
निगमा चुप है, चुप
है जन जग सारा।
धरती चुप है
गगना चुप है, चुप
है जल परवाहरा।।
साधो.....
पवना पावक
सूरज चुप है, चुप
है चाँद और तारा।
ब्रह्मा चुप
है विष्णु चुप
है, चुप है शंकर
प्यारा।।
साधो....
पहिले चुप
थी पीछे चुप है,
चुप है सिरजनहारा।
'ब्रह्मानन्द' तू चुप
में चुप हो, चुप
में कर दीदारा।।
साधो.....
ॐ
मेरा सत चित
आनन्दरूप कोई कोई
जाने रे....
द्वैत वचन
का मैं हूँ सृष्टा,
मन वाणी का मैं
हूँ दृष्टा।
मैं हूँ साक्षीरूप
कोई कोई जाने रे....
पंचकोष से
मैं हूँ न्यारा,
तीन अवस्थाओं से
भी न्यारा।
अनुभवसिद्ध
अनूप, कोई कोई जाने
रे....
सूर्य चन्द्र
में तेज मेरा है,
अग्नि में भी ओज
मेरा है।
मैं हूँ अद्वैत
स्वरूप, कोई कोई
जाने रे....
जन्म मृत्यु
मेरे धर्म नहीं
हैं, पाप पुण्य
कुछ कर्म नहीं
है।
अज निर्लेपीरूप,
कोई कोई जाने रे....
तीन लोक का
मैं हूँ स्वामी,
घट घट व्यापक अन्तर्यामी।
ज्यों माला
में सूत, कोई कोई
जाने रे....
राजेश्वर
निज रूप पहिचानो,
जीव ब्रह्म में
भेद न जानो।
तू है ब्रह्मस्वरूप,
कोई कोई जाने रे...
ॐ
शिवोऽहं का
डंका बजाना पड़ेगा।
मृषा द्वैत
भ्रम को भगाना
पड़ेगा।।
जिसे देख भूले
हो असली को भाई।
ये मृगजल की
हस्ति मिटाना पड़ेगा।।
... शिवोऽहं का...
ये संसार झूठा
ये व्यवहार झूठा।
इन्हें छोड़
सत में समाना पड़ेगा।।
..... शिवोऽहं का...
समझ जाओ पल
में या जन्मों
जन्म में।
यही वाक्य
दिल में जमाना
पड़ेगा।। ..... शिवोऽहं
का.....
अगर तुम कहो
इस बिन पार जावें।
गलत भेद भक्ति
हटाना पड़ेगा।।
...... शिवोऽहं का......
धरो ध्यान
अपना जो सर्वत्र
व्यापी।
नहीं गर्भ
में फिर से आना
पड़ेगा।। ..... शिवोऽहं
का.....
ये सदगुरु
का कहना अटल मान
लेना।
नहीं द्वार
के धक्के खाना
पड़ेगा।। .... शिवोऽहं
का...
ॐ
मन मस्त हुआ
तब क्यों बोले।
हीरा पाया
गाँठ गठाया, बार
बार फिर क्यों
खोले।। मन....
हलकी थी जब
चढ़ी तराजू, पूरी
भई फिर क्यों तौले।
मन....
सुरत कलारी
भई मतवारी, मदिरा
पी गई बिन तौले।
मन.....
हंसा पाये
मानसरोवर, ताल
तलैया क्यों डोले।
मन....
साहिब पावै
घट ही भीतर, बाहर
नैना क्यों खोले।
मन....
कहत कबीर सुनो
भाई साधो, साहब
मिल गये तिल ओले।
मन...
ॐ
न मैं बन्दा
न खुदा था, मुझे
मालूम न था।
दोनों इलित
से जुदा था, मुझे
मालूम न था।
शक्ले हैरत
जो हुई आइनये दिल
से पैदा।
मानिये शामे
सफा था, मुझे मालूम
न था।।
देखता था मैं
जिसे हो के लजीज
हर सू।
मेरी आँखों
में छिपा था, मुझे
मालूम न था।।
आप ही आप हूँ
यहाँ तालिबो मतलब
है कौन।
मैं जो आशिक
हूँ कहाँ था, मुझे
मालूम न था।।
वजह मालूम
हुई तुमसे न मिलने
की सनम।
मैं ही खुद
परदा बना था, मुझे
मालूम न था।।
बाद मुद्दत
जो हुआ वस्ल, खुला
राजे वतन।
वसाले हक मैं
सदा था, मुझे मालूम
न था।।
ॐ
तेरे दरस पाने
को जी चाहता है।
खुदी को मिटाने
को जी चाहता है।।
उठे राम की
मुहब्बत के दरया।
मेरा डूब जाने
को जी चाहता है।।
ये दुनिया
है सारी नजर का
धोखा।
हाँ ठोकर लगाने
को जी चाहता है।।
हकीकत दिखा
दे हकीकत वाले।
हकीकत को पाने
को जी चाहता है।।
नहीं दौलत
दुनिया की चाह
मुझे।
कि हर रो लुटाने
को जी चाहता है।।
है यह भी फरेबे
जनूने मुहब्बत।
तुम्हें भूल
जाने को जी चाहता
है।।
गये जिस्त
देकर जुदा करने
वाले।
तेरे पास आने
को जी चाहता है।।
पिला दे मुझको
जाम भर भर के साकी।
कि मस्ती में
आने को जी चाहता
है।।
न ठुकराओ मेरी
फरयाद अब तुम।
तुम्हीं में
समाने को जी चाहता
है।।
तेरे दरस पाने
को जी चाहता है।
खुदी को मिटाने
को जी चाहता है।।
ॐ
रे मन मुसाफिर
! निकलना
पड़ेगा,
काया कुटी
खाली करना पड़ेगा।।
भाड़े के क्वाटर
को क्या तू सँवारे,
जिस दिन तुझे
घर का मालिक निकाले।
इसका किराया
भी भरना पड़ेगा,
काया कुटी
खाली करना पड़ेगा।
आयगा नोटिस
जमानत न होगी,
पल्ले में
गर कुछ अनामत न
होगी।
होकर कैद तुझको
चलना पड़ेगा,
काया कुटी
खाली करना पड़ेगा।।
यमराज की जब
अदालत चढ़ोगे,
पूछोगे हाकिम
तो क्या तुम कहोगे।
पापों की अग्नि
जलना पड़ेगा,
काया कुटी
खाली करना पड़ेगा।।
'भिक्षु' कहें
मन फिरेगा तू रोता,
लख चौरासी
में खावेगा गोता।
फिर फिर जनमना
और मरना पड़ेगा,
काया कुटी
खाली करना पड़ेगा।।
ॐ
ओ काया गढ़
के वासी ! इस काया
को मैं मैं क्यों
बोले?
तू चेतन अज
अविनाशी, इस काया
को मैं मैं क्यों
बोले?
यह हाड़ मांस
की काया है, पल में
ढल जाने वाली।
तू अजर अमर
सुखराशि, इस काया
को मैं मैं क्यों
बोले?
तू शुद्ध सच्चिदानन्द
रूप, इस जड़ काया
से न्यारा है।
यह काया दुःखद
विनाशी, इस काया
को मैं मैं क्यों
बोले?
क्षिति जल
पावक अरु पवन गगन
से, काया का निर्माण
हुआ।
तू काट मोह
की फाँसी, इस काया
को मैं मैं क्यों
बोले?
कहें 'भिक्षु' सोच
समझ प्यारे, तुम
निज स्वरूप का
ज्ञान करो।
फिर मुक्ति
बने तेरी दासी,
इस काया को मैं
मैं क्यों बोले?
ॐ
चलो चलें हम
बेगम पुर के गाँव
में।
मन से कहीं
दूर कहीं आत्मा
की राहों में।।
चलो चलें हम
इक साथ वहाँ।
रूप न रेख न
रंग जहाँ।
दुःख सुख में
हम समान हो जायें।।
चलो चलें हम....
प्रेम नगर
के वासी हैं हम।
आवागमन मिटाया
है।
शान्ति सरोवर
में नित ही नहायें।।
चलो चलें हम....
देह की जहाँ
कोई बात नहीं।
मन के मालिक
खुद हैं हम।
अपने स्वरूप
में गुम हो जायें।
चलो चलें हम....
मुक्त स्वरूप
पहले से ही हैं।
खटपट यह सब
मन की है।
मन को भार भगाया
है हमने।।
चलो चलें हम....
ॐ
मुझे मेरी
मस्ती कहाँ ले
आई।
जहाँ मेरे
अपने सिवा कुछ
नहीं है।
पता जब लगा
मेरी हस्ती का
मुझको।
सिवा मेरे
अपने कहीं कुछ
नहीं है।।
सभी में सभी
में पड़ी मैं ही
मैं हूँ।
सिवा मेरे
अपने कहीं कुछ
नहीं है।
ना दुःख है
ना सुख है न है शोक
कुछ भी।
अजब है यह मस्ती
पिया कुछ नहीं
है।।
यह सागर यह
लहरें यह फैन और
बुदबुदे।
कल्पित हैं
जल के सिवा कुछ
नहीं है।
अरे ! मैं हूँ
आनन्द आनन्द है
मेरा।
मस्ती है मस्ती
और कुछ भी नहीं
है।।
भ्रम है यह
द्वन्द्व है यह
मुझको हुआ है।
हटाया जो उसको
खफा कुछ नहीं है।
यह परदा दुई
का हटा के जो देखा।
तो बस एक मैं
हूँ जुदा कुछ नहीं
है।।
ॐ
नजर आया है
हरसू माहजमाल अपना
मुबारिक हो।
'वह मैं हूँ
इस खुशी' में दिल
का भर आना मुबारिक
हो।।
उस उरयानी
रुखे खुरशीद की
खुद परदा हायल
थी।
हुआ अब फाश
परदा, सतर उड़ जाना
मुबारिक हो।
यह जिम्मो
इस्म का काँटा
जो बेढब सा खटकता
था।
खलेश सब मिट
गई काँटा निकल
जाना मुबारिक हो।।
न खदशा हर्ज
का मुतलिक न अन्देशा
खलल बाकी।
फुरे का बुलन्दी
पर यह लहराना मुबारिक
हो।।
तअल्लुक से
बरी होना हरूफे
राम की मानिन्द।
हर इक पहलू
से नुकता दाग मिट
जाना मुबारिक हो।।
ॐ
तजो रे मन हरि
विमुखन को संग।।
(टेक)
जिनके संग
कुबुद्धि उपजत
है, परत भजन में
भंग।।
कहा होत पयपान
कराये, विष नहीं
तजत भुजंग।
कागहि कहा
कपूर चुगाये, स्वान
नहाये गंग।।
तजो रे...
खर को कहा अरगजा
लेपन, मरकट भूषन
अंग।
गज को कहा नहाये
सरिता, बहुरि धरै
खेह अंग।।
तजो रे....
वाहन पतित
बान नहीं वेधत,
रीतो करत निषंग।
'सूरदास' खल कारी
कामरि, चढ़त न दूजो
रंग।।
ॐ
मिलता है सच्चा
सुख केवल, गुरुदेव
तुम्हारे चरणों
में।
श्वासों में
तुम्हार नाम रहे,
दिन रात सुबह और
शाम रहे।
हर वक्त यही
बस ध्यान रहे, गुरुदेव
तुम्हारे चरणों
में।।
चाहे संकट
ने आ घेरा हो, चाहे
चारों ओर अन्धेरा
हो।
पर चित्त न
डगमग मेरा हो, रहे
ध्यान तुम्हारे
चरणों में।।
चाहे अग्नि
में भी जलना हो,
चाहे काँटों पर
भी चलना हो।
चाहे छोड़े
के देश निकाला
हो, रहे ध्यान तुम्हारे
चरणों में।।
चाहे दुश्मन
सब संसार को, चाहे
मौत गले का हार
बने।
चाहे विष ही
निज आहार बने, रहे
ध्यान तुम्हारे
चरणों में।।
ॐ
मुनि कहत वशिष्ठ
विचारी
सुन राम वचन
हितकारी।। (टेक)
।। मुनि...
यह झूठा सकल
पसारा जिम मृगतृष्णा
जलधाराजी।
बिन ज्ञान
होय दुःख भारी।।
सुन....
स्वपने में
जीव अकेला जिम
देखे जगत का मेलाजी।
तिन जान यह
रचना सारी।। सुन...
परब्रह्म
एक परकाशे सब नाम
रूप भ्रम भासेजी।
जिम सीप मे
रजत निहारी।। सुन...
विषयों में
सुख कछु नाहीं
ब्रह्मानन्द तेरे
घट मांहीजी।
कर ध्यान देख
निरधारी।। सुन...
ॐ
जो आनन्द संत
फकीर करे, वो आनन्द
नाहीं अमीरी में।।
हर रंग में
सेवक रूप रहे, अमृतजल
का ज्यूं कूप रहे।
संत सेवा करे
और चुप रहे, संतवाणी
सदा मुख से उचरे।
निस्पृही
बनी जग में विचरे,
रहे सदा शूरवीरी
में।।
जो आनन्द
....
जग तारण कारण
देह धरे, सत्कर्म
करे जग पाप हरे।
जिज्ञासु
के घट में ज्ञान
भरे, चाहे छाँव
मिले चाहे धूप
मिले।
षड् रिपु असतर
रंग में रमे, रहे
धीर गंभीरी में।।
जो आनन्द...
सदबोध जगत
को आई कहे, सन्मार्ग
सदा बतलाई कहे।
गुरु ज्ञान
पद से गाई कहे, सतार
सां शब्द समझाई
कहे।
मरजीवा बने
सो मौज करे, रहे
अलमस्त फकीरी में।।
जो आनन्द...
ॐ
अब मैं किस
बिध हरिगुन गाऊँ?
जहाँ देखूँ
वहाँ तुझको देखूँ,
किसको गीत सुनाऊँ? (टेक)
जल मे मैं
हूँ स्थल में मैं
हूँ सब में मैं
ही पाऊँ।
मेरा अंश
बिना नहीं कोई,
किसकी धुन मचाऊँ?
अब मैं....
मेरी माया
शक्ति से मैं सारी
सृष्टि रचाऊँ।
मैं उसका
पालन करके, मेरे
में ही मिलाऊँ।।
अब मैं...
पहले था अब
हूँ और होऊँ पक्का
पीर कहाऊँ।
इस बातों
में जग क्या जाने? जग को धूल
फकाऊँ।।
अब मैं...
धरती तोड़ूँ
सुरता जोड़ूँ,
जब यह गाना गाऊँ।
'शंकर' मस्त शिखर
गढ़ खेलें खेलत
गुम हो जाऊँ।।
अब मैं...
ॐ
गुरु की सेवा
साधु जाने, गुरुसेवा
कहाँ मूढ पिछानै।
गुरुसेवा
सबहुन पर भारी,
समझ करो सोई नरनारी।।
गुरुसेवा
सों विघ्न विनाशे,
दुर्मति भाजै पातक
नाशै।
गुरुसेवा
चौरासी छूटै, आवागमन
का डोरा टूटै।।
गुरुसेवा
यम दंड न लागै, ममता
मरै भक्ति में
जागे।
गुरुसेवा
सूं प्रेम प्रकाशे,
उनमत होय मिटै
जग आशै।।
गुरुसेवा
परमातम दरशै, त्रैगुण
तजि चौथा पद परशै।
श्री शुकदेव
बतायो भेदा, चरनदास
कर गुरु की सेवा।।
ॐ
उधो ! मोहे संत
सदा अति प्यारे।
जा की महिमा
वेद उचारे।। (टेक)
मेरे कारण
छोड़ जगत के, भोग
पदारथ सारे।
निशदिन ध्यान
करें हिरदे में,
सब जग काज सिधारे।।
मैं संतन
के पीछे जाऊँ, जहाँ
जहाँ संत सिधारे।
चरणनरज निज
अंग लगाऊँ, शोधूँ
गात हमारे।।
संत मिले
तब मैं मिल जाऊँ,
संत न मुझसे न्यारे।
बिन सत्संग
मोहि नहीं पावे,
कोटि जतन कर हारे।।
जो संतन के
सेवक जग में, सो
मम सेवक भारे।
'ब्रह्मानन्द' संत जन पल
में, सब भव बंधन
टारे।।
ॐ
ज्योत से ज्योत
जगाओ सदगुरु !
ज्योत से ज्योत
जगाओ।।
मेरा अन्तर
तिमिर मिटाओ सदगुरु
!
ज्योत से ज्योत
जगाओ।।
हे योगेश्वर
! हे
परमेश्वर !
हे ज्ञानेश्वर
! हे
सर्वेश्वर !
निज कृपा बरसाओ
सदगुरु ! ज्योत से.....
हम बालक तेरे
द्वार पे आये,
मंगल दरस दिखाओ
सदगुरु ! ज्योत से....
शीश झुकाय
करें तेरी आरती,
प्रेम सुधा
बरसाओ सदगुरु ! ज्योत
से....
साची ज्योत
जगे जो हृदय में,
सोऽहं नाद
जगाओ सदगुरु ! ज्योत
से....
अन्तर में
युग युग से सोई,
चितिशक्ति
को जगाओ सदगुरु
! ज्योत
से....
जीवन में श्रीराम
अविनाशी,
चरनन शरन लगाओ
सदगुरु ! ज्योत से...
ॐ
दरबार में
सच्चे सदगुरु के,
दुःख दर्द
मिटाये जाते हैं।
दुनिया के
सताये लोग यहाँ,
सीने से लगाये
जाते हैं।।
ये महफिल है
मस्तानों की,
हर शख्स यहाँ
पर मतवाला।
भर भर के जाम
इबादत के,
यहाँ सब को
पिलाये जाते हैं।।
ऐ जगवालों
क्यों डरते हो?
इस दर पर शीश
झुकाने से।
ऐ नादानों
ये वह दर है,
सर भेंट चढ़ाये
जाते हैं।।
इलज़ाम लगानेवालों
ने,
इलजाम लगाए
लाख मगर।
तेरी सौगात
समझ करके,
हम सिर पे उठाये
जाते हैं।।
जिन प्यारों
पर ऐ जगवालों !
हो खास इनायत
सत्गुरु की।
उनको ही संदेशा
आता है,
और वो ही बुलाये
जाते हैं।।
ॐ
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ