(अनुक्रम)

(तम्बाकू)

"उठ.... जाग.... और तेरा ध्येय सिद्ध न हो तब तक चैन न लेना।"

उपनिषद्

"यदि तुम अपने आपको जान लोगे तो तुम्हें किसी भोग के पीछे

भागने की आवश्यकता न रहेगी। अतएव आत्म-साक्षात्कार करो।"

(अनुक्रम)

प्रस्तावना

आत्मभाव से सृष्टि का सम्राट बनने के लिए निर्मित मानव जीवभाव से कैसे पतन के गर्त में गिरता जाता है और स्वयं को ही कष्ट देता है उसका उत्तम उदाहरण देखना हो तो आप धूम्रपान और सुरा जैसे व्यसनों के प्रेमी व्यक्ति को देख लीजिए। धूम्रपान और सुरा के रसिक देवताओं के मंदिर के समान अपने शरीर को जलती चिता जैसा बना देते हैं। यह आश्चर्य की बात नहीं लगती? एक प्रकार से इसे बुद्धि का दिवाला ही कहा जाएगा।

मानव को इस गर्त से बाहर निकालने के लिए अनेक महापुरुषों नें युग-युग से प्रयत्न किये हैं। आज उन्हीं प्रयत्नों में से एक यह 'नशे से सावधान' नामक पुस्तिका आपके समक्ष प्रस्तुत की जा रही है। आशा है कि लोगों के अधोगामी जीवन को उर्ध्वगामी बनाने और दिव्य जीवन जीने को प्रेरित करने में यह पुस्तक उपयोगी रहेगी।

हमारी प्रार्थना है कि सज्जन स्वयं इस जीवन का निर्माण करने वाली पुस्तिका को पढ़ें और इसे घर-घर पहुँचायें। अधिक पुस्तकें मँगवा कर बाँटने के इच्छुक सज्जनों को रियायत मूल्य से पुस्तकें दी जायेंगी।

गाँव-गाँव घर-घर में लोग व्यसनों से मुक्त हों इसके लिए हम सब कटिबद्ध हों। पत्थरों के मंदिरों का जीर्णोद्धार भले होता रहे परन्तु मानव मंदिरों का जीर्णोद्धार अवश्य ही तेजी से होना चाहिए। यह योगदान हम सबके हिस्से में आता है। अतः पुनः हमारी विनती है कि यह पुस्तक पढ़ें और जैसे तैसे अधिकाधिक लोगों को पढ़ाने में निमित्त बनकर मानव मंदिर का रक्षण करें। इस पवित्र कार्य का लाभ परमात्मा आपको अवश्य देगा, देगा और देगा।

श्री योग वेदान्त सेवा समिति

अनुक्रम

 

नशे से सावधान.. 4

(तम्बाकू) 4

तम्बाकू की स्याही का विषैला प्रभाव.. 5

तम्बाकू से होने वाले रोग.. 5

फेफड़ों में कैंसर. 5

मुँह और गले का कैन्सर. 6

हार्ट अटैक.. 7

पेट के रोग.. 7

अंधापन.. 8

काग की सूजन.. 8

मूर्खतापूर्ण तर्क.. 8

एक डॉक्टर का अनुभव.. 10

तम्बाकू से धार्मिक हानि... 11

भाईयो ! चेत जाओ... 12

काल के जाल से कौन मुक्त है?. 13

बीड़ी पीने वालों का हाल.. 15

चाय-कॉफी ने किया हुआ सर्वनाश.. 15

स्वास्थ्य पर भयानक कुठाराघात.. 15

आयुर्वेदिक चाय.. 16

मादक पदार्थ.. 16

दारू.. 17

महानुभावों के वचन.. 19

आठ पापों का घड़ा.. 20

व्यसनों से मुक्ति किस प्रकार?. 20

यह दुःख शाप था या वरदान?. 21

वाह मेरी नैया के तारणहार..... 22

एक ही झटके में व्यसन से मुक्ति.... 23

वाह रे व्यसन तेरे रंग ! 24

उदगार.... 24

नशे से सावधान

(तम्बाकू)

भुक्... छुक्....भुक्....छुक्... आवाज़ करती ट्रेन जंगल में से गुज़र रही है। उसके एक डिब्बे में कितने ही नवयुवक, दो चार व्यापारी एक डॉक्टर और इन सबमें निराले लगते श्वेत-वस्त्रधारी एक संत यात्रा कर रहे हैं। उन्होंने दो-चार लोगों को बीड़ी-सिगरेट पीते देखा कि तुरन्त उन्हें रोकते हुए कहाः

"भाइयो ! आपको शायद खराब लगेगा परन्तु आपके कल्याण की एक बात मैं कहना चाहता हूँ। आप बुरा न मानें। आप ठाठ से धूम्रपान कर रहे हैं परन्तु उससे होने वाली हानि का आपको पता न होगा। अपने संपर्क में आने वाले अनेकों बड़े-बड़े डॉक्टरों से जो कुछ मैंने सुना है, उसके आधार पर तम्बाकू के अवगुणों के सम्बन्ध में आपको कुछ सूचनाएँ देता हूँ। आप ध्यानपूर्वक सुनें और फिर आपकी विवेक-बुद्धि जैसा कहे वैसा करना।"

सादे वस्त्रों में प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले इन महाराज श्री की आकर्षक आवाज सुनकर डिब्बे में बैठे सब का ध्यान उनकी ओर गया। धूम्रपान करने वाले सज्जनों ने बीड़ी-सिगरेट खिड़की से बाहर फैक दी और ध्यानपूर्वक सुनने के लिए तत्पर हो गये। महाराजश्री ने सबकी ओर देखते हुए अमृतवाणी का झरना बहायाः

"अभी-अभी डॉक्टरों ने यह सिद्ध किया है कि प्रतिदिन एक बीड़ी या सिगरेट पीने वाले व्यक्ति की आयु में प्रतिदिन छः मिनट कम हो जाते हैं। दस बीड़ी पीने वाले के जीवन का रोज एक घंटा कम हो जाता है। एक सिगरेट या बीड़ी पीने वाले व्यक्ति के रक्त में बीस मिनट के अन्दर ही तम्बाकू के अन्य दूषणों के साथ टार और निकोटीन नामक कातिल विष मिल जाते हैं। विज्ञान ने सिद्ध करके दिखाया है कि उस व्यक्ति के पास बैठने वाले को भी धुएँ से उतनी ही हानि होती है। नशा करने वाला व्यक्ति रक्त में तो विष मिलाता ही है, साथ ही साथ, पास में बैठे हुए लोगों की आरोग्यता का भी अनजान में सत्यानाश करता है।

(अनुक्रम)

तम्बाकू की स्याही का विषैला प्रभाव

तम्बाकू एक मीठा विष है। जिस प्रकार दीपक के तेल को जलाकर उसका काजल एकत्रित किया जाता है उसी प्रकार अमेरिका के दो प्रोफेसर, ग्रेहम और वाइन्डर ने तम्बाकू जला कर उसके धुएँ की स्याही इक्टठी की। उस तम्बाकू की स्याही को अनेकों स्वस्थ चूहों के शरीर पर लगाया। परिणाम यह हुआ कि कितने चूहे तो तत्काल मर गये। अनेकों चूहों का मरण दो-चार मास बाद हुआ जबकि अन्य अनेकों चूहों को त्वचा का कैंसर हो गया और वे घुट-घुट कर मर गये। जिन चूहों के शरीर पर तम्बाकू की स्याही नहीं लगायी गयी थी और उन्हें उनके साथ रखा गया था उन्हें कोई हानि न हुई। इस प्रयोग से सिद्ध हो गया कि तम्बाकू का धुआँ शरीर के लिए कितना खतरनाक है।

डॉक्टरों का जो बड़े से बड़ा कालेज है रॉयल कालेज उसके डॉक्टरों ने एक निवेदन द्वारा अखिल विश्व डॉक्टरों को चेतावनी दी है कि तम्बाकू से शरीर में कौन-कौन से रोग होते हैं, इसका ध्यान रखें और रोगी को तम्बाकू पीने से रोकें।

(अनुक्रम)

तम्बाकू से होने वाले रोग

फेफड़ों में कैंसर

रॉयल कालेज की रिपोर्ट बताती है कि तम्बाकू के कारण अनेकों को फेफड़ों की बीमारी होती है, विशेषकर कैन्सर। फेफड़ों की बीमारी के कारण अपने देश में बड़ी संख्या में मृत्यु होती है। अतः बिल्कुल बीड़ी न पीना ही इसका सबसे सुन्दर इलाज है। ऐसी बीमारी डॉक्टरों के लिए भी एक चुनौती है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि फेफड़ों के कैन्सर का मुख्य कारण तम्बाकू है। इसके अतिरिक्त पुरानी खाँसी भी बीड़ी पीने का कारण ही होती है। बड़ी आयु में खाँसी के कारण बड़ी संख्या में मृत्यु होती है और स्वास्थ्य नष्ट होता है। इससे ऐसे लोगों की जिन्दगी दुःखपूर्ण हो जाती है। दमा और हाँफ का मूल खाँसी है जिसके कारण मानव बड़ा परेशान होता है और कठिनाई में पड़ जाता है। क्षय के रोगी के लिए तो बीड़ी बड़ी हानिकारक है। अतः क्षय के रोगियों को तो बीड़ी कभी न पीनी चाहिए। टी.बी. वाले रोगी दवा से अच्छे हो जाते हैं परन्तु तम्बाकू-बीड़ी पीना चालू रखने के कारण उनके फेफड़े इतने कमजोर हो जाते हैं कि उन्हें फेफड़ों का कैन्सर होने का भय निरन्तर बना रहता है।

(अनुक्रम)

मुँह और गले का कैन्सर

मुँह का कैन्सर और गले का कैन्सर, ये भी बीड़ी पीने वाले को अधिक मात्रा में होता है। जो व्यक्ति बीड़ी पीता है वह फेफड़ों में पूरी मात्रा में हवा नहीं भर सकता. इससे उसे काम करने में हाँफ चढ़ती है। हवा पूरी तरह न भरने से प्राणवायु पूरा नहीं मिल पाता और इससे रक्त पूरी तरह शुद्ध नहीं हो पाता।

स्कूल और कालेज में देखने में आता है कि होशियार विद्यार्थी तम्बाकू नहीं पीते। तम्बाकू पीने से सहनशक्ति कम हो जाती है और ऐसे व्यक्ति अधिकाँशतः अर्धपागल (Whimsical Neurotic)  होते हैं। तम्बाकू पीने से शरीर को कोई लाभ नहीं। तम्बाकू पीने से आयु कम होती है। तम्बाकू के कारण जितनी अकाल मृत्यु होती है उनका अनुमान लगाना कठिन है। तम्बाकू में हानिकारक जहरीली वस्तुएँ बहुत-सी हैं। उनमें टार और निकोटीन ये दो प्रमुख हैं। 20 मिनट में ये दोनों रक्त में मिलकर शरीर को बहुत हानि पहुँचाते हैं। अग्रगण्य वैज्ञानिकों का यह मानना है कि धूम्रपान से कैंसर होता है। प्रत्येक प्रकार के धूम्रपान में भयंकर जोखिम निहित होता है, जिसका अनुभव हमें तत्काल नहीं अपितु वर्षों बाद होता है। धूम्रपान की समानता गोली भरी बन्दूक से की जा सकती है जिसका घोड़ा दबाते ही नुकसान होता है। धूम्रपान का समय घोड़ा दबाने का काम करता है।

फेफड़ों का कैन्सर दूर करने के लिए उच्च प्रकार की शल्यक्रिया की आवश्यकता पड़ती है। अस्पताल में लाये जाने वाले प्रत्येक तीन रोगियों में से एक रोगी की शल्यक्रिया ही सफल हो पाती है, बाकी के दो अकाल मृत्यु के मुँह में पड़ जाते हैं। इस प्रकार कैन्सर दूर किये व्यक्तियों में से 85 प्रतिशत केवल 5 वर्ष में और अधिकतर लोग दो वर्ष में ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं। बीसवीं शताब्दी का अति उन्नत विज्ञान भी उन्हें बचाने में असफल रहता है। धूम्रपान न करने वाले को फेफड़ों का कैन्सर होता ही नहीं।

तम्बाकू से निकलते धुएँ से बने कोलटार में लगभग 200 रासायनिक पदार्थ रहते हैं। उनमें से कितने ही पदार्थों से कैन्सर होने की सम्भावना है।

इंगलैंड के डॉक्टर डाल और प्रो. हिल की रिपोर्ट में यह सिद्ध किया गया है कि विश्व विख्यात स्लोन केटरिंग कैन्सर इन्सटीच्यूट के मुख्य नियामक डॉक्टर होड्ज़ भी धूम्रपान और कैन्सर के मध्य प्रगाढ़ सम्बन्ध मानते हैं। बम्बई के इंडियन कैन्सर इन्सटीच्यूट के डायरेक्टर डॉ. खानोलकर भी बीड़ी पीने से कैन्सर होना मानते हैं।

इंगलैंड और अमेरिका की सरकार ने सिगरेट बनाने वाली कम्पनियों के लिये नियम बनाये हैं कि वे अपनी सिगरेट से होने वाली बीमारियों की जानकारी भी प्रजा को अवश्य दें।

भारत सरकार ने भी अब ऐसा नियम बनाया है परन्तु व्यसन में अंधे लोग ये चेतावनी देखकर भी नहीं रुकते और अपने तन और जीवन को नष्ट करते हैं।

(अनुक्रम)

हार्ट अटैक

तम्बाकू मात्र फेफड़ों की बीमारी ही लाती है ऐसा नहीं अपितु वह हृदयरोग भी लाती है। यह भी जानने में आया कि बीड़ी पीने वालों को हृदय की बीमारी अधिक मात्रा में होती है। इसीलिए तम्बाकू का उपयोग करनेवालों का अधिकांशतः हार्ट फेल हो जाता है। इसी प्रकार नसों की बीमारियों के लिए भी बीड़ी ही उत्तरदायी है। बीड़ी भूख कम करती है, अतः पाचनशक्ति घट जाती है। परिणामस्वरूप शरीर कंकाल और बहुत ही दुर्बल होता जाता है। किन्तु इसके विपरीत यह भी जानने में आया है कि जो बीड़ी छोड़ देते हैं उनका शरीर पुनः पुष्ट हो जाता है। ओजरी और आँतों के घाव मिटने में तम्बाकू अटकाव करती हैं, अतः घाव तत्काल ठीक नहीं हो पाता।

सामान्यतः हृदय की धड़कनों और उसकी हलचल का विचार नहीं आता परन्तु कितने ही कारणों (जिनमें से एक कारण तम्बाकू भी है) से हृदय की धड़कनें बढ़ती प्रतीत होती हैं जिससे मनुष्य को घबराहट होती है।

हृदय नियमित रूप से संकुचित और प्रसारित होता है परन्तु कितने ही रोगों में रोगी का हृदय अधिक संकुचित हो जाता है अथवा अधिक तेजी से चलने लगता है। ये दोनों रोग तम्बाकू के कारण भी हो सकते हैं जिसमें कभी-कभी हार्ट फेल होने का भय रहता है। इसी प्रकार रक्तवाहिनी नसों की बीमारियाँ भी तम्बाकू के कारण ही होती हैं। रक्तवाहिनियों में रक्तभ्रमण की अनियमितता होती है जिसके कारण थोड़ा सा काम करने से ही हाथ, पैर और सिर दुखने लगते हैं। रक्तवाहिनयों में सूजन होना, इस नाम का दूसरा रोग (Blood clotting) भी होता है जिसमें नसों में लहू जम जाता है और प्रवाह मंद हो जाता है। इसके इलाज के लिए वह अंग ही कटवाना पड़ता है।

(अनुक्रम)

पेट के रोग

कितने ही लोग तर्क देते हैं कि बीड़ी न पियें तो पेट में गोला उठने लगता है।

पेट में बल पड़ना (आँतों में गाँठ लग जाना) आदि तम्बाकू के कारण होता है। इस रोग के रोगी को तम्बाकू अधिक पीने से रोग अधिकाधिक बढ़ता है।

जठर की खराबी जिसके कारण अपच होती है, उस रोग का कारण तम्बाकू हो सकता है।

तम्बाकू के व्यसनी को जठर और आँतों के पुराने घाव होने की बहुत संभावना होती है।

(अनुक्रम)

अंधापन

एक अन्य ग्रंथ में लिखा है कि अधिक तम्बाकू चबाने से, तम्बाकू पीने से अथवा तम्बाकू के कारखाने में काम करने से कभी-कभी अंधापन भी आ सकता है। आरंभ में दृष्टि कमजोर होती जाती है जिसे चश्मा पहनने से भी सुधारा नहीं जा सकता। इस रोग को अंग्रेजी में (Red green colour blindness) कहते हैं। रोग दोनों आँखों में होता है। इसका सबसे अच्छा इलाज यही है कि तम्बाकू न चबायें, तम्बाकू न पियें और न ही नसवार लें। तम्बाकू के कारखाने में काम न करें। इसके अतिरिक्त और कोई इलाज नहीं है।

(अनुक्रम)

काग की सूजन

एक प्रचलित ग्रन्थ कहता है कि गला और काग में सूजन होने के कितने ही कारण हैं, जिसमें से एक कारण तम्बाकू का धुआँ है। कई लोगों के मुँह में लार टपकती है, उसका कारण भी तम्बाकू हो सकता है।

(अनुक्रम)

मूर्खतापूर्ण तर्क

इस प्रकार तम्बाकू के सेवन से बहुत से रोग होते हैं परन्तु बहुत से लोग रोगों के उपाय के रूप में तम्बाकू सेवन की सलाह देते हैं। वे लोग समझते नहीं कि तम्बाकू स्वयं ही बीमारियों की जड़ है।

अपने शरीर को तुच्छ बीमारी से बचाने के लिए भयंकर बीमारी को निमंत्रित करना, यह तो मूर्खता ही है। बकरा निकालने में ऊँट घुसा देना कहाँ की बुद्धिमानी है? यदि आपको गोला चढ़ता है तो जितनी भूख हो उससे थोड़ा कम खाओ, पेट भरकर मत खाओ। संध्या को ताजी हवा खाने के लिए खाने के लिए सैर करने जाओ तो शरीर में स्फूर्ति रहेगी और वायु नहीं चढ़ेगी। आलू, बैंगन, गोभी जैसी वायु-वर्धक वस्तुएँ न खाओ और चावल भी कम खाओ। इससे वायु नहीं चढ़ेगी। लहसुन प्याज, पुदीना और अदरक का सेवन करने से वायु का नाश होता है।

100 ग्राम सौंफ, 100 ग्राम अजवायन और थोड़ा सा काला नमक लेकर उसमें दो बड़े-बड़े नींबू निचोड़ों। इस मिश्रण को तवे पर सेंक कर रख लो। जब भी गैस की तकलीफ हो, बीड़ी की आवश्यकता अनुभव हो तब इनमें से थोड़ा सा मिश्रण लेकर चबाओ। इससे गैस मिटेगी, रक्त सुधरेगा, पाचनशक्ति बढ़ेगी और भूख खुलेगी। बीड़ी डाकिनी की लत छोड़ने में बहुत सहायता मिलेगी। वायु मिटाने के लिए अन्य भयंकर रोग पैदा करने वाली बीड़ी पीना यह तो सरासर मूर्खता ही समझो।

बीड़ी (तम्बाकू) नशीली वस्तु है। इसलिए वास्तव में तो इसका तत्काल त्याग करना ही चाहिए। कदाचित एक दो दिन कठिनाई हो पर इससे क्या?

शाबाश! वीर शाबाश ! दृढ़ संकल्प करो, हिम्मत रखो। निकालो जेब में से बीड़ियाँ और फैंक दो खिड़की से बाहर। सोच क्या रहे हो? थूक दो इस डाकिनी पर। 'धीरे-धीरे छोड़ूँगा' ये मन के नखरे हैं। इससे सावधान ! इन सब मन की बातों में नहीं आना। छलांग मारो इस डाकनी पर। फेंक दो... थूक दो बीड़ी पर। दृढ़ संकल्प करो। इसकी क्या हिम्मत है तुम्हारे होठों पर पहुँच सके?

यदि आप में इस डाकिनी को छोड़ने की दृढ़ता न हो तो एक उपाय यह भी हैः

प्रातःकाल जल्दी उठो। बिस्तर पर बैठकर दृढ़ निश्चय करो किः 'आज दो बीड़ी कम करना है। हरि ॐ... ॐ.... ॐ....! इतना बल तो मुझमें है ही। हरि ॐ.....ॐ....ॐ....! इस प्रकार दस दिन में तुम्हारी बीस बीड़ी छूट जायेगी।

कितने ही लोग ऐसा तर्क करते हैं कि पड़ी आदत छूटती नहीं। अपने पर इतना भी काबू नहीं? तब आप संसार में दूसरों का क्या भला कर सकेंगे? स्वयं अपने आप पर इतना उपकार नहीं कर सकते तो दूसरों के लिए क्या तीर मारोगे? आप केवल बीड़ी छोड़ने की दृढ़ इच्छा करो तो फिर बीड़ी की क्या मजाल है कि वह आपके पास भी फटक सके? बीड़ी अपने आप सुलग कर तो मुख में जाने से रही? और बीड़ी के बदले प्रकृति द्वारा बख्शी सुंदर वस्तुएँ जैसे कि लौंग, काली किशमिश, तुलसी, काली मिर्च आदि मुख में रखें तो बीड़ी की कुटैव अपने आप छूट जायेगी।

कितने ही लोग ऐसा तर्क देते हैं कि वे बीड़ी नहीं पीते, चिलम पीते हैं। अरे भाई ! साँप के बदले चंदन को काटे तो अन्तर क्या? शरीर को जो हानि होती है वह तम्बाकू और उसके धुएँ में निहित जहर से ही होती है। अतः तुम बीड़ी पियो या सिगरेट, चिलम पियो या हुक्का, नसवार सूँघो या नसवार खींचो अथवा तम्बाकू पान में डाल कर खाओ, बात तो एक ही है। उससे विष शरीर में जायेगा ही और शरीर में भयंकर रोग पैदा होंगे ही।

इसमें संस्कार का भी प्रश्न है। आप बीड़ी पीते होंगे तो आपका पुत्र क्या सीखेगा? वही लक्षण वही आदतें जो आपमें मौजूद हैं। इसका अर्थ यही कि आप अपने बच्चे को जीवन-डोर भी कम करना चाहते हैं। आप बीड़ी से होने वाले प्राणघातक बीमारियों में उसे धकेलना चाहते हैं, आप अपने बच्चे की ज़िन्दगी से खेल रहे हैं। आप अपने बच्चे की भलाई के लिए बीड़ी छोड़ियए।

डॉक्टरों ने सिद्ध किया है कि जिसके रक्त में दारू से आया अल्कोहल होता है ऐसे शराबियों के बेटों के बेटों के..... इस प्रकार दस पीढ़ियों तक आनुवांशिक रक्त में अल्कोहल का प्रभाव रहता है जिसके कारण दसवीं पीढ़ी के बालक को आँख का कैन्सर हो सकता है। आप अपने बालक के साथ तथा अपने वँशजों के साथ ऐसा जुल्म क्यों करते हो? आपके निर्दोष बच्चों ने आपका क्या बिगाड़ा है कि उनमें खराब लक्षणों के बीजारोपण करते हो?

अमेरिका में नवीन जन्मे 7500 बच्चों के निरीक्षण से ज्ञात हुआ कि बीड़ी-तम्बाकू के व्यसनियों के बच्चे तुलनात्मक रूप से दुर्बल थे और वजन में भी हल्के थे। आप को बीड़ी को बस मनोरंजन की वस्तु मानते हैं, परन्तु हानि मात्र आपको ही नहीं होती, उसका फल आपके निर्दोष बच्चों को भी भोगना पड़ता है। और दुःख की बात तो यह है कि आप अपने बच्चों के  स्वास्थय के लिए, सुख के लिए कुछ भी नहीं सोचते।'

(अनुक्रम)

एक डॉक्टर का अनुभव

डिब्बे में बैठे वे डॉक्टर महाराजश्री की बाते ध्यान से सुन रहे थे। वे बोल उठेः

"तम्बाकू का सेवन करनेवाले और उससे बचे रहने वाले के शरीर का बल और आरोग्य में कितना अन्तर होता है, इसे जानने के लिए मेरा अपना अनुभव सुनियेः

जब मैं डॉक्टरी पढ़ता था तब अपने ग्रुप में हम कुल 15 विद्यार्थी थे। मेरे सिवाये बाकी सब बीड़ी सिगरेट पीते थे। एक दिन हमारे प्रोफेसर एक उपकरण लाये जिसके द्वारा विद्यार्थी के फेफडों में अधिक से अधिक कितनी हवा भर सकती है इसका माप निकालना था। बारी-बारी से प्रत्येक व्यक्ति ने शक्ति के अनुसार गहरी श्वास लेकर उपकरण की नली में जोर से हवा फूँकी और प्रत्येक विद्यार्थी द्वारा फूँकी गई हवा का माप नोट किया। विद्यार्थियों में अधिक हवा फूँकने वाला विद्यार्थी 2500 घन सैं.मी. हवा फूँक सका था और कम से कम हवा फूँकने वाले विद्यार्थी ने 1750 घन सैं.मी. हवा फूँकी थी। मेरे द्वारा फूँकी गयी हवा का माप 3500 घन सै.मी. था। अपने ग्रुप मेंने सबसे अधिक हवा फूँकी थी। अब भी मैं 3600 घन सैं.मी. हवा फूँक सकता हूँ। इसका कारण यही है कि मैंने सारी ज़िन्दगी बीड़ी-तम्बाकू नहीं पिया। यह देखकर हमारे प्रोफेसर साहब खुश हो गये। उन्होंने सभी डॉक्टरों और विद्यार्थियों से कहा कि बीड़ी पीने से धुआँ धीरे-धीरे फेफड़ों में जमता जाता है। फलस्वरूप फेफड़ों में हवा ठीक प्रकार से नहीं भर सकते और रक्त ठीक से शुद्ध नहीं हो पाता. तम्बाकू-बीड़ी के व्यसनियों के थोड़ा परिश्रम करते ही हाँफ चढ़ जाती है।"

महाराजश्री ने संवाद की डोर फिर से अपने हाथ में लेते हुए कहाः

"भाइयों ! आपको तो अनुभव होगा कि आप में जो बीड़ी पीते हैं उन्हे थोड़ी दूर ही दौड़ना पड़े तो वे हाँफ जाते हैं। धूम्रपान करने से इतनी अधिक हानि होती है, यह तो सच है, साथ ही साथ हमारे मत के अनुसार धार्मिक और मानसिक हानि भी होती है। यह भी जरा सुनिये।

(अनुक्रम)

तम्बाकू से धार्मिक हानि

तम्बाकू मात्र शरीर को हानि नहीं पहुँचाती परन्तु इससे भी बढ़कर तो वह महा उत्तम मनुष्य जन्म को नष्ट कर डालती है। कोई भी संत, महापुरुष अथवा धार्मिक पुस्तक बीड़ी पीने की इजाजत नहीं देते। गुरु नानक साहब ने कहा हैः "तम्बाकू इतनी अधिक अपवित्र वस्तु है कि मानव को दानव बना देती है। तम्बाकू के खेत में गाय तो क्या गधा भी नहीं जाता।"

गुरु गोबिन्दसिंह जी ने कहा है कि "मनुष्य 25 श्वासोच्छोवास में जितने ॐ के जप करता है उससे मिलने वाला समस्त फल एक बीड़ी पीने से नष्ट हो जाता है। तम्बाकू इतनी अपवित्र वस्तु है कि अन्य प्राणियों की तो बात ही क्या, गधा भी तम्बाकू नहीं खाता।

यदि एक बीड़ी पीने से प्रभु-भक्ति का इतना अधिक फल नष्ट हो जाये तो रोज दस बीड़ी पीने वाले मनुष्य की परलोक में क्या दशा होगी? वह अगर सारा दिन भक्ति करे तो भी उसे भक्ति का कोई लाभ मिलने वाला नहीं।

तम्बाकू एक शैतानी नशा है। 'कुरान शरीफ' में अल्लाह पाक त्रिकोल रोशल के सिपारा में लिखा है किः "शैतान द्वारा भड़काया इन्सान ऐसी नशीली चीजों का इस्तेमाल करता है। ऐसी चीजों का उपयोग करने वाले मनुष्य से अल्लाह दूर रहता है। परन्तु शैतान उस आदमी से खुश रहता है क्योंकि यह काम शैतान का है और शैतान उस आदमी को जहन्नुम में ले जाता है।"

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने ऐसे तमोगुणी आहार को वर्ज्य बताया है। इसलिए जो सत्त्वगुणी पुरुष हैं और कल्याण के मार्ग पर चलने की इच्छा रखते हैं, ऐसे महापुरुषों को तम्बाकू से दूर रहना आवश्यक है। आहारशुद्धि विवेक-बुद्धि का आधार है। 'आहार जैसी डकार'। विवेक से ही सच्चे और खोटे की, लाभ और हानि की खबर मिलती है। परमात्मा की चेतन सृष्टि में सबसे उत्तम प्राणी मनुष्य है क्योंकि मनुष्य में विवेक है। विवेक बुद्धि को शुद्ध और पवित्र रखने के लिए तमोगुणी वस्तुओं से दूर रहना बहुत ही आवश्यक है। अन्यथा, मनुष्य गलत मार्ग पर जाकर अपने अमूल्य मनुष्य जन्म को निष्फल करके भटकता है।

हे सज्जनों ! यह पवित्र मुख केवल प्रभु का जाप करने के लिए ही है। पवित्र मुख को तम्बाकू की दुर्गन्ध से अपवित्र न करो। याद रखो कि एक दिन मरने के बाद अपने-अपने कर्मों का हिसाब अवश्य देना पड़ेगा। उस समय क्या जवाब दोगे? तो फिर किसलिए ऐसी आत्मघातक, अशुद्ध और आध्यात्मिक पतनकारी वस्तुओं का त्याग करना चाहिए? तन, मन और धन की हानि करे, ऐसी वस्तुओं को छूने से भी हिचकना चाहिए। हे प्रभु के प्यारे बच्चों ! जरा सोचो। यह मूल्यवान मनुष्य बारंबार प्राप्त नहीं होता। इसका मिलना सरल नहीं है। अब जो मिला है उसे क्षणिक मोह के लिए क्यों दूषित करते हो? किसलिए आत्मा का अधःपतन करते हो? बीड़ी-तम्बाकू छोड़ना तो कोई कठिन नहीं। तम्बाकू आपके जीवन को बर्बाद करने वाली चीज़ है। उसके बिना आपको जरा भी नुकसान नहीं होगा।

मैं आपको अधिक क्या समझाऊँ? परन्तु याद रखना, प्रत्येक प्रकार के अन्न को चक्की में पिसना पड़ता है। इसी तरह तुम्हें भी एक दिन मौत के मुँह में जाना पड़ेगा। जैसे पके हुए अनार को चूहा खा जाता है इसी प्रकार काल रूपी चूहा इस संसार के प्रत्येक पदार्थ का भक्षण करता है। जैसे चाहे जितना घी डालो तथापि अग्नि संतुष्ट नहीं होती उसी प्रकार अनन्त काल से समग्र विश्व का भक्षण करता हुआ काल अनेक प्राणियों का और आपका भक्षण करके भी संतुष्ट नहीं होगा। इस संसार के समस्त पक्षी, प्राणी, मनुष्य और आप भी काल के आहार हैं। बाग-बगीचे, नदी-नाले और अन्य सब जड़, चेतन, स्थावर, जंगम पदार्थ उसके मुख में हैं। कोई पदार्थ सदैव रहने वाला नहीं है। सभी दैत्य, देवता, यक्ष, गन्धर्व, अग्नि, वायु उसी से नष्ट होते हैं। जैसे दिन के बाद रात निश्चित है वैसे ही आपकी मौत अवश्य होगी। देवताओं का निवास स्थान (सुमेरु पर्वत) भी नष्ट होगा। इतने विशाल पृथ्वी और समुद्र को भी काल एक दिन निगल जायेगा। राक्षस और राक्षसाधिपति भी काल से न बच सके। कितने ही बड़े-बड़े योद्धा और बहादुर पहलवान इस पृथ्वी पर आये, अन्त समय आने पर उन्हें यह दुनिया छोड़नी पड़ी। बड़े-बड़े राजा और प्रभावशाली सम्राट भी रह न सके। और यह जो अनंत आकाश है, यह भी आगामी काल के चक्कर में आ जायेगा तो फिर आपका क्या भरोसा? सभी काल के मुख में ही हैं। कुछ न रह पायेगा। समय आते ही सब चला जाता है। आप भी जाओगे ही, तो फिर आपका अहंकार किस पर है? किसलिए तम्बाकू जैसी अपवित्र वस्तु का सेवन करते हो? किसका अभिमान और अहं कर रहे हो? आपकी भी बारी आने वाली है। ठहर जाओ, थोड़ा ही समय बाकी है। अरे, अभी आपकी बारी आई कि आई। आपकी देह गिर पड़ेगी। आपका शरीर अनित्य और बिल्कुल मिथ्या है। अतः उसका नाम अवश्य होगा। जब संसार का नाश सदैव देखने में आता है तब ऐसे संसार पर भरोस रखना आपकी मूर्खता नहीं तो और क्या है?

काल प्रत्यक्ष रूप में तो किसी से पहचाना नहीं जाता। परन्तु मिनट, घंटे, दिन, महीने और वर्ष बीतने से अच्छी तरह जाना जा सकता है। याद रखो, काल बहुत ही निष्ठुर है। किसी पर दया नहीं करता। सभी जीव उससे डरकर निर्बल हो जाते हैं। उसके ताप के आगे टिकने की कोई हिम्मत नहीं कर सकता। आप भी अपनी हिम्मत हार जायेंगे। काल की कठोरता से सब डरते हैं जैसे बच्चा मिट्टी के घर का नाश करता है। इससे किसी पर भी भरोसा रखना आपकी मूर्खता है। अग्नि के समान काल भी छोटापन-बड़प्पन नहीं देखता। पता नहीं कि पहले किसको खा जाये। हो सकता है कि आज आप हैं, कल आप न भी हों।

(अनुक्रम)

भाईयो ! चेत जाओ...

याद रखो कि एक दिन आपकी मौत अवश्य आयेगी। कब आयेगी इसकी खबर नहीं। अभी होशोहवास सहित होशियार बनकर बैठे हो परन्तु आने वाला क्षण कदाचित आपकी मौत का समय हो। अभी तो काम में आपको एक मिनट भी अवकाश नहीं मिलता और फिर तो आपके सब काम ऐसे ही पड़े रह जायेंगे। इस समय तो शरीर के आराम के लिए नर्म गद्दों पर सो जाते हो, सुन्दर मकानों में रहते हो, तम्बाकू जैसी अशुद्ध वस्तुओं का सेवन करते हो, बीड़ी-सिगरेट पीने के अभिमान में भरकर नाक में से और मुँह में धुएँ के छल्ले निकालते हो, और दुनियाँ की अपवित्र लीलाएँ रचते  हो। परन्तु जब काल के यमदूत आयेंगे तब हाय-हाय पुकारते चले जाओगे। आपके अपने सगे सम्बन्धी, माता-पिता, भाई-बहन, पुत्र-पुत्री, मित्र-दोस्त आपकी सहातार्थ नहीं आयेंगे और कोई भी आपके साथ नहीं चलेगा। आपको अकेले ही जाना पड़ेगा। उस समय खुद आपकी स्त्री भी भूत...भूत... कहकर आपसे दूर भागेगी। आपके सगे सम्बन्धी आज्ञा देंगे किः "अब इसे यहाँ से बाहर निकालो, और जल्दी से बाहर निकालो।" आपके मकान, धन-दौलत, बंगले, जमीन जितना भी होगा वह दूसरों का हो जायेगा और आप उस समय एक सुनसान जंगल में गिद्ध, कुत्तों और गीदड़ों से घिरे भयंकर शमशान में बिल्कुल नग्न अवस्था में खुली जमीन पर पड़े होंगे। यह आपका सुन्दर शरीर जलाकर खाक कर दिया जायेगा या फिर जमीन में गहरे दफना दिया जायेगा। आपके सब मनोरथ मन में ही रह जायेंगे। आपकी सारी अकड़ निकल जायेगी। आपकी ये हठीली, क्रोधी और जोशीली आँखें सदा के लिए बन्द हो जायेंगी। फिर पछताने के सिवा कुछ हाथ न लगेगा।

इस शरीर से छूटकर जब परलोक में जायेंगे और जब यहाँ किये हुए कर्मों का भयंकर फल सामने आयेगा तब आप डर जायेंगे। आपके पाप प्रकट होंगे। उनके परिणाम मात्र सुनकर आप काँप उठेंगे और बेहोश होने लगेंगे। यहाँ के मनोरंजन, लीलाएँ और चतुराईयाँ, बीड़ी-सिगरेट के चस्के और अपवित्र कर्मों के फल आपको भोगने ही पड़ेंगे। टेढ़े रास्ते आपको ही देखने पड़ेंगे। 84 लाख फेरों में आप आ ही जायेंगे और नीच योनियों में चीखेंगे, चिल्लायेंगे, दुःखी होंगे। उस समय कौन आपका सहायक होगा? इसलिए अभी सोचिए और चेत जाइये। अपना ऐसा अमूल्य जन्म बरबाद न कीजिए।

(अनुक्रम)

काल के जाल से कौन मुक्त है?

महाराजश्री के बातें ध्यान से सुन रहे यात्रियों में से एक युवक ने प्रश्न कियाः

"महाराजश्री ! कोई भी व्यसनी काल से बच नहीं सकता तब क्या जो बीड़ी-तम्बाकू, दारू, भाँग, गाँजा, चरस नहीं पीते वे सब बच जायेंगे? व्यसनी मरने वाले हैं तो निर्व्यसनी भी तो मरेंगे ही। काल से कौन बच सकता है?"

महाराजश्री ने मंद हास्य से युवक के प्रश्न को सराहते हुए कहाः

"भाई ! काल से केवल वही बच सकता है जो प्रभु के नाम में लीन हो जाता है। ऐसे सत्पुरुषों के पास नामरूपी डंडा रहता है जिससे काल के दूत भी घबराते हैं। तुझे पता होगा कि भक्त कबीर कैसे नामरूपी डंडा लेकर यमदूतों के पीछे पड़े थे। ऐसे महापुरुष अन्य किसी पर दयादृष्टि करें तो वह भी काल की पीड़ा से छूट जाता है और जो पुरुष ऐसे महापुरुषों के उपदेशानुसार बर्तता है, वह भी भी भयानक काल से आजाद हो जाता है। मौज-शौक, बीड़ी-सिगरेट, तम्बाकू आदि में फँसे हो और ऐसा समढझते हो कि कोई महापुरुष आप पर दयादृष्टि करेंगे? कदापि नहीं। आप अपने हाथों अपने लिए ही खाई खोद रहे हो। अशुद्ध, अधर्मी तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट आपको संतों के चरणों में ले जायेंगी? कदापि नहीं। ऐसी अपवित्र खराब वस्तुएँ तो आपको सत्य से बहुत दूर ले जायेंगी।

ऐसा करके आप न केवल यहाँ ही दुःखी होंगे परन्तु आगे चलकर परलोक में भी कष्ट भोगेंगे। मौज-मस्ती में आकर आज तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट को आप अपना साक्षी बना बैठे हैं। यह राक्षस तम्बाकू आपको और आपके शरीर को बर्बाद कर रहा है। इसलिए अपनी आँखें खोलो तो आपको ही लाभ है। परन्तु याद रखना, कभी भूलना नहीं, जब जूते खाने का समय आयेगा तब आपको अकेले ही सहना होगा। अधिक क्या कहूँ? जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करें।

बकरा हरि घास खाता है और बाद में कसाई की छुरी के नीचे आता है। देखना, कहीं आपका भी यही हाल न हो कि आप इस जगत के नाशवान पदार्थों में भूलक, कामनाओं में फँसकर काल की छुरी के नीचे आ जायें। इसीलिए हमारी सलाह है कि अपना ऐसा अमूल्य मनुष्यजन मुट्ठी भर चनों के लोभ से मोहित होकर बरबाद न करें।"

ऐसा सुनकर जो युवक छोकर डिब्बे में बैठे थे उनमें से एक ने कहाः "महाराज ! मैं कान पकड़कर सौगन्ध खाता हूँ कि मैं फिर कभी तम्बाकू का उपयोग न करूँगा। आपका उपदेश सुनकर मेरे शरीर के रौंगटे खड़े हो गये हैं। अब कभी तम्बाकू का इस्तेमाल नहीं करूँगा।"

महाराजश्री ने कहाः "बेटा ! मन चंचल है। यह पलट न जाये। इसीलिए अभी उठ और बीड़ी-सिगरेट जो कुछ तेरे पास हो, उसे तोड़कर फेंक दे ताकि मुझे विश्वास हो जाये कि अब तू तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट का उपोग नहीं करेगा। यह व्यसन छोड़ने में अकेले तेरा ही कल्याण नहीं, तेरे बच्चों का भी कल्याण है। चलो, अच्छे काम में देर कैसी? शुभस्य शीघ्रम।"

"अच्छा महाराज !" कहकर युवक ने जेब से बीड़ी, सिगार, माचिस निकालकर फेंक दिया। उसने भावपूर्वक महाराजश्री का चरणस्पर्श किया। डिब्बे में बैठे अन्य कितने ही लोगों ने भी अपनी जेबें बीड़ी, सिगरेट से खाली करके महाराज को प्रणाम करते हुए भविष्य में कभी धूम्रपान करने की शपथ ली।

डॉक्टर ने भी भावभीनी शब्दों में कहाः

"महाराज ! मैं आपका उपदेश सुनकर बहुत ही प्रसन्न हुआ हूँ। आज की ट्रेनयात्रा मुझे सदैव याद रहेगी। खूब धन्यवाद ! धन्यवाद ! धन्यवाद !

रेलगाड़ी के छोटे से डिब्बे में बैठे हुए व्यसनमुक्ति से हलके हुए हृदयवाले कितने ही मानवों को ले... भक्...छुक्....भक्...छुक्...करती ट्रेन आगे बढ़ती रही।

.ये श्वेतवस्त्रधारी संत थे परम पूज्य सदगुरु स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज। धन्य हैं उन संत महापुरुष को और धन्य हैं उनके पावन चरणों में पहुँचने वाले भाग्यशाली जीवों को....!!!

(अनुक्रम)

बीड़ी पीने वालों का हाल

बीड़ी पीने वालों ने कमाल कर दिया।

पड़ोसी का बिस्तर जला के धर दिया।।

गन्दगी पसन्द हो तो जर्दा खाना सीख लें।

भीख गर माँगी नहीं तो बीड़ी पीना सीख लें।।

बीड़ी पीने की मित्रो ! आदत जब पड़ जायेगी।

ना होने पर माँगते जरा शर्म ना हीं आयेगी।।

माँगने से मरना भला यह एक सच्चा लेखा है।

कितने लखपतियों को माचिस बीड़ी माँगते देखा है।।

एक भाई तो ऐसे हैं जो बिना नशे के जीते हैं।

पर कई भाई देखो तो पाखाने में बीड़ी पीते हैं।।

बीड़ी पीने से भी हमने देखा धन्धा खोटा है।

सिगरेट पीनेवालों पे मालिश का देखा टोटा है।

ताज पनामा केवन्डर पीते हैं कई सालों से।

वो माचिस माँगते रहते हैं यूँ बीड़ी पीने वालों से।।

कह दो अपने बच्चों से ना बीड़ी का शौक लगाये।

ये पढ़े लिखे पैसे वालों से भी बीड़ी भीख मँगाये।।

इन सबसे ज्यादा मजा यार ! देखो अफीम के खाने में।

दो-दो घण्टे मौज उड़ावे बैठे रहे पाखाने में।।

परेशान होना पड़ता घर से बाहर जाने में।

लगी थूकने चूल्हे में औरत भी जर्दा खाने से।।

(अनुक्रम)

चाय-कॉफी ने किया हुआ सर्वनाश

स्वास्थ्य पर भयानक कुठाराघात

आज हमारे देश में चाय-कॉफी का इस्तेमाल दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। अबालवृद्ध, स्त्री-पुरुष, गरीब-धनवान आदि कोई भी व्यक्ति चाय-कॉफी के भयंकर फंदे से मुक्त नहीं है।

लोग बोलते हैं कि चाय-कॉफी शरीर में तथा दिमाग में स्फूर्ति देती है। यह उनका भ्रम है। वास्तव में चाय-कॉफी शरीर के लिए हानिकारक हैं। अनुभवी डॉक्टरों के प्रयोगों से सिद्ध हुआ है कि चाय-कॉफी से नींद उड़ जाती है, पाचनशक्ति मन्द हो जाती है, भूख मर जाती है, दिमाग सूखने लगता है, गुदा और वीर्याश्य ढीले पड़ जाते हैं। डायबिटीज़ जैसे रोग होते हैं। दिमाग सूखने से उड़ जाने वाली नींद के कारण आभासित कृत्रिम स्फूर्ति को स्फूर्ति मान लेना, यह बड़ी गलती है।

चाय-कॉफी के विनाशकारी व्यसन में फँसे हुए लोग स्फूर्ति का बहाना बनाकर हारे हुए जुआरी की तरह व्यसन में अधिकाधिक गहरे डूबते जाते हैं वे लोग शरीर, मन, दिमाग और पसीने की कमाई को व्यर्थ गँवा देते हैं और भयंकर व्याधियों के शिकार बन जाते हैं।

यदि किसी को चाय-कॉफी का व्यसन छूटता न हो, किसी कारणवशात् चाय-कॉफी जैसे पेय की आवश्यकता महसूस होती हो तो उससे भी अधिक रूचिकर और लाभप्रद एक पेय (क्वाथ) बनाने की विधि इस प्रकार हैः

आयुर्वेदिक चाय

सामग्रीः गुलबनप्शा 25 ग्राम। छाया में सुखाये हुए तुलसी के पत्ते 25 ग्राम। तज 25 ग्राम। छोटी इलायची 12 ग्राम। सौंफ 12 ग्राम। ब्राह्मी के सूखे पत्ते 12 ग्राम। जेठी मध छिली हुई 12 ग्राम।

विधिः उपरोक्त प्रत्येक वस्तु को अलग-अलग कूटकर चूर्ण करके मिश्रण कर लें। जब चाय-कॉफी पीने की आवश्यकता महसूस हो तब मिश्रण में से 5-6 ग्राम चूर्ण लेकर 400 ग्राम पानी में उबालें। जब आधा पानी बाकी रहे तब नीचे उतारकर छान लें। उसमें दूध-खांड मिलाकर धीरे-धीर पियें।

लाभः इस पेय को लेने से मस्तिष्क में शक्ति आती है। शरीर में स्फूर्ति आती है। भूख बढ़ती है। पाचनक्रिया वेगवती बनती है। सर्दी, बलगम, खाँसी, दमा, श्वास, कफजन्य ज्वर और न्यूमोनिया जैसे रोग होने से रुकते हैं।

(अनुक्रम)

मादक पदार्थ

मनुष्य जाति को अधिकाधिक हानि यदि किसी ने की हो, तो वे हैं मादक पदार्थ। उनसे मनुष्य के धन, आरोग्यता और जीवन का नाश होता है। मादक पदार्थों का सेवन करने से भावी सन्तान दिनोंदिन निर्बल तथा निस्तेज बनती जाती है।

भारत में लाखों लोगों को भरपेट अन्न नहीं मिलता। भारत माता के किते ही लाल अन्न के अभाव में अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। जहाँ भारत की माताएँ और बहनें रोटी के टुकड़े के लिए लाचार हो जाती हैं वहाँ मादक द्रव्यों का प्रचार हो.... इससे अधिक दुर्भाग्य की बात और क्या हो सकती है।

मादक पदार्थों ने देश-विदेश के लोगों को अपार नुक्सान पहुँचाया है। अति प्राचीनकाल से गौरवशाली भारतवर्ष में आज मादक पदार्थों का प्रचार-प्रसार बहुत भयंकर है। आठ-दस वर्ष के बच्चे भी बीड़ी-सिगरेट पीते हुए दिखाई देते हैं। यह दृश्य मर्मान्तक तथा शर्मनाक है। छोटी उम्र से ही जो बच्चे मादक पदार्थ, चाय, बीड़ी, मदिरा, गाँजा, तम्बाकू जैसी चीजों का सेवन करते हैं वे फिर युवान होने के बजाय बचपन के बाद सीधे वृद्धत्व को प्राप्त होते हैं। ऐसे दुर्बल बच्चे देश की क्या सेवा करेंगे? वे तो अपनी जीवनयात्रा भी ठीक से नहीं चला पायेंगे।

भारत जैसे गरीब देश में प्रतिदिन मजदूरी करके जीविका चलाने वाले लोग अल्प आय का अधिकाँश तो शराब या गाँजे में खर्च कर देते डालते हैं। तो फिर वे अपनी बीवी बच्चों का पालन किस प्रकार कर पायेंगे?

मादक पदार्थों का सेवन करने वाले लोग जीते जी अपने ही खर्च से अपनी अर्थी बना रहे हैं। नशेबाज आदमी अधिक समय जी नहीं सकता । नशीली चीजों का इस्तेमाल करने की आदत बहुत ही खराब है। दुर्बल मन के लोगों को यह आदत छोड़ना मुश्किल है। यह महारोग समय पाकर असाध्य हो जाता है।

(अनुक्रम)

दारू

मादक पदार्थों में दारू सबसे अधिक भयानक है। इससे लाखों घर बर्बाद हुए हैं। भारत भर में दारूबन्दी के लिए विस्तृत स्तर पर प्रयत्न हो रहे हैं। अमेरिका और रूस जैसे देशों में भी दारू का इस्तेमाल कम होता जा रहा है।

दारू में एक प्रकार का विष होता है। उसमें कुछ अनुपात में अल्कोहल होता है। जिस कक्षा का दारू होता है उसमें उतनी मात्रा में विष भी होता है। वाइन में 10 प्रतिशत, बीयर जो साधारण कक्षा दारू माना जाता है उसमें 30 प्रतिशत, व्हिस्की तथा ब्रान्डी में 40 से 50 प्रतिशत तक अर्थात आधा हिस्सा अल्कोहल होता है।

आश्चर्य की बात यह है कि जिस दारू में अधिक मात्रा में अल्कोहल होता है उतना वह अधिक अच्छी किस्म का दारू माना जाता है, क्योंकि उससे अधिक नशा उत्पन्न होता है। सुविख्यात डॉक्टर डॉक का अभिप्राय है कि अल्कोहल एक प्रकार का सूक्ष्म विष है जो क्षण मात्र में सारे शरीर में फैल जाता है। रक्त, नाड़ियों तथा दिमाग के कार्यों में विघ्न डालता है। शरीर के कुछ अंगों सूजन आती है। तदुपरांत, शरीर के विविध गोलकों (चक्रों) को बिगाड़ देता है। कई बार वह सारे शरीर को बेकार बना देता है। कभी पक्षाघात भी हो जाता है।

थोड़ा सा विष खाने से मृत्यु हो जाती है। दारू के रूप में हर रोज विषपान किया जाये तो कितनी हानि होती है, इसका विचार करना चाहिए। कुछ डॉक्टरों ने शराबियों के शरीर को चीरकर देखा है कि उसके सब अंग विषाक्त हो जाते हैं। आँतें प्रायः सड़ जाती हैं। दिमाग कमजोर हो जाता है। रक्त की नाडियाँ आवश्यकता से अधिक चौड़ी हो जाती हैं। दिमाग शरीर का राजा है। उसके संचालन में खाना-पीना, उठना बैठना, चलना फिरना जैसी क्रियाओं में मन्दता आ जाती है। इस प्रकार सारा शरीर प्रायः बेकार हो जाता है।

आदमी जब दारू पीता है तब दिमाग उसके नियन्त्रण में नहीं रहता। कुछ का कुछ बोलने लगता है। लड़खड़ाता है। उसके मुँह से खराब दुर्गन्ध निकलती है। वह रास्ते में कहीं भी गिर पड़ता है। इस प्रकार नशे का बुरा प्रभाव दिमाग पर पड़ता है। दिमाग की संचालन शक्ति धीरे-धीरे नष्ट होती जाती है। कुछ लोग पागल बन जाते हैं। कभी अकाल मृत्यु का शिकार हो जाते हैं। इंग्लैंड, जर्मनी, अमेरिका आदि देशों में जहाँ अधिक मात्रा में दारू पिया जाता है वहाँ के डॉक्टरों का अभिप्राय है कि अधिकतर रोग दारू पीने वालों को सताते हैं। प्लेटिन महोदय इस विषय पर लिखते हैं कि शरीर के केन्द्रस्थान पर अल्कोहल की बहुत भयानक असर पड़ती है। इसी कारण से दारू पीने वालों में कई लोग पागल हो जाते हैं। शराबियों के बच्चे प्रायः मूर्खता, पागलपन, पक्षाघात, क्षय आदि रोगों के शिकार बनते हैं। दारू तथा मांसाहार में होनेवाली अशांति, उद्वेग और भयंकर रोगों को विदेशी लोग अब समझने लगे हैं। करीब पाँच लाख लोगों ने दारू, मांस जैसे आसुरी आहार का त्याग करके भारतीय शाकाहारी व्यंजन लेना शुरु किया है।

शराबी लोग स्वयं तो डूबते हैं साथ ही साथ अपने बच्चों को भी डुबोते हैं। आगे चलकर उपरोक्त महोदय कहते हैं कि दारू पीने वाले लोग अत्यन्त दुर्बल होते हैं। ऐसे लोगों को रोग अधिकाधिक परेशान करते हैं।

दारू के शौकीन लोग कहते हैं कि दारू पीने से शरीर में शक्ति, स्फूर्ति और उत्तेजना आती है। परन्तु उनका यह तर्क बिल्कुल असंगत है। थोड़ी देर के लिए कुछ उत्तेजना आती है लेकिन अन्त में दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं।

दारू पीने वालों की स्त्रियों की कल्पना करो। उनको कितने दुःख सहन करना पड़ता है। शराबी लोग अपनी पत्नी के साथ क्रूरता पूर्ण बर्ताव करते हैं। दारू पीने वाला मनुष्य मिटकर राक्षस बन जाता है। वह राक्षस भी शक्ति एवं तेज से रहित। उसके बच्चे भी कई प्रकार से निराशा महसूस करते हैं। सारा परिवार पूर्णतया परेशान होता है। दारू पीने वालों की इज्जत समाज में कम होती है। ये लोग भक्ति, योग तथा आत्मज्ञान के मार्ग पर नहीं चल सकते। आदमी ज्यों-ज्यों अधिक दारू पीता है त्यों-त्यों अधिकाधिक कमजोर बनता है।

पाश्चात्य शिक्षा के रंग में हुए लोग कई बार मानते हैं कि दारू का थोड़ा इस्तेमाल आवश्यक और लाभप्रद है। वे अपने आपको सुधरे हुए मानते हैं। लेकिन यह उनकी भ्रांति है। डॉ. टी.एल. निकल्स लिखते हैं- "जीवन के लिए किसी भी प्रकार और किसी भी मात्रा में अल्कोहल की आवश्यकता नहीं है। दारू से कोई भी लाभ होना असंभव है। दारू से नशा उत्पन्न होता है लेकिन साथ ही साथ अनेक रोग भी पैदा होते हैं। जो लोग सयाने हैं और सोच समझ सकते हैं, वे लोग मादक पदार्थों से दूर रहते हैं। भगवान ने मनुष्य को बुद्धि दी है, इससे बुद्धिपूर्वक सोचकर उसे दारू से दूर रहना चाहिए।"

जीव विज्ञान के ज्ञाताओं का कहना है कि शराबियों के रक्त में अल्कोहल मिल जाता है अतः उसके बच्चे को आँख का कैन्सर होने की संभावना है। दस पीढ़ी तक की कोई भी संतान इसका शिकार हो सकती है। शराबी अपनी खाना-खराबी तो करता ही है, दस पीढ़ियों के लिए भी विनाश को आमंत्रित करता है।

बोतल का दारू दस पीढ़ी तक विनाशकारी प्रभाव रखता है तो राम नाम की प्यालियाँ इक्कीस पीढ़ियों को पार लगाने का सामर्थ्य रखे, यह स्वाभाविक है।

जाम पर जाम पीने से क्या फायदा

रात बीती सुबह को उतर जायेगी।

तू हरि रस की प्यालियाँ पी ले

तेरी सारी ज़िन्दगी सुधर जाएगी।।

डायोजिनीज को उनके मित्रों ने महँगे शराब का जाम भर दिया। डायोजिनीज ने कचरापेटी में डाल दिया। मित्रों ने कहाः "इतनी कीमती शराब आपने बिगाड़ दी?"

"तुम क्या कर रहे हो?" डायोजिनीज ने पूछा।

"हम पी रहे हैं।" जवाब मिला।

"मैंने जो चीज कचरापेटी में उड़ेली वही चीज तुम अपने मुँह में उड़ेलकर अपना विनाश कर रहे हो। मैंने तो शराब ही बिगाड़ी लेकिन तुम शराब और जीवन दोनों बिगाड़ रहे हो।"

(अनुक्रम)

महानुभावों के वचन

"मैं मद्यपान को चोरी-डकैती से, दुराचार व वेश्यावृत्ति से भी ज्यादा भयंकर पाप-चेष्टा मानता हूँ। क्रूर व्यक्तियों से भी शराबी ज्यादा क्रूर हो सकता है लेकिन शराबी निस्तेज क्रूर है।"

महात्मा गाँधी

"जो पुरुष नशीले पदार्थ का सेवन करता है वह घोर पाप करता है।"

भगवान बुद्ध

"अल्लाह ने लानत फरमाई है शराब पर, पीने और पिलाने वाले पर, बेचने और खरीदने वाले पर और किसी भी प्रकार सहयोग देने वाले पर।"

हजरत मुहम्मद पैगम्बर

"More poisonous than snake. Alcohol ruins one physically, morally, intellectually and economically."

Mahatma Gandhi

(अनुक्रम)

आठ पापों का घड़ा

एक बार कवि कालिदास बाजार में घूमने निकले। एक स्त्री घड़ा और कुछ कटोरियाँ लेकर बैठी थी ग्राहकों के इन्तजार में। कविराज की कौतूहल हुआ कि यह महिला क्या बेचती है ! पास जाकर पूछाः

"बहन ! तुम क्या बेचती हो?"

"मैं पाप बेचती हूँ। मैं लोगों से स्वयं कहती हूँ कि मेरे पास पाप है, मर्जी हो तो ले लो। फिर भी लोग चाहत पूर्वक पाप ले जाते हैं।" महिला ने कुछ अजीब सी बात कही। कालिदास उलझन में पड़ गये। पूछाः

"घड़े में कोई पाप होता है?"

"हाँ... हाँ.. होता है, जरूर होता है। देखो जी, मेरे इस घड़े में आठ पाप भरे हुए हैं- बुद्धिनाश, पागलपन, लड़ाई-झगड़े, बेहोशी, विवेक का नाश, सदगुण का नाश, सुखों का अन्त और नर्क में ले जाने वाले तमाम दुष्कृत्य।"

"अरे बहन ! इतने सारे पाप बताती है तो आखिर है क्या तेरे घड़े में? स्पष्टता से बता तो कुछ समझ में आवे।" कालिदास की उत्सुकता बढ़ रही थी।

वह स्त्री बोलीः 'शराब ! शराब !! शराब!!! यह शराब ही उन सब पापों की जननी है। जो शराब पीता है वह उन आठों पापों का शिकार बनता है।" कालिदास उस महिला की चतुराई पर खुश हो गये।

(अनुक्रम)

व्यसनों से मुक्ति किस प्रकार?

व्यसनों से होने वाली हानियों के सम्बन्ध में विचार कर अनेकों लोग व्यसनों के चुंगल से मुक्त होने की इच्छा तो वास्तव में करते हैं परन्तु मुक्त नहीं हो सकते। व्यसनियों का संकल्पबल अत्यन्त क्षीण हो जाने के कारण वे किसी भी निश्चय पर अटल नहीं रह सकते। जिस प्रकार कीचड़ में फँसा हाथी कीचड़ से बाहर निकलने का प्रयास करे परन्तु अपने ही भार के कारण वह ज्यों-ज्यों अधिक प्रयत्न करता जाता है त्यों-त्यों कीचड़ में अधिकाधिक गहरा फँसता जाता है उसी प्रकार व्यसनी भी व्यसनों में अधिकाधिक फँसता जाता है। ऐसी परिस्थिति में व्यसनों से मुक्ति किस प्रकार प्राप्त हो?

यदि अपने पास संकल्पबल न हो तो जिसके पास अपूर्व संकल्पबल हो उसका सहारा लेना चाहिए। संत, महापुरुष, आत्मज्ञानी महात्मा ऐसे सामर्थ्य के अक्षय भंडार होते हैं। उनकी शरण जाने पर, उनकी मीठी नज़र की एकाध किरण मिलने पर प्रयत्न करने से असाध्य लगता कार्य सरलता से सध जाता है। व्यसनों के शिकार कितने ही लोग यहाँ संत श्री आसाराम जी आश्रम में आकर व्यसनों से मुक्त हुए हैं। पूज्य स्वामी ज के पतित पावन सान्निध्य में उन्हें नवजीवन मिला है और सच्चे जीवन की ओर प्रयाण कर सुख शांति प्राप्त कर रहे हैं।

अपि चेत् सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्।

साधुरेव स मन्तव्यः सम्यगव्यवसितो हि सः।।

यदि कोई अति दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझे निरंतर भजता है तो उसे साधु ही मानिये। कारण कि वह यथार्थ निश्चयवाला है।" श्रीमद् भगवत्गीता के इस श्लोक को यहाँ अनेकों के जीवन में चरितार्थ होते देखा है। व्यसनों की व्याधि से क्षीण बने अनेक जीवों को 'क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वचछान्तिं निगच्छति' थोड़े समय में ही धर्मात्मा होते देखा है और शाश्वत शान्ति के मार्ग पर चलते देखा है।

गुजरात राज्य के नशाबंदी विभाग के मंत्री श्री हरिसिंहभाई चावड़ा भी कितनी ही बार आश्रम में आ चुके हैं। उन्होंने आश्रम द्वारा रो रही इस व्यसनमुक्ति और जीवनोत्थान कार्य की भारी प्रशंसा करते हुए कहा किः

"जो काम सरकारी स्तर पर बहुत पैसे खर्च करके, अलग-अलग कानून बना कर करने पर भी सरकार सफल नहीं होती वह महाराजश्री निराले प्रकार से, नितान्त मौलिक स्तर पर कर रहे हैं। यह वास्तव में स्तुत्य है।"

आश्रम में आने वाले ऐसे कितने ही लोग हैं जिन्होंने पूज्यश्री के आशीर्वाद से सदा के लिए व्यसनों से मुक्ति पाकर अपना जीवन स्वच्छ और सुख-शान्ति भरा बनाया है। ऐसे लोगों के कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं-

(अनुक्रम)

यह दुःख शाप था या वरदान?

अमदावाद के एक भाई दयालदास बहुत दारू पीते थे। एक बार वे स्वामी जी के दर्शन करने आये। वे आये थे तो बड़ी अकड़ में परन्तु संत दर्शन ने न जाने क्या चमत्कार कर दिया कि उन्होंने स्वामी जी को वचन दे दियाः "आप कहते हैं तो अब दारू नहीं पीऊँगा।"

थोड़े दिन पश्चात ही उनके मित्र ने उनके पास खूब बढ़िया दारू की एक बोतल भेजी। अपनी पुरानी आदत के अनुसार उन्होंने बोतल मुँह से लगाई... और जो अनुभव हुआ उसे अनेकों सत्संगी भक्तों के आगे इस प्रकार कहाः

"खबरदार ! पीना नहीं....... !" कहीं से आवाज आई मैंने आसपास देखा, कोई भी दिखाई न दिया। मैंने फिर बोतल मुँह से लगाई तो तुरन्त फिर वही आवाज सुनाई दी। समझ में नहीं आता था कि यह आवाज कहाँ से आती थी। बाहर से आती थी या अन्दर से? मेरे कान सुनते थे या मन सुनता था? मेरा भ्रम तो नहीं है? परन्तु क्या करूँ? इतना बढ़िया माल....! भले थोड़ी ही सही परन्तु आज तो पी लूँ। मैंने बोतल मुँह से लगाई। इस बार मुझे लगा कि मानो अन्दर से पूरा हृदय अकुलाकर कर कह रहा हैः "मत पीना..... देख.... ! पीछे पछतायेगा।"

परंतु कितने ही घूँच गले से नीचे उतर ही गये। अब मुझे भान होने लगा किः नहीं, नहीं, यह मेरा भ्रम न था परन्तु स्वामी जी की ही आवाज थी, चाहे जहाँ से भी आई हो।

सबकी आँखों में धूल डालने वाला मैं आज मन की चालबाजी का शिकार हो गया था। रोड़ डेढ़ दो बोतल पीने वाला मैं आज दारू के कुछ घूँट भी न पचा सका। मेरा सारा शरीर उल्टी, दस्त और पेट की पीड़ा से छलबला उठा। सारी रात मुझ पर जो बीती वह मैं ही जानता हूँ। रात को 2 बजे स्वामी जी की फोटो के आगे से रो-रोकर क्षमा माँगी, तब पीड़ा कुछ कम हुई और थोड़ी देर शांति मिली। उसके बाद तो स्वामी जी के श्रीचरणों में आकर खूब पश्चाताप किया।

स्वामी जी के आशीर्वाद के परिणामस्वरूप मुझ जैसा दारू का शिकार और व्यसनों में फँसा, भूलों से भरा आज आपके सामने ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग के पथिक के रूप में खड़ा है। आज भी मैं उस रात्रि के दारूण दुःख को याद करता हूँ तो सोचता हूँ कि ऐसे मंगलमय जीवन की ओर धकेलने वाला वह दारूण दुःख शापरूप न था परन्तु वरदान रूप था। ऐसे महापुरुष परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापू धन्य हैं और धन्य हैं हमारे जैसे उनके कृपापाद...."

(अनुक्रम)

वाह मेरी नैया के तारणहार.....

ओ.एन.जी.सी. के एक कर्मचारी श्री सुधाकर बताते हैं-

"मैं एक पियक्कड़ था। शराब के नशे में चूर होकर घर में तूफान खड़ा कर देता था। भोजन परोसी थाली उठाकर फेंक देता था। पत्नी और बच्चों को मारता था। मेरे भय से बच्चे अड़ोस-पड़ोस में भाग जाते और तीन-तीन दिन तक वापस न आते थे। एक महीने में करीब एक हजार रुपये दारू पीने में ही पूरे हो जाते और सारा महीना उधार लेकर घर चलाना पड़ता। अमदावाद, बड़ौदा और अंकलेश्वर विभाग के ओ.एन.जी.सी के तीनों प्रोजेक्ट के लोग मुझे सुधाकर के बदले मुझे बाटलीकर और लट्ठेबाज के नाम से पहचानते थे।

दारू छुड़ाने के लिए मेरे माता-पिता और पत्नी ने बहुत सारे उपाय किये, परन्तु माँ-बाप के जिन्दा रहते मैंने दारू नहीं छोड़ी। सगे सम्बन्धी मेरे इस व्यसन को देखकर कहते थे हम ताम्रपत्र पर लिखकर देते हैं कि सुधाकर इस जीवन में दारू नहीं छोड़ेगा। मैं भी दारू से बर्बाद हुए अपने जीवन को देखकर तंग हो गया था। इस राक्षस को छोड़ना चाहता था परन्तु छोड़ नहीं सकता था।

एक बार चेटीचंड के दिन मैं संत श्री आसाराम जी आश्रम में आया। पूज्यश्री को देखकर उनपर मेरी श्रद्धा बैठी। उनका प्रभावशाली व्यक्तित्व देखकर मुझे लगा कि ये संत यदि चाहें तो मेरी दारू छुड़ा सकते हैं। फिर तो मैंने दूर से ही उनके चरणों में दंडवत किया और पड़ा रहा जमीन पर। पूज्य श्री का हृदय तो करूणा का सागर है। उन्होंने मुझे पानी का आचमन कराया और प्रभावशाली शब्दों में कहा किः "जा, दारू छूट जायेगी। अब मत पीना।"

पूज्यश्री के चमत्कारी वाक्य का प्रभाव मैंने तुरन्त देखा। 25 वर्ष के पक्के दुर्व्यसन से मैं मुक्त हो गया। एक बार पुराने शराबी दोस्तों के बहुत आग्रह से मैंने दारू के कुछ घूँट गले उतारे कि मुझे तुरन्त सबक मिला। गाड़ी चलते हुए भयंकर दुर्घटना से मैं बाल-बाल बचा। मैं चेत गया और पूज्यश्री के चरणों में जाकर क्षमा माँगी और भूल का प्रायश्चित किया।

अब मैं सपरिवार सुखी हूँ। पत्नी, बच्चे और सगे सम्बन्धी मेरा सुधरा हुआ जीवन देखकर प्रसन्न होते हैं। आर्थिक दृढ़ता आई है। मेरे जीवन की डूबती नैया को माझी का नहीं बल्कि तारणहार का सहारा मिला है। यह सब पूज्य श्री की कृपा का फल है। मेरा जीवन इस बात का साक्षी है कि जो कार्य मानव अपने बल बुद्धि से नहीं कर सकता वह पूज्यश्री जैसे संतों की कृपा से सहज में कर गुज़रता है।

सुधाकर नीलकंठ नेसरीकर

बी-4 संजय पार्क सोसायटी, मांजलपुर, बड़ौदा-4

(अनुक्रम)

एक ही झटके में व्यसन से मुक्ति....

"मैं बीड़ी-सिगरेट का चेन स्मोकर था। मैंने इस व्यसन से मुक्त होने के लिए अनेकों प्रयत्न किये परन्तु सफल नहीं हुआ। पूज्यश्री के दर्शनार्थ प्रथम बार काली चौदस की शाम को आश्रम में आया। पूज्यश्री ने मुझे पास बुलाया और सूखी द्राक्ष का प्रसाद दिया। रात को घर गया। धूम्रपान की तलब लगते ही मैंने सिगरेट सुलगाई, परन्तु अंदर से विचार आया कि किसलिए? और उसी समय मैंने जेब में से सभी बीड़ी-सिगरेटें फेंक दी। दूसरी बार जब आश्रम आया तब पूज्य श्री ने हँसते-हँसते पूछाः

"क्यों सिगरेट छूट गई?"

यह सुनते ही मुझे अचंभा हुआ। मुझे स्पष्ट भान हुआ कि मेरे पूज्य गुरुदेव पहले से ही मेरे व्यसन छोड़ने की खींचतान से परिचित थे और प्रथम मुलाकात में ही कृपा-कटाक्ष से उन्होंने मुझे इस व्यसन से एक झटके में ही स्थायी रूप से मुक्त कर दिया।

इस घटना के बाद मेरा मन सतत पूज्यश्री के स्मरण में लीन रहता है। तब से मेरे जीवन में ऐसे और इससे बढ़कर अनेकों चमत्कार होते रहे हैं। पूज्यश्री की मुझ पर असीम कृपा है।"

शामजी भाई जे. पटेल

ए 1/1, चिनाईबाग फ्लेट्स, लॉ कॉलेज के पीछे, अमदावाद-6

(अनुक्रम)

वाह रे व्यसन तेरे रंग !

चाय सिनेमा सिगरेट बीड़ी जबसे हुई है जारी,

दुनिया में शोर मचा हाय बीमारी ! हाय बीमारी !

तेल पकौड़े गर्म गर्म खावें पीवें बर्फ का पानी,

गले में टांसिल हो गये हुई गले की हानि।

बुखार में संभोग करे टी.बी है तैयार,

खाँसी में जो गलती करते हुए दमे के बीमार।

चाय पीवें चार चार बार एक्जीमे की तैयारी,

फिर नींद की बीमारी फिर भूख की बीमारी,

फिर बाल गिरने की बीमारी फिर पेशाब की बीमारी।

(अनुक्रम)

उदगार....

"संत श्री आसाराम जी द्वारा लोगों के नैतिक और धार्मिक जीवन का उत्थान करने के लिए किये जा रहे कार्य बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रशंसनीय हैं। यहाँ से संतश्री द्वारा प्रेरित सुधार कार्य समाज जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन लायेगा। आप सब बहुत भाग्यशाली हैं कि ऐसे महान संत का सान्निध्य मिला है। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि हजारों की आँखों के आँसू पोंछने वाले ऐसे संत श्री को ईश्वर चिरंजीवी करें, इन्हें दीर्घजीवी बनायें।"

श्री कैलास पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर

1008 स्वामी श्री विद्यानंदगिरी जी महाराज,

वेदांत सर्वदर्शनाचार्य, कैलास आश्रम, ऋषिकेश।

"आसन-प्राणायाम आदि यौगिक क्रियाएँ करने से शरीर की स्थूलता घटती है और मन शांत होता है। परन्तु साधक योगमार्ग में ठीक से आगे तो तभी बढ़ सकता है जब उसे कोई पूर्ण योगी गुरु मिले। आप लोग बहुत भाग्यशाली हैं क्योंकि आपको संत श्री आसाराम जी जैसे शक्तिपात करने में कुशल और समर्थ ब्रह्मनिष्ठ गुरु मिले हैं।"

उत्तर गुजरात के प्रसिद्ध वैद्य

श्री बलरामदास जी महाराज, लोदरा (गुजरात)

इस पुस्तक को बार-बार पढ़ना.....

दारू छोड़ने की हिम्मत आ जायेगी

दारू, बीड़ी, जैसे घातक शत्रुओं को छोड़ने की इच्छा है? तो हिम्मत करो।

दारू छोड़ने का प्रयोगः प्रातःकाल उठकर दोनों हाथों को देखो। पाँच बार मन ही मन कहोः "आज मैं अपने मुँह में जहर नहीं डालूँगा.... दारू नहीं पीऊँगा..... नहीं पीऊँगा।"

स्नानादि के बाद कटोरी में थोड़ा जल लो। ललाट पर उस पानी का तिलक करो। दृढ़ संकल्प करो कि अब मैं अपना भाग्य बदलूँगा। "हरि ॐ....हरि ॐ.... हरि ॐ...." सवा सौ बार इस मंत्र का जप करो। पानी में निहारो और उस पानी के तीन घूँट पियो। रात्रि को सोते समय भी ऐसा करो। चमत्कारिक ईश्वरीय सहायता अवश्य मिलेगी।

बीड़ी छोड़ने का प्रयोगः सौंफ 100 ग्राम, अजवायन 100 ग्राम, सैंधव नमक 30 ग्राम, दो बड़े नींबू का रस करके तवे पर सेंक लो। जब बीड़ी पीने की आवश्यकता महसूस हो तब मुखवास लो। इससे रक्त सुधरेगा और बीड़ी डाकिनी से बच जाओगे।

(अनुक्रम)

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ